भारतीय संस्कृति में व्याप्त विभिन्न प्रकार की कुरितीयो को बदलने तथा खत्म करने के लिए अनेकों महापुरुषों ने अपना-अपना योगदान दिया। ऐसे ही भारत में जन्में एक महान ऋषि थे महर्षि दयानंद सरस्वती जी जिन्होंने सनातन धर्म के प्रचार प्रसार साथ-साथ समाज में हो रही धर्म के प्रति अनुचित क्रिया कलापों को रोकने में मुख्य भूमिका निभाई थी।
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साथियों आज मैं महर्षि दयानंद सरस्वती पर 10 लाइन के द्वारा आप लोगों से महर्षि दयानंद सरस्वती जयंती के बारे में चर्चा करूंगा, दोस्तों मुझे उम्मीद है कि ये लाइन आपको जरूर पसंद आएंगी तथा आप इसे अपने स्कूल तथा अन्य स्थानों पर इस्तेमाल भी कर सकेंगे।
1) स्वामी दयानंद सरस्वती जी का जन्म 12 फरवरी 1824 को गुजरात के मोरबी नामक गाँव में हुआ था।
2) स्वामी दयानंद सरस्वती जी का असली नाम मूलशंकर था पिता का नाम अम्बा शंकर तथा माता का नाम अमृतबाई था।
3) उनके पिताजी महान शिव भक्त के साथ-साथ एक जमींदार थे, इसलिए उनका बचपन बहुत ही सुख-समृद्धि में बीता था।
4) दयानंद सरस्वती जी बड़े कुशाग्र बुद्धि थे वे केवल 14 वर्ष की आयु में ही सामवेद यजुर्वेद तथा संस्कृत व्याकरण का सम्पूर्ण कंठस्थ था।
5) अपने सगे चाचा की मृत्यु से वे विरक्त हो गए थे, औऱ जब पिता उनका विवाह कराना चाहते थे वह घर छोड़ कर चले गए और सत्य की खोज में इधर-उधर भटकने लगे।
6) अनेको साधु महात्माओं से मिलने के पश्चात एक दिन वह मथुरा में स्वामी विरजानंद जी से मिले और उन्हें गुरु मानकर वेदों व धार्मिक ग्रंथों का अध्ययन करने लगे।
7) स्वामी विरजानंद ने गुरु दक्षिणा के रूप में यह प्रण लिया कि वह सदैव वेद-वेदांत आदि का प्रचार-प्रसार करेगे और स्वामी दयानंद जी ने अंत तक इस प्रण को निभाया।
8) स्वामी दयानंद जी का 1857 की क्रांति में अभूतपूर्व योगदान रहा औऱ सर्वप्रथम स्वराज्य का नारा दिया जिसे बाद में लोकमान्य तिलक ने आगे बढ़ाया।
9) स्वामी दयानंद सरस्वती ने 10 अप्रैल 1875 को आर्य समाज की स्थापना की तथा बाल विवाह, सती प्रथा जैसी अनेको कुरीतियों के विरुद्ध कदम उठाए।
10) स्वामी जी 62 वर्ष की आयु में धोखे से विष पिला दिया गया था फलस्वरूप उनकी मृत्यु हो गई थी।
1) स्वामी दयानंद सरस्वती एक ऐसे महान व्यक्ति थे जिन्होंने अपना पूरा जीवन मानवता, देश और धर्म की भलाई में समर्पित कर दिया था।
2) उनके आंदोलन का लक्ष्य था हिन्दू समाज को अंधविश्वास, पाखंड और अनेको कुरीतियों से बाहर निकालना तथा अन्य मतों के अनुयायियों की गलत अवधारणाओं का भी विरोध किया करना।
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3) महर्षि दयानन्द सरस्वती जी ने अनेक स्थानों की यात्रा की हरिद्वार में कुंभ के अवसर पर ‘पाखण्ड खण्डिनी पताका’ फहराया।
4) उन्होने 10 अप्रैल 1875 को स्वामी विरजानंद की प्रेरणा से आर्यसमाज की स्थापना की जो एक समाज सुधारक आन्दोलन सिध्द हुआ।
5) सन् 1883 में जोधपुर के राजा जसवंत सिंह के महल में उनका अन्तिम दिन था क्योंकि किसी ने उन्हें छल से विष पिला दिया था।
6) दयानंद सरस्वती जी ने भारत में भ्रमण करने के दौरान एक योजना चलाई जिसका नाम रोटी और कमल योजना रखा जिससे देश की जनता को जागरूक करने में सहायता मिली।
7) महर्षि दयानंद एक महान कर्मयोगी सन्यासी थे जिन्होने सही अर्थों में अपने जीवन में सन्यास को चरितार्थ किया और संन्यास के सही अर्थ से दुनिया को अवगत कराया।
8) एक महात्मा होने के साथ-साथ एक विद्वान लेखक भी थे जिन्होने बहुत सी पुस्तकें लिखी जिनमें सत्यार्थ प्रकाश सर्वाधिक लोकप्रिय ग्रंथ है।
9) वास्तव में आर्यसमाज एक राष्ट्रवादी आन्दोलन था जिसके द्वारा स्वामी जी ने जातिवाद, अशिक्षा, अन्धविश्वास और महिलाओ पर अत्याचारों के विरुद्ध अपनी आवाज उठाई।
10) ऋषयो मंत्र दृष्टारः अर्थात वेद मंत्रों का अर्थ दृष्टा ऋषि होता है इसलिए स्वामी दयानंद सरस्वती जी को महर्षि कहा जाता है।
निष्कर्ष
आज हम जिस स्वतंत्र और आधुनिक भारत में सम्मानपूर्वक जी रहे है यह स्वामी दयानंद सरस्वती जैसे महापुरुषों की ही देन है।आर्यसमाज की स्थापना की तथा स्वामी जी के अचंभित कर देने वाले व्याख्यानों से प्रभावित होकर युवा आर्यसमाज की ओर मुड़ने लगे व आर्य समाज न केवल भारत में ही नही बल्कि दुनिया के अन्य हिस्सों में भी बहुत सक्रिय हुआ है।
दोस्तों मैं आशा करता हूँ कि महर्षि दयानंद सरस्वती जयंती पर 10 लाइन (Ten Lines on Swami Dayanand Saraswati Jayanti) आपको पसंद आए होंगे तथा आप इसे भली-भांति समझ गए होंगे।
धन्यवाद
उत्तरमहर्षि दयानंद सरस्वती ने अपनी प्रारंभिक शिक्षा अपने घर से ही प्राप्त की थी।
उत्तर- उनके चाचा जी की मृत्यु सन् 1846 में हुई थी।