बाबा साहेब डॉ भीम राव अंबेडकर पर कविता

एक दिन ऐसा भी था जब गले में हांड़ी थी और कमर में झाड़ू था,

गायों के दूध वो पीते थे लेकिन मरने पर चमड़ा सिर्फ हमारा था।

एक भारत ऐसा भी था जहाँ दलितों की जिन्दगी जानवरों से भी बदतर था,

जहाँ पी सकते थे जानवर पानी लेकिन दलितों को ये सम्मान न था,

अगर गढ़ा भगवान ने सबको तो हमें मंदिर में जाने का अधिकार क्यों न था।

हमारे पूर्वज भी राजा थे लेकिन इतिहास मिटाया गया ये कहकर कि वो देवता नहीं राक्षस थे,

भीषण थे वो हनुमान जैसे और दिमाग की मत पूछो दो धारी तलवार हो जैसे,

शाशन में था न्याय जिनके जीत सकते थे जो पूरी दुनिया को,

लेकिन मुट्ठी भर मनुवादी लोग कह के रावण होलिका उनको हमीं से आग लगवाते हैं,

थोप दिए अपना मनुवाद कहकर कि ब्रह्मा के पैर से जन्मे हम सभी शूद्र अछूत हैं,

तब से दलितों को था न पढ़ने लिखने का अधिकार और न इंसानों सा जीवन जीने का अधिकार।

हमें क्या पता, हमें क्या पता कैसा होता है भगवान, लेकिन जिसने इंसानों को इंसान बनाया,

जिसने लेकर जन्म भारत में बदल दिया हो हम बहुजनों शूद्रों अछूतों महिलाओं का इतिहास,

और लिखकर एक ऐसा संविधान जिसने हम सभी को दे दिया हो समान अधिकार,

मेरे समझ से शायद ऐसा ही होता है भगवान, शायद ऐसा ही होता है भगवान।

वो और कोई नहीं, थे हमारे बाबा साहेब महान, थे हमारे बाबा साहेब महान।।

— अर्चना सिंह पटेल