भारत रत्न पुरस्कार
भारतीय गणराज्य के सर्वोच्च नागरिक पुरस्कार को भारत रत्न के रुप में जाना जाता है। 2 जनवरी 1954 को ये अस्तित्व में आया। ये सम्मान केवल साहित्य, विज्ञान, लोक सेवा और कला के क्षेत्र में विशेष कार्य के लिये दिया जाता है। ये सम्मान भारत में किसी को भी लिंग, नस्ल और उम्र के भेदभाव के बिना प्रदान किया जाता है। पहले ये सम्मान कुछ क्षेत्रों तक ही सीमित था लेकिन दिसंबर 2011 से इसमें बदलाव हुआ और अब इसमें सभी प्रकार के क्षेत्रों को शामिल कर लिया गया है।
हर वर्ष अधिकतम 3 व्यक्तियों को इस सम्मान से नवाजा जा सकता है तथा प्रधानमंत्री की सलाह पर राष्ट्रपति इन्हें मनोनीत करता है। इस पुरस्कार के तहत भारत के राष्ट्रपति द्वारा हस्ताक्षरित और पीपल के पत्ते के आकार का पदक प्रदान किया जाता है। प्राप्तकर्ता को इसके साथ किसी प्रकार का धन नहीं दिया जाता।
श्रेष्ठता के भारतीय क्रम में, भारत रत्न विजेता सातवें क्रम में आता है। लेकिन भारतीय संविधान के अनुच्छेद 18 के अनुसार भारत रत्न प्राप्तकर्ता कभी भी अपने नाम के साथ इसको उपनाम के रुप में नहीं जोड़ सकता।
1954 से, देश के 44 व्यक्तियों को इस गौरवपूर्णं और सर्वोच्च नागरिक सम्मान से नवाजा जा चुका है। चलिये संक्षिप्त में उन महान पुरुष और महिलाओं के बारे में जानते है जिन्हें ये सम्मान प्राप्त हुआ।
भारत रत्न प्राप्तकर्ता
चक्रवर्ती राजगोपालचारी
(1954 में भारत रत्न से समानित)
चक्रवर्ती राजगोपालचारी का जन्म 10 दिसंबर 1878 को मद्रास प्रांत के सलेम जिले में हुआ। वो एक प्रसिद्ध राजनीतिक, लेखक, वकील और स्वतंत्रता कार्यकर्ता के रुप में जाने जाते थे। 1937-1939 में इन्होंने दलितों को हिन्दू मंदिरों में प्रवेश के प्रतिबंध को हटाने, किसानों के कर्ज के बोझ को आसान बनाना तथा संस्थानों में हिन्दी को अनिवार्य शिक्षा के रुप में करने के लिये बड़े आंदोलन की शुरुआत की। ये सलेम साहित्यिक समाज के संस्थापक भी थे तथा इन्होंने दलित विद्यार्थियों के छात्रवृत्ति और कल्याण के लिये सुझाव दिया। इन्होंने प्राथमिक शिक्षा के संशोधित व्यवस्था को आरंभ किया।
1948 में लार्ड माउंटबेटन के भारत छोड़ने के बाद ये भारत के पहले और आखिरी गवर्नर जनरल बने और 1950 तक इस पद पर बने रहे। 1959 में, इन्होंने काँग्रेस पार्टी के खिलाफ स्वतंत्र पार्टी का निर्माण किया जो समानता और सरकार की निजी क्षेत्र पर पकड़ के लिये खड़ी हुई। ये और भी कई महत्वपूर्ण पदों पर रहें जैसे मद्रास प्रांत के प्रमुख, भारतीय संघ के गृह मंत्री, पश्चिम बंगाल के गवर्नर तथा मद्रास राज्य के मुख्यमंत्री आदि। उन्हें हमेशा अपने देश के लिये प्रमुख और विशिष्ट योगदान के लिये याद रखा जाएगा। 1954 में देश के लिये अपने बहुमूल्य योगदान के लिये इन्हें भारत के पहले सर्वोच्च नागरिक सम्मान भारत रत्न से सम्मानित किया गया।
सी.वी रमन
(1954 में भारत रत्न से समानित)
भारत के महान भौतिकशास्त्री सर चन्द्रशेखर वेंकट रमन का जन्म 7 नवंबर 1888 को थिरुवनईकवल में हुआ था। वो महात्मा गाँधी और उनके विचारों के बहुत बड़े अनुसरणकर्ता थे। इन्होंने अपनी शिक्षा चेन्नई के प्रेसिडेंसी कॉलेज और मद्रास विश्वविद्यालय से पूरी की तथा ये भौतिकी के क्षेत्र के महान शोधकर्ता थे। इन्होंने प्रकाश के क्वांटम स्वाभाव की खोज की और बताया कि जब प्रकाश किसी पारदर्शी वस्तु से गुजरता है तो, हटाया हुआ प्रकाश अपना तरंग दैर्ध्य बदलता है, आगे उन्होंने पाया कि प्रकाश क्वांटा तथा अणु अपनी ऊर्जा को बदलते है जो फैले हुए प्रकाश के रंग में बदलाव के रुप में खुद से दिखाता है जिसे बाद में रमन इफेक्ट कहा गया।
विज्ञान के क्षेत्र में ये एक विशिष्ट खोज थी, वो पहले एशियाई व्यक्ति थे जिनको इस खोज के लिये नोबल पुरस्कार से सम्मानित किया गया। इन्होंने भारतीय विज्ञान संस्थान बैंगलोर की भी स्थापना की जो पूरे देश में विज्ञान पर आधारित पत्रिका की सबसे अच्छी प्रकाशक है साथ ही रमन साहब ने बैंगलोर के पास ही में रमन शोध संस्थान भी बनवाया है।
देश के लिये भौतिकी में अपने शानदार योगदान के लिये 1954 में इन्हें भारत के सर्वोच्च नागरिक सम्मान भारत रत्न से नवाजा गया। 21 नवंबर 1970 को तेज ह्दयघात की वजह से इस महान वैज्ञानिक का निधन हो गया।
सर्वपल्ली राधाकृष्णन
(1954 में भारत रत्न से सम्मानित)
20वीं सदी के प्रख्यात और प्रमुख भारतीय दर्शनशास्त्री, विद्वान और राजनीतिज्ञ का जन्म 5 सितंबर 1888 को थिरुथानी में हुआ था। अपने पूरे जीवन काल में उन्होंने वृहद लेखन को व्यवसाय के रुप में चुना। एस राधाकृष्णन धर्म की विचारधारा और पूरे विश्व में हिन्दू धर्म को परिभाषित करना चाहते थे। पश्चिमी दर्शन के बारे में उनके विशाल ज्ञान ने भारत और पश्चिम के बीच में सेतु निर्माता के रुप में उनको प्रतिष्ठा दिलाई। उनका ज्यादातर दर्शन अद्वेत वेदांत पर आधारित था।
शिक्षा के क्षेत्र में उनके महान योगदान को देखते हुए 1954 में उन्हें सर्वोच्च भारतीय नागरिक सम्मान भारत रत्न प्रदान किया गया। राधाकृष्णन के सम्मान में मानवता के इनके सराहनीय कार्य के लिये भारत हर साल इनके जन्मदिन 5 सितंबर को शिक्षक दिवस के रुप में मनाता है। उनका ऐसा विचार था कि देश में शिक्षक का दिमाग सबसे अच्छा होना चाहिए। वो आँध्र प्रदेश के उप कुलपति के पद पर भी रहे और 1952 से 1962 तक के लिये देश के पहले उपराष्ट्रपति बने तथा 1962 से 1967 तक वो देश के दूसरे राष्ट्रपति के रुप में भी देश के इस सर्वोच्च पद पर काबिज हुए। 17 अप्रैल 1975 को चेन्नई में भारत के इस महान नेता और दर्शनशास्त्री का निधन हो गया।
भगवान दास
(1955 में भारत रत्न से सम्मानित)
1955 में मिले तीन भारत रत्न विजेताओं में भगवान दास भी एक थे। इस महान लेखक और भारतीय ब्रह्मविद्यावादी का जन्म 12 जनवरी 1869 को वाराणसी में हुआ था। इन्हें ब्रिटिश भारत के केन्द्रीय विधान सभा में नियुक्त किया गया था। दास संस्कृत के अध्येता थे और इन्होंने 30 से अधिक किताबें हिन्दी और संस्कृत भाषा में लिखी थी। असहयोग आंदोलन के बाद दास काँग्रेस से जुड़ गये। ये काशी विद्यापीठ के संस्थापक भी रहे हैं। भगवान दास 6 साल तक साधु के रुप में रहें हैं तथा अपने गुरु नीम करोली बाबा के सानिध्य में नाद योगा के प्रचीन विज्ञान की शिक्षा ली।
60 के दशक में वो एकमात्र जीवित सांस्कृतिक आदर्श थे। वो खुले दिल से गाने वाले गायक थे साथ ही अमेरिका में गाने वाले पहले कीर्तन कलाकार भी थे। एनी बेसेंट के सहयोग से केन्द्रीय हिन्दू कॉलेज की स्थापना में मददगार थे। जो बाद में सेंट्रल हिंदू स्कूल बना। चौथे भारत रत्न से सम्मानित भगवान दास की मृत्यु 18 सितंबर 1958 को हुई।
सर डॉ मौक्षगुंडम विश्वेश्वरय्या
(1955 में भारत रत्न से सम्मानित)
राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर सर डॉ मौक्षगुंडम विश्वेश्वरय्या का लंबा और सम्मानीय जीवन रहा है। इस अद्भुत भारतीय इंजीनियर का जन्म 15 सितंबर 1860 को मैसूर के कोलार जिले में चिक्काबल्लापुर तालुक में हुआ था। इन्होंने अपनी उच्च शिक्षा मद्रास यूनिवर्सिटी (1881) और पूने के इंजीनियरिंग कॉलेज (1883) से प्राप्त की। इन्होंने बाढ़ सुरक्षा तंत्र के मुख्य इंजीनियर के रुप में हैदराबाद शहर के लिये कार्य किया।
1911 में, सर विश्वरैय्या को भारतीय साम्राज्य के गुप्त समिति के सहयोगी के रुप में चुना गया। 1912 से 1918 तक उन्होंने मैसूर के दीवान के पद पर कार्य किया और उसके बाद इन्हें भारतीय साम्राज्य के गुप्त समिति के नाईट कमांडर के रुप में नाईट की पदवी से सम्मानित किया गया। इनको भारतीय सरकार द्वारा देश के दूसरे क्षेत्रों में दिये गये बहुमूल्य योगदान के लिये भी प्रशंसा मिली लेकिन शिक्षा और इंजीनियरिंग के क्षेत्र में इनको खास सराहना मिली। सर विश्वरैय्या ने इंजीनियरिंग क्षेत्र को और फैलाया साथ ही इसके पढ़ने के प्रारुप में संशोधन भी किया। इस महान शख्सियत को श्रद्धांजलि देने के लिये हर साल 15 सितंबर को भारत इंजीनियरिंग दिवस मनाता है। 1955 में इन्हें भारत रत्न पुरस्कार दिया गया। 12 अप्रैल 1962 को इस महान इंजीनियर का निधन हो गया।
जवाहर लाल नेहरु
(1955 में भारत रत्न से सम्मानित)
भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन के प्रमुख नेताओं में से एक और आधुनिक भारत के शिल्पकार जवाहर लाल नेहरु का जन्म 14 नवंबर 1889 में हुआ था। नेहरु जी ने ट्रीनीटी कॉलेज और कैंब्रिज कॉलेज से पढ़ाई की और उसके बाद बैरिस्टर के रुप में ट्रेनिंग के लिये बार से बुलावा आया। भारत लौटने के बाद नेहरु जी पूरी तरह से स्वतंत्रता आंदोलन में कूद पड़े। वो एक बहुत बड़े समाजवादी नेता थे और काँग्रेस पार्टी के तहत वामपंथी का प्रतिनिधित्व करते थे। गाँधी जी का उनसे खासा लगाव था तथा उन्हें सबसे भरोसेमंद सहायक के रुप में उनका मार्गदर्शन भी करते थे। नेहरु जी अपनी गहरी प्रतिबद्धता और प्रयासों की वजह से जल्द ही गाँधी जी के बाद राष्ट्रीय आंदोलन के प्रमुख नेता के बन गये। 1929 में वो पहली बार काँग्रेस के अध्यक्ष बने और घोषणा किया कि राष्ट्रीय आंदोलन का मुख्य लक्ष्य अंग्रेजों से पूर्णं स्वराज है।
धर्मनिरपेक्षता, समाजवाद, और लोकतंत्र के आधुनिक विचारों में नेहरु जी का बहुत विश्वास था; आजादी के बाद इन्हीं दूरदृष्टी को आजाद भारत में शामिल किया गया। नेहरु जी स्वतंत्र भारत के पहले प्रधानमंत्री बने और अपनी मृत्यु तक देश की सेवा की। पीएम के रुप में उन्होंने भारत को आधुनिक, आगे की ओर देखने वाला और प्रगतिशील राष्ट्र बनाने का कार्य प्रारंभ कर दिया; इन्होंने कई सारी वैज्ञानिक और शोध संस्थानों जैसे आईआईटी और एटॉमिक एनर्जी कमीशन आदि की स्थापना की; उद्योंगो को बढ़ावा दिया और देश के विकास के लिये पंचवर्षीय योजना आयोग का गठन किया।
विदेश नीति मामलों में ये गुट-निरपेक्ष आंदोलन के शिल्पकारों में से एक थे और भारत को एक नई दिशा दी जो उस समय के दो महाशक्तियों अमेरिका और यूएसएसआर की शक्ति राजनीति से खुद को अलग करने के लिये था। इस कदम ने बंद राजनीति और सहयोग से कई देशों को स्वतंत्र बनाया। गुट-निरपेक्ष आंदोलन नेहरु की एक महान विरासत है जो आज भी देश की मुख्य विदेश नीति का एक हिस्सा है। नेहरु जी का स्वास्थ्य 1962 के चाईना युद्ध के बाद बिगड़ गया और इसी युद्ध में भारत को हार का सामना करना पड़ा। उनका स्वास्थ्य लगातार गिरता चला गया और 27 मई 1964 को ह्दयघात की वजह से इनका निधन हो गया। नेहरु जी को 1955 में भारत रत्न से सम्मानित किया गया।
गोविन्द बल्लभ पंत
(1955 में भारत रत्न से सम्मानित)
एक महान स्वतंत्रता सेनानी जी.बी.पंत जी का जन्म 10 सितंबर 1887 को अलमोरा के निकट खूँट गाँव में हुआ। भारत के लोगों के बीच ये पंडित पंत के रुप में प्रसिद्ध थे। इन्होंने हिन्दी को सरकारी भाषा बनाने के लिये आंदोलन की स्थापित की। ये उत्तर प्रदेश के पहले मुख्यमंत्री (1950-1954) भी थे।
1914 में एक वकील के रुप में इन्होंने अंग्रेजों के खिलाफ आंदोलन में सक्रिय भागीदारी शुरु की। पार्टी के दूसरे सदस्यों से सहमति प्राप्त कर इन्होंने अपने असाधारण नेतृत्व कौशल की वजह से जल्द ही पार्टी के उपनेता के तौर पर काँग्रेस ज्वॉइन कर ली। गाँधी जी और पंडित नेहरु के साथ इन्होंने कई सारे आंदोलनों में भाग लिया। पंडित पंत ने 1955 से 1961 तक केन्द्रीय गृह मंत्री के रुप में भी देश की सेवा की।
मुख्यमंत्री बनने के बाद इन्होंने भारतीय समाज के लोक कल्याण के लिये जमींदारी व्यवस्था को हटा दिया और जो भारत के विकास की ओर एक बड़ा कदम था। इस शानदार व्यक्तित्व के नाम पूरे विश्व में कई सारे स्कूल, अस्पताल और विश्वविद्यालय खुले। पूरे विश्व में पटनागर विश्वविद्यालय का नाम कृषि विश्वविद्यालय का एक बेहतरीन उदाहरण है। अपने उत्कृष्ट कार्य करने के लिये इन्हें 1955 में देश के सर्वोच्च नागरिक सम्मान भारत रत्न से पुरस्कृत किया गया।
डॉ धोंडो केशव कर्वे
(1958 में भारत रत्न से सम्मानित)
अन्नासाहेब कार्वे का जन्म महाराष्ट्र के शेरावली में 18 अप्रैल 1858 में हुआ था। इन्होंने एलफिस्टन कॉलेज बॉम्बे (मुम्बई) से गणित विषय में अपनी स्नातक की डिग्री हासिल की। 1891 से 1914 के दौरान कार्वे ने पूने के फर्ग्युसन कॉलेज में गणित पढ़ाना शुरु किया। इसके बाद कार्वे सहाब ने अपना पूरा जीवन महिला शिक्षा के उत्थान के लिये अर्पण कर देने का फैसला किया। उन्होंने विधवाओं के उत्थान के लिये बहुत सारे कार्य किये। इन्होंने विधवा पुनर्विवाह को बढ़ावा दिया और उनके बच्चों की मदद की।
कार्वे ने महिलाओं के कल्याण के लिये कई सारी संस्थाएँ बनायी जैसे 1893 में विधवा-विवाहोत्तेजक मंडल, महाऋषि कार्वे स्त्री शिक्षण संस्थान आदि। इसके बाद 1916 में इन्होंने पहला महिलाओं के लिये श्रीमती नाथीबाई दामोदर ठाकरसे नाम से पूने में भारतीय महिला विश्वविद्यालय बनाया। 1949 में सांविधिक विश्वविद्यालय के रुप में एसएनडीटी कॉलेज को भारत की सरकार ने मान्यता दी। ये समता संघ के भी संस्थापक रहे है (मानव समता के प्रचार के लिये सभा)।
भारत में महिलाओं की शिक्षा और स्वतंत्रता के लिये अपना पूरा जीवन देने के अलावा इन्होंने हिन्दू समाज और जाति व्यवस्था में अस्पृश्यता को खत्म करने के लिये इसके खिलाफ अपनी आवाज उठायी। भारतीय समाज को अपना पूरा जीवन अर्पण करने के लिये भारत की सरकार ने इन्हें 1958 में भारत रत्न से सम्मानित किया।
डॉ बिधान चन्द्र रॉय
(1961 में भारत रत्न से सम्मानित)
एक महान चिकित्सक-सर्जन बिधन चन्द्र रॉय का जन्म 1 जुलाई 1882 को बिहार में हुआ था। ये एक होनहार विद्यार्थी थे। इन्होंने चिकित्सा को अपने कैरियर के रुप में चुना और अपने असाधारण प्रतिभा की वजह से इन्होंने दो प्रतिष्ठित मेडिकल डिग्रियों एम.आर.सी.पी तथा एफ.आर.सी.एस को रिकॉर्ड समय में पूरा किया।
इन्होंने अपना पूरा जीवन चिकित्सा, विज्ञान, दशर्नशास्त्र, साहित्य और कला के लिये समर्पित कर दिया। गाँधी जी के साथ-साथ ये भी स्वतंत्रता आंदोलन में शामिल थे। बाद में 1948 में ये पश्चिम बंगाल के मुख्यमंत्री के रुप में चुने गये और 14 साल तक राज्य की सेवा की। सीएम के तौर पर, इन्होंने पाँच प्रमुख शहरों की स्थापना की: दुर्गापुर, कल्याणी, बिधाननगर, अशोकनगर और हावड़ा। पश्चिम बंगाल के विकास में उनके योगदान को देखते हुए के लिये उन्हें आधुनिक पश्चिम बंगाल के शिल्पकार के रुप में याद किया जाता है।
पश्चिम बंगाल के विकास और मेडिसिन के क्षेत्र में उनके विशेष योगदान के लिये डॉ रॉय को 14 फरवरी 1961 को भारत रत्न सम्मान दिया गया। हर साल 1 जुलाई को इनके जन्मदिवस और मृत्यु दिवस पर उनके किये कार्यों और उनको याद करने के लिये पूरे देश में राष्ट्रीय चिकित्सक दिवस मनाया जाता है।
पुरुषोत्तम दास टंडन
(1961 में भारत रत्न से सम्मानित)
भारत के उत्तर प्रदेश में 1 अगस्त 1882 को जन्में पुरुषोत्तम दास टंडन एक महान स्वतंत्रता सेनानी थे। ये किसान आंदोलन में अपने प्रयासों के लिये जाने जाते है और 1934 में बिहार प्रांतीय किसान सभा के अध्यक्ष के रुप में कार्य किया। ये 1921 में लाला लाजपत राय के द्वारा बनाया गया सामाजिक सेवा संगठन कर्मचारी लोक समाज (लोक सेवक मंडल) के अध्यक्ष भी रहे।
पुरुषोत्तम दास टंडन को हिन्दी भाषा को भारत की सरकारी भाषा बनाने में मदद करने के लिये खासतौर पर याद किया जाता है। बाद में इन्हें भारत के संविधान सभा के लिये चुना गया। इन्होंने 31 जुलाई 1937 से 10 अगस्त 1950 तक उत्तर प्रदेश के विधान सभा के पद की गरिमा भी बढ़ायी। 1 जुलाई 1962 को इनका निधन हो गया।
डॉ राजेन्द्र प्रसाद
(1962 में भारत रत्न से सम्मानित)
इस महान विधिवेत्ता और असाधारण आजादी के कार्यकर्ता का जन्म जेरादेई, बिहार में 3 दिसंबर 1884 को हुआ। डॉ राजेन्द्र प्रसाद बचपन से ही एक बहुत तेज विद्यार्थी थे; 1915 में, इनको कानून से परास्नातक की परीक्षा में स्वर्ण पदक से सम्मानित किया गया तथा बाद में इन्होंने कानून से डॉक्टरेट की डिग्री भी हासिल की।
डॉ प्रसाद, गाँधी जी के बहुत बड़े शिष्यों में से एक थे तथा इन्होंने स्वतंत्रता आंदोलन में महत्वपूर्ण भूमिका निभायी। असहयोग आंदोलन, नमक सत्याग्रह और भारत छोड़ो आंदोलन में दूसरे स्वतंत्रता सेनानियों के साथ इनकी भूमिका सहायक की थी।
जब भारत के संविधान को बनाने के लिये संविधान सभा चुनी गयी, तो डॉ प्रसाद को उनके असाधारण क्षमता और संवैधानिक मामलों के जानकार होने की वजह से सदन के अध्यक्ष के रुप में चुना गया।
आजादी के बाद डॉ राजेन्द्र प्रसाद को भारत का पहला राष्ट्रपति चुना गया। डॉ प्रसाद ने राष्ट्रपति भवन को शाही भव्यता से सहज भारतीय गृह के रुप में परिवर्तित कर दिया।
1962 में, डॉ प्रसाद 12 वर्ष बाद राष्ट्रपति के पद से सेवानिवृत हो गये, और इसके बाद उन्हें सर्वोच्च भारतीय नागरिक सम्मान भारत रत्न से सम्मानित किया गया। 28 फरवरी 1963 को डॉ राजेन्द्र प्रसाद का देहांत हो गया।
डॉ ज़ाकिर हुसैन
(1963 में भारत रत्न से सम्मानित)
डॉ हुसैन का जन्म तेलांगना, हैदराबाद में 8 फरवरी 1897 को हुआ था। ये एक महान शिक्षाविद्, राजनीतिज्ञ, और गाँधी जी के दर्शन से बहुत प्रभावित थे।
ये भारत में व्ययसायिक शिक्षा व्यवस्था के संयोजक थे। जामिया मिलीया इस्लामिया (केन्द्रीय विश्वविद्यालय) की नींव रखने में इनकी सहायक की भूमिका थी। आधुनिक भारत के प्रख्यात गुणी और शैक्षणिक विचारकों में से एक डॉ हुसैन थे। इन्होंने भारत में बेहतर शैक्षणिक सुधार के लिये खुद को आंदोलनों में व्यस्त किया।
वो भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन में गहराई से जुड़े थे। इनको बिहार के गवर्नर के रुप में नियुक्त किया गया और इन्होंने बिहार के उत्थान के लिये काफी कार्य किये। 13 मई 1967 को ये भारत के प्रथम मुस्लिम राष्ट्रपति भी बने।
राजनीति और शिक्षा के क्षेत्र में इनके विशेष योगदान के लिये 1963 में इन्हें भारत रत्न से पुरस्कृत किया गया। 3 मई 1969 को डॉ ज़ाकिर हुसैन का निधन हो गया।
डॉ पांडुरांग वामन काणे
(1963 में भारत रत्न से सम्मानित)
भारत के महाराष्ट्र में रत्नागिरी जिले में 1880 में डॉ वी.पी. काणे का जन्म हुआ। ये एक मशहूर इंडोलॉजिस्ट और संस्कृत के अध्येता थे: एक महान शोधकर्ता समाज सुधार से प्रेम करने वाले। डॉ काणें स्मारक चिन्ह् संबंधी कार्य के लिये प्रसिद्ध थे: पाँच संस्करणों में इतिहास की धर्मशास्त्र प्रकाशित हुई- पहला 1930 में और अंतिम 1962 में। भारत की परंपरा और प्राचीन सामाजिक कानून पर ये महान विद्वत्तापूर्ण लेख था। ये कार्य इनके विस्तार और गहराई के लिये प्रसिद्ध है।
डॉ काणे के प्रचीन भारतीय लेखों की गहराई के लिये जो हमें प्राचीन भारत के सामाजिक प्रक्रिया को समझने में सक्षम बनाता है। 1963 में इन्हें भारत रत्न दिया गया। 1972 में इस महान अध्येता का निधन हो गया।
लाल बहादुर शास्त्री
(1966 में भारत रत्न से सम्मानित)
उत्तर प्रदेश के मुगलसराय में 2 अक्टूबर 1904 को जन्में लाल बहादुर शास्त्री एक बहुत ही विनम्र और दृढ़ संकल्पित व्यक्ति थे। बचपन से ही उन्होंने खुद में ईमानदारी के गुणों, सेवाभाव, भाईचारा, हिम्मत आदि का विकास किया। ये सिद्धांतवादी पुरुष थे; जातिवाद का विरोध करने के लिये इन्होंने अपना उपनाम हटा दिया और रेलवे मंत्री होने के दौरान एक रेल दुर्घटना में 150 लोगों के मरने की जिम्मेदारी स्वयं पर लेते हुए त्यागपत्र तक दे दिया।
शास्त्री जी गाँधी जी के बुलावे से प्रेरित होकर 1920 में स्वतंत्रता आंदोलन से जुड़े। वो गाँधी दर्शन से बहुत प्रभावित थे और समाजवाद के समर्थक थे। आजादी के बाद, देश की आजादी के बाद ये विभिन्न पदों पर रहें साथ ही नेहरु जी के निधन के बाद ये देश के दूसरे प्रधानमंत्री बने। इनके प्रधानमंत्री कार्यकाल के दौरान बहुत सारी घटनाएँ हुई; इन्होंने पूरी सफलता के साथ 1965 के पाकिस्तान युद्ध का नेतृत्व किया। इन्होंने ही “जय जवान जय किसान का नारा” दिया जो युद्ध के समय काफी प्रसिद्ध हुआ और आज भी इसको याद किया जाता है। इन्होंने देश में दूध की उत्पादकता को बढ़ाने के लिये श्वेत क्राँति को आगे बढ़ाया साथ ही इन्होंने हरित क्राँति की भी नींव रखी जिससे देश खाद्य उत्पादन में आत्म-निर्भर बन सके।
धरती के इस महान सपूत का निधन 11 जनवरी 1966 को ताशकंद, यूएसएसआर में ह्दयघात से इनकी मृत्यु तब हो गयी जब वो वहाँ पर पाकिस्तान के साथ युद्ध विराम के बाद पाकिस्तान के साथ ताशकंद घोषणा-पत्र पर हस्ताक्षर कर रहे थे। देश के लिये अपने असाधारण कार्य के लिये 1966 में इन्हें भारत रत्न से सम्मानित किया गया साथ ही मरणोंपरांत ये सम्मान पाने वाले ये पहले व्यक्ति थे। इन्होंने हरित क्राँति और श्वेत क्राँति जैसे उपयोगी योजनाओं की नींव रखी।
इंदिरा गाँधी
(1971 में भारत रत्न से सम्मानित)
भारत के प्रथम प्रधानमंत्री और महान स्वतंत्रता सेनानी की इकलौती संतान इंदिरा गाँधी को दुनिया इंदिरा प्रियदर्शनी के नाम से भी जानती है। इनका जन्म 19 नवंबर 1917 को इलाहाबाद में हुआ। घर के राजनीतिक माहौल की वजह से इंदिरा बचपन से ही राजनीतिक रुप से सक्रिय रहीँ।
1964 में नेहरु के निधन के बाद लाल बहादुर शास्त्री देश के दूसरे प्रधानमंत्री बने और इनके कार्यकाल में इंदिरा गाँधी को सूचना एवं संचार मंत्री का कार्यभार मिला। लेकिन 1966 में शास्त्री जी के असमय मृत्यु के कारण इंदिरा का नाम काँग्रेस के नेता के रुप में सामने आया और फिर वो देश की पहली महिला प्राधानमंत्री बनी।
वे भारत की पहली महिला प्रधानमंत्री थी और 1966 से 1977 तक लगातार 3 कार्यकाल तक बनी रहीं और अपने ऊपर हुए हमले में मृत्यु से पहले तक दुबारा उनका चौथा कार्यकाल 1980 से 1984 तक रहा। इंदिरा गाँधी को 20वीं सदी और उनके प्रधानमंत्री कार्यकाल के दौरान की सशक्त महिलाओं में से एक के रुप में याद किया जाता है। इन्होंने सफलतापूर्वक भारत को दुनिया के आधुनिक शक्तिशाली राष्ट्र के रुप में बनाने का प्रयास किया।
ऐतिहासिक सुधार के रुप में इंदिरा जी ने प्रिवि पर्स को पूरी तरह से खत्म कर दिया और 14 बड़े बैंकों को 1969 में राष्ट्रीयकृत किया। इंदिरा गाँधी ने पाकिस्तान के खिलाफ आजादी के लिये पूर्वी पाकिस्तान का समर्थन भी किया और 1971 में इसी उद्देश्य के लिये पाकिस्तान से युद्ध लड़ा परिणाम स्वरुप भारत विजयी हुआ और एक आजाद देश के रुप में बांग्लादेश का उदय हुआ।
भारत की प्रधानमंत्री रहते हुए 1971 में इन्हें भारत रत्न से नवाजा गया। यद्यपि, 1975 से 1977 की इमरजेन्सी ने उनके राजनीतिक और सामाजिक जीवन पर एक काला धब्बा लगा दिया। जब राजनीतिक और आर्थिक दोनों तरह से पूरा विश्व एक डरे हुए समय से गुजर रहा था, वो भारत की बहुत सशक्त नेता थी। 31 अक्टूबर 1984 को इंदिरा गाँधी पर उन्हीं के सुरक्षा गार्डों द्वारा हमला कर दिया गया जिससे उनकी मृत्यु हो गयी।
वी.वी.गिरी
(1975 में भारत रत्न से सम्मानित)
ओड़िसा के बेरहामपुर में 10 अगस्त 1894 को देश के चौथे राष्ट्रपति वराहगिरी वेंकट गिरी का जन्म हुआ था; वो लोगों के बीच में वी.वी.गिरी के नाम से प्रसिद्ध थे। वो भारत में उद्योग कर्मचारियों के आंदोलन के समर्थक थे तथा उन्हें एक व्यापार संघी के रुप में जाना जाता था; 1923 में रेलवे कर्मचारी फेडरेशन के संस्थापक सदस्यों में से एक थे वो।
1928 में, वी.वी गिरी ने बंगाल-नागपुर रेलवे एसोशियेशन बनाया जिसने एक शांतिपूर्णं आंदोलन में कर्मचारियों के हक के लिये बंगाल नागपुर रेलवे के कर्मचारियों का नेतृत्व किया। इसकी सफलता ने ब्रिटिश भारतीय सरकार और रेलवे प्रबंधन को मजदूरों की मांग को मानने के लिये मजबूर किया। ये भारत के मजदूर आंदोलन के लिये एक बड़ा पल था। आगे, 1929 में, इन्होंने एन.एम.जोशी और दूसरे लोगों के साथ मिलकर भारतीय ट्रेड यूनिय फेडरेशन की स्थापना की जो पूरे भारत के मजदूरों के अधिकारों के लिये कार्य करती है।
आजादी के बाद भी वो राजनीतिज्ञ के रुप में सक्रिय रहे और 24 अगस्त 1969 से 24 अगस्त 1974 तक भारत के चौथे राष्ट्रपति के रुप में चयनित हुए। 1975 में गिरी साहब को भारत रत्न से सम्मानित किया गया। 1980 में इनकी मृत्यु हो गयी।
कुमारसामी कामराज
(1976 में भारत रत्न से सम्मानित)
कुमारसामी कामराज एक महान नेता थे जिनका जन्म 1903 में हुआ था। 1960 में ये भारतीय राजनीति में इनकी पहचान एक “किंगमेकर” के रुप में हो चुकी थी। ये भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन में सक्रिय रुप से शामिल थे। मद्रास में 1927 में इन्होंने तलवार सत्याग्रह की शुरुआत की थी। 13 अप्रैल 1954 को ये मद्रास प्रांत के मुख्यमंत्री बनाये गये। मुक्त शिक्षा को आरंभ करने के द्वारा लाखों ग्रामीण गरीब बच्चों के लिये स्कूल शिक्षा के लिये ये आज भी याद किये जाते है; इन्होंने ही स्कूलों में बच्चों के लिये मुफ्त मिड-डे मिल योजना की शुरुआत की थी।
बाद में कामराज ने कई सारी सिंचाई योजनाओं को भी शुरु किया; उच्च भवानी, अरानी, वैगई, पुलामबाड़ी, मनी मुथर, कृष्णागिरी, अमरावती, सथानुर, पारंभीकुलम और नेययारु के साथ बाँध और सिंचाई नहरें बनायी गयी।
2 अक्टूबर 1975 को इनका निधन हो गया। शिक्षा और राजनीति के क्षेत्र में अपने विशेष योगदान के लिये 1976 में इन्हें मरणोपरांत भारत रत्न से सम्मानित किया गया।
मदर टेरेसा
(1980 में भारत रत्न से सम्मानित)
26 अगस्त 1910 को जन्मी मदर टेरेसा एक समाज सुधारक थी। वो एक रोमन कैथोलिक सिस्टर और मिशनरी थी। इन्होंने मिशनरी ऑफ चैरिटी की स्थापना की जिसके 2012 में 133 देशों में 4500 सिस्टर थे। 1948 में, इन्होंने भारत के गरीब लोगों के साथ अपने मिशनरी कार्यों की शुरुआत की। इस संस्था का लक्ष्य था कि एक नया समूह बनाया जाए जो गरीबों में सबसे गरीब की मदद करें। मदर टेरेसा कई सारे आश्रय चलाती थी जो एड्स/एचआईवी, टीबी, कुष्टरोग जैसे बेघर मरीजों के लिये था। बच्चों के लिये इन्होंने परिवार सलाह कार्यक्रम, स्कूल और अनाथालय आदि की भी शुरुआत की थी।
मदर टेरेसा ने कलकत्ता में (कोलकाता) 1952 में गरीब लोगों के लिये पहला आश्रम खोला। भारतीय अधिकारियों की मदद से इन्होंने एक छोड़े गये मंदिर को अनाथालय में परिवर्तित कर दिया। भारतीय समाज के लिये अपने अद्भुत योगदान के लिये 1979 में इन्हें नोबल शांति पुरस्कार तथा 1980 में भारत रत्न से सम्मानित किया गया। 5 सितंबर 1997 में कोलकाता में मदर टेरेसा चल बसी।
विनायक नरहरी भावे
(1983 में भारत रत्न से सम्मानित)
11 सितंबर 1895 को महाराष्ट्र के गागोड़े गाँव में चित्तपवन ब्राह्मण परिवार में विनोबा का जन्म हुआ था। भावे एक विचारक, अध्येता, और लेखक थे जिन्होंने कई सारी किताबें लिखीं। संस्कृत के अनुवादक के रुप में उनकी किताबों के संस्करण की पहुँच आम इंसानों तक थी; ये आचार्य के रुप में प्रसिद्ध थे।
वी.एन.भावे को भारत के राष्ट्रीय शिक्षक के तौर पर माना जाता है। भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन में गाँधी के साथ भावे एक प्रख्यात नामों मे से थे। ब्रिटिश शासन के खिलाफ 1940 में इन्हें पहले सत्याग्रही के रुप में चुना गया था।
1951 में भूदान आंदोलन के रुप में तेलांगाना के नलगौंदा जिले के पोचमपल्ली से विनोबा भावे ने आंदोलन की शुरुआत की जहाँ इन्होंने जमींदारों से अपनी जमींन गरीब किसान को खेती के लिये दान करने का आग्रह किया। 1954 में इन्होंने ग्रामदान की शुरुआत की और पूरे गाँव को दान करने को कहा। परिणाम स्वरुप 1000 से ज्यादा गाँवों को उन्होंने दान में प्राप्त किया। भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन और भूदान आदोंलन में उनके अविस्मरणिय योगदान के लिये 1983 में इन्हें भारत रत्न से सम्मानित किया गया। 15 नवंबर 1982 को ये महान समाज सुधारक हम सब के बीच से चले गये।
खान अब्दुल गफ्फार खान
(1987 में भारत रत्न से सम्मानित)
खान अब्दुल गफ्फार खान (बचा खान) का जन्म 6 फरवरी 1890 को हुआ। बचा खान एक आध्यात्मिक और पश्तुन राजनीतिक नेता थे। ये एक धर्मनिष्ठ मुस्लिम और अहिंसा आंदोलन को चाहने वाले व्यक्ति के रुप में जाने जाते है। इन्हें गाँधी जी के अध्यापन में बहुत भरोसा था; इन्होंने गाँधी के साथ नमक सत्याग्रह और लाल शर्ट जैसे आंदोलनों में भाग लिया।
1929 में ब्रिटिश साम्राज्य के खिलाफ इन्होंने ‘खुदाई खिदमतगार’ (ईश्वर के मुलाजिम) आंदोलन की शुरुआत की। जब भारत के बँटवारे की बात उठी तो इन्होंने मजबूती से इसका विरोध किया। 1920 में, आजादी, धर्मनिरपेक्षता और संयुक्त भारत के लक्ष्य को प्राप्त करने के लिये गफ्फार खान ने ‘रेड शर्ट’ आंदोलन चलाया। अपने बेहतरीन कार्यों और देश भक्ति के लिये इन्हें 1987 में भारत रत्न से सम्मानित किया गया। 20 जनवरी 1988 को इनका निधन हो गया।
एम.जी रामाचन्द्रन
(1988 में भारत रत्न से सम्मानित)
एक सुप्रसिद्ध तमिलियन फिल्म कलाकार एम.जी रामाचन्द्रन का जन्म श्रीलंका के नवलपतिया में 17 जनवरी 1917 में हुआ। इन्होंने तमिल फिल्मों में एक निर्देशक, एक्टर और निर्माता के रुप में काम किया। 1940 से अपने एक्टिंग कौशल के द्वारा इन्होंने अगले तीन दशकों तक तमिल फिल्म उद्योग पर राज किया।
बाद में इन्होंने अपने राजनीजिक जीवन की शुरुआत की और अन्ना द्विड़ मुन्नेत्र कज़गम नाम से पार्टी बनायी (एआईडीएमके)। 30 जून 1977 को ये तमिलनाडु के मुख्यमंत्री बने (भारत के पहले कलाकार राज्य के मुख्यमंत्री के रुप में)। मुख्यमंत्री बनने के बाद इन्होंने शिक्षा और आम इंसान के सामाजिक विकास पर जोर दिया। तमिलनाडु में इन्होंने महिलाओं के लिये एक खास बस सेवा की शुरुआत की जो महिलाओं की खास बस सेवा के रुप में जाना जाता है। इन्होंने राज्य में शराब पर रोक, ऐतिहासिक धरोहरों तथा राज्य के पर्यटन की आय को बढ़ाने के लिये पुराने मंदिरों के संरक्षण के लिये योजनाओं की शुरुआत की। भारतीय समाज में इनके योगदान के लिये 1988 में मरणोंपरांत इन्हें सर्वोच्च नागरिक सम्मान भारत रत्न से नवाजा गया। 1987 में इनकी मृत्यु हो गयी।
बी.आर अंबेडकर
(1990 में भारत रत्न से सम्मानित)
प्यार से इन्हें बाबा साहेब कहा जाता है, डॉ भीम राव अंबेडकर का जन्म 14 अप्रैल 1891 को तथाकथित दलित परिवार में हुआ था। ये पढ़ने में बहुत होनहार छात्र थे तथा अपनी शिक्षा भारत और दुनिया के कई नामी विश्वविद्यालयों से पूरी की।
देश में दलितों के विषय को डॉ अंबेडकर ने गंभीरता से लिया और अपने पूरे जीवन भर उनके लिये लड़े। बाबा साहेब अस्पृश्यता के खिलाफ देश में जारी भेदभाव और अमानुषी व्यवहार को लेकर बहुत आलोचनात्मक थे; ब्राह्मणवाद और हिन्दू सामाजिक रीतियों की खिलाफत करते थे। अस्पृश्यों और दलित वर्ग के अधिकारों के लिये लड़ने के लिये उन्होंने 1924 में बहिष्कृत हितकारणी सभा की स्थापना की।
हिन्दू समाज के वर्ण व्यवस्था के धुर विरोधी थे तथा इस मुद्दे पर गाँधी जी की भी आलोचना करते थे क्योंकि गाँधी जी जन्म के बजाय कर्म के आधार पर वर्ण व्यवस्था में विश्वास करते थे।
भारतीय संविधान के निर्माण के समय बाबा साहेब को ड्राफ्टिंग कमेटी के अध्यक्ष के रुप में चुना गया; भारतीय संविधान को बनाने में शायद इनका सबसे बड़ा योगदान होगा। दलितों के लिये संविधान में समानता के प्रावधान तथा अस्पृश्यता के खात्मे का प्रावधान को रखवाने में मदद की।
इस वजह से तथा-कथित दलित वर्ग के उत्थान के लिये इनका योगदान बेमिसाल है; और इसी वजह से डॉ भीम राव अंबेडकर को उनके महान योगदान के लिये 1990 में भारत रत्न से नवाजा गया।
नेल्सन मंडेला
(1990 में भारत रत्न से सम्मानित)
20वीं सदी के महान क्रांतिकारी नेता नेल्सन रोलिहलाहला मंडेला का जन्म 18 जुलाई 1918 को दक्षिण अफ्रीका के मवेजो में हुआ। इन्होंने दक्षिण अफ्रिका में रंगभेद नीति के अमानवीय व्यवहार के खिलाफ लंबी लड़ाई लड़ी और 1962 से 1990 तक 27 वर्ष तक जेल में रहे। वो गाँधी के अहिंसात्मक विरोध के तरीकों में विश्वास रखते थे लेकिन साथ ही उसी समय में संघर्ष के हिंसात्मक साधन को भी प्रयुक्त किया।
कानून की अपनी डिग्री पूरी करने के बाद, ये उपनिवेश विरोधी संघर्ष से जुड़ गये और दक्षिण अफ्रिका में काले लोगों के अधिकारों के लिये लड़ने के लिये अफ्रीकन राष्ट्रीय काँग्रेस के सदस्य बन गये। जल्द ही ये विरोधी रंगभेद नीति आंदोलन के मुख्य व्यक्ति बन गये और पूरे विश्व से इनको समर्थन मिला। अपने क्रांतिकारी गतिविधियों और विरोधी उपनिवेश राजनीति की वजह से उस समय के दक्षिण-अफ्रीकन शासन के द्वारा 1962 में उम्रकैद की सजा मिली; लेकिन जेल के अंदर से भी उन्होंने अपना संघर्ष जारी रखा और पूरी दुनिया के कार्यकर्ताओं ने उनके आंदोलन का समर्थन किया जिससे उनकी रिहाई के लिये एक अंतरराष्ट्रीय अभियान की शुरुआत हुई। फिर भी इनको 27 साल जेल में सेवा करनी पड़ी; 1990 इनको छोड़ा गया और सरकार से बातचीत के साथ ही दक्षिण अफ्रीका में निर्दयी रंगभेद नीति की परंपरा का अंत हुआ।
1994 में पहले बहुजातीय चुनाव में, नेल्सन मंडेला की पार्टी एएनसी ने जीत हासिल की और ये दक्षिण अफ्रीका के पहले अश्वेत राष्ट्रपति बने।
इनके सम्मान तथा इनके द्वारा जातिगत भेदभाव को पूरे विश्व से खत्म करने के लिये दिये गये योगदान की प्रशंसा के लिये 1990 में भारत ने उन्हें सर्वोच्च नागरिक सम्मान भारत रत्न से नवाजा।
5 दिसंबर 2013 को इस महान इंसान का निधन हो गया।
राजीव गाँधी
(1991 में भारत रत्न से सम्मानित)
इंदिरा गाँधी के बड़े बेटे थे राजीव गाँधी; इनका जन्म 20 अगस्त 1944 को हुआ। यद्यपि इनका संबंध उच्च राजनीतिक परिवार से था फिर भी ये अपने पूरे जीवन भर ज्यादातर गैर-राजनीतिक बने रहें। राजीव अनिच्छा से राजनीति से जुड़े जब उनके छोटे भाई संजय गाँधी की एक हवाई दुर्घटना में मौत हो गयी थी।
31 अक्टूबर 1984 को इनकी माँ प्रधानमंत्री इंदिरा गाँधी पर हुए हमले के बाद राजीव गाँधी को काँग्रेस पार्टी का नेता चुना गया था; इसके बाद वो 1984 में भारत के प्रधानमंत्री बने और 1989 तक कार्यालय में रहे।
राजीव गाँधी का कार्यकाल देश की तकनीकी उन्नति और आर्थिक उदारीकरण के लिये बहुत अच्छा था; वो बीएसएनएल और एमटीएनएल की उत्पत्ति में सहायक थे जिसने विशेष रुप से भारत में टेलीफोन नेटवर्क का विस्तार किया। पीएम के रुप में राजीव गाँधी के प्रयासों का वजह से, भारत में सूचना तकनीक क्रांति के बीज पड़ चुके थे जिसने बाद में भारत को पूरे विश्व में एक आईटी पावरहाउस बनाने में मदद की।
एक चुनावी रैली के दौरान 21 मई 1991 को एक आत्मघाती हमले में इनकी मौत हो गयी। अपनी लोक सेवा के लिये 1991 में इन्हें भारत रत्न से पुरस्कृत किया गया।
सरदार वल्लभ भाई पटेल
(1991 में भारत रत्न से सम्मानित)
भारत के लौह पुरुष और महान स्वतंत्रता सेनानी पटेल का जन्म महाराष्ट्र के नादियाद में 31 अक्टूबर 1875 को हुआ था। गाँधी जी से मिलने और उत्साहवर्धन के बाद भारत की आजादी की लड़ाई के लिये अपने सफल वकालत के जीवन का पटेल ने त्याग कर दिया था।
नेता के रुप में गुजरात के खेड़ा में इनका पहला आंदोलन था जहाँ इन्होंने दरवाजे से दरवाजे जाकर लोगों को टैक्स न देने का अभियान चलाया क्योंकि जिले में अकाल और महामारी फैली हुई थी; ये आंदोलन बहुत सफल रहा और ब्रिटिश सरकार को टैक्स में राहत की माँग को मानना पड़ा; इसके बाद पटेल आजादी के संग्राम के एक महान नेता के रुप में उभरे। इसके बाद वल्लभभाई पटेल ने पूरी तरह से अपने आपको आजादी के आंदोलनों जैसे बारदोली सत्याग्रह, असहयोग आंदोलन, भारत छोड़ो आंदोलन आदि के लिये समर्पित कर दिया। वो गाँधी जी के बहुत ही भरोसेमंद और निष्ठावान सिपाही थे। आमजन में अपनी विशाल प्रसिद्धि के कारण लोगों के द्वारा उन्हें ‘सरदार’ की उपाधि दी गयी।
आजादी के बाद, भारतीय राष्ट्र को बनाने में सरदार पटेल का महत्वपूर्ण योगदान था; वो देश के पहले उप प्रधानमंत्री और गृह मंत्री थे; उनके लगातार प्रयास और दृढ़ इच्छाशक्ति के कारण इन्होंने 600 से ज्यादा प्रांतों को भारत में मिलाया। राष्ट्र के प्रति अपनी अविस्मरणीय सेवा के लिये उनका नाम हमेशा सम्मान के साथ याद किया जायेगा।
15 दिसंबर 1950 को सरदार पटेल इस दुनिया को छोड़ गये। राष्ट्र के लिये उनकी सेवा को श्रद्धांजलि देने के लिये वर्ष 1991 में उन्हें भारत रत्न से सम्मानित किया गया।
मोरारजी देसाई
(1991 में भारत रत्न से सम्मानित)
स्वतंत्रता आंदोलन के प्रख्यात नेताओं में से एक श्री मोरारजी देसाई का जन्म 29 फरवरी 1896 को हुआ था। गाँधी जी द्वारा चलाये कई आंदोलनों में इन्होंने भाग लिया और कई बार गिरफ्तार किये गये। साथ ही ये कई महत्वपूर्ण सरकारी पदों पर भी रहे; जैसे तब के बॉम्बे राज्य के सीएम, गृहमंत्री, वित्तमंत्री, उप पीएम और अंतत: भारत के प्रधानमंत्री बने।
मोरारजी देसाई अपने प्रशासनिक कौशल और कड़ाई के लिये प्रसिद्ध थे। 1969 में ये काँग्रेस पार्टी से अलग हुए और इंदिरा गाँधी शासन के खिलाफ आपातकाल के दौरान सबसे मजबूत आवाजों से में से एक के रुप में उभरे। 1977 के चुनाव में जब पहली गैर-काँग्रेसी सरकार बनी तो मोरार जी देश के प्रधानमंत्री बने।
अपने छोटे कार्यकाल के दौरान इन्होंने इंदिरा गाँधी द्वारा बनाये गये कई नकारात्मक संवैधानिक प्रावधानों को हटा दिया। इन्होंने पाकिस्तान और चीन के साथ शांतिपूर्ण और अच्छे संबंधों के लिये भी प्रयास किया। पार्टी के अंदर गुटबाजी के कारण 1979 में इन्होंने इस्तीफा दे दिया। 1991 में मोरार जी को भारत रत्न से नवाजा गया।
99 साल की उम्र में 10 अप्रैल 1995 को मोरार जी देसाई का निधन हो गया।
अबुल कलाम आजाद
(1992 में भारत रत्न से सम्मानित)
अबुल कलाम आजाद का जन्म मक्का में 11 नवंबर 1888 हुआ। ये एक महान अध्येता, पत्रकार, शिक्षाविद और स्वतंत्रता सेनानी थे। युवा अवस्था से ही इनका झुकाव का क्रांति की ओर था तथा अंग्रेजों की शोषणकारी नीतियों के धुर विरोधी थे।
ये पत्रकारिता में आये और भारत विरोधी नीतियों के लिये ब्रिटिश सरकार पर खुल हमला किया; उसी समय, इन्होंने अंग्रेजों से लड़ने के लिये हिन्दू-मुस्लिम एकता की जरुरत पर भी लिखा; 1912 में कलाम साहब ने अल-हिलाल नाम से साप्ताहिक अखबार की शुरुआत की।
बाद में इन्होंने खिलाफत आंदोलन का समर्थन किया और गाँधी जी के संपर्क में आये। और उनसे प्रभावित होने के बाद, आजाद भारतीय राष्ट्रीय काँग्रेस से जुड़ गये। 1923 में ये भारतीय राष्ट्रीय काँग्रेस के सबसे कम उम्र के अध्यक्ष बने। गाँधी जी के द्वारा शुरु किये गये कई आंदोलनों जैसे नमक सत्याग्रह, भारत छोड़ो आंदोलन, सविनय अवज्ञा आंदोलन आदि में आजाद ने बहुत महत्वपूर्ण भूमिका निभायी। इन्होंने हमेशा हिन्दू-मुस्लिम एकता के लिये अपील और कार्य किया तथा साम्प्रदायिक राजनीति करने वाले हिन्दू-मुस्लिम नेताओं की आलोचना की।
ये संवैधानिक सभा के प्रख्यात सदस्य थे और आजादी के बाद भारत के प्रथम शिक्षा मंत्री बने। भारतीय शिक्षा व्यवस्था को आकार देने में मौलाना आजाद की बहुत बड़ी भूमिका है; 1951 में आईआईटी जैसी कई उच्च शिक्षण संस्थानों, 1953 में विश्वविद्यालय अनुदान कमीशन, दिल्ली केन्द्रीय शिक्षा संस्थान आदि को स्थापित करने में मददगार थे।
इन सबके अलावा मौलाना आजाद एक कवि और लेखक भी थे; इनकी उत्कृष्ट पुस्तक ‘इंडिया विंस फ्रीडम’ भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन का बेहतरीन वृतांत है। 22 फरवरी 1958 को इनकी मृत्यु हो गयी; भारत को आधुनिक राष्ट्र बनाने में अपने न भूलने वाले योगदान के लिये 1992 में इन्हें मरणोंपरांत भारत रत्न से सम्मानित किया।
जहाँगीर रतन जी दादाभाई टाटा
(1992 में भारत रतन से सम्मानित)
जे आर डी टाटा का जन्म 29 जुलाई 1904 में फ्रांस के पेरिस में हुआ था वो एक वायुयान चालक और महान शक्तिशाली उद्योगपति थे। इन्होंने भारत में 10 फरवरी 1929 में जारी पहला पाइलेट लाइसेंस प्राप्त किया था। इस वजह से इन्हें भारतीय नागरिक विमानन का पिता कहा जाता था। 1932 में भारत की पहली व्यवसायिक एयरलाइन टाटा ‘एयर लाइन’ के संस्थापक जे.आर.डी टाटा थे, 1946 में ये एयर इंडिया बना। अब ये भारतीय राष्ट्रीय एयरलाइन है। 50 वर्षों तक ये टाटा संस के अध्यक्ष बने रहे। इन्होंने 1945 में टाटा मोटर्स की भी स्थापना की। विमानन क्षेत्र में इनके सर्वश्रेष्ठ उपलब्धियों के लिये इन्हें भारत के सम्मानीय कमोडेर की उपाधि दी गयी।
1956 में भारत के पहले स्वतंत्र आर्थिक नीति संस्थान और 1968 में टाटा कम्प्यूटर सेवा के रुप में टाटा कंसल्टेंसी सेवा की स्थापना की। जे.आर.डी.टाटा द्वारा व्यवहारिक आर्थिक शोध राष्ट्रीय परिषद नयी दिल्ली की स्थापना की गयी।
1992 में इन्हें भारत रत्न से सम्मानित किया गया। ये सबसे प्रगतिशील भारतीय उद्यमियों में से एक थे साथ ही इन्होंने भारत के सबसे विशाल औद्योगिक घराने की स्थापना की।
29 नवंबर 1993 में स्वीट्जरलैंड के जेनेवा में इनका निधन हो गया।
सत्यजीत रे
(1992 में भारत रत्न से सम्मानित)
2 मई 1921 को कलकत्ता में इस असाधारण भारतीय फिल्म निर्देशक का जन्म हुआ था। सत्यजीत रे बंगाली समुदाय के सांस्कृतिक आदर्श थे तथा 20वीं सदी के दुनिया के महान फिल्मकारों में से एक थे।
उनकी फिल्में ऐतिहासिक ड्रामों पर आधिरत होती थी तथा ज्यादातर काल्पनिक विज्ञान पर आधारित थी। शुरुआत में बंगाली के अलावा वो किसी भी भाषा में फिल्म नहीं करना चाहते थे। रे ने व्यवसायिक कलाकार के रुप में 36 फिल्में निर्देशित की। वो स्वतंत्र फिल्ममेकर थे तथा उनकी फिल्मों में डाकूमेंटरिस, फीचर फिल्मस्, लघु कथा आदि समाहित थी। वो एक महान फिल्म समीक्षक, प्रकाशक, संगीतकार, फिक्शन लेखक और ग्राफिक डिजाइनर थे। उन्होंने कई सारे उपन्यास, छोटे बच्चों को ध्यान में रखकर लघु कथा आदि भी लिखी। 1955 में उनकी पहली फिल्म पाथेर पंचाली ने 11 अंतरराष्ट्रीय पुरस्कार के साथ ही 1956 के कांस फिल्म फेस्टिवल में सबसे अच्छा मानवीय लेख का पुरस्कार जीता।
अपने पूरे जीवन में वो कई बड़े सम्मान से नवाजे गये जिसमें 32 राष्ट्रीय पुरस्कार शामिल है और 1979 में, 11वें मॉस्को अंतरराष्ट्रीय फिल्म में सम्मानीय पुरस्कार। 1992 में रे को सम्मानीय एकैडमी अवार्ड (ऑस्कर) प्रदान किया गया। भारतीय फिल्म उद्योग में दिये अपने अदूभुत योगदान के लिये उन्हें 1992 में भारत रत्न से सम्मानित किया गया। 23 अप्रैल 1992 को भारती सिनेमा के इस महान किंवदंती का अंत हो गया।
गुलजारी लाल नंदा
(1997 में भारत रत्न से सम्मानित)
भारत के इस महान सपूत का जन्म 4 जुलाई 1898 को हुआ; ये एक प्राख्यात स्वतंत्रता सेनानी, महान ख्यातिप्राप्त मजदूर नेता थे। इलाहाबाद विश्वविद्यालय से श्रम मामलों में अपनी शोध डिग्री प्राप्त करने के बाद ये 1921 में बॉम्बे के राष्ट्रीय कॉलेज के आर्थिक और मजदूर अध्ययन के प्रोसेसर बने।
नंदा जी ने प्रोसेसर के रुप में अपने करियर को त्याग कर गाँधी के आदेश पर राष्ट्रीय स्वतंत्रता आंदोलन से जुड़ गये; वो गाँधी के सिद्धांतों को सच्चे अनुयायी थे। वो हमेशा मजदूरों से संबंधित महत्वपूर्ण मामलों को प्रकाशित करते थे; 1946-1950 तक श्रम मंत्री रहे, श्रम विवाद बिल के कार्यान्वयन के लिये इन्होंने काम किया। बाद में इन्हें राष्ट्रीय व्यापार यूनियन काँग्रेस से मदद मिली। आजादी के बाद गुलजारी लाल नंदा ने विश्व स्तर पर कई बार अंतरराष्ट्रीय श्रम सम्मेलन में भारत का प्रतिनिधित्व किया।
इन्होंने दो बार भारत के अंतरिम प्रधानमंत्री के रुप में कार्य किया, पहली बार जब जवाहर लाल नेहरु का निधन हुआ और दूसरी बार लाल बहादुर शास्त्री के निधन पर। नंदा जी मूल्यों और सिद्धातों के व्यक्ति थे; इन्होंने कभी अपने फायदे के लिये पद का दुरुपयोग नहीं किया साथ ही अपने नाम से कोई संपत्ति नहीं रखी।
मातृभूमि के लिये अपनी सेवा और भक्ति के लिये 1997 में भारत रत्न से सम्मानित किया। 15 जनवरी 1998 को इनका देहांत हो गया।
अरुणा आसिफ अली
(1997 में भारत रत्न से सम्मानित)
अरुणा आसिफ अली का जन्म 16 जुलाई 1909 को हरियाणा के कालका में एक दकियानूसी हिन्दू बंगाली परिवार में हुआ था। ये भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन के समय की सबसे प्राख्यात महिला नेताओं में से एक थी। इनके अंदर एक असाधारण चमक थी जिसने भारत के नागरिकों के बीच स्वतंत्रता आंदोलन को प्रज्जवलित किया।
1942 में भारत छोड़ो आंदोलन के दौरान वो एक अविस्मरणीय कार्यक्रम में शामिल हुई जब इन्होंने गोवालिया टैंक मैदान में राष्ट्रीय ध्वज को फहराया; अरुणा भारत के हजारों युवाओं के लिये वो एक किंवदंती बन चुकी थी।
महान सामाजवादी अरुणा अली ने अपनी एक समाजवादी पार्टी का निर्माण किया। बाद में ये समूह भारत की कम्यूनिष्ट पार्टी के साथ जुड़ गया और उसके बाद ये केन्द्रीय कमेटी सदस्य बनी। ये भारतीय व्यापार संघ काँग्रेस की उपाध्यक्ष के पद पर भी रही।
1975 में इन्हें शांति के लेनिन पुरस्कार से सम्मानित किया गया और 1991 में अंतरराष्ट्रीय समझ के लिये जवाहर लाल नेहरु सम्मान से भी नवाजा गया। 29 जुलाई 1996 को इनका निधन हो गया। 1997 में मरणोंपरांत इन्हें भारत के सर्वोच्च नागरिक सम्मान से नवाजा गया। बाद में 1998 में इन्हें भारतीय पोस्टल सेवा के द्वारा स्टैंप जारी कर सम्मानित किया गया।
ए.पी.जे. अब्दुल कलाम
(1997 में भारत रत्न से सम्मानित)
महान भारतीय वैज्ञानिक ए.पी.जे. अब्दुल कलाम का जन्म 15 अक्टूबर 1931 को तमिलनाडु के रामेशवरम में हुआ और इन्होंने भौतिकी और विमान निर्माण तकनीक की पढ़ाई की। इन्होंने अपने पूरे जीवन भर भारत के प्रधान शोध संस्थान-डीआरडीओ (रक्षा अनुसंधन और विकास संस्थान) तथा इसरो (भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संस्थान) के वैज्ञानिक के रुप में कार्य किया।
कलाम साहब भारत के मिसाइल कार्यक्रम के मुख्य शिल्पकार थे और इनके अनवरत प्रयास से ही मिसाइल तकनीक के क्षेत्र में भारत एक ताकत के रुप में पहचाना जाता है।
इनके विनम्र और प्रेरणादायी व्यक्तित्व की वजह से, डॉ कलाम को प्रेम से भारत का मिसाइल मैन भी कहा जाता है; इन्होंने कई सारी प्रेरणादायी पुस्तकें भी लिखी जैसे विंग्स ऑफ फायर, इंडिया 2020, इगनाईटेड माइंड्स।
2002 में ये भारत के 11वें राष्ट्रपति के रुप में चुने गये और 2007 तक देश की सेवा की तथा लोगों में अपनी प्रसिद्धि की वजह से लोगों के बीच में इन्हें लोगों का राष्ट्रपति कहा जाता था।
डॉ कलाम देश और विदेश के कई बड़े विश्वविद्यालयों जैसे आईआईटी और आईआईएम में अतिथि प्राध्यापक रहे। विज्ञान और रक्षा आधुनिकीकरण के क्षेत्र में उनके बहुमूल्य योगदान के लिये वर्ष 1997 में भारत रत्न से सम्मानिया किया गया। 27 जुलाई 2015 में शिलाँग के विश्वविद्यालय में लेक्चर के दौरान ह्दयघात से उनकी मृत्यु हो गयी।
एम.एस.शुभ्भालक्ष्मी
(1998 में भारत रत्न से समानित)
मदुरई में 16 सितंबर 1916 को जन्मी एम.एस.शुभ्भालक्ष्मी एम.एस. के रुप में प्रसिद्ध थी, वो प्रसिद्ध कर्नाटकी गायकों में से एक थी।
जब उनका पहला अलबम जारी हुआ तो उनकी उम्र मात्र 10 वर्ष थी। सीमांगुड़ी श्रीनिवासन अय्यर के निर्देशन में उन्होंने कर्नाटकी शास्त्रीय संगीत की शिक्षा ली।
इनका कन्नड़ शास्त्रीय संगीत पर नियंत्रण था लेकिन इसके अलावा वो कई सारी भाषाओं जैसे तमिल, संस्कृत, गुजराती, मलयालम, हिन्दी, तेलुगु, बंगाली आदि में भी पारंगत थी। अद्भुत गायिका होने के अलावा वो एक एक्टर भी थी। इन्होंने कई सारी फिल्मों में अभिनय किया जैसे मीर और शिवासदन, सावित्री। इन्होंने दूरस्थ पूर्व में भी जैसे न्यूयार्क, कैनेडा, लंदन, मॉस्को आदि में भी अपनी प्रस्तुति दी।
शास्त्रीय संगीत के क्षेत्र में इन्होंने अद्भुत योगदान दिया; शुप्रभातम्, कुरई ऑनरम् लई, भजगोविन्दम, हनुमान चालीसा, विष्णु षहसरानमम आदि इनके कार्य है। इनका सबसे प्रसिद्ध और अद्भुत गीत रचना ‘वैष्णव जन’ तो जिसने सभी श्रोताओं की आँखों में आँसु ला दिया। 1988 में एम.एस को भारत रत्न से सम्मानित किया गया साथ ही ये पहली संगीतज्ञ थी जिन्हें ये सम्मान मिला। 11 दिसंबर 2004 को चेन्नई में इनका देहांत हो गया।
चिदांबरम शुब्रमण्यम
(1998 में भारत रत्न से सम्मानित)
सेनगुत्तयिपलयम में 30 जनवरी 1910 में चिदांबरम शुब्रमण्यम का जन्म हुआ था। ये भारत के स्वतंत्रता सेनानी और राजनीतिक नेता थे। ये खाद्य मंत्री थे जिन्होंने गेहूँ की आत्म उत्पादकता पर बल देने के लिये राष्ट्र को बदला और लाखों किसानों को खेती के लिये गेंहूँ की नये किस्म के इस्तेमाल को प्रचारित किया जिससे भारत ना केवल गेंहूँ उत्पादकता में सक्षम बने बल्कि दूसरे देशो से आयात पर भी निर्भर न होना पड़े।
भारत के हरित क्रांति के राजनीतिक शिल्पकार के रुप में भी इन्हें जाना जाता है। 1990 में ये महाराष्ट्र के गवर्नर बने और राजभवन को लोक कार्य क्षेत्र में बदलने के द्वारा इन्होंने कई सारी सभायें की जो उद्योगपतियों, अकादमिक, समाज के जटिल मुद्दों पर प्रख्यात नागरिकों, गैर-सरकारी संगठनों के प्रतिनिधियों के साथ आधारित थी। अपने सभी प्राप्तियों और योगदानों के बीच इनकी सबसे बड़ी उपलब्धि भारत की कृषि नीति की वृद्धि है। इन्होंने भारतीदासन इंस्टीट्यूट ऑफ मैनेजमेंट, थिरुचिरापल्लि तथा नेशनल्स एग्रो फाउंडेशन, चेन्नई की स्थापना की। 1998 में अपने योगदानों के लिये इनको भारत के सर्वोच्च नागरिक सम्मान भारत रत्न से सम्मानित किया गया। 7 नवंबर 2000 को चेन्नई में चिदांबरम शुब्रमण्यम का देहांत हो गया।
जयप्रकाश नारायण
(1999 में भारत रत्न से सम्मानित)
बिहार के सरन जिले में 11 अक्टूबर 1902 को जयप्रकाश नारायण का जन्म हुआ। वो एक प्राख्यात स्वतंत्रता आंदोलन नेता, समाजवादी, लोगों के नेता थे। बचपन से ही ये एक होनहार विद्यार्थी थे और बिहार में अपनी प्राथमिक शिक्षा पूरी करने के बाद उच्च शिक्षा के लिये वो अमेरिका चले गये।
लेकिन भारत लौटने के बाद, वो अंग्रेजों के खिलाफ मुख्य धारा की राजनीति से जुड़ गये और गाँधी जी के नेतृत्व में कई सारे आंदोलनों में भाग लिया। आजादी के बाद जेपी जी ने राजनीति छोड़ने का फैसला किया और कई वर्षों तक अलग रहे। 1960 में बिहार में ये फिर से राजनीति से जुड़े और देश में भ्रष्टाचार, बढ़ती मँहगाई तथा गरीबी आदि को देखकर दुखी हो गये।
जेपी लोगों में बहुत प्यारे थे और इसी कारण से इन्हें लोक नायक कहा जाता था। प्रधानमंत्री इंदिरा गाँधी के तथा-कथित भ्रष्ट कार्य के खिलाफ 1970 के पहले आधे वर्षों के दौरान ये एक महत्वपूर्ण नेता के रुप में सामने आये। उन्होंने लोगों से संपूर्णं क्रांति के लिये अपील की; 25 जून 1975 को आपातकाल लगाया गया और जेपी अपने समर्थकों के साथ गिरफ्तार हुए। लेकिन इनके नाम से आंदोलन पूरे देश में आगे बढ़ा और 1977 में इंदिरा गाँधी के नेतृत्व में काँग्रेस पार्टी बुरी तरह हारी और जेपी के निर्देशन में विपक्षी पार्टी ने जीत हासिल की। लेकिन इन्होंने सरकार में कोई पद नही लिया और अलग रहे।
8 अक्टूबर 1979 को इनका निधन हो गया। 1999 में देश और समाज के लिये इनकी सेवा का सम्मान देने के लिये मरणोंपरांत लोक नायक जय प्रकाश नारायण को भारत रत्न से सम्मानित किया गया।
रवि शंकर
(1999 में भारत रत्न से सम्मानित)
वाराणसी में 7 अप्रैल 1920 में रविशंकर का जन्म हुआ था। 20वीं सदी के दूसरे आधे वर्षों में वो सबसे बेहतरीन संगीतज्ञों में से एक थे और प्रसिद्ध सितार वादक के रुप में जाने जाते थे। इन्होंने मशहूर संगीतज्ञ उस्ताद अलाउद्दीन खान के निर्देशन में सितार सीखा।
इनके पास सितार बजाने की विशिष्ट शैली थी जो कि आधुनिक संगीत से थी। इनके प्रदर्शन की शुरुआत गंभीर और धीमे द्रुपद श्रेणी के द्वारा प्रभावित जॉर, सोलो अलाप तथा सितार वादन से होती थी। 1949 से 1956, रविशंकर ने ऑल इंडिया रेडियो (नयी दिल्ली) में एक संगीत निर्देशक, संगीतकार के रुप में कार्य किया। सम्मान के लिये इन्हें पंडित के उपाधि से नवाजा गया।
पंडित रविशंकर ने पूरे यूरोप और अमेरिका में 1956 में भारतीय शास्त्रीय संगीत की प्रस्तुति दी और इसे पूरी दुनिया में प्रसिद्ध किया। इन्होंने महान वॉयलिनिस्ट येहुदी मेनुहिन और बीटल्स गिटारिस्ट जॉर्ज हैरिसन के साथ कई प्रस्तुतियाँ दी। शंकर जी ने सितार और ऑरकेस्ट्रा के लिये कई संगीत दिये और पूरे 1970 और 1980 के दौरान लगातार विश्व भ्रमण करते रहे। सितार वादन में अपने प्रतिभा की वजह से भारत और शास्त्रीय संगीत को पंडित रविशंकर ने गौरावान्वित किया। अपने अद्भुत और आत्मीय संगीत के लिये इन्हें तीन बार संगीत का सबसे प्रख्यात अवार्ड ग्रैमी अवार्ड से सम्मानित किया गया।
इसलिये, देश की असाधारण सेवा के लिये इनको मान और सम्मान देने के लिये 1999 में इन्हें भारत के सर्वोच्च नागरिक सम्मान भारत रत्न से पुरस्कृत किया गया। वो अपनी मृत्यु 11 दिसंबर 2012 तक सितार वादन करते रहे।
अमर्त्य सेन
(1999 में भारत रत्न से सम्मानित)
भारत, पश्चिम बंगाल के शांतिनिकेतन में 3 नवंबर 1933 को जन्में अमर्त्य सेन विश्व के प्रभावशाली और असाधारण अर्थशास्त्रियों में से एक है। सेन ने अपनी शिक्षा कोलकाता में प्रेसीडेंसी कॉलेज से पूरी की। इन्होंने लंदन विश्वविद्यालय, दिल्ली और जादव विश्वविद्यालय, ऑक्सफोर्ड विश्वविद्यालय तथा लंदन स्कूल ऑफ इकोनॉमिक्स सहित इंग्लैंड और भारत के कई विश्वविद्लयों में कार्य किया। वो हॉवर्ड विश्वविद्यालय में अर्थशास्त्र और दर्शनशास्त्र के प्रोसेसर थे।
एक भारतीय अर्थशास्त्री के रुप में सेन ने खाद्य की कमी के लिये व्यवहारिक हल के विकास के लिये बहुत सारा कार्य किया। इन्होंने भारतीय गरीबों की स्थिति पर भी ध्यान केन्द्रित किया और आधारित कल्याण के संबंधित मुद्दों की ओर शोधकर्ताओं के ध्यान को प्रेरणा दिया। उनके कार्य ने भारतीय सरकार का भारत की खाद्य समस्या का ध्यान खींचा। इनके विचार व्यापक होते है और ये नीति निर्माता को केवल छोटे समय के लिये नहीं बल्कि त्वरित कष्ट को घटाते है और गरीबों का खोयी हुई आमदनी जैसे भारत में खाद्य कीमतों को स्थिर करना तथा लोगो के लिये विभिन्न कार्य प्रोजेक्टों का निर्माण करना। सेन के सामाजिक कल्याण ने इन समस्याओं के खिलाफ बताया- बहुमत का शासन; गरीबों की स्थिति के बारे जानकारी की उपलब्धता और एक व्यक्ति के अधिकार।
इन्होंने पुरुषों और महिलाओं के बीच अनुमानित कार्य तथा असमानता पर स्पष्टीकरण भी उपलब्ध कराया। ये भारत के समाज सुधारक है तथा सरकार को लोगों के स्वास्थ्य और शिक्षा क्षेत्र में सुधार का सुझाव दिया है। 1998 में महान भारतीय अर्थशास्त्री सेन को अर्थ विज्ञान के क्षेत्र में सामाजिक विकल्प सिद्धांत और समाज के सबसे गरीब लोगों की समस्या से संबंधित उनके अपने योगदान के लिये नोबल पुरस्कार से सम्मानित किया गया। 1999 में इन्हें भारत रत्न से नवाजा गया।
गोपीनाथ बारदोलोई
(1999 में भारत रत्न से सम्मानित)
एक प्रख्यात स्वतंत्रता सेनानी गोपीनाथ बारदोलोई का जन्म 6 जून 1890 में हुआ था। वो एक वकील थे तथा 1917 में उन्होंने गुवाहटी में प्रैक्टिस करना शुरु कर दिया। ये महात्मा गाँधी के अनुसरण कर्ता थे और अहिंसा के पथ पर चलते थे।
1946-47 में मुस्लिम राजानीतिक नेता और महत्वपूर्णं ढ़ंग से हिन्दू नियंत्रित असाम के समावेश की चाहत में ज्यादातर मुस्लिम लीग से जुड़े थे। ये हिन्दू प्रभुत्व असाम (पूर्वी पाकिस्तान में जो ज्यादातर मुस्लिमों को भड़का रहा था) के समावेश को लगातार रोक रहे थे। दूसरे राजनीतिज्ञों के साथ गोपीनाथ बारदोलोई ने कूटनीति और राजनीतिक प्रभाव में अंतत: भारत के संघ के तहत इस क्षेत्र को बचाये रखा।
आजादी के बाद गोपीनाथ बारदोलोई ने सक्रियता से हजारों हिन्दू शरणार्थीयों का पुनर्वास किया जो पूर्वी पाकिस्तान से भागकर आये थे। असाम में एकता और जनता की शांति को सुनिश्चित करने के लिये इन्होंने शुरु से अंत तक कार्य किया। उनके इस कदम से पूर्वी पाकिस्तान की आजादी के युद्ध से असाम सुरक्षित हुआ। इन्होंने आसाम के मुख्यमंत्री के पद पर सेवा की और बाद में 1999 में इन्हें प्रतिष्ठित पुरस्कार भारत रत्न से सम्मानित किया गया।
लता मंगेशकर
(2001 में भारत रत्न से सम्मानित)
लता मंगेशकर का जन्म 28 सितंबर 1929 को हुआ था। इन्होंने अपनी संगीत की शिक्षा (हिन्दूस्तानी शास्त्रीय संगीत) की शुरुआत उस्ताद अमानत अली से की। ये एक किंवदंती भारतीय गायिका है और सामयिक संगीतकार भी है। ये भारत की सम्मानिय प्लेबैक गायिकाओं में से एक है। लता जी ने अपने गायिकी जीवन की शुरुआत 1942 से की जो सात दशक चला। इन्होंने भारतीय सिनेमा में 36 क्षेत्रीय भाषाओं में हजारों गाने गाये साथ ही विदेशी भाषाओं में भी अपनी मधुर आवाज दी।
1950 से इन्होंने भारतीय सिनेमा के सबसे अच्छे संगीतकारों के साथ काम करना शुरु कर दिया जैसे अनिल विश्वास, नौशाद अली, शंकर जयकिशन, पंडित अमरनाथ हुसैन, एसडी बर्मन, लाल भगत राम और बहुत सारे। इन्होंने विभिन्न राग आधारित गाने गाये। भारत और विदेश में 1970 से आज तक जरुरतमंद लोगों के लिये लता जी ने कई संगीत समारोह में मुफ्त में गाया। 1974 में इन्होंने अपना पहला विदेशी संगीत कार्यक्रम लंदन के रॉयल एल्बर्ट हॉल में किया।
सिनेमा के इतिहास में सबसे ज्यादा रिकार्डेड कलाकार के रुप में लता मंगेशकर को गिनीज़ बुक ऑफ रिकार्डस में सूचीबद्ध किया। इन्होंने 1948 से 1974 तक 20 भारतीय भाषाओं में लगभग 25 हजार अकेले, कोरस तथा डूएट गाने गाये।
संगीत में दिये अपने उत्कृष्ट योगदान के लता जी ने कई अवार्ड और सम्मान से नवाजा गया जैसे पदम विभूषण (1999), पदम् भूषण (1969), महाराष्ट्रा भूषण अवार्ड (1997), दादा साहेब फाल्के अवार्ड (1989), एनटीआर राष्ट्रीय अवार्ड (1999), एएनआर अवार्ड (2009) और अंतत: 2001 में भारत रत्न से सम्मानित किया गया। एमएस शुभालक्ष्मी के बाद लता जी दूसरी गायिका थी जिन्हें इस सम्मान से पुरस्कृत किया गया।
उस्ताद बिस्मिल्ला खाँ
(2001 में भारत रत्न से सम्मानित)
21 मार्च 1916 को बिहार के डुमराँव में उस्ताद बिस्मिल्ला खाँ का जन्म हुआ था। इनका वास्तविकनाम कमरुद्दीन था बाद में इनका नाम बिस्मिल्ला खाँ पड़ गया। इनके मार्गदशर्क अली बक्क्ष ‘विलायतु’, थे जो एक प्रसिद्ध शहनाई वादक थे। बेहद कम समय में बिस्मिल्ला शहनाई के पूर्णतावादी बन गये। इन्होंने अपना पूरा जीवन संगीत के लिये दे दिया। पूरी दुनिया भर में खूब प्रसिद्धि पाने के बावजूद वो हमेशा अपनी जमींन से जुड़े रहे।
1937 में कोलकाता में ऑल इंडिया म्यूजिक कॉनफेरेंस के संगीत कार्यक्रम में पहली बार शहनाई को चर्चा मिली। आजादी के बाद के युग में भी शहनाई पर इनकी सत्ता बनी रही। अपनी प्रस्तुति से इन्होंने शास्त्रीय संगीत को जीवीत रखा। ये हिन्दू-मुस्लिम एकता पर विश्वास रखते थे और अपने संगीत के द्वारा इन्होंने भाईचारे का संदेश दिया। ये कहते थे कि मात्र संगीत ही इंसानों को जोड़ सकता है क्योंकि संगीत की कोई जाति नहीं होती।
1947 में भारत की आजादी के एक शाम पूर्व बिस्मिल्ला खाँ ने अपनी शहनाई से भारत के लोगों को मंत्रमुग्ध कर दिया था। इन्होंने दिल्ली के लाल किले पर भी प्रस्तुति दी। उस वर्ष से ये प्रधानमंत्री के भाषण के बाद नियमानुसार हर साल 15 अगस्त पर शहनाई वादन करते थे।
इन्होंने कई देशों में अपनी प्रस्तुति दी और इनकी विशाल प्रशंसक संख्या है। खाँ साहब ने अमेरिका, जापान, बांग्लादेश, इराक, अफगानिस्तान, कैनेडा, यूरोप, दक्षिणी अफ्रिका और हाँग-काँग से सजीव प्रसारण देने की शुरुआत की। उस्ताद बिस्मिल्ला खाँ बिना किसी संशय के भारत के रत्न थे। इन्हें भारत के सभी उच्च नागरिक सम्मानों से नवाजा गया-पदम् भूषण, पदम् श्री और पदम् विभूषण। 2001 मे इन्हें भारत रत्न से सम्मानित किया गया। 21 अगस्त 2006 में वाराणसी में इनका देहांत हो गया।
भीमसेन जोशी
(2009 में भारत रत्न से सम्मानित)
भीमसेन जोशी का जन्म 4 फरवरी 1922 को कर्नाटक में हुआ। बहुत छोटी उम्र से ही ये संगीत के बहुत बड़े प्रेमी बन गये थे और 11 वर्ष की उम्र में ही गुरु की खोज में अपना घर छोड़ दिया। हिन्दूस्तानी शास्त्रीय संगीत के एक रुप किराना धारा के ये उत्तराधिकारी है। ये ‘ख्याल’ संगीत के लिये प्रसिद्ध है। हिन्दूस्तानी गायकों में ये एक किंवदंती है। हमलोग इन्हें जीवित किंवदंती कह सकते है और जिन्होंने पूरी दुनिया में सच्चे प्रशंसक कमाये है। ये ख्याल की व्याख्या दक्ष तरीके से करते थे और हिन्दी और मराठी में बहुत से भजन गाये।
इनकी सबसे यादगार प्रस्तुति जो आज भी हर एक के द्वारा याद किया जाता है ‘मिले लुर मेरा तुम्हारा’, था। इनकी स्वर्णिम आवाज ने लोगों को एक साथ आने के लिये अपील किया।
1972 में इन्हें भी पदम् श्री, 1985 में पदम् भूषण और 1976 में संगीत नाटक अकादमी अवार्ड नवाजा गया। हिन्दूस्तानी शास्त्रीय संगीत को समृद्ध करने के लिये 2009 में इन्हें भारत के सर्वोच्च नागरिक सम्मान भारत रत्न से सम्मानित किया गया।
सी.एन.आर.राव
(2014 में भारत रत्न से सम्मानित)
चिंतामनी नागेशा रामचन्द्रन राव (सी.एन.आर.राव) का जन्म 30 जून 1934 को बेंगलुरु में हुआ था। 1958 में इन्होंने अपनी पी.एच.डी 24 वर्ष की उम्र में 2 साल 9 महीने में पूरा कर लिया था। ये एक रसायनशास्त्री और शोधकर्ता है जिन्होंने ठोस अवस्था और संरचनात्मक रसायन में खासतौर से कार्य किया। भारत के प्रधानमंत्री के वैज्ञानिक सलाहकार परिषद के प्रमुख के पद पर वर्तमान में सेवा दे रहे है।
इनका मुख्य योगदान रसायन के क्षेत्र में विकास करना है। राव पहले व्यक्ति थे जिन्होंने दो आकार के ऑक्साइड पदार्थों- La2CuO4 का समन्वय किया। नियंत्रित धातु-उष्मारोधी परिवर्तन के संघटन को इनके कार्य की वजह से हमलोग आसानी से पढ़ सकते है। व्यवहारिक क्षेत्रों में इस अध्ययन का गहरा असर है जैसे तापमान, अतिसंवाहकता और प्रतिरोधक। नैनोमैटेरियल और हाईब्रिड मैटेरियल के क्षेत्र में इन्होंने बड़ा योगजान दिया है।
ये बेंगलोर में राष्ट्रीय शोध प्रोफेसर तथा आदरणीय जवाहर लाल नेहरु सेंटर फॉर एडवाँस सांइटिफिक रिसर्च में कार्य कर रहे है। ये इंटरनेशनल सेटर फॉर मैटेरियल साइंस (आईसीएमएस) के निदेशक के पद पर भी कार्य कर रहे है।
रसायन के क्षेत्र में फिफ्टीन हन्ड्रेस रिसर्च पेपर्स के लेखक है। संरचनात्मक शोध और ठोस अवस्था में अपने शोध के लिये इन्हें 4 फरवरी 2014 को भारत रत्न से पुरस्कृत किया गया।
सचिन तेंडुलकर
(2014 में भारत रत्न से सम्मानित)
असाधारण और भारत का सबसे प्यार किया जाने वाला सपूत सचिन तेंडुलकर का जन्म 24 अप्रैल 1973 में मुम्बई में हुआ। सचिन को अब तक का सबसे बेहतरीन बल्लेबाज माना जाता है तथा खेल को खेलने वाले सबसे महान क्रिकेटरों में से एक है। जब इन्होंने 16 वर्ष की उम्र में पाकिस्तान के खिलाफ 1989 में अपने टेस्ट करियर को प्रारंभ किया, तब से सचिन भारत के लिये लगातार उसी उत्साह और निष्ठा के साथ अपने रिटायरमेंट के दिन 16 नवंबर 2013 तक खेलते रहे।
अपने लंबे और सफल क्रिकेटिंग करियर में अपने बेहतरीन बैटिंग परफॉरमेंस से सचिन ने लगभग सभी बैटिंग रिकार्ड तोड़े; इन्होंने कई अटूट रिकार्ड रखें है जैसे: टेस्ट मैचों में सबसे ज्यादा रन (15,921), सबसे ज्यादा शतक (100), सबसे ज्यादा टेस्ट मैच (200), सबसे ज्यादा टेस्ट और वन-डे शतक (51 और 49 क्रमश:) आदि।
खेल के प्रति अपनी ईमानदारी के द्वारा तेंडुलकर ने भारत को गौरवान्वित किया है और भारत के लाखों उम्मीदों को दिशा दी है; पूरा भारत उनकी सफलता को अपनी सफलता समझ कर जश्न मनाता है तथा उन्हें अबतक का सबसे महान भारतीय मानता है।
सचिन ने विश्व और भारत के लगभग सभी क्रिकेटिंग अवार्ड प्राप्त किये है साथ ही खेल के सभी सम्मान पाये है; इन्हें पदम् श्री और पदम् विभूषण से भी सम्मानित किया जा चुका है। और 2013 में सरकार ने सर्वोच्च नागरिक सम्मान ‘भारत रत्न’ देने के नियम को बदला। इस सम्मान को प्राप्त करने वाले सचिन पहले खेल हस्ति बने। सचिन भारत रत्न पाने वाले सबसे युवा भारतीय है।
मदन मोहन मालवीय
(2015 में भारत रत्न से समानित)
इस महान राष्ट्रवादी, स्वतंत्रता आंदोलन नेता और पत्रकार का जन्म 25 दिसंबर 1861 में इलाहाबाद में हुआ था। मालवीय जी काँग्रेस पार्टी से इसकी शुरुआत से जुड़े थे और कलकत्ता में 1886 में इसके दूसरे सत्र में भाग लिया था। अपने आरंभिक जीवन में ये दो महत्वपूर्ण समाचार पत्रों के संपादक के रुप में कार्य किया; 1887 में हिन्दुस्तान और 1889 में ‘द इंडियन ओपिनियन’।
मालवीय जी ने अपनी एलएलबी इलाहाबाद विश्वविद्यालय से ही पूरी की और एक सफल वकील के रुप में प्रैक्टिस किया। उसी समय ये स्वतंत्रता संघर्ष में बहुत सक्रिय थे; 1909 और 1918 में ये भारतीय राष्ट्रीय काँग्रेस के अध्यक्ष बने। मालवीय जी एक नरम स्वाभाव के नेता थे; गाँधी जी ने इन्हें ‘महामना’ की उपाधि दी थी।
अंग्रेजों के खिलाफ कई आंदोलनों में ये बहुत सक्रिय बने हुये थे और एक वकील के रुप में स्वतंत्रता सेनानीयों की रिहाई के लिये लड़ रहे थे जो अपराधी घोषित किये गये थे चौरी-चौरा काण्ड के बाद और लगभग सभी छूट गये थे।
लेकिन 1916 में एनी बेसेंट की मदद से बनारस हिन्दू विश्वविद्यालय की स्थापना करना शायद उनका सबसे महत्वपूर्ण योगदान था। बीएचयू आज के दिनों में भारत के बेहतरीन विश्वविद्यालयों में से एक है। मदन मोहन मालवीय 1939 तक इसके कुलाधिपति बने रहे।
12 नवंबर 1946 को ये महान शिक्षाविद और स्वतंत्रता आंदोलन के नेता नहीं रहे। 2014 में मरणोंपरांत इन्हें भारत रत्न से सम्मानित किया गया।
अटल बिहारी वाजपेयी
(2015 में भारत रत्न से सम्मानित)
25 दिसंबर 1924 को ग्वालियर में अटल बिहारी वाजपेयी का जन्म हुआ। भारत में लगभग छ: दशक के सबसे लंबे राजनीतिक जीवन में से एक इनका करियर रहा है। ये देश के महान राजनीतिज्ञों में से एक गिने जाते है; लोगों के बीच में अपनी असाधारण वाक्पटुता के लिये प्यार किये जाते है।
वाजपेयी जी ने अपनी सार्वजनिक जीवन की शुरुआत की जब वो 1939 में आरएसएस से जुड़े और आज तक उसके विचारों पर टिके हुए है। ये पूर्व जनसंघ के अध्यक्ष और प्रख्यात सदस्य बने। आपातकाल के दौरान ये पीएम इंदिरा गाँधी के खिलाफ विस्तृत विरोध के महत्वपूर्ण नेताओं में से एक थे और गिरफ्तार किये गये। जब जनता सरकार ने आपातकाल के बाद चार्ज लिया, वाजपेयी जी को विदेश मंत्री के रुप में चुना गया। 1980 में दूसरे जनसंघ सदस्यों के इन्होंने भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) की स्थापना की। जब पहली बीजेपी सरकार सत्ता में आयी तो वाजपेयी जी प्रधानमंत्री बने, 1996 में पहले 13 दिनों के लिये, दूसरी बार 13 महीनों के लिये 1998-1999 के लिये और दुबारा 1999 में 5 साल के लिये।
इनके नेतृत्व में भारत ने अपने पहले परिक्षण के 24 वर्ष बाद 1998 मई में दूसरा परमाणु परिक्षण किया। इनके कार्यकाल के दौरान इन्होंने कई सारे राष्ट्र निर्माण के प्रोजेक्ट्स की शुरुआत की जैसे राष्ट्रीय हाइवे विकास प्रोजेक्ट, प्रधानमंत्री ग्राम सड़क योजना आदि।
अपने पूरे राजनीतिक जीवन के दौरान अटल बिहारी वाजपेयी जी ने लोगों का प्यार और लगाव प्राप्त किया यहाँ तक कि उनके राजनीतिक विरोधी भी उनका अनुसरण करते है। वर्ष 2014 में इन्हें अपने असाधारण सार्वजनिक जीवन के लिये भारत रत्न से सम्मानित किया गया।
प्रणब मुखर्जी
(2019 में भारत रत्न से सम्मानित)
प्रणव कुमार मुखर्जी भारत के प्रमुख नेताओं में से है। उनका जन्म 11 दिसंबर 1935 को पश्चिम बंगाल में हुआ था। अपने कार्यकाल में वह भारत के कई महत्वपूर्ण राजनैतिक पदों पर रह चुके हैं। इसके साथ ही वह भारत के 13वें राष्ट्रपति के रुप में भी अपना कार्यभार संभाल चुके है। देश के राजनीति में इनके अहम योगदान को देखते हुए वर्ष 2019 में इन्हें भारत रत्न से सम्मानित किया गया। प्रणब मुखर्जी का जन्म पश्चिम बंगाल के वीरभूम जिले के मिराती गाँव के एक ब्राम्हण परिवार में हुआ था। इनके पिता का नाम किंकर मुखर्जी और माता का नाम राजलक्ष्मी मुखर्जी था।
प्रणब मुखर्जी की शुरुआती शिक्षा उनके गांव के पास ही स्थित एक प्राथमिक विद्यालय में ही हुई थी। इसके पश्चात उन्होंने कलकत्ता विश्वविद्यालय से इतिहास और राजनीति विज्ञान में स्नातकोत्तर के साथ कानून की डिग्री प्राप्त की। अपने जीवन में उन्होंने एक कालेज अध्यापक तथा वकील के रुप में भी काम किया है। अपने इसी प्रखर व्यक्तित्व तथा वाकपटुता के कारण उन्हें बंगीय साहित्य परिषद, अखिल भारत बंग साहित्य सम्मेलन जैसे विभिन्न सांस्कृतिक तथा क्षेत्रीय संगठनों का नेतृत्व करने का भी अवसर मिला।
उनके संसदीय कैरियर की शुरुआत वर्ष 1969 में हुई। जब वह पहली बार कांग्रेस पार्टी के राज्यसभा सदस्य के रुप में चुने गये। सन् 1982 से लेकर 1984 तक उन्हें कई कैबिनेट पदों के लिए चुना गया। इसके साथ ही सन् 1984 में वह भारत के वित्त मंत्री भी बने। 24 अक्टूबर 2006 को उन्हें भारत के वित्त मंत्री के पद पर नियुक्त किया गया इस कार्यभार को भी उन्होंने बखूबी निभाया और भारत की विदेश नीति को और भी मजबूत तथा स्पष्ट करने का कार्य किया। इसके साथ ही जब वर्ष 2009 में कांग्रेस दोबारा सत्ता में आई तो उन्हें केंद्रीय वित्त मंत्री का महत्वपूर्ण पद सौंपा गया।
उन्हें उनके राजनैतिक जीवन की सबसे बड़ी उपलब्धि तब प्राप्त हुई। जब वर्ष 2012 में हुए राष्ट्रपति चुनावों में वह विजयी हुए और भारत के राष्ट्रपति का कार्यभार संभाला। वह बंगाली मूल के पहले ऐसे व्यक्ति थे, जिन्हें भारत का राष्ट्रपति चुना गया। विभिन्न राजनैतिक पदों पर रहते हुए उन्होंने भारत के हित तथा तरक्की को बढ़ावा देने के लिए कई विशेष कार्य किये। अपने सेवाभाव और अनोखे अंदाज के कारण वह अपने विरोधियों को भी अपना प्रशंसक तथा मित्र बना लेते थे। उनके इन्हीं महान कार्यों को देखते हुए वर्ष 2019 में भारत सरकार द्वारा उन्हें भारत के सर्वोच्च नागरिक सम्मान भारत रत्न से नावाजा गया।
भूपेन हजारिका
(2019 में भारत रत्न से सम्मानित)
भूपेन हजारिका का जन्म 8 दिसंबर को 1926 में असम के तिनसुकिया जिले के सदिया (वर्तमान) में हुआ था। उनके पिता का नाम नीलकांत एवं माता का नाम शांतिप्रिया था। बचपन से ही उन्हें संगीत में काफी रुची थी और इसका श्रेय उनकी माता को जाता है, जिन्होंने बचपन से ही उन्हें पारंपरिक संगीत की शिक्षा दी। उन्होंने सन् 1931 में असमिया सिनेमा की फिल्म इंद्रमालती में पहली बार संगीत दिया। एक निपुण संगीतज्ञ होने के साथ ही वह तेजतर्रार छात्र भी थे। उन्होंने मात्र 13 वर्ष की आयु में मैट्रिक की परीक्षा पास कर ली थी, जो उस समय में एक विलक्षण बात थी। बी.ए. और ए.म. जैसी परीक्षाओं में उत्तीर्ण होने के बाद उन्होंने न्यूयार्क स्थित कोलंबिया विश्वविद्यालय से पीएचडी की डिग्री भी प्राप्त की।
संगीत जगत में उनके योगदान को देखते हुए उन्हें विभिन्न प्रकार से सम्मानों से नवाजा गया। वर्ष 1992 में उन्हें फिल्म जगत के सबसे बड़े सम्मान यानी दादा साहब फाल्के पुरस्कार से भी सम्मानित किया गया। इसके साथ ही वर्ष 2009 में उन्हें असोम रत्न तथा पद्म भूषण जैसे सम्मानों से भी नवाजा गया। अपने जीवन में उन्होंने संगीत जगत की बुलंदियों को छुआ और असमिया संगीत के उन्नति में भी एक महत्वपूर्ण योगदान दिया। 5 नवंबर 2011 को भारत के इस महान संगीतज्ञ का 85 वर्ष की आयु में देंहात हो गया। उनके इन्हीं महत्वपूर्ण कार्यों को देखते हुए भारत के 70वें गणतंत्र दिवस, 26 जनवरी 2019 को मरणोपरांत उन्हें भारत सरकार द्वारा भारत के सर्वोच्च नागरिक पुरस्कार भारत रत्न से नवाजा गया।
नानाजी देशमुख
(2019 में भारत रत्न से सम्मानित)
नानाजी देशमुख का जन्म 11 अक्टूबर को 1916 में महाराष्ट्र के हिंगोली जिले के कडोली कस्बे (वर्तमान) में एक ब्राम्हण परिवार में हुआ था। इनके पिता का नाम अमृतराव देशमुख एवं माता का नाम राजाबाई अमृतराव देशमुख था। उनका शुरुआती जीवन काफी चुनौतीपूर्ण और आभावों से भरा हुआ था। जब वह काफी छोटे थे तभी उनके माता-पिता का देहांत हो गया और उनका पालन-पोषण उनके मामा द्वारा किया गया।
तमाम तरह के समस्याओं के बावजूद उनके अंदर शिक्षा प्राप्त करने तथा समाजसेवा करने की काफी ललक थी। बचपने में उनके पास फीस देने तथा किताबें खरीदने के भी पैसे नही होते थे। अपनी शिक्षा के लिए उन्होंने सब्जी बेचकर धन इकठ्ठा किया तथा मंदिरों में रहते हुए पिलानी के मशहुर बिरला कालेज से उच्च शिक्षा प्राप्त की।
समाजसेवा और दूसरों के मदद का कार्य उन्हें काफी प्रिय था। यही कारण था कि वर्ष 1930 में उन्होंने राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की सदस्यता ग्रहण कर ली। महाराष्ट्र में जन्म लेने के बावजूद भी उन्होंने अपने कर्मभूमि के रुप में उत्तर भारत के राजस्थान तथा उत्तर प्रदेश जैसे राज्यों को चुना। उत्तर प्रदेश में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की नींव जमाने में उनका महत्वपूर्ण योगदान माना जाता है।
काफी समय तक वह राजनीति में भी सक्रिय रहे और आपातकाल हटने के पश्चात उत्तर प्रदेश के बलरामपुर से सांसद भी चुने गये। जब उन्हें केंद्रीय मंत्रिमंडल में उद्योग मंत्री का कार्यभार ग्रहण करने के लिए आंमत्रित किया गया तो उन्होंने आदर्श राजनीति का परिचय देते हुए साठ वर्ष से अधिक सांसदों को मंत्रिमंडल से दूर रहकर समाजसेवा करने का सुझाव दिया।
वर्ष 1980 में उन्होंने राजनीति से सन्यास ले लिया और अपना बाकी का जीवन समाजसेवा तथा गरीबों के उत्थान कार्य हेतु समर्पित कर दिया। यह उनकी विलक्षण इच्छा शक्ति ही थी कि उन्होंने अकेले दम पर नई दिल्ली में दीनदयाल शोध संस्थान की स्थापना की। इसके साथ ही उन्होंने उत्तर प्रदेश के सबसे पिछड़ा क्षेत्र माने जाने वाले गोंडा में भी कई सारे सामाजिक कार्य किये।
वर्ष 1989 में वह चित्रकूट गये और उसे ही अपना अंतिम निवास स्थान बना लिया और वहां रहते हुए गरीबों के उत्थान कार्य तथा सामाजिक समरसता को बढ़ावा देने का कार्य किया। 26 फरवरी 2010 को 95 वर्ष की आयु में चित्रकूट के पवित्र धाम में ही उनका निधन हो गया। उनके मृत्यु के पश्चात भी उनकी शिक्षाएं और स्थापित किये गये संस्थान आज भी लोगों के सहायता का कार्य कर रहें है। उनके द्वारा देशहित तथा समाज के उन्नति के लिए किये गये इन्हीं महान कार्यों को देखते हुए भारत सरकार द्वारा 70वें गणतंत्र दिवस 26 जनवरी 2019 को मरणोपरांत उन्हें भारत के सर्वोच्च नागरिक सम्मान भारत रत्न से नवाजा गया।