कोहिनूर क्या है
कोहिनूर दुनिया का सबसे प्रसिद्ध और सबसे पुराना हीरा है। इसके पीछे का इतिहास बहुत बड़ा और महान है। कोहिनूर एक फारसी नाम है, जिसका अर्थ है, “प्रकाश का पर्वत”। कोहिनूर हीरे का पहली बार उल्लेख 1306 में, मालवा के राजा, के राज्य के दौरान किया गया था। यह हीरा राजा के परिवार के पास कई सदियों तक रहा। यह एक अंडाकार सफेद रंग का (मुर्गी के छोटे अंडे के आकार का) 186 कैरेट का हीरा है। यह दुबारा कटाई के बाद 105.6 कैरेट का बचा है, जो लंदन की टॉवर में सुरक्षित है।
ऐतिहासिक रुप से यह कई फारसी और भारतीय शासकों से संबंधित है हालांकि, इंग्लैंड की महारानी विक्टोरिया को भारत की साम्राज्ञी घोषित करने के समय से ही यह इंग्लैंड की क्राउन ज्वेलरी का हिस्सा है। किवदंतियों के अनुसार, यह माना जाता है कि, यह लगभग 5000 साल पुराना है और संस्कृत में इसे श्यामन्तक गहना कहा जाता था। इसके अस्तित्व के एक अन्य प्रमाण के अनुसार, 1526 में बाबर के द्वारा भारत पर आक्रमण के दौरान यह भारत में ही था। उसके अनुसार 13वीं सदी से ही यह हीरा ग्वालियर के राजा के स्वामित्व में था।
भारत में कोहिनूर की उत्पत्ति (कोहिनूर हीरा कहा पाया गया)
कोहिनूर की उत्पत्ति गोलकुंडा, भारत में हुई थी। यह कोयले की खुदाई के दौरान में कौलार खान (विशेषतः रायलसीमा हीरे की खान, जिसका अर्थ है “पत्थरों की भूमि”) में काकतीय राजवंश के दौरान पाया गया था। इसी समय से यह शासन करने वाले एक शासक से दूसरे शासक के पास रहा। मूल रुप से, इसका नाम “श्यामन्तिक मणि” है, जिसका अर्थ है, सभी हीरों का नेता या युवराज। 1739 में, फारस के राजा नादिरशाह ने भारत पर आक्रमण किया था तो इसका नाम “प्रकाश का पर्वत” रखा गया।
उस समय, यह साम्राज्य की शक्ति के प्रतीक के रुप में था। इसके बारे में सत्य ही कहा जाता था, “जिसके पास यह हीरे का स्वामित्व है वह संसार का स्वामी होगा, लेकिन अपने दुर्भाग्य के लिए भी जाना जाएगा। केवल भगवान या एक महिला ही इसे धारण कर सकती है।” कोहिनूर के अभिशाप की कहानियों के अनुसार, यह कहा जाता है कि, यह कब्जा, विकृति, यातना और विश्वासघात का नेतृत्व करता है।
कोहिनूर का इतिहास
ऐतिहासिक रुप से, इसकी उपस्थिति का प्रमाणीकृत उल्लेख 1306 में हिन्दू ग्रन्थों में पाया गया है। कोहिनूर और राजाओं (इसके स्वामित्व का रखने वाले) का इतिहास रेलवे की लाइनों की तरह समान्तर रुप से चला आ रहा है, जो हत्याओं, शोषण, विकृति, यातनाओं, हिंसा आदि से भरी हुई हैं। हम इस पत्थर के अभिशाप के इतिहास से इन्कार नहीं कर सकते, जो हमें सतर्क करने के लिए पर्याप्त है। इसके इतिहास से पूरी तरह परिचित होने के बाद भी ब्रिटिश शाही परिवार ने इसे अपने कब्जे में ले लिया।
इस पत्थर के चारों ओर, बहुत से मिथकों और किवदंतियों का इतिहास घेरे हुए हैं। इसके अद्वितीय मूल्य को इसके एक मालिक (महान मुगल सम्राट बाबर) द्वारा इसका वर्णन किया गया है कि, कोहिनूर “पूरे संसार में सभी व्यक्तियों के लिए एक दिन के भोजन की कीमत है।” यह उन शासकों के दुर्भाग्य की कहानियाँ बताता है, जो इसके लिए लड़े और महान शासक जिनके पास इसका स्वामित्व था। इतिहास के अनुसार, कोहिनूर का इतिहास इस प्रकार है:
- 1200 से 1300 के बीच में कोहिनूर भावी युद्ध और हिंसा के साथ बहुत से राजवंशों के पास था; जैसे- 1206 से 1290 को बीच के दौरान इसका स्वामित्व गुलाम वंश के पास, 1290-1320 खिलजी राजवंश के पास, 1320-1413 तक तुगलक वंश के पास, 1414-1451 तक सैयद वंश के पास, और 1451-1526 लोदी वंश के पास था।
- 1306 में, इसे मालवा के राजा से काकतीय साम्राज्य के शासकों के द्वारा जबरदस्ती अधिकार में लिया गया।
- 1323 में यह मौहम्मद-बिन-तुगलक के अधिकार में था, जो बाद में 1325-1351 तक दिल्ली का सुल्तान रहा।
- इसके बाद यह 1323 से 1526 तक, भारत पर शासन करने वाले दिल्ली सल्तनत (जिसमें बहुत से मुस्लिम राजवंश, जैसे- मंगोल, फारसी, तुर्की, अफगान योद्धा आदि) में ही रहा।
- इसके बाद यह 1526 में, दिल्ली के अन्तिम सुल्तान (इब्राहिम लोदी) की, तिरमुड के राजकुमार बाबर के द्वारा पानी की पहली लड़ाई में हार के बाद दुबारा मुगल सम्राज्य द्वारा प्राप्त कर लिया गया। भारत पर मुगल शासकों के द्वारा 200 सालों तक राज्य किया गया, इस तरह से हीरा एक मुगल सम्राट से दूसरे मुगल सम्राट के पास अपने हिंसक और खूनी इतिहास के साथ रहा।
- मुगल सम्राट शाहजहाँ के शासन काल (1592-1666) तक, यह हीरा मयूर सिंहासन में लगा रहा।
- 1639 में, अपने सभी तीनों भाईयों को हराने के बाद औरंगजेब (शाहजहाँ के बेटों में से एक) के स्वामित्व में रहा था। दुनिया में सबसे बड़ा हीरा होने के कारण इसे तवेनेर (एक व्यापारी) के द्वारा 1665 में “महान मोगलू” नाम दिया था।
- 1739 में, फारस के राजा नादिर शाह के द्वारा मुगल साम्राज्य पर आक्रमण करके इस महान हीरे चुराकर को अपने अधिकार में ले लिया गया। इस तरह से, हीरे को फारस ले जाया गया।
- कोहिनूर के अभिशाप के कारण, 1747 में नादिर शाह का साम्राज्य बहुत शीघ्र नष्ट हो गया।
- 1800-1839 तक, यह राजा रणजीत सिंह के अधिकार में था और इसके बाद उनके उत्तराधिकारियों पर था।
- कुछ समय बाद, ब्रिटेन ने भारत पर आक्रमण किया और 1858 से 1947 तक शासन किया। ब्रिटिश गर्वनर-जनरल, लॉर्ड डलहौजी, के द्वारा हीरे को ब्रिटिश शासन के द्वारा अपने अधिकार में ले लिया। 1851 में, रणजीत सिंह के उत्तराधिकारी (दिलीप सिंह) को रानी विक्टोरिया के सामने कोहिनूर को समर्पित करने के लिए मजबूर किया गया। इसका एकबार हाइड पार्क लंदन में जनता के सामने मंचन किया गया।
- इसे 1852 में राजकुमार एल्बर्ट के आदेश पर इसकी प्रतिभा को बढ़ाने के लिए दुबारा (186 से 105.6 कैरेट में) काटा गया। यह राजाओं की रानियों (महारानी एलेक्जेंडर, महरानी मैरी, आदि) के ताज के मध्य में कई सालों तक रहा।
- बाद में, इसे महारानी ऐलिजाबेथ (जार्ज पंचम की पत्नी) के ताज में 1936 में लगवा दिया गया।
इंग्लैंड के लिए इसकी यात्रा
इंग्लैंड की इसकी यात्रा इसके इतिहास के बारे में बताती है कि, कैसे कोहिनूर भारत से इंग्लैंड पहुँचा। अन्त में, यह राजा रणजीत सिंह के बेटे (महाराजा दिलीप सिंह) के अधिकार में था। वह समय वास्तव में बहुत ही बुरा समय था, जब भारत ब्रिटिश साम्राज्य के अधीन था। ब्रिटिश सरकार की लाहौर की संधि की एक शर्त के अनुसार, लाहौर के राजा के द्वारा ब्रिटेन की महारानी को कोहिनूर समर्पित किया जाएगा। यह हीरे को तौशाखाना (ज्वेल हाउस) से बाहर ले जाने के लिए ब्रिटिशों की रणनीति थी।
कोहिनूर की यात्रा के पीछे बहुत ही रोचक इतिहास है, क्योंकि यह मुबई में एच.एम.एस. मैडिआ से लंदन के लिए एक लोहे के बक्से में रवाना हुआ था, जिसे फिर से प्रेषण बक्से में रखा गया। कई महिनों की यात्रा के बाद, यह अपने निर्धारित स्थान पर पहुँचा और ईस्ट इंडिया हाउस को दो अधिकारियों के द्वारा समर्पित कर दिया गया और इसके बाद कंपनी के अध्यक्ष और उपाध्यक्ष को सौंप दिया गया। यह भारतीय तट से 6 अप्रैल 1850 को रवाना हुआ और 2 जुलाई 1850 को पहुँच गया, जहाँ इसे ईस्ट इंडिया कंपनी के निदेशक मंडल को सौंप दिया गया।
महारानी के ताज में हीरा
जब भारत के राजा के द्वारा कोहिनूर को महारानी को समर्पित किया गया, तो राजकुमार एल्बर्ट ने इसे दुबारा काटने का आदेश दिया क्योंकि यह अच्छी तरह से कटा हुआ नहीं था। हीरे की दुबारा कटाई के लिए कुछ अनुभवी हीरे काटने वालों ने छोटे भाप के इंजन के साथ इंग्लैंड के लिए यात्रा की। हीरे की दुबारा कटाई (इसने लगभग 38 दिन लिए, जिसकी लागत 40,000 डॉलर थी) के बाद, जब यह निश्चित हो गया कि इससे पीली परत हटा दी गई है और यह अधिक चमकदार हो गया है, तो इसे ताज (क्राउन) की शोभा बढ़ाने के लिए लगा दिया गया, जिसमें पहले से ही 2 हजार से भी ज्यादा हीरे हुए लगे हुए थे।
अन्त में, हीरा प्रतिभावान अंडे के आकार का पहले से कम वजन का हो गया। बाद में, नियमित रुप से 33 पहलुओं में तारकीय शानदार कट के कारण इसने 43 प्रतिशत के आसपास वजन खो दिया था। बाद में 1911 में, इसे नए ताज में लगा दिया गया था, जिसे महारानी मैरी ने राज्यभिषेक में पहना था। 1937 में, फिर से महारानी ऐलिजाबेथ के लिए बनाए गए ताज में हस्तान्तरित कर दिया गया।
कोहिनूर के स्वामित्व पर विवाद
भारत की सरकार के द्वारा यह विश्वास किया जाता है कि, यह पत्थर भारतीय राष्ट्र की धरोहर है। हीरे को वापस करने का पहला अनुरोध आजादी के तुरंत बाद 1947 में किया गया था और दूसरा अनुरोध 1953 में महारानी ऐलिजाबेथ द्वितीय के राज्यभिषेक के दौरान किया गया था हालांकि, ब्रिटिश सरकार के द्वारा दोनों ही दावों का खंडन किया गया।
1976 में पाकिस्तान ने यह कहते हुए कोहिनूर पर अपना स्वामित्व प्रदर्शित किया कि, “उपनिवेशवाद की प्रक्रिया के दौरान ब्रिटेन ने स्वेच्छा से शाही बाध्यता का विश्वसनीय प्रदर्शन” हालांकि, पाकिस्तान के प्रधानमंत्री (जुल्फिकार अली भुट्टो) को यूनाइटेड किंगडम के प्रधानमंत्री (जेम्स कैलहन) ने जबाव देते हुए कहा कि, “मुझे न तो उन बहुत से हाथों को याद दिलाने की आवश्यकता है, जिनमें यह पत्थर पिछली दो सदियों में गया है और न ही 1849 में ब्रिटिश सम्राज्य के लिए ताज के हस्तान्तरण के लिए लाहौर के राजा के द्वारा की गई संधि के स्पष्ट प्रावधान का। मैं अपनी साम्रज्ञी को आत्मसम्पर्ण करने की सलाह कभी नहीं दूंगा।”
बाद में 2000 में, बहुत से भारतीय संसद के सदस्यों ने इसके बाहर ले जाने को अवैध घोषित करते हुए इसे वापस करने का दावा किया है, हालांकि, ब्रिटिश अधिकारियों के द्वारा इसके लिए निरंतर मना किया गया है। इसी बीच में, अफगानिस्तान ने भी दावा किया है कि, पहले हीरे का मालिक इसे अफगानिस्तान से भारत लेकर गया और फिर ये भारत से ब्रिटेन गया।
2010 में, यू.के प्रधानमंत्री (डेविड कैमरुन) के दौरे के दौरान कहा गया कि, “यदि, आप किसी एक के लिए हाँ कहते हैं, तो अचानक आप पाएगें कि, ब्रिटेन का संग्रहालय खाली होगा, मुझे यह कहने में डर लग रहा है, इसे रखे रहने को रोकने के लिए ऐसा कहा जा रहा है” और 2013 की यात्रा के दौरान उन्होंने फिर से कहा कि, “वे अपने पास की वस्तु को वापस नहीं देंगे।”
कोहिनूर हीरे का मालिक कौन है
हमने कोहिनूर के अधिकारयुक्त स्वामित्व की शब्दों की लड़ाई में 20 सदियों को व्यतीत कर दिया है। कोहिनूर के अधिकार को वापस करने के सन्दर्भ में 1947 से अब तक भारत की सरकार, उड़ीसा का कांग्रेस मंत्रालय, रणजीत सिंह के कोषाध्याक्ष, पाकिस्तान, अफगानिस्तान, ईरान आदि के द्वारा बहुत से दावों को किया जा चुका है। कोहिनूर कई देशों के अधिकार में रहा है; जैसे- 213 सालों के लिए दिल्ली में, 66 सालों के लिए कंधार और काबुल (अफगानिस्तान) में और 127 सालों से ब्रिटेन में रहा है।
इतिहास के अनुसार, वास्तविक हीरे के स्वामित्व का निर्णय लेना कठिन है। यद्यपि, जेमोलॉजिकल (भौगोलिक) पहलु और कागजों की रिपोर्ट के अनुसार, भारतीय दावे अधिक वैध है, क्योंकि कोहिनूर भारत में मिला था। जब यह कौलार की खान (आन्ध्र प्रदेश भारत का एक राज्य) में मिला था, उस समय यह पूरे संसार में सबसे बड़ा हीरा था।
यह भारत से बाहर अवैध रुप से ले जाया गया था और इसे भारत को वापस करना चाहिए। 1997 में, भारत की आजादी की 50वीं वर्षगाँठ के दौरान महारानी ऐलिजाबेथ द्वितीय के भारत दौरे के समय इसे भारत वापस लाने की माँग भी की गई थी।
भारत में कोहिनूर हीरे की वापसी
भारतीय संस्कृति मंत्रालय ने 19 अप्रैल 2016 में यह कहते हुए शुरुआत की कि, उन “सभी संभव प्रयासों को करेंगे” जो देश में हीरे को वापस ले आए। भारतीय सरकार ने यह स्वीकार किया है कि, यह पत्थर महारानी को तौहफे में दिया गया था हालांकि, अपनी सम्पत्ति को वापस करने का अनुरोध किया गया है। यह कहा गया है कि, “यह राजा रणजीत सिंह के द्वारा ब्रिटिश संधिकर्ताओं को युद्ध में सिखों की मदद करने के लिए अपनी स्वेच्छा से दिया गया था। कोह-ई-नूर चुराई गई वस्तु नहीं है।”
नवम्बर 2015 में, भारतीय प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के यू.के. दौरे के दौरान भारतीय मूल के ब्रिटिश सांसद (कीथ वाज) ने कहा कि, विश्व प्रसिद्ध कोहिनूर हीरे को भारत को वापस कर देना चाहिए। यह भारत में उत्पन्न हुई सम्पत्ति है, जो देश को सम्मान के साथ वापस करनी चाहिए।
कोहिनूर – एक अभिशाप
इतिहास के अनुसार, यह स्पष्ट है कि, यह एक शासक से दूसरे शासक को दिया गया। जब यह उचित तरीके से प्रयोग के ज्ञान के बिना लंदन चला गया, तो इसने अभिशाप के स्थान पर वरदान के रुप में अपनी प्रकृति को बदल लिया। यह सूर्य की तरह चमकता हुआ चमकदार पत्थर है हालांकि, कुछ प्रदेशों में प्रतिबंधित है। यह शनि (धीमी गति से चलता हुआ) के अन्तर्गत आता है, यह अपने स्वामी को तेजी से नहीं धीरे से प्रभावित करता है।
यह उन लोगों को लाभान्वित करता है, जो इसके शुद्धिकरण की प्रक्रिया को जानते हैं हालांकि, उन लोगों को बुरी तरह से प्रभावित करता है, जो इसके शुद्धिकरण के बारे में नहीं जानते हैं। यह अपने प्रभावों को दिखाने में 10 से 25 साल लेता है। इसका गलत तरीके से प्रयोग इसके स्वामी के राज्य को नष्ट करता है या उसके घर की शान्ति को गलत तरीके से प्रभावित करता है। यह रानियों के लिए कम भाग्यशाली भी है, क्योंकि वे बहुत सी बहुमूल्य चीजों और भूमि को हीरे के बुरे प्रभाव को शान्त करने के लिए खोती हैं, इसलिए कम दुर्भाग्य का सामना करती हैं।
यदि हम पिछले इतिहास पर कुछ प्रकाश डालें तो हम देखते हैं कि, 1813 में इसका स्वामित्व राजा रणजीत सिंह के पास था और 25 सालों के बाद 1839 में, उन्हें लकवे का दौरा पड़ा, यहाँ तक कि उनकी उसी साल मृत्यु हो गई। कोहिनूर, अपनी स्त्री स्वामी को उसके राज्य का नाश, ख्याति या घर में अशान्ति का निर्माण करके, घर तोड़ने या पूरी तरह से सम्राज्य का नाश करके करता है। इस पर अधिकार को बनाए रखने के लिए ग्रेट ब्रिटेन को बहुत संघर्ष करना पड़ा। हीरे के शाप से बचने और आशीर्वाद को बनाए रखने के लिए इसकी शुद्धता को बनाए रखना बहुत आवश्यक है।