नागरिकता संशोधन विधेयक (बिल) को भारतीय राष्ट्रपति द्वारा 12 दिसंबर 2019 को मंजूरी दी गई थी। जिसके बाद यह एक अधिनियम बन गया। जैसा कि वर्तमान सरकार ने पिछले चुनाव में वादा किया था, कि इस विधेयक को लाएंगे। सरकार ने इस बिल को लाकर और दोनों सदनों में भारी विरोध के बावजूद भी पारित करा कर, कानून बनवा कर अपना वादा पूरा किया। और 10 जनवरी 2020 से समस्त देश में प्रभावी हो गया।
नागरिकता संशोधन कानून/बिल पर छोटे-बड़े निबंध (Short and Long Essay on Citizenship Amendment Act/Bill – CAA/CAB, Nagrikta Sansodhan Kanoon par Nibandh Hindi mein)
निबंध – 1 (300 शब्द)
परिचय
नागरिकता संशोधन अधिनियम (CAA) से पाकिस्तान, अफगानिस्तान और बांग्लादेश के उन उत्पीड़ित अप्रवासियों को लाभ मिलने की उम्मीद है जो हिंदू, सिख, बौद्ध, जैन, पारसी और ईसाई समुदायों से हैं। अधिनियम के अनुसार, अगर इन प्रवासियों ने 31 दिसंबर 2014 को या उससे पहले भारत में शरण मांगी है, तो उन्हें भारतीय नागरिकता दी जाएगी।
क्या भारत के सभी राज्यों में CAA लागू है?
सीएए के प्रभाव में आने से पहले, इन अवैध प्रवासियों को नागरिकता के लिए आवेदन करने में सक्षम होने के लिए कम से कम 11 साल तक देश में रहना अनिवार्य था। सीएए ने अब रेजीडेंसी की इस अवधि को 5 साल कर दिया है।
नागरिकता संशोधन अधिनियम त्रिपुरा, असम, मेघालय और मिजोरम के आदिवासी क्षेत्रों पर लागू नहीं होगा, क्योंकि ये क्षेत्र संविधान की छठी अनुसूची के तहत आते हैं। मिजोरम, अरुणाचल प्रदेश और नागालैंड को भी सीएए से बाहर रखा जाएगा क्योंकि इन राज्यों में इनर लाइन परमिट शासन है।
नागरिकता संशोधन अधिनियम की आलोचना क्यों की गई?
प्रमुख विपक्षी दलों ने सीएए के खिलाफ विरोध प्रदर्शन का नेतृत्व किया। उन्होंने बताया कि अधिनियम भेदभावपूर्ण और अशांतिपूर्ण था क्योंकि मुस्लिम समुदायों के अप्रवासियों को लाभार्थियों की सूची से अलग कर दिया गया था।
भारत सरकार ने स्पष्ट किया कि अधिनियम ने पाकिस्तान, बांग्लादेश और अफगानिस्तान के इस्लामी देशों में उत्पीड़ित अल्पसंख्यकों को राहत प्रदान करने का प्रस्ताव दिया। चूँकि मुसलमान वहां उत्पीड़ित समुदायों की श्रेणी में नहीं आते, इसलिए अधिनियम उन्हें रक्षित (कवर) नहीं करता है।
निष्कर्ष
भारत के पूर्वोत्तर राज्यों में भी व्यापक विरोध प्रदर्शन हुए। प्रदर्शनकारियों की राय है कि ये अवैध अप्रवासी पूर्वोत्तर राज्यों के आर्थिक, सामाजिक और राजनीतिक ताने-बाने को तोड़ेंगे। वे इन क्षेत्रों में रहने वाले निवासियों के रोजगार के अवसरों के लिए भी खतरा हो सकते हैं।
निबंध – 2 (400 शब्द)
परिचय
CAA के सन्दर्भ में भारतीय जनता पार्टी अध्यक्ष और गृह मंत्री अमित शाह का वक्तव्य आया था “आज जो विपक्ष हमारी पार्टी की पंथनिरपेक्षता पर सवाल उठा रहे हैं मैं उनसे कहना चाहता हूँ कि आपकी पंथनिरपेक्षता बहुत सीमित है और हमारी बहुत व्यापक।
जो पीड़ित व प्रताड़ित हैं उनको लाना हमारी पंथनिरपेक्षता की व्याख्या है और आपकी पंथनिरपेक्षता सिर्फ एक धर्म तक सीमित है”
उनके कथन को सुनने के बाद बहुतों के भ्रम का निराकरण हुआ था। इसके विरोध में कई राज्यों में दंगे भड़क उठे थे। बिना सत्यता को जाने कई मुसलमान भाई सिर्फ दूसरे का देखा-देखी दंगो को भड़काने में सहयोग किया था।
नागरिकता संशोधन कानून – एक संक्षिप्त विवरण
नागरिकता संशोधन विधेयकको राष्ट्रपति श्री रामनाथ कोविंद ने 12 दिसंबर, 2019 को मंजूरी दी। जिसके बाद ही यह कानून बन गया। इस विधेयक को लोकसभा ने 9 दिसंबर और राज्यसभा ने 11 दिसंबर को पारित किया था। यह अधिनियम इतिहास के पन्नों में स्वर्ण अक्षरों से अंकित होगा, तथा उन धार्मिक प्रताड़ना से पीड़ित लाखों शरणार्थियों के लिए वरदान साबित होगा।
यह अधिनियम बांग्लादेश, पाकिस्तान और अफगानिस्तान में प्रताड़ित हुए धार्मिक अल्पसंख्यकों को भारत की नागरिकता देने से संबंधित है। इन देशों में पिछले कई सालों से हिन्दु, सिख, पारसी, बौध्द आदि के साथ बुरा बर्ताव होता आया है। शारीरिक ही नहीं अपितु मानसिक प्रताड़ना भी इन लोगों ने झेली हैं। इसलिए इन धर्मो को मानने वाले समय-समय पर भारत आते रहते है। इनके खुद के देश में आदर नहीं होता, लेकिन हमारा महान देश, जिसे कोई नहीं अपनाता, उसे भी गले से लगा लेता है।
कायदे से तो उन शरणार्थी के पास भारत में आने और ठहरने का कोई अधिकार नहीं है और न ही कोई दस्तावेज इसकी पुष्टि करता है। कोई ठोस दस्तावेज न होने से भारत के नागरिकों को भी भारत की नागरिकता हासिल करने का कोई उपाय शेष नहीं बचता। जिस कारण भारत के नागरिकों को मिलने वाली सुविधाओं से वे वंचित रह जाते हैं।
धार्मिकता के आधार पर भेदभाव करना अत्यंत शर्मनाक होता है। जो किसी भी मानव के मानवाधिकारों का हनन है, चाहे वो किसी भी देश से ताल्लुक रखता हो। पाकिस्तान की नेशनल असेम्बली के आंकड़ो के अनुसार प्रति वर्ष पाँच हजार से ज्यादा विस्थापित हिन्दू भारत आते हैं।
हमारे पड़ोसी देश अल्पसंख्यकों खासकर हिन्दुओं को जबरन धर्म परिवर्तन कराते हैं, और न मानने पर बहुत ही आमानवीय व्यवहार किया जाता है। इन सभी नारकीय जीवन से छुटकारा पाने के लिए वो सभी भारत भाग कर आते हैं।
निष्कर्ष
इसके उद्देश्यों और कारणों में यह साफ लिखा कि ऐसे शरणार्थियों को जिन्होंने 31 दिसंबर 2014 से पहले भारत में प्रवेश कर लिया है, उन्हें अपनी नागरिकता संबंधी विषयों के लिए विशेष वैधानिक व्यवस्था की जरुरत है।
बेशक इस अधिनियम ने बहुत विरोध झेले हैं, लेकिन कहते हैं न, ‘अन्त भला तो सब भला’।
निबंध – 3 (500 शब्द)
परिचय
नागरिकता संशोधन अधिनियम (CAA) भारत में अवैध अप्रवासियों की स्थिति में संशोधन करता है। यह विशेष रूप से हिंदू, सिख, बौद्ध, जैन, पारसी और बांग्लादेश, अफगानिस्तान और पाकिस्तान के ईसाई प्रवासियों के लिए फायदेमंद है, जो बिना किसी वैध दस्तावेजों के देश में रह रहे हैं। ऐसे सभी अप्रवासी, जिन्होंने अपने मूल देशों में धार्मिक उत्पीड़न का सामना किया है और बाद में दिसंबर 2014 तक भारत चले आए हैं, उन्हें भारतीय नागरिकता प्रदान की जाएगी।
इससे पहले, इन तीन देशों और छह धर्मों से संबंधित अप्रवासियों को भारतीय नागरिकता के लिए अनुमोदित होने से पहले कम से कम 11 साल तक भारत में रहने के लिए अनिवार्य किया गया था। अब, कानून में संशोधन किया गया है ताकि निवास की अवधि केवल 5 वर्ष हो।
क्या नागरिकता संशोधन अधिनियम सभी राज्यों पर लागू है?
सीएए उन क्षेत्रों पर लागू नहीं होता है जो संविधान की छठी अनुसूची के तहत आते हैं, यानी, त्रिपुरा, असम, मेघालय और मिजोरम के आदिवासी क्षेत्र, अरुणाचल प्रदेश, मिजोरम और नागालैंड जैसे राज्यों में इनर लाइन परमिट शासन को भी इस अधिनियम से बाहर रखा गया है।
विपक्षी दलों द्वारा सीएए की आलोचना क्यों की गई है?
भारत के प्रमुख विपक्षी दलों ने इस बात पर प्रकाश डाला कि कानून भेदभावपूर्ण है क्योंकि मुस्लिम अप्रवासी समुदायों की सूची में शामिल नहीं हैं जो अधिनियम से लाभान्वित हो सकते हैं।
विपक्ष ने संकेत दिया कि मुसलमान भारतीय आबादी का लगभग 15% हिस्सा हैं, और यह अधिनियम उस समुदाय के अप्रवासियों को छोड़ देता है। इसलिए, असमान होने के कारण इसकी आलोचना की गई थी।
भारत सरकार ने स्पष्ट किया कि पाकिस्तान, अफगानिस्तान और बांग्लादेश के इस्लामिक देशों में मुसलमानों को सताया नहीं गया। सरकार ने कहा कि अधिनियम विशेष रूप से अल्पसंख्यकों को सताया जाने के लिए राहत प्रदान करता है; इसलिए, मुसलमानों को लाभार्थियों की सूची में शामिल नहीं किया गया था।
विभाजन के बाद, विभिन्न धर्मों से संबंधित लोग इन तीन देशों के निवासी रहे हैं और धार्मिक शत्रुता के कारण आतंकित भी। अपनी पसंद के धर्म का अभ्यास करने और प्रचार करने का उनका अधिकार वर्षों से अभिशप्त है। ऐसे उत्पीड़ित समुदायों ने बहुत लंबे समय से भारत में शरण ली है। सरकार उन्हें सीएए के माध्यम से राहत प्रदान करना चाह रही है।
सरकार अन्य समुदायों के आवेदनों की भी जांच कर सकती है और केस के आधार पर इन अनुरोधों की वैधता का आकलन कर सकती है।
भारत के नागरिकों से अधिनियम को किस तरह की आलोचना मिली?
विभिन्न राजनीतिक दलों ने अधिनियम का विरोध किया है और बताया कि यह प्रस्ताव धर्म के आधार पर नागरिकता प्रदान करता है। भारतीय नागरिकों (विशेषकर छात्रों) ने भी देश भर में विरोध प्रदर्शन का सहारा लिया है। मेघालय, असम, मिजोरम, सिक्किम, नागालैंड, त्रिपुरा और मणिपुर में विरोध प्रदर्शनों ने मीडिया का ध्यान खींचा है।
इन पूर्वोत्तर राज्यों के प्रदर्शनकारियों की राय है कि ये अवैध अप्रवासी इन राज्यों के संसाधनों के लिए एक बोझ होंगे और वर्तमान नागरिकों के लिए रोजगार के अवसरों को भी खतरे में डाल देंगे। उन्होंने यह भी कहा है कि अधिनियम 1985 के असम समझौते के अनुरूप नहीं है जो 24 मार्च 1971 को उन सभी प्रवासियों के निर्वासन की खत्म होने की (कट-ऑफ) तारीख बताता है जो अवैध रूप से भारत में प्रवेश कर चुके हैं।
निष्कर्ष
गृह मंत्रालय ने अभी तक उन नियमों को अधिसूचित नहीं किया है जो इस अधिनियम को चालू करेंगे। अधिनियम के खिलाफ कई याचिकाएं हैं जिन्हें जनवरी 2020 में सुप्रीम कोर्ट में सुना जाना है।