कहते हैं यदि कलयुग में कोई ईश्वर इस धरती पर हैं, तो वो केवल परम राम भक्त श्री हनुमान ही हैं। श्री हनुमान को वायु पुत्र भी कहा जाता है। उनका वेग तो वायु से भी तेज माना जाता है। उनका जन्म ही राम काज को सिध्द करने के लिए हुआ था।
श्री हनुमान पर छोटे-बड़े निबंध (Short and Long Essay on Lord Hanuman in Hindi, Shri Hanuman par Nibandh Hindi mein)
निबंध – 1 (300 शब्द)
परिचय
“हे दुख भंजन, मारुति नंदन
सुन लो मेरी पुकार, पवन सुत विनती बारंबार।”
पवन पुत्र का नाम लेते ही सारे दुख दूर हो जाते है। उनका नाम सुनते ही सभी बुरी शक्तियां दूर भाग जाती है। कहते है कलयुग में सिर्फ प्रभु हनुमान ही सशरीर विद्यमान हैं, और जब तक इस धरती पर प्रभु राम का नाम रहेगा, तब तक राम भक्त हनुमान भी रहेंगे।
श्री हनुमान का जन्म
मनीषियों के अनुसार हनुमान का जन्म त्रेता युग के अंतिम चरण में चैत्र मास की पूर्णिमा के दिन हुआ था।
सूर्य को समझ लिया लाल फल
कहते है, एक बार जब वो केवल छः माह के थे, उन्हें अत्यंत भूख लगी थी, माता अंजना जैसे ही बाहर भोजन लेने जाती है। उनसे भूख बर्दाश्त नहीं होती है, और वो आकाश की तरफ देखते है, तो लाल फल जैसा गोल वस्तु (सूर्य) दिखाई पड़ता है, जिसे खाने वो आकाश में उड़ जाते है।
हनुमान नाम क्यों पड़ा?
जब बालक मारुति लाल सूर्य को खाने आकाश में पहुँचे, उस दिन अमावस्या का दिन था और राहु सूर्य को ग्रसने वाला था। लेकिन जब उसने देखा कि कोई और सूर्य को खाने जा रहा है, तो वह डर कर देवराज इंद्र के पास पहुँचा।
इंद्र ने बालक को सूरज को खाने से मना किया, पर वो कहां मानने वाले थे। तब गुस्से में आकर इंद्र ने मारुति पर अपने वज्र से प्रहार किया। जिससे उनकी ठुड्डी पर आघात लगा और वो मूर्छित होकर धरा पर गिर पड़े।
इंद्र के ऐसे दुस्साहस से पवन देव अत्यंत क्रोधित हुए और गुस्से में आकर पूरी धरती से वायु का संचार रोक दिया। समस्त संसार बिना वायु के विचलित हो उठा। ब्रह्मदेव ने आकर बालक मारुति को पुनर्जीवित किया और वायुदेव से अनुरोध किया कि वो संसार में पुनः वायु का संचार करें, अन्यथा समस्त संसार मृत्यु को प्राप्त हो जाएगा।
सबके आग्रह करने पर वायु देव मान गये और अपने पुत्र को वरदान दिया कि उनकी गति उनसे भी तेज होगी। साथ ही ब्रह्मदेव समेत सभी देवताओं ने उन्हें वरदान दिए। और इस तरह हनु अर्थात ठुड्डी पर चोट लगने के कारण उनका नाम ‘हनुमान’ पड़ा।
निष्कर्ष
हनुमान श्री राम के अनन्य भक्त थे। वो हर समय अपने प्रभु श्री राम और माता जानकी की सेवा के लिए तत्पर रहते थे। कहते है, जो भी जन प्रभु राम का नाम जपता है, उसे हनुमान जी की कृपा स्वतः मिल जाती है।
निबंध – 2 (400 शब्द)
परिचय
भगवान हनुमान को तीनों लोकों में सबसे शक्तिशाली भगवान माना जाता है। उन्हें विभिन्न नामों से जाना जाता है, उनमें से कुछ हैं- बजरंग बली, केशरी नंदन, पवन कुमार, मारुति, संकट मोचन आदि। भगवान हनुमान की शक्ति और भक्ति के कारण, लोग उनसे आशीर्वाद पाने और एक निस्वार्थ जीवन जीने के लिए पूजा-अर्चना करते हैं।
सबसे अधिक पूजित और स्मरणीय भगवान
विशेष रूप से परेशानी या खतरे के समय में भगवान हनुमान सबसे ज्यादा याद किए जाते हैं। एक हिंदू के लिए यह बिल्कुल सामान्य है, चाहे वह कितना भी शिक्षित क्यों न हो, संकट में, खतरे या भय से गुजरने पर सबसे पहले, जय हनुमान का ही नाम लेता है।
हनुमान जी ने कभी भी भगवान होने का दावा नहीं किया है, अपितु खुद को ‘त्रेता युग’ में विष्णु के अवतार प्रभु श्रीराम के सबसे वफादार और समर्पित सेवक के रुप में वर्णित किया।
रुद्रावतार वीर हनुमान
कहा जाता है कि अंजना माता अपने पूर्व जन्म में शिव की महान भक्त थी, और कठोर तपस्या करके महादेव को प्रसन्न किया था। वरदान स्वरुप शिव को ही उनके पुत्र के रुप में जन्म लेने का वरदान मांगा था।
पवनपुत्र हनुमान
वरदान के फलस्वरुप भगवान भोलेनाथ के रुद्र अवतार ने अंजना के कोख से जन्म लिया। ऐसी भी किवदंतियां है कि उन्होंने इसके लिए पवन देव को चुना था और आंजनेय (हनुमान) का उत्तरदायित्व सौंपा था। पवनदेव ने ही शिव के अंश को अंजना की कोख में पहुँचाया था। इसी लिए हनुमान को पवनपुत्र भी कहते हैं।
बचपन में मिला श्राप
बचपन में हनुमान जी बहुत ज्यादा शरारत किया करते थे। हर वक्त मस्ती करते थे। साधु-संतो को भी बहुत परेशान करते थे और उनकी तपस्या आदि में विघ्न डाला करते थे, जिससे क्रुध्द आकर एक ऋषि ने उन्हें श्राप दे दिया कि वो अपनी सारी शक्ति भूल जायेंगे, और जब कभी कोई उन्हें उनकी शक्ति याद दिलाएगा, तभी उन्हें याद आएगी।
इसी कारण जब माता सीता का पता लगाने लंका जाना था, तब जामवंत जी को उन्हें उनकी शक्ति को याद दिलाना पड़ा था। यह प्रहसन किष्किंधाकांड और सुंदरकांड में मिलता है।
“राम काज लगि तव अवतारा”
अनेक देवताओं से मिला वरदान
बालक मारुति बचपन से ही बहुत शरारती थे, जिस कारण उन पर एक बार देवराज ने वज्र प्रहार किया था। उसके बाद ब्रह्मदेव, महादेव, इंद्र देव आदि कई अमोघ वरदान दिए। इंद्र देवता ने आशीर्वाद दिया कि उनका शरीर वज्र की भांति हो जाए। तभी से प्रभु का नाम बजरंग बली पड़ गया। ब्रह्मदेव ने वरदान दिया कि वो चाहे जैसा रुप धारण कर सकते थे, सूक्ष्म से सूक्ष्म और विशाल से विशाल।
“सूक्ष्म रुप धरि सियहिं दिखावा।
विकट रुप धरि लंक जरावा।।”
निष्कर्ष
श्री राम के अनन्य भक्त है, श्री हनुमान। उनकी भक्ति सभी के लिए अनुकरणीय है। श्री हनुमान को भक्त शिरोमणि भी कहा जाता है। कहते है, जहाँ भी श्री राम की वन्दना होती है वहाँ श्री हनुमान अवश्य मौजूद रहते हैं।
निबंध – 3 (500 शब्द)
परिचय
हनुमान जी को हिन्दू देवी-देवताओं में प्रमुख स्थान प्राप्त है। उन्हें हनुमत, दुखभंजन, मारुतिनंदन आदि जैसे अन्य नामों से भी जाना जाता है। इनकी माता का नाम अंजना था, इस कारण हनुमान को आंजनेय (अर्थात अंजना का पुत्र) भी कहते है। इनके पिता का नाम केशरी था।
भक्ति के प्रतीक
हनुमान एक ऐसे भगवान हैं, जिन्होंने विष्णु के अवतार राम की मदद की, अपनी पत्नी सीता को राक्षसराज रावण से बचाने में, और समाज में नायाब उदाहरण पेश किया। साथ ही भक्ति की शक्ति के प्रतीक बने। उन्हें शिव का अवतार भी माना जाता है, और चीनी पौराणिक चरित्र सूर्य वुकोंग का स्रोत भी माना गया है।
जन्म से जुड़े कई रहस्य
हनुमान एक शापित अप्सरा पुंजिकस्थला (अंजना) के पुत्र हैं, जिसे एक ऋषि से वानर कुल में जन्म लेने का श्राप मिला था। ऐसा भी कहा जाता है कि इस श्राप के कारण देवी अंजना, एक वानर महिला बन गईं थी। वह केसरी की पत्नी थी, जो एक “शक्तिशाली वानर राज” थे। जिन्होंने एक बार एक शक्तिशाली हाथी को मार गिराया था, जो ऋषि और अन्य जीवों को परेशान करता था। इसलिए उन्हें केसरी का नाम मिला, जिसका अर्थ सिंह होता है और उन्हें कुंजारा सुदाना (हाथी हत्यारा) भी कहा जाता है।
ऐसी भी किवदंती है कि जब राजा दशरथ पुत्र प्राप्ति के लिए यज्ञ करवा रहे थे, तब उनके यज्ञ से अग्नि देव प्रसन्न होकर उन्हें स्वर्ण पात्र में खीर देते हैं और राजा दशरथ से उनकी तीनों रानियों को देने के लिए कहते हैं। जिससे उन्हें चार पुत्रों की प्राप्ति होगी। ऐसा कहते ही अग्नि देव अदृश्य हो जाते हैं। राजा दशरथ सबसे पहले माता कौशल्या को खीर खिलाते है, फिर माता सुमित्रा और सबसे अंत में माता कैकेयी को। जिस कारण माता कैकेयी रुठ जाती है।
दूसरी ओर माता अंजना भी भगवान शिव की पुत्र प्राप्ति हेतु अंजन पर्वत पर तपस्या करती रहती हैं।
तभी उड़ता हुआ एक चील आता है, और कैकेयी के हाथ पर रखे पात्र से कुछ खीर उठाकर आकाश की ओर उड़ जाता है और माता अंजना, जो अंजन पर्वत पर तपस्या में लीन रहती हैं, उनके हाथों में गिरा देता है। और माता अंजना उसे शिव शंकर का आशीर्वाद समझ कर ग्रहण कर लेती हैं।
दरअसल वो चील कोई सामान्य चील नहीं रहता है, बल्कि माता अंजना की तपस्या से खुश होकर भगवान शिव ने ही उसे ऐसा करने के लिए भेजा रहता है।
खीर खाकर जहाँ राजा दशरथ की तीनों रानियां गर्भवती होतीं हैं, और श्रीराम, लक्ष्मण, भरत, शत्रुघ्न का जन्म होता है, वहीं माता अंजना वीर हनुमान को जन्म देती हैं।
रामलीला के प्रमुख पात्र
बिना हनुमान के पूरी रामलीला अधूरी मानी जाती है। जैसा कि स्पष्ट है, हनुमान भारत में होने वाली रामलीलाओं का एक अभिन्न अंग हैं। रामलीला रामायण या रामचरितमानस की कहानी का एक नाटकीय रुपान्तरण है। इनका मंचन ज्यादातर दशहरा के शुभ समय के दौरान किया जाता है।
हनुमान जयंती
इस त्यौहार के अलावा, एक और महत्वपूर्ण अवसर हनुमान जयंती है जो भगवान हनुमान के जन्मदिन पर मनाया जाता है। यह त्यौहार चैत्र (मार्च-अप्रैल) के महीने में मनाया जाता है और केरल और तमिलनाडु जैसे स्थानों में, यह दिसंबर-जनवरी के महीने में मनाया जाता है। इस त्यौहार में हनुमान भक्त सूर्योदय से पहले ही मंदिरों में जमा हो जाते हैं और फिर वे दिन भर आध्यात्मिक स्मृतियों और बुराई पर अच्छाई की जीत के बारे में तथा रामकथा पर परिचर्चा करते हैं।
निष्कर्ष
आज भी, हनुमान चालीसा सभी को अच्छी तरह से ज्ञात और याद होता है और किसी भी परेशानी का सामना करने पर सबसे पहली चीज यही होती है कि हम सभी हनुमान चालीसा का पाठ करने लगते है, और हमारा डर दूर भी हो जाता है।
तो अगली बार जब आप किसी तरह की समस्या में हों, तो आप जानते हैं कि किस भगवान को बुलाना है।
“जय हनुमान ज्ञान गुन सागर, जय कपीस तिहुं लोक उजागर।।”