जीवित्पुत्रिका का पर्व खास हिन्दू त्योहारों में से एक माना जाता है। कहते हैं कि एक माँ दुनिया की सबसे ताकतवर इन्सान होती है। जीवित्पुत्रिका के दिन माँ अपने बच्चों की ख़ुशी, उनके स्वास्थ्य और लम्बी आयु के लिए पूरे दिन बिना कुछ खाए पिए उपवास रखती हैं और ईश्वर से कामना करती हैं की वो उनकी संतान की हमेशा रक्षा करे। जीवित्पुत्रिका उपवास को सबसे कठिन व्रत पूजा में से एक माना जाता है।
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आईये हम इस लेख के माध्यम से इस पावन व्रत पूजा जीवित्पुत्रिका जिसे जितिया या जिउतिया भी कहा जाता है, के बारे में जानते हैं।
1) जीवित्पुत्रिका पूजा हिन्दू महिलाओं द्वारा मनाये जाने वाला एक प्रमुख त्यौहार है।
2) सामान्य भाषा में इसे जिउतिया पूजा भी कहा जाता है।
3) हिंदी पंचांग के आश्विन माह की कृष्णपक्ष की अष्टमी के दिन यह पर्व मनाया जाता है।
4) ग्रेगोरियन कैलेंडर के अनुसार यह पर्व सितम्बर से अक्टूबर के महीने में मनाया जाता है।
5) हिन्दू धर्म के प्रमुख त्योहारों में जिउतिया व्रत पूजा महत्वपूर्ण स्थान रखता है।
6) इस दिन महिलायें अपने संतान के स्वास्थ्य और लम्बी उम्र के लिए उपवास रखती हैं।
7) माताएं एक लाल और पीले रंग का धागा पहनती है जिसे ‘जिउतिया’ कहते हैं।
8) इस उपवास में माताएं 1 दिन बिना कुछ खाए पिए निर्जला व्रत रखती हैं।
9) व्रत के दिन कई प्रकार के स्वादिष्ट प्रसाद और फल चढ़ाकर भगवन जिउतवाहन की पूजा किया जाती है।
10) यह मुख्य रूप से उत्तरप्रदेश, बिहार, पश्चिम बंगाल और झारखण्ड के साथ नेपाल के कुछ क्षेत्रों में मनाया जाता है।
1) संतान प्राप्ति और संतान के स्वस्थ जीवन के लिए सुहागिन औरतें जीवित्पुत्रिका व्रत करती हैं।
2) वर्ष 2021 में 29 सितम्बर को आश्विन माह की चन्द्र अष्टमी को यह व्रत किया जाएगा।
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3) जिउतिया का कठिन व्रत और पूजा हिन्दू त्योहारों में बहुत महत्व रखता है।
4) इस व्रत का संबंध महाभारत काल में भगवन श्री कृष्ण से माना जाता है।
5) लोगों की आस्था है की ये व्रत करने से भगवान श्री कृष्ण उनके बच्चों की रक्षा करते हैं।
6) यह पूजा सांयकाल के समय में सामूहिक रूप में इकट्ठे होकर मनाया जाता है।
7) इस व्रतपूजा में कई कथाओं के द्वारा जिउतिया व्रत के महत्व के बारे में बताया जाता है।
8) यह आश्विन माह की कृष्णपक्ष की सप्तमी से शुरू होकर नवमी तक चलने वाला तीन दिनों का पर्व है।
9) पहले दिन ‘नहाये-खाए’, दूसरे दिन को जितिया व्रत और तीसरे दिन उपवास खोला जाता है।
10) व्रत के अगले दिन मरुवा की रोटी और तोरी की सब्जी खाकर व्रत का पारण करते हैं।
एक माँ द्वारा अपने पुत्र के लिए किये जाने वाला यह व्रत अपने बच्चे के प्रति उनके प्यार और स्नेह को दर्शाता है। यह व्रत आश्विन के चन्द्र सप्तमी से ही सांयकाल को सूरज ढ़लने के समय से शुरू होकर नवमी के दिन सुबह तक चलता है। महिलायें एक साथ इकठ्ठा होकर पूजा का कार्यक्रम करती हैं जो लोगों को करीब लाने का भी काम करता है। प्रतिवर्ष किये जाने वाला यह व्रत हमारे जीवन में माँ की महत्वता को भी दर्शाता है।