ग्रीन हाउस प्रभाव पर निबंध (Greenhouse Effect Essay in Hindi)

ग्रीन हाउस एक प्रकार के विकिरण जमाव है जिसके कारण पृथ्वी के वायुमंडल के निचले स्तर में तापमान की वृद्धि हो रही है। पृथ्वी पर जीवन को बनाए रखने के लिए प्राकृतिक ग्रीनहाउस प्रभाव की मौजूदगी आवश्यक है, जोकि प्राकृतिक रुप से वायुमंडल में उत्पन्न होता है। मानव द्वारा हानिकारक गैसो के उत्सर्जन से ग्रीन हाउस गैसो का प्रभाव वायुमंडल में तेजी से बढ़ता जा रहा है, जिसके कारण पृथ्वी के तापमान में वृद्धि होती जा रही है और इसी कारणवश पृथ्वी पर ग्लोबल वार्मिंग की समस्या उत्पन्न हो रही है।

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ग्रीन हाउस प्रभाव पर छोटे तथा बड़े निबंध (Short and Long Essay on Greenhouse Effect in Hindi, Greenhouse Prabhav par Nibandh Hindi mein)

निबंध 1 (300 शब्द)

प्रस्तावना

ग्लोबल वार्मिंग के कारण पृथ्वी और महासागरों के तापमान में काफी वृद्धि हुई है। ग्रीन हाउस गैसो द्वारा अवरक्त विकिरण अवशोषित और उत्सर्जित किए जाता है तथा विकरण को वायुमंडल में रोक कर रखा जाता है, जिससे उत्पन्न गर्मी द्वारा पृथ्वी का तापमान बढ़ जाता है।

ग्रीन हाउस प्रभाव और ग्लोबल वार्मिंग

वायुमंडल में मौजूद मुख्य ग्रीन हाउस गैसो जैसे कि कार्बन डाइऑक्साइड (CO₂), जल वाष्प (H₂O), मीथेन (CH₄)), ओजोन (O₃), नाइट्रस ऑक्साइड (N₂O) आदि द्वारा सबसे ज्यादे गर्मी उत्पन्न की जाती है। पृथ्वी के वायुमंडल का औसत तापमान लगभग 15⁰  सेल्सियस है (59 ⁰ फारेनहाइट) है, वही ग्रीनहाउस प्रभाव के बिना यह 18 डिग्री फारेनहाइट कम होता।

जीवाश्म ईंधन के दहन, कृषि, वनोन्मूल और अन्य मानवीय गतिविधियों जैसे कार्यो द्वारा उत्सर्जित ग्रीन हाउस गैसें ही पिछले कुछ दशक में ग्लोबल वार्मिंग के बढ़ती समस्या का मुख्य कारण है। इसी कारण से ही बर्फ की चादरे और ग्लेशियर पिघलते जा रहे है, जिसके कारणवश महासागर के स्तर में वृद्धि हुई है। गर्म जलवायु के वजह से वर्षा और वाष्पीकरण की घटनाओं में बढ़ोत्तरी होती है। ग्लोबल वार्मिंग के कारण मौसम की स्थिति भी बदल गयी है, जिससे कुछ स्थान गर्म और कुछ स्थान नम होते जा रहे है।

इन कारणो से सूखा, बांढ़ और तूफान जैसी कई प्राकृतिक आपदाएं उत्पन्न होती है। जलवायु परिवर्तन प्रकृति और मानव जीवन को काफी बुरे तरीके से प्रभावित करता है और यदि ग्रीन हाउस गैसो का उत्सर्जन इसी प्रकार से बढ़ता रहा तो भविष्य में इसके परिणाम और ज्यादे भयावह होंगे। तटीय क्षेत्रो में ग्लोबल वार्मिंग के परिणाम और भी ज्यादे विनाशकारी होंगे। जब बढ़ते तापमान के कारण ध्रुवी क्षेत्र पिघलने लगेंगे तब इससे समुद्र स्तर में भीषण वृद्धि हो जायेगी जिसके कारण तटीय क्षेत्र डूब जायेंगे।

निष्कर्ष

इस संसार में ऐसा कोई देश नही है जो ग्लोबल वार्मिंग के इस भीषण समस्या से प्रभावित ना हुआ हो। ग्रीन हाउस गैसो के उत्सर्जन के मात्रा में कमी लाकर ही ग्लोबल वार्मिंग जैसे इस भीषण समस्या को रोका जा सकता है। इसके लिए सरकारी और गैर सरकारी संस्थाओ द्वारा वायुमंडल में ग्रीन हाउस गैसो के उत्सर्जन को रोकने के लिए सामूहिक रुप से कड़े फैसले लेने की आवश्यकता है। इसके लिए हमें नवकरणीय ऊर्जा को बढ़ावा देने और वनोन्मूलन की जगह और ज्यादे मात्रा में वृक्षारोपण करने की आवश्यकता है।

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निबंध – 2 (400 शब्द)

प्रस्तावना

वायुमंडल में जमा गैसो कारण पृथ्वी के तापमान में बढ़ोत्तरी की घटना को ग्रीनहाउस प्रभाव के रुप में जाना जाता है। वैसो तो ग्रीनहाउस गैसे प्राकृतिक रुप से वायुमंडल में मौजूद रहती है और पृथ्वी पे जीवन के लिए आवश्यक भी है। परन्तु, दुर्भाग्य से औद्योगिक क्रांति के कारण वायुमंडल में ग्रीन हाउस गैसो के उत्सर्जन में भारी वृद्धि हुई है। मानवीय गतिविधियों द्वारा ग्लोबल वार्मिंग में कई गुना वृद्धि देखी गई है। जिससे इसने जलवायु परिवर्तन और ग्लोबल वार्मिंग जैसी समस्याओं को बढ़ाने में अपना प्रमुख योगदान दिया है।

ग्रीन हाउस गैसो के प्रमुख कारण

ग्रीनहाउस प्रभाव के कुछ मुख्य कारण इस प्रकार से हैः

प्राकृतिक कारणः

  • पृथ्वी पर प्राकृतिक रुप से मौजूद कुछ तत्वो के कारण कार्बन डाइआक्साइड जैसी समुद्र में पायी जाने वाली तथा मीथेन जोकि पेड़-पौधो के क्षय और प्राकृतिक रुप से आग लगने से उत्पन्न होती है और नाइट्रोजन आक्साइड जोकि कुछ मात्रा में भूमि और पानी में पाये जाने वाले ग्रीन हाउस गैसो का निर्माण होता है। केवल फ्लुओरीनटेड गैसो का निर्माण मानव द्वारा किया जाता है जोकि प्राकृतिक रुप से प्रकृति में मौजूद नही होती है।
  • जल वाष्प का भी ग्रीनहाउस प्रभाव में बहुत महत्वपूर्ण योगदान है। जल वाष्प द्वारा थर्मल ऊर्जा को अवशोषित कर लिया जाता है, ज्यादेतर जब हवा में अद्राता बढ़ जाती है। तो इसके कारण वायुमंडल में तापमान में भी बढ़ोत्तरी हो जाती है।
  • जानवरो द्वारा वायुमंडल से आक्सीजन ग्रहण किया जाता है तथा कार्बन डाइआक्साइड और मीथेन गैस का उत्सर्जन किया जाता है। यह ग्रीनहाउस प्रभाव के प्राकृतिक कारको में से एक है।

मानव जनित कारण

  • तेल और कोयले जैसे जीवाश्म ईंधनो के दहन का भी ग्रीनहाउस प्रभावो में महत्वपूर्ण योगदान है। जलते हुए जीवाश्म ईंधन भी वायुमंडल में कार्बन डाइआक्साइड का उत्सर्जन करते है जिससे वायुमंडल प्रदूषित हो जाता है। इसके अलावा गैस और कोयले के खदानो तथा तेल के कुएं खोदने से भी मीथेन गैस का उत्सर्जन होता है।
  • वनोंमूलन एक दूसरा बड़ा कारण है जो ग्रीनहाउस प्रभाव को जन्म देता है। पेड़-पौधे भी पर्यावरण में कार्बन डाइआक्साइड की मात्रा को कम करने और आक्सीजन प्रदान करने में अपनी महत्वपूर्ण भूमिका निभाते है।
  • आप्राकृतिक रुप से बनी हुई नाइट्रोजन जोकि फसलो में उर्वरक के रुप में इस्तेमाल की जाती है। जिससे की वायुमंडल में नाइट्रोजन आक्साइड उत्सर्जित होती है, जिससे की ग्रीनहाउस प्रभाव में वृद्धि होती है।
  • पूरे विश्वभर में वायुमंडल में बहुत ही भारी मात्रा में औद्योगिक गैसो का उत्सर्जन होता है। मीथेन, कार्बन डाइऑक्साइड और फ्लोराइन गैस जैसी गैसे औद्योगिक गैसो की श्रेणी में आती है।
  • कृषि रुप से पालतु जीव जैसे की बकरी, सूअर, गाय आदि द्वारा भी ग्रीन हाउस गैसो के उत्सर्जन में काफी योगदान दिया जाता है। जब इन पशुओ द्वारा अपना खाना पचाया जाता है तब इनके पेंट में मीथेन गैस बनती है जोकि इनके गोबर करने पर वायुमंडल में मिल जाती है। पालतू पशुओ के लिए अधिक संख्या में फार्म बनाने के लिए वनो के कटाई से भी ग्रीन हाउस गैसो के उत्सर्जन में वृद्धि हुई है।

निष्कर्ष

तो इस प्रकार से हम कह सकते है कि मानवीय गतिविधिया ही ग्रीन हाउस गैसो के उत्सर्जन का प्रमुख कारण है। ग्रीन हाउस गैसो के उत्सर्जन के द्वारा उत्पन्न इस ग्लोबल वार्मिंग की समस्या का मानव जीवन और प्रकृति पर बहुत ही बुरा प्रभाव पड़ रहा है और यदि अब इस संकट को रोकने के लिए ठोस कदम नही उठाये गये तो भविष्य में इसके परिणाम विनाशकारी सिद्ध होंगे।

Essay on Greenhouse Effect in Hindi

निबंध – 3 (500 शब्द)

प्रस्तावना

ग्रीन हाउस गैसो द्वारा विकरण को बाहरी अंतरिक्ष में जाने से रोका जाता है, जिससे पृथ्वी के सतह के तापमान में धीरे-धीरे वृद्धि होने लगती है और इसी कारणवश ग्लोबल वार्मिंग की समस्या उत्पन्न हो जाती है। पृथ्वी विकिरण से संतुलन प्राप्त करती है और बाकी के विकिरण अंतरिक्ष में परावर्तित कर दिया जाता है, वह पृथ्वी को मनुष्यों के लिए रहने योग्य बनाता है। जिसका नासा द्वारा औसत तापमान 15⁰ सेल्सियस (59 डिग्री फारेनहाइट) बाताया गया है।

बिना इस संतुलन के हमारा ग्रह या तो ज्यादे ठंडा हो या फिर ज्यादे गर्म हो जायेगा। सूर्य के विकरण के द्वारा हमारे ग्रह का तापमान बढ़ता जा रहा है इसे ही ग्रीनहाउस प्रभाव के नाम से जाना जाता है।

ग्रीनहाउस प्रभाव का जलवायु पर प्रभाव

वायुमंडल में ग्रीन हाउस गैसो के उत्सर्जन से जलवायु पर नाटकीय रुप से प्रभाव पड़ता है। औद्योगिकरण के समय से वायुमंडल में कई प्रकार की ग्रीन हाउस गैसो के उत्सर्जन की मात्रा काफी बढ़ गई है। ग्रीनहाउस गैसे ज्यादेतर जीवाश्म ईंधनो के दहन से पैदा होती है। कार्बन डाइऑक्साइड (CO₂), जल वाष्प (H₂O), मीथेन (CH₄), ओजोन (O₃), नाइट्रस ऑक्साइड (N₂O) आदि वह गैसे है जोकि ग्रीनहाउस प्रभाव को बढ़ाती है।

ग्रीन हाउस गैसो में सबसे अधिक मात्रा CO₂ है और औद्योगिकरण शुरु होने से लेकर अबतक इसमें 40 प्रतिशत तक की वृद्धि हो चुकी है। वैसे तो प्राकृतिक प्रक्रियाएं वायुमंडल में गैसों को अवशोषित कर सकती हैं। उदाहरण के लिए, प्रकाश संश्लेषण की प्रक्रिया कार्बन डाइऑक्साइड को अवशोषित कर सकती है, लेकिन इन गैसो के मात्रा में धीमें-धीमें हो रहे वृद्धि के कारण प्रकृति की इनकी अवशोषण की क्षमता कम होते जा रही है। ग्रीनहाउस गैसों के उत्सर्जन और गैसों को अवशोषित करने की क्षमताओं के बीच असंतुलन ने वातावरण में ग्रीनहाउस गैसों के उत्सर्जन में  तीव्रता से वृद्धि की है।

हमने काफी ज्यादे मात्रा में जीवाश्म ईंधन का दहन किया है और भारी मात्रा में पेड़ो की कटाई, पालतू पशुओ द्वारा भारी मात्रा में मीथेन के उत्पत्ति के कारण हमारा वायुमंडल जहरीली गैसो से प्रदूषित हो गया है। ग्रीनहाउस गैसे जोकि भारी मात्रा में विकरण का अवशोषण करती है वायुमंडल में उनकी ज्यादे मात्रा में उपस्थिति के कारण जलवायु परिवर्तन जैसी बड़ी समस्या उत्पन्न हो गयी है और वर्तमान समय में ग्लोबल वार्मिंग वह सबसे बड़ी समस्या है जिसका सामना मानव जाति द्वारा किया जा रहा है।

जलवायु परिवर्तन के प्रभाव

  • वनो द्वारा ग्लोबल वार्मिंग का मुख्य कारण माने जाने वाले कार्बन डाइआक्साइड के अवशोषण में महत्वपूर्ण भूमिका निभायी जाती है। पेड़ो के कटने के कारण वायुमंडल में कार्बन डाइआक्साइड की मात्रा बढ़ती जा रही है, जिसके कारणवश ग्लोबल वार्मिंग की समस्या बढ़ती जा रही है।
  • जलवायु परिवर्तन जल प्रणाली को प्रभावित करता है जिसके कारण लगातार बाढ़ और सूखे जैसी समस्याएं उत्पन्न हो रही है। वायुमंडल में बढ़ते प्रदूषण और ग्रीन हाउस गैसो के बढ़ते स्तर के कारण विश्वभर के जल स्रोत प्रदूषित हो चुके है तथा जल के गुणवत्ता में भी कमी आ गई है। इसके कारण ग्लेशियर भी पिघलते जा रहे जिससे ताजे पानी का पारिस्थितिकी तंत्र बिगड़ गया है और इसके साथ ही बढ़ता हुआ महासागरीय अम्लीकरण महासागराय जीवो के लिए एक संकट बन गया है।
  • जलवायु परिवर्तन कई सारी प्रजातियो के लिए एस संकट बन गया है, इसके साथ ही यह कई सारी प्रजातियो के भी विलुप्त होने का भी कारण बन गया है। इसके साथ ही वह प्रजातिया जो के तेजी से हो रहे जलवायु परिवर्तन वाले क्षेत्रो में निवास करती है उनके लिए खुद को इसके अनुरुप ढालना मुश्किल होता जा रहा है।
  • पृथ्वी के बढ़ते तापमान के कारण जलवायु में भीषण रुप से परिवर्तन होने के आसार है।

निष्कर्ष

पृथ्वी के वायुमंडल और जलवायु को पहले से ही जो नुकसान हो चुका है उसे बदला तो नही जा सकता। हम या तो खुद को जलवायु परिवर्तन के अनुरुप ढालकर बाढ़ और बढ़ते समुद्र स्तर जैसे प्रतिकूल परिणामों के साथ रह सकते हैं या फिर वायुमंडल में ग्रीनहाउस गैसों की मात्रा को कम करने वाली नीतियों को लागू करके ग्लोबल वार्मिंग के प्रभाव को कम करके इस पृथ्वी को और भी सुंदर बनाने में अपना महत्वपूर्ण योगदान दे सकते है।

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निबंध – 4 (600 शब्द)

प्रस्तावना

ग्रीनहाउस एक ग्लास की तरह है जोकि प्राकृतिक रुप से पृथ्वी की गर्मी को में ही रोकने के लिए बना हुआ है। इसी वजह से ठंडे दिनो में भी ग्रीनहाउस के कारण ही गर्मी बनी रहती है। ग्रीनहाउस के तरह ही पृथ्वी के वायुमंडल द्वारा भी कुछ मात्रा में सूर्य ऊर्जा का अवशोषण किया जाता है और इसे पृथ्वी के वायुमंडल से बाहर निकलने से रोका जाता है। पृथ्वी के वायुमंडल में मौजूद वह अणु जो उष्मा को वायुमंडल से बाहर निकलने से रोकते है उन्हे ग्रीनहाउस कहा जाता है।

ग्रीनहाउस का प्रभाव उष्मा के अवशोषण में बहुत महत्वपूर्ण है और यह पृथ्वी के तापमान को गर्म और जीवन के अनुकूल बानाता है। ग्रीनहाउस प्रभाव की सबसे बड़ी समस्या यह है कि यह तेजी से बढ़ती जा ही है और ज्यादे मात्रा में उत्सर्जित ग्रीन हाउस गैसो के कारण जलवायु परिवर्तन की समस्या उत्पन्न होती जा रही है। वैसे तो ग्रीन हाउस गैसो का निर्माण प्राकृतिक रुप से भी होता है, इसके साथ मानव गतिविधियों द्वारा भी इसका निर्माण होता है और मानवनिर्मित ग्रीन हाउस गैसो की मात्रा में दिन-प्रतिदिन हो रही वृद्धि से इसका संतुलन बिगड़ गया है। जिससे कई सारी गंभीर समस्याएं उत्पन्न हो रही है।

1.कार्बन डाइआक्साइड (CO)

सभी ग्रीन हाउस गैसो में कार्बन डाइआक्साइड सबसे महत्वपूर्ण है और वायुमंडल में इसके मुख्य स्त्रोत भूमि को साफ करना, जीवाश्म ईंधन को जलाना और सीमेंट उत्पादन और अन्य कई प्राकृतिक स्त्रोत जैसे कि ज्वालामुखी, जीवों का श्वसन के लिए आक्सीजन का उपयोग जैविक वस्तुओं का क्षय और दहन आदि है। वायुमंडल से कार्बन डाइऑक्साइड को अवशोषित करने वाले प्राकृतिक वस्तुओं द्वारा प्रकाश संश्लेषण की प्रक्रिया की जाती है जोकि बहुत ही महत्वपूर्ण है। समुद्री जीवो द्वारा भी महासागरो में मिले कार्बन डाइआक्साइड का अवशोषण किया जाता है। लेकिन वनोन्मूलन और भारी मात्रा में पेड़ो के कटने और नए पेड़ ना लगाये जाने से भी पर्यावरण पर बुरा प्रभाव पड़ रहा है।

2.जल वाष्प (HO)

जल वाष्प हमारे ग्रह के वायुमंडल के सबसे शक्तिशाली ग्रीन हाउस गैसो में से एक है। पृथ्वी की गर्म होती जलवायु के कारण पृथ्वी के सतह पे मौजूद पानी के वाष्पीकरण में तेजी से वृद्धि हुई है। जितने तेजी से वाष्पीकरण होता है, ग्रीन हाउस गैसो के संकेद्रण में उतने ही तेजी से वृद्धि होती जाती है।

3.मीथेन (CH)

पृथ्वी के वायुमंडल में मीथेन काफी कम मात्रा उपस्थित है। कार्बन डाइऑक्साइड की तुलना में मीथेन भी कम अवधि के लिए वातावरण में रहता है। मीथेन के स्रोतों में ज्वालामुखी, आर्द्रभूमि, सीपेज वेंट्स, मीथेन ऑक्सीडाइजिंग बैक्टीरिया, पशुधन, प्राकृतिक गैसों और कोयले के जलने, लैंडफिलो में अपघटन, बायोमास का दहन आदि शामिल हैं। यह गैस मुख्य रुप से मिट्टी और वायुमंडल में उपस्थित रहती है है।

4. नाइट्रस ऑक्साइड (NO) और फ्लोरिनेटेड गैसें

औद्योगिक गतिविधियों के कारण उत्पादित ग्रीनहाउस गैसों में फ्लोरिनेटेड गैस और नाइट्रस ऑक्साइड शामिल हैं। इसमें से जो तीन मुख्य गैसे है वह हाइड्रोफ्लोरोकार्बन (HFCꜱ), सल्फर हेक्स फ्लोराकार्बन (SF₆) और पर्फ्यूरोकार्बन (PFCꜱ) है। फ्लोरिनेटेड गैसे प्राकृतिक रुप से उत्पन्न नही होती है यह मानव निर्मित है। यह ज्यादेतर औद्योगिक कार्यो जैसे मानवीय गतिविधियों द्वारा पैदा होती है। मिट्टी में मौजूद जीवाणु, पशुओ के मल-मूत्र प्रबंधन और कृषि में उर्वरको के उपयोग इसके मुख्य स्त्रोत है।

5.भूस्तरीय ओजोन (O)

भूस्तरीय ओजोन वायुमंडल के सबसे महत्वपूर्ण ग्रीन हाउस गैसो में से एक है। यह मुख्यतः वायु प्रदूषण के कारण उत्पन्न होता है और इसका पृथ्वी के विकरण के संतुलन में बहुत भिन्न योगदान है। ओजोन पृथ्वी के उपरी और निचली दोनो वायुमंडलीय सतहो पर मौजूद होता है। ओजोन वायुमंडल में मौजूद एक बहुत ही हानिकारक वायु प्रदूषक है, यह तब उत्पन्न होता है जब वाहनो, पावर प्लाट, केमिकल प्लांट, औद्योगिक ब्वायलर्स, रीफाइनरीयो और अन्य दूसरे स्त्रोतो से निकलने वाले कण जब रासायनिक रुप से सूर्य के विकरण के साथ अभिक्रीया करते है।

निष्कर्ष

जितना ज्यादे ग्रीन हाउस गैसो का उत्सर्जन होता है, वायुमंडल में इनका संकेद्रण उतना ही बड़ता जाता है। इनमें से हर एक गैसे अलग-अलग समय तक पृथ्वी के वायुमंडल में मौजूद रहती है, जैसे कि कुछ वर्षो से लेकर कुछ हजार वर्षो तक। इनमें से हर एक का प्रभाव भिन्न होता है कुछ दूसरो से ज्यादे प्रभावी होती है और पृथ्वी के तापमान को ज्यादे गर्म करती है।

इसके साथ ही जलवायु परिवर्तन के कारण पर्यावरण के कई पहलुओं में बदलाव आया है जैसे कि गर्म जलवायु, बढ़ता समुद्र स्तर, सूखा आदि। जो कि सदियों तक पृथ्वी के तापमान को प्रभावित करेगा और इसके साथ ही हमें भविष्य में होने वाले जलवायु परिवर्तन के प्रतिकूल प्रभावों के लिए भी तैयार रहना चाहिए। यदि हम अभी भी इसके होने वाली क्षति की सीमा को नजरअंदाज करते रहेंगे तो भविष्य में इसके परिणाम और भी ज्यादे गंभीर हो सकते है। हमे अभी से ही इसके रोकथाम के प्रयास करने की आवश्यकता है और इसके लिए हमे ज्यादे से ज्यादे नवकरणीय ऊर्जा के संसाधनो के उपयोग को बढ़ावा देने की आवश्यकता है।

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