भारत देश दुनिया का एक ऐसा देश है जहाँ अनेक धर्मों को मानने वाले लोग साथ-साथ निवास करते हैं तथा एक-दूसरे के धर्म जाति तथा भाषा का भी सम्मान करते हैं। प्रत्येक धर्म का अपना अलग-अलग धार्मिक रीति-रिवाज तथा त्यौहार होता है, पोंगल पर्व भी उनमें से एक है। यह तमिलनाडु का एक प्रसिद्ध त्योहार है जो जनवरी माह में 4 दिनों तक मनाया जाता है। पोंगल पर्व का इतिहास लगभग 1000 वर्ष पुराना है, इस दिन तमिलनाडु के सभी सरकारी संस्थानों में अवकाश रहता है। भारत के साथ-साथ दुनिया के अन्य देशों (श्रीलंका, मलेशिया, मॉरीशस, अमेरिका आदि) में निवास करने वाले तमिल लोगों द्वारा प्रतिवर्ष यह त्यौहार बड़े हर्ष एवं उल्लास के साथ मनाया जाता है।
पोंगल पर छोटे एवं बड़े निबंध (Short and Long Essays on Pongal Festival in Hindi, Pongal par Nibandh Hindi mein)
नमस्कार साथियों आज मैं पोंगल पर आप लोगों के समक्ष लघु एवं दीर्घ निबंध प्रस्तुत कर रहा हूँ, मुझे उम्मीद है कि यह आपको पसंद आयेगा तथा इसको आप यथा संभव उपयोग भी कर सकेंगे।
पोंगल पर छोटा निबंध – 300 शब्द
प्रस्तावना
पोंगल तमिलनाडु राज्य का एक महत्वपूर्ण त्यौहार है परंतु इसे दक्षिण भारत के अन्य राज्यों में भी बड़े धूमधाम से मनाया जाता है। पोंगल मुख्य रूप से किसानों का त्यौहार है, यह चार दिवसीय पर्व कृषि से संबंधित देवताओं को समर्पित होता है क्योंकि किसान ऐसा मानते हैं कि उनकी अच्छी फसल के पीछे कृषि देवताओं का आशीर्वाद होता है।। सामान्य शब्दों में इस त्यौहार का मतलब पूर्णता से है, फसलों की कटाई की खुशी में यह त्यौहार 14 या 15 जनवरी से मनाना प्रारम्भ होता है और चार दिनों तक चलता है।
पोंगल के आकर्षण
पोंगल दक्षिण भारत में जोर-शोर से मनाया जाने वाला एक एक महत्वपूर्ण त्यौहार है, अन्य त्योहारों की भांति इस दिन भी लोग अपने घरों को सजाते हैं। इस पर्व पर बड़ी मात्रा में बैलों की लड़ाई का आयोजन कराया जाता है, लोग इस आयोजन में भाग लेने के लिए अपने-अपने बैलों को वर्ष भर तैयार करते हैं। लोग इस दिन आपस में भाईचारा प्रदर्शित करते हुए एक-दूसरे को मंगलमय वर्ष की शुभकामनाएं देते हैं तथा सामूहिक रात्रि भोज का भी आयोजन करते हैं। इस दिन लोग मुख्य रूप से किसान फसल तथा जीवन में रोशनी भरने के लिए सूर्य भगवान के प्रति कृतज्ञता व्यक्त करते हैं।
निष्कर्ष
पोंगल तमिलनाडु का एक ऐसा त्यौहार है, जिसे दक्षिण भारत के अधिकतम लोगों द्वारा बड़े धुमधाम से मनाया जाता है। इस त्यौहार पर आयोजित होने वाली बैलों की लड़ाई पूरे भारत में प्रसिद्ध है, लोग दूसरे राज्यों से भी इस आयोजन का लुफ्त उठाने यहाँ आते हैं। पोंगल मनाने की विधि लगभग गोवर्धन पूजा से मिलती-जुलती है परंतु धार्मिक विविधता के कारण उनके नाम अलग है मगर इनका उद्देश्य एक है लोगों के बीच हर्ष एवं उल्लास का संचार करना।
पोंगल पर बड़ा निबंध – 1000 शब्द
प्रस्तावना
पोंगल तमिलनाडु का एक प्रसिद्ध त्यौहार है, पोंगल शब्द तमिल भाषा का शब्द है जिसका अर्थ है उबालना। इस दिन गुड़ और चावल को उबालकर भगवान सूर्य को चढ़ाया जाता है, सूर्य भगवान को चढ़ाए जाने वाले इस प्रसाद को ही पोंगल के नाम से जाना जाता है। इसलिए इस त्यौहार का नाम पोंगल पड़ गया। यह त्योहार मुख्य रूप से किसानों तथा कृषि से संबंधित देवताओं को समर्पित होता है। चावल, गन्ना, हल्दी आदि फसलों को काटकर सुरक्षित रखने के बाद प्रतिवर्ष जनवरी माह के मध्य में यह त्यौहार मनाया जाता है।
पोंगल मनाने के रीति-रिवाज
पोंगल दक्षिण भारत का एक चार दिवसीय त्यौहार है, इस त्यौहार के माध्यम से इस दिन भगवान को अच्छी फसल के लिए उत्कृष्ट मौसम प्रदान करने के लिए धन्यवाद किया जाता है। पोंगल त्यौहार चार दिन तक लगातार मनाया जाता है तथा चारों दिन अलग-अलग देवताओं को पूजा जाता है।
पोंगल का पहला दिन (भोगी पोंगल)
भोगी पोंगल को लोग अपने घरों की साफ- सफाई करते हैं तथा मिट्टी के बर्तनों पर कुमकुम और स्वास्तिक सजाते हैं। पोंगल के पहले दिन बादलों के शासक (वर्षा के देवता) कहे जाने वाले भगवान इंद्र की पूजा की जाती है क्योंकि अच्छी फसल के लिए वर्षा का होना जरूरी है और लोगों का मानना है कि वर्षा तभी संभव है जब भगवान इंद्र खुश होंगे।
इस दिन एक और अनुष्ठान किया जाता है जिसे भोगी मंटालू के नाम से जानते हैं, अच्छी फसल के लिए किसान भगवान इंद्र की आराधना एवं शुक्रिया करते हैं तथा उनसे आशीर्वाद की कामना करते हैं जिससे उनके घर परिवार में धन और सुख की समृद्धि बनी रहे। घर के बेकार सामान को इस दिन लकड़ी तथा गाय के उपलों के साथ जला दिया जाता है, लड़कियां इस आग के चारों ओर नृत्य करती है तथा ईश्वर के गीत गाती है।
पोंगल का दूसरा दिन (सूर्य पोंगल)
पोंगल के दूसरे दिन को सूर्य पोंगल के नाम से जाना जाता है, इस दिन घर का सबसे बड़ा सदस्य भगवान सूर्य देव को भोग लगाने के लिए मिट्टी के बर्तन में चावल और पानी डालकर पोंगल बनाता है। जिस मिट्टी के बर्तन में पोंगल बनाया जाता है उसके चारों और हल्दी का पौधा बांधा जाता है। पोंगल तथा अन्य दैवीय वस्तुओं को अर्पण करके भगवान सूर्य की आराधना की जाती है तथा भगवान से हमेशा दया दृष्टि बनाए रखने की प्रार्थना भी की जाती है।
इस दिन लोग पारंपरिक पोषाक तथा चिन्हों आदि को धारण करते हैं तथा सुबह- सुबह नहा धोकर अपने घर में चूने से कोलाम (एक शुभ चिन्ह) भी बनाते हैं। इस दिन जिन बर्तनों में पूजा किया जाता है उनको पति और पत्नी आपस में बांट लेते हैं।
पोंगल का तीसरा दिन (मट्टू पोंगल)
पोंगल का तीसरा दिन मट्टू पोंगल के नाम से प्रसिद्ध है, यह दिन गाय तथा बैलों की पूजा और अर्चना के लिए प्रसिद्ध है। पोंगल के तीसरे दिन मवेशियों को नहला धुला कर अच्छी तरह से सजाया जाता है उनके गले में घंटियां तथा फूलों की मालाएं भी बांधी जाती है फिर विधि पूर्वक उनकी पूजा की जाती है।
किसानों के जीवन में गाय का बहुत ही महत्वपूर्ण स्थान होता है ये उनको दूध एवं खाद प्रदान करती है, इसलिए इस दिन को गाय पोंगल के नाम से भी जाना जाता है। इनके गले में लटकी घंटियों की आवाज ग्रामीण जन को आकर्षित करती है लोग इस दिन मवेशियों के दौड़ का भी आयोजन करते हैं।
मट्टू पोंगल के दिन का एक और विशेष महत्व होता है औरतें इस दिन अपने भाइयों के लिए सुखी एवं स्वस्थ जीवन की कामना करती है। इस दिन लोग अपने सगे संबंधियों को स्वादिष्ट मिठाइयों की भेट देते हैं।
पोंगल का चौथा दिन (कानुम पोंगल)
पोंगल के चौथे दिन परिवार के सभी सदस्य मिलकर एक साथ समय बिताते हैं, इस दिन लोग अपने बड़ों का आशीर्वाद लेते हैं तथा छोटों को प्यार देते हैं। इस दिन परिवार के सभी सदस्य एक साथ मिलकर हल्दी के पत्ते पर खाना खाते हैं, इस दिन खाने में मुख्यतः चावल, मिठाई, सुपारी, गन्ना आदि परोसे जाते हैं। आज के दिन भी महिलाएं अपने भाईयों के उज्जवल भविष्य की कामना करती है तथा तेल एवं चूना पत्थर के साथ उनकी आरती करती है।
पोंगल का इतिहास
पोंगल भारतीय संस्कृति की आभूषणों में से एक है जिसे धारण करने के बाद संस्कृति में निखार आ जाता है। पोंगल का इतिहास लगभग 1000 साल पुराना है। पोंगल से जुड़ी भारत वर्ष में दो पौराणिक दन्त कथाएं प्रचलित है
पहली पौराणिक कथा के अनुसार भगवान शिव ने एक बार अपने बैल के द्वारा स्वर्ग से पृथ्वी वासियों के लिए एक संदेश भेजा जिसमे कहाँ था की उन्हें महीने में एक बार खाना खाना चाहिए तथा रोज तेल से स्नान करना चाहिए। लेकिन स्वर्ग से धरती पर आते-आते बसवा (बैल) संदेश का क्रम भूल गया और धरती वासियों को विपरीत संदेश सुना बैठा, उसने कहा की भगवान ने संदेश दिया है कि महीने में एक बार तेल से नहाना चाहिए तथा रोज-रोज भोजन करना चाहिए। भगवान शिव बसवा की इस गलती से बहुत क्रुद्ध हुए तथा उन्होंने उसे श्राप दे दिया और कहा कि उसे धरती पर जाकर इंसानों के प्रतिदिन के भोजन करने के लिए अधिक अन्न उत्पन्न करने में मदद करनी होगी। इस प्रकार से यह त्यौहार मवेशियों से संबंधित है।
दूसरी पौराणिक कथा भगवान इंद्र तथा श्री कृष्ण से संबंधित है, एक बार भगवान कृष्ण ने जब मथुरा में अवतार लिया था उसी समय इंद्र देव को अपने शक्ति तथा पदवी पर बहुत अहंकार हो गया था क्योंकि वो देवताओं के राजा बन चुके थे। तब भगवान श्री कृष्ण ने इंद्र को सबक सिखाने तथा उन्हें सही राह पर लाने के लिए एक लीला रची। भगवान श्री कृष्ण ने अपने सभी मथुरा वासियों को इंद्र की पूजा करने से मना कर दिया, इस बात की खबर लगते ही देवेन्द्र बहुत अधिक क्रोधित हो गए। उनके आदेशानुसार पवन देव ने मथुरा में तूफान ला दिया तथा वहाँ तीन दिन तक लगातार मुसलाधार बारिश भी होती रही, पूरी मथुरा देवेन्द्र के कहर से कराह रही थी। उस समय सभी लोगों की रक्षा के लिए भगवान श्री कृष्ण ने अपनी छोटी उंगली पर गोवर्धन पर्वत को उठा लिया तब इंद्र को अपनी गलती का एहसास हो गया और वो भगवान की शक्ति को भी समझ गए थे तथा उनसे माफी भी मांगी। श्री कृष्ण का आदेश पाकर भगवान विश्वकर्मा ने मथुरा को दोबारा बसा दिया, भगवान कृष्ण ने वहाँ फिर से अपनी गायों तथा ग्वालों के साथ मिलकर मिलकर खेती करना शुरू किया।
निष्कर्ष
पोंगल हरियाली और संपन्नता को समर्पित तमिलनाडु का एक प्रसिद्ध त्योहार है, इस दिन भगवान सूर्य की पूजा अर्चना की जाती है तथा घर के सबसे बुजुर्ग व्यक्ति द्वारा बनाया गया पोंगल (भोग) अर्पित किया जाता है। पोंगल को दक्षिण भारत में एक द्रविड़ फसल त्यौहार के रूप में मान्यता प्राप्त है इस त्यौहार का उल्लेख संस्कृत पुराणों में भी मिलता है, कुछ पौराणिक कथाएं भी पोंगल त्योहार के साथ जुड़ी हुई है।
मैं आशा करता हूँ कि पोंगल पर निबंध आपको पसंद आया होगा तथा मुझे उम्मीद है कि ये आपके स्कूल आदि जगहों पर आपके लिए उपयोगी भी सिद्ध होगा।
धन्यवाद!
पोंगल पर अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न (Frequently Asked Questions on Pongal Festival)
उत्तर- पोंगल त्योहार पर आयोजित सुप्रसिद्ध बैलों के लड़ाई वाले खेल को जलीकट्टू के नाम से जाना जाता है।
उत्तर- पोंगल पर्व को थाई पोंगल के नाम से भी जाना जाता है।
उत्तर- ग्रेगोरियन कैलेंडर के अनुसार पोंगल का त्यौहार जनवरी महीने के 13-14 तारीख को प्रारंभ होता है।
उत्तर- पोंगल मनाते समय मटके के मुंह पर साबुत हल्दी बांधा जाता है।
उत्तर- पोंगल चार दिनों तक मनाया जाने वाला पर्व है।