जलवायु परिवर्तन पर निबंध (Climate Change Essay in Hindi)

जलवायु परिवर्तन वास्तव में पृथ्वी पर जलवायु की परिस्थितियों में बदलाव को कहा जाता है। यह विभिन्न बाह्य एवं आंतरिक कारणों से होता है जिनमें सौर विकिरण, पृथ्वी की कक्षा में परिवर्तन, ज्वालामुखी विस्फोट, प्लेट टेक्टोनिक्स आदि सहित अन्य आंतरिक एवं बाह्य कारण सम्मिलित हैं। वास्तव में, जलवायु परिवर्तन, पिछले कुछ दशकों में विशेष रूप से चिंता का कारण बन गया है। पृथ्वी पर जलवायु के स्वरूप में परिवर्तन वैश्विक चिंता का विषय बन चुका है। जलवायु परिवर्तन के कई कारण होते हैं और यह परिवर्तन विभिन्न तरीकों से पृथ्वी पर जीवन को प्रभावित करता है।

जलवायु परिवर्तन पर छोटे तथा बड़े निबंध (Short and Long Essay on Climate Change in Hindi, Jalvayu Parivartan par Nibandh Hindi mein)

जलवायु परिवर्तन पर निबंध – 1 (300 शब्द)

प्रस्तावना

जलवायु परिवर्तन पृथ्वी पर जलवायु की परिस्थितियों में होने वाला बदलाव है। इसके लिए कई कारक सदियों से इस परिवर्तन को लाने में अपना योगदान देते रहे हैं। हालांकि अभी हाल ही के वर्षों मे वातावरण में हुआ प्रदूषण मुख्यतः मानव गतिविधियों का परिणाम है और इन गतिविधियों ने वातावरण पर बेहद नकारात्मक प्रभाव डाले हैं और इसे बुरी तरह प्रदूषित कर दिया है।

जलवायु परिवर्तन के कारण

सूर्य से उत्सर्जित जो ऊर्जा पृथ्वी तक पहुंचती है और फिर हवाओं और महासागरों द्वारा विश्व के विभिन्न भागों में आगे बढ़ती है, वह जलवायु परिवर्तन का एक प्रमुख कारण है। नए युग की तकनीकों का प्रयोग पृथ्वी पर कार्बन उत्सर्जन के दर को बढ़ा रहा है और इस प्रकार वतावरण को विपरीत रूप से प्रभावित कर रहा है। इसके अलावा, कक्षीय रूपांतरों, प्लेट टेक्टोनिक्स और ज्वालामुखी विस्फोटों से भी जलवायु में बदलाव हो सकते हैं।

जलवायु परिवर्तन के प्रभाव

जलवायु परिस्थितियों में होने वाले व्यापक परिवर्तनों के कारण कई पौधों और जानवरों की पूरी जनसंख्या विलुप्त हो गई है एवं कई अन्यों की जनसंख्या विलुप्त होने के कगार पर पहुंच चुकी है। कुछ क्षेत्रों में कुछ विशेष प्रकार के वृक्ष सामूहिक रूप से विलुप्त हो गए हैं। जलवायु परिस्थितियों में परिवर्तनों की वजह से जल-प्रणाली पर नकारात्मक प्रभाव पड़ रहा है। इसके परिणामस्वरूप ग्लेशियर पिघलते जा रहे हैं एवं वर्षा अनियमित रूप से हो रही है और साथ ही वर्षा का स्वरूप भी बिगड़ता जा रहा है। ये सारी परिस्थितियां पर्यावरण में असंतुलन को बढ़ा रहे हैं।

निष्कर्ष

जलवायु परिवर्तन की समस्या को गंभीरता से लेना आवश्यक है और वातावरण को प्रभावित कर रहे मानवीय गतिविधियां जो वातावरण को खराब करने में योगदान दे रहे हैं, उनको नियंत्रित करना महत्वपूर्ण है। सरकार के साथ ही साथ हमें भी जलवायु परिवर्तन पर रोकथाम के लिए प्रयास करना चाहिए।

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निबंध 2 (400 शब्द)

परिचय

जलवायु परिवर्तन को मूलतः धरती पर मौसम की औसत स्थितियों के स्वरूपों के वितरण में हो रहे परिवर्तन के तौर पर जाना जाता है। जब यह परिवर्तन कुछ दशकों या सदियों तक तक कायम रह जाता है तो इसे जलवायु परिवर्तन कहते हैं। जलवायु की परिस्थितियों में बदलाव लाने में कई कारकों का योगदान होता है। यहां हम जलवायु परिवर्तन के इन कारणों की व्याख्या कर रहे हैं:

जलवायु परिवर्तन के लिए जिम्मेदार घटक

यहां पृथ्वी पर जलवायु परिस्थितियों में बदलाव लाने वाले कुछ मुख्य कारकों पर हम आपका ध्यानाकर्षित कर रहे हैं:

  • सौर विकिरण

सूर्य की ऊर्जा पृथ्वी पर पहुंचती है और अंतरिक्ष में वापिस उत्सर्जित हो जाती है। सूर्य की ऊर्जा हवा, समुद्र के प्रवाह एवं अन्य तंत्रो के माध्यम से विश्व के विभिन्न हिस्सों में पहुंच जाती है, जिसके द्वारा उन हिस्सों के जलवायु तंत्र पर बुरा प्रभाव पड़ता है।

  • ज्वालामुखी विस्फोट

ज्वालामुखी विस्फोट पृथ्वी पर अक्सर होते रहते हैं और यह जलवायु में परिवर्तन लाने वाला एक और महत्वपूर्ण कारण है। पृथ्वी पर ज्वालामुखी विस्फोट का प्रभाव कुछ वर्षों तक रहता है।

  • मानवीय गतिविधियां

पृथ्वी पर जीवन स्वयं पृथ्वि के जलवायु में होने वाले परिवर्तनों में अपना योगदान देती है। मनुष्यों द्वारा कार्बन उत्सर्जन की प्रक्रिया एक ऐसा कारण है जो जलवायु को विपरीत रूप से प्रभावित करता है। जीवाश्म ईंधन के दहन, औद्योगिक अपशिष्टों को जलाए जाने एवं वाहनों द्वारा हो रहे प्रदूषणों में कार्बन का लगातार उत्सर्जन उत्सर्जित जलवायु पर गंभीर परिणाम छोड़ते हैं।

  • कक्षीय परिवर्तन

पृथ्वी की कक्षा में होने वाले बदलाव की वजह से सूर्य के प्रकाश के मौसमी वितरण पर बुरा असर पड़ता है और यह परिवर्तित हो जाता है। इस परिवर्तन की वजह से होने वाले विपरीत प्रभावों की वजह से मिल्नकोविच चक्रों का निर्माण होता है जो जलवायु पर विपरीत प्रभाव डालते हैं।

जलवायु परिवर्तन के प्रभाव

  • वनों पर प्रभाव

वन एक प्रकार से विभिन्न पशुओं और पौधों की कई प्रजातियों के लिए आवास की भूमिका निभाते हैं और साथ ही ये पृथ्वी पर पारिस्थितिक संतुलन बनाए रखते हैं। हालांकि, विश्व के कई क्षेत्रों में जलवायु परिवर्तन के कारण वन विलुप्त होने के कगार पर पहुंच गए हैं।

  • जल पर प्रभाव
  • जलवायु परिवर्तन के कारण धरती पर जल का पूरी प्रणाली अव्यवस्थित हो गई है। वर्षा का स्वरूप भी अनिश्चित हो गया है जिसके परिणामस्वरूप कई स्थानों पर सूखा एवं और बाढ़ जैसी चरम स्थितियों का सामना लोगों को करना पड़ रहा है। इसकी वजह से हिमनद भी पिघलते जा रहे हैं।

वन्य जीवन पर प्रभाव

जलवायु परिवर्तन विभिन्न जंगली प्रजातियों के अस्तित्व के लिए एक भीषण खतरे के रूप में उभर कर आया है जिसकी वजह से जंगली जानवरों और पौधों की कई प्रजातियां की संख्या में गिरावट दर्ज की जा रही है और कुछ तो विलुप्त होने के कगार पर पहुंच गए हैं।

निष्कर्ष

जलवायु परिवर्तन एक वैश्विक समस्या है। प्राकृतिक कारकों के अलावा, मानव गतिविधियों ने भी इस परिवर्तन में प्रमुख योगदान दिया है। मनुष्य प्राकृतिक कारणों को तो नियंत्रित नहीं कर सकता लेकिन वह कम से कम यह तो सुनिश्चित जरूर कर सकता है वह वातावरण पर नकारात्मक प्रभाव डालने वाली अपनी गतिविधियों को नियंत्रण में रखे ताकि धरती पर सामंजस्य बनाया रखा जा सके।

निबंध 3 (500 शब्द)

परिचय

जलवायु परिवर्तन वैश्विक जलवायु पैटर्न में बदलाव को दर्शाता है। हमारे ग्रह ने सदियों से जलवायु पैटर्न में परिवर्तन होते हुए देखा है। हालांकि, 20वीं शताब्दी के मध्य के बाद से हुए परिवर्तन अधिक स्पष्ट रूप से दृष्टिगोचर होते हैं। वातावरण में कार्बन डाइऑक्साइड के अनुपात में बहुत अधिक वृद्धि हो चुकी है जिसकी वजह से पृथ्वी के जलवायु में कई बड़े परिवर्तन हुए हैं। इसके अलावा, सदियों से कई प्राकृतिक बल जैसे कि सौर विकिरण, पृथ्वि की कक्षा में बदलाव एवं ज्वालामुखी विस्फोट इत्यादि पृथ्वी की जलवायु की परिस्थितियों को प्रभावित करते रहे हैं। यहां हमने जलवायु की परिस्थितियों में परिवर्तन के मुख्य कारणों एवं उनके नकारात्मक प्रभावों की विवेचना की है।

जलवायु परिवर्तन की वजहें

कई ऐसे कारक हैं जो अतीत में मौसम में परिवर्तन लाने के लिए जिम्मेदार रहे हैं। इनमें पृथ्वी पर पहुंचने वाली सौर ऊर्जा में विविधताएं, ज्वालामुखी विस्फोट, कक्षीय परिवर्तन और प्लेट टेक्टोनिक्स इत्यादि शामिल हैं। इसके अलावा, कई मानवीय गतिविधियां भी पिछले कुछ दशकों में जलवायु परिस्थितियों में परिवर्तन लाने के लिए जिम्मेदार रहीं हैं। अभी हाल ही में जो जलवायु की स्थितियों में बदलाव हुआ है उसे ग्लोबल वार्मिंग के तौर पर भी जाना जाता है। आइए हम इनमें से प्रत्येक कारणों के बारे में विस्तार से जानें:

सौर विकिरण

जिस दर पर सूर्य से ऊर्जा प्राप्त होती है और जिस गति से यह चारो तरफ फैलती है उसी के अनुरूप हमारे ग्रह पर तापमान एवं जलवायु का संतुलन तय होता है। हवाएं, महासागरीय जलधाराएं एवं वातावरण के अन्य तंत्र पूरी दुनिया में इसी सौर ऊर्जा को लेते हैं जिससे विभिन्न क्षेत्रों की जलवायुवीय परिस्थितियां प्रभावित होती हैं। सौर ऊर्जा की तीव्रता में दीर्घकालिक और साथ ही अल्पकालिक परिवर्तनों का असर वैश्विक जलवायु पर पड़ता है।

ज्वालामुखी विस्फोट

वे ज्वालामुखीय विस्फोट, जो स्ट्रैटोस्फियर में 100,000 टन से भी अधिक SO2 को उत्पन्न करते हैं, पृथ्वी के जलवायु को प्रभावित करने के लिए जाने जाते हैं। इस तरह के विस्फोट एक सदी में कई बार होते हैं और अगले कुछ सालों तक ये लिए पृथ्वी के वायुमंडल को ठंडा करते रहते हैं क्योंकि क्योंकि यह गैस पृथ्वी की सतह पर सौर विकिरण के संचरण को अंशतः अवरुद्ध करती है।

कक्षीय परिवर्तन

पृथ्वी की कक्षा में मामूली परिवर्तन से भी पृथ्वि की सतह पर सूर्य की रोशनी के मौसमी वितरण में बदलाव आते हैं। कक्षीय परिवर्तन तीन प्रकार के होते हैं – पृथ्वी की विकेन्द्रता में परिवर्तन, पृथ्वी की धुरी का पुरस्सरण और पृथ्वी के अक्ष में घूर्णन करते हुए पृथ्वी के धुरी के झुकाव कोण में बदलाव आदि। ये तीनों साथ मिलकर जलवायु पर बहुत बड़ा प्रभाव डालते हैं।

प्लेट टेक्टोनिक्स

टेक्टोनिक प्लेटों की गति पृथ्वी पर भूमि एवं महासागरों के स्वरूप में परिवर्तन लाती है और साथ ही लाखों वर्षों की अवधि में स्थलाकृति को बदलती है। इसकी वजह से वैश्विक जलवायु परिस्थितियां भी बदल जाती हैं।

निष्कर्ष

मौसम की स्थिति प्रतिदिन खराब होती जा रही है। ऊपर बताए गए प्राकृतिक कारकों की वजह से जलवायु पर हो रहे नकारात्मक प्रभाव को तो नियंत्रित नहीं किया जा सकता है, लेकिन, वैसी मानवीय गतिविधियां जो वायु, स्थल एवं जल प्रदूषण का कारण हैं और जो जलवायु पर नकारात्म प्रभाव डालती हैं उनपर प्रतिबंध जरूर लगाया जा सकता है। इस वैश्विक समस्या को नियंत्रित करने के लिए हममें से प्रत्येक को अपना योगदान देना चाहिए।

Essay on Climate Change in Hindi

निबंध 4 (600 शब्द)

परिचय

जैसा कि नाम से स्पष्ट है पृथ्वी पर जलवायु की परिस्थितियों में बदलाव होने को जलवायु परिवर्तन कहते हैं। यूं तो मौसम में अक्सर बदलाव होते रहते हैं, लेकिन जलवायु परिवर्तन केवल तभी घटित होता है जब ये बदलाव पिछले कुछ दशकों से लेकर सदियों तक कायम रहें। कई ऐसे कारक हैं जो जलवायु में बदलाव लाते हैं। यहां इन कारकों पर विस्तार से चर्चा की जा रही है:

जलवायु परिवर्तन के विभिन्न कारण

विभिन्न बाह्य एवं आंतरिक तंत्रों में बदलाव की वजह से जलवायु परिवर्तन होता है। आइए इनके बारे में में हम विस्तार से जानें:

बाहर से दबाव डालने वाले वाले तंत्र

  1. ज्वालामुखी विस्फोट

वे ज्वालामुखीय विस्फोट, जो पृथ्वि के स्ट्रैटोस्फियर में 100,000 टन से भी अधिक SO2 को उत्पन्न करते हैं, पृथ्वी के जलवायु को प्रभावित करने के लिए जाने जाते हैं। ये विस्फोट पृथ्वि के वायुमंडल को ठंडा करते रहते हैं क्योंकि इनसे निकलने वाली यह गैस पृथ्वी की सतह पर सौर विकिरण के संचरण में बाधा डालते हैं।

  1. सौर ऊर्जा का उत्पादन

जिस दर पर पृथ्वी को सूर्य से ऊर्जा प्राप्त होती है एवं वह दर जिससे यह ऊर्जा वापिस जलवायु में उत्सर्जित होती है वह पृथ्वी पर जलवायु संतुलन एवं तापमान को निर्धारित करती है। सौर ऊर्जा के उत्पादन में किसी भी प्रकार का परिवर्तन इस प्रकार वैश्विक जलवायु को प्रभावित करता है।

  1. प्लेट टेक्टोनिक्स

टेक्टोनिक प्लेटों की गति लाखों वर्षों की अवधि में जमीन और महासागरों को फिर से संगठित करके नई स्थलाकृति तैयार करती है। यह गतिविधि वैश्विक स्तर पर जलवायु की परिस्थितियों को प्रभावित करता है।

  1. पृथ्वी की कक्षा में बदलाव

पृथ्वी की कक्षा में परिवर्तन होने से सूर्य के प्रकाश के मौसमी वितरण, जिससे सतह पर पहुंचने वाले सूर्य के प्रकाश की मात्रा प्रभावित होती है, में परिवर्तन होता है। कक्षीय परिवर्तन तीन प्रकार के होते हैं इनमें पृथ्वी की विकेंद्रता में परिवर्तन, पृथ्वी के घूर्णन के अक्ष के झुकाव कोण में परिवर्तन और पृथ्वी की धुरी की विकेंद्रता इत्यादि शामिल हैं। इनकी वजह से मिल्नकोविच चक्रों का निर्माण होता है जो जलवायु पर बहुत बड़ा प्रभाव डालते हैं।

  1. मानवीय गतिविधियां

जीवाश्म ईंधनों के दहन की वजह से उत्पन्न CO2,  वाहनों का प्रदूषण, वनों की कटाई, पशु कृषि और भूमि का उपयोग आदि कुछ ऐसी मानवीय गतिविधियां हैं जो जलवायु में परिवर्तन ला रही हैं।

आंतरिक बलों के तंत्र का प्रभाव

  1. जीवन

कार्बन उत्सर्जन और पानी के चक्र में नकारात्मक बदलाव लाने में जीवन एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। इसका असर जलवायु परिवर्तन पर भी पड़ता है। यह कई अन्य नकारात्मक प्रभाव प्रदान करने के साथ ही, बादलों का निर्माण, वाष्पीकरण, एवं जलवायुवीय परिस्थितियों के निर्माण पर भी असर डालता है।

  1. महासागर-वायुमंडलीय परिवर्तनशीलता

वातावरण एवं महासागर एक साथ मिलकर आंतरिक जलवायु में परिवर्तन लाते हैं। ये परिवर्तन कुछ वर्षों से लेकर कुछ दशकों तक रह सकते हैं और वैश्विक सतह के तापमान को विपरीत रूप से प्रभावित कर सकते हैं।

जलवायु परिवर्तन के प्रभाव

जलवायु परिवर्तन के कारण पृथ्वी के पर्यावरण पर नकारात्मक प्रभाव पड़ रहा है। यहां इन प्रभावों का वर्णन किया जा रहा है:

  1. वनों पर प्रभाव

वन पर्यावरण में कार्बन डाइऑक्साइड का संतुलन बनाए रखने में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं, क्योंकि वे कार्बन डाईऑक्साइड को अवशोषित कर लेते हैं। हालांकि, पेड़ों की कई प्रजातियां तो वातावरण के लगातार बदलते माहौल का सामना करने में असमर्थ होने की वजह से विलुप्त हो गए हैं। वृक्षों और पौधों के बड़े पैमाने पर विलुप्त होने के कारण जैव विविधता के स्तर में कमी आई है जो पर्यावरण के लिए बुरा संकेत है।

  1. ध्रुवीय क्षेत्रों पर प्रभाव

हमारे ग्रह के उत्तरी एवं दक्षिणी ध्रुव इसके जलवायु को विनियमित करने के लिए महत्वपूर्ण हैं और बदलते जलवायु परिस्थितियों का बुरा प्रभाव इन पर भी हो रहा है। यदि ये परिवर्तन इसी तरह से जारी रहे, तो यह अनुमान लगाया जा रहा है कि आने वाले समय में ध्रुवीय क्षेत्रों में जीवन पूरी तरह से विलुप्त हो सकता है।

  1. जल पर पड़ने वाले प्रभाव

जलवायु परिवर्तन ने दुनिया भर में जल प्रणालियों के लिए कुछ गंभीर परिस्थितियों को जन्म दिया है। बदलते मौसम की स्थिति के कारण वर्षा के स्वरूप में पूरे विश्व में परिवर्तन हो रहा है और इस वजह से धरती के विभिन्न भागों में बाढ़ या सूखे की परिस्थितियां निर्मित हो रही हैं। तापमान में वृद्धि के कारण हिमनदों का पिघलना एक और महत्वपूर्ण मुद्दा है।

  1. वन्य जीवन पर प्रभाव

बाघ, अफ्रीकी हाथियों, एशियाई गैंडों, एडली पेंगुइन और ध्रुवीय भालू सहित विभिन्न जंगली जानवरों की संख्या में गिरावट दर्ज की गई है और इन प्रजातियों में से अधिकांश विलुप्त होने के कगार पर पहुंच चुके हैं, क्योंकि वे बदलते मौसम का सामना नहीं कर पा रहे हैं।

निष्कर्ष

जलवायु में होने वाले बदलावों के कारण पर्यावरण पर नकारात्मक प्रभाव पड़ रहा है। शोधकर्ताओं के मुताबिक, पिछले कुछ दशकों के दौरान मानवीय गतिविधियों ने इस बदलाव में तेजी लाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। जलवायु परिवर्तन को नियंत्रित करने और धरती पर स्वस्थ वातावरण बनाए रखने के लिए, धरती पर मानवीय गतिविधियों द्वारा होने वाले वाले प्रभावों को नियंत्रित किए जाने की आवश्यकता है।

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