एनी बेसेंट से सम्बन्धित तथ्य:
जन्मः 1 अक्टूबर 1847 को कलफम, लंदन, यूनाईटेड किंगडम
मृत्युः 20 सितम्बर 1933, 85 साल की आयु में अड्यार, मद्रास प्रेसिडेन्सी, ब्रिटिश इण्डिया
राष्ट्रीयताः ब्रिटिश
अन्य नामः एनी वुड
प्रसिद्धिः थियोसोफिस्ट, महिला अधिकारों की समर्थक, लेखक, वक्ता एवं भारत-प्रेमी महिला
परिवारः
पतिः पादरी फ्रैंक बेसेंट
बच्चेः अर्थर, माबेल (बेटी)
माताः एमिली मॉरिस
पिताः विलियम वुड
शिक्षाः ब्रिकबेक, लंदन विश्व विद्यालय
राजनीतिक कार्यक्षेत्र:
भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस की प्रथम महिला अध्यक्ष (1917),
अम्बिका चरन मजूमदार से पूर्वकालिक (अर्थात् पहले),
मदन मोहन मालवीय से अनुवर्ती (अर्थात् बाद में)
एनी बेसेंट की जीवनी (जीवन परिचय)
एनी बेसेंट का जन्म 1 अक्टूबर 1847 को, एमिली मॉरिस और विलियम वुड के घर, लंदन, यू.के. में हुआ और उनकी मृत्यु 20 सितम्बर 1933 को मद्रास (भारत) में हुई थी। वो प्रसिद्ध ब्रिटिश समाज सुधारक, महिला अधिकारों की समर्थक, थियोसोफिस्ट, लेखक तथा वक्ता होने के साथ ही आयरिश तथा भारत की आजादी की समर्थक थी।
20 साल की आयु में उनकी शादी फ्रैंक बेसेंट से हुई किन्तु शीघ्र ही अपने पति से धार्मिक मतभेदों के कारण अलग हो गयी। उसके बाद वो राष्ट्रीय सेक्युलर सोसायटी की प्रसिद्ध लेखिका और वक्ता बन गयी और चार्ल्स ब्रेडलॉफ के सम्पर्क में आयीं। वो 1877 में प्रसिद्ध जन्म नियंत्रक प्रचारक चार्ल्स नोल्टन की एक प्रसिद्ध किताब प्रकाशित करने के लिये चुनी गये। 1880 में उनके करीबी मित्र चार्ल्स ब्रेडलॉफ नार्थ हेम्प्टन के संसद के सदस्य चुने गये। तब वो फैबियन सोसायटी के साथ ही मार्क्सवादी सोशल डेमोक्रेटिक फेडरेशन (एसडीएफ) की भी प्रमुख प्रवक्ता बन गयी। उनका चयन लंदन बोर्ड स्कूल के हैमिलटन टावर के लिये किया गया।
वो 1890 में हेलेना ब्लावस्टकी से मिली और थियोसोफी में रुचि लेने लगी। वो इस सोसायटी की सदस्य बन गयी और थियोसोफी में सफलता पूर्वक भाषण दिया। थियोसिफिकल सोसायटी के कार्यों के दौरान 1898 में वो भारत आयी। 1920 में इन्होंने केन्द्रीय हिन्दू कॉंलेज की स्थापना में मदद की। कुछ साल बाद वह ब्रिटिश साम्राज्य के कई हिस्सों में विभिन्न लॉज स्थापित करने में सफल हो गयी। 1907 में एनी बेसेंट थियोसोफिकल सोसायटी की अध्यक्ष बनी। वो भारतीय राजनीति में शामिल हो गयी और भारतीय राष्ट्रीय काग्रेंस से जुड़ गयी।
प्रारम्भिक जीवन
एनी बेसेंट का जन्म लंदन की मध्यम वर्गीय परिवार में हुआ था। जब वो केवल 5 साल की थी उन्होनें अपने पिता को खो दिया। उनकी माँ का स्वभाव से ही कठिन परिश्रम करने वाली थी, अपने परिवार के पालन-पोषण के लिये उनकी माँ, हैरो स्कूल के लड़कों के लिये बोर्डिंग घर (हाउस) का संचालन करती थी। उनकी माँ उनका पालन करने में असमर्थ थी इसलिये एनी की अच्छी देखभाल और परवरिश के लिये अपनी मित्र ऐलन मैरियट के साथ भेज दिया। जब वो केवल 19 साल की थी उन्होंने 26 वर्ष के पादरी फ्रैंक बेसेंट से शादी कर ली। वो कुछ समय के लिये ब्रिकबेक साहित्य और वैज्ञानिक संस्था में अध्ययन भी करती थी। वह उन कारणों के लिये जो उनके अनुसार सही होते थे, के लिये हमेशा लङ़ती थी। वो दो बच्चों की माँ थी और हमेशा उन दोनों के सम्पर्क में रहती थी। बेसेंट एक बुद्धिमान लोक वक्ता थी, और उनकी वहां बहुत ज्यादा माँग थी।
वो सोसायटी के नेता चार्ल्स ब्रेडलॉफ की बहुत करीबी मित्र थी और बहुत से मुद्दों पर दोनो साथ काम करते थे साथ ही वह नार्थ हेम्पटन संसद की सदस्य भी चुनी गयी थी। एनी और उनके मित्र दोनों ने एक चार्ल्स नोल्टन (अमेरिकी जन्म नियंत्रण प्रचारक) की किताब प्रकाशित की। इस बीच, बेसेंट द्वारा कठिन वर्षों में अपने समाचार पत्र के स्तम्भ लेखों के माध्यम से मदद करने के दौरान उनके आयरिश होम रुल से करीबी सम्बन्ध बने।
राजनीतिक सक्रियतावाद
एनी बेसेंट के अनुसार मित्रता, प्रेम और राजनीति अंतरंग रुप से उलझे हुये है। बेसेंट फैबियन सोसायटी से जुड़ गयी और फैंबियंस के लिये लिखना शुरु कर दिया। वो 1888 की लंदन मैचगर्ल्स हड़ताल में सक्रिय रुप से शामिल हुई। उन्होंने ह़ड़ताल के उद्देश्य से महिलाओं की एक कमेटी बनायी जिसका लक्ष्य बेहतर भुगतान और सुविधाओं के लिये माँग करना था। 1884 में उनका युवा सामाजवादी शिक्षक, एडवर्ड से करीबी रिश्ता बना। जल्द ही वो मार्क्सवाद से जुड़ गयी और लंदन स्कूल बोर्ड के चुनाव के लिये खङी हुई। वो 1889 की लंदन डॉक हड़ताल से भी सम्बन्धित थी और संगठन द्वारा आयोजित बहुत सी महत्वपूर्ण बैठकों और जूलूसों में भी भाग लेती थी।
थियोसोफीः
एनी बेसेंट बहुत रचनात्मक लेखक और एक प्रभावशाली वक्ता थी। उन्हें 1889 में गुप्त सिद्धान्त (एच.पी.ब्लाव्टस्की की एक किताब) पर पाल माल राजपत्र पर समीक्षा लिखने के लिये आमंत्रित किया गया था। पेरिस में पुस्तक के लेखक के साक्षात्कार के तुरंत बाद वो थियोसोफी में बदल गयी। उन्होंने 1890 में फैंबियन सोसायटी और मार्क्सवाद से अपने संबंध तोड़ लिये। 1891 में पुस्तक के लेखक, ब्लाव्टस्की की मृत्यु के बाद, केवल वह ही थियोसोफी की प्रमुख नेतृत्वकर्ता के रुप में थी और उन्होंने इसे शिकांगो विश्व मेले पर प्रतीकात्मक रुप दिया।
वो थियोसोफिकल सोसायटी के सदस्य के रुप में भारत आयीं और भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में भाग लिया। चेन्नई में उनके सम्मान में थियोसोफिकल सोसायटी के निकट बेसेंट नगर है।
सिडनी में एनी बेसेंटः
1916 में लोकमान्य बाल गंगाधर तिलक के साथ उन्होंने होमरुल आन्दोलन की शुरुआत की थी। एनी बेसेंट दिसम्बर में एक वर्ष के लिये भारतीय राष्ट्रीय काँग्रेस की अध्यक्ष भी बनी। उन्होंने भारतीय स्वतंत्रता आन्दोलन में कठिन संघर्ष किया और भारत की स्वतंत्रता की माँग करते हुये अनेक पत्र और लेख लिखे।
बाद के वर्षः
1933 में उनकी मृत्यु हो गयी और उनकी पुत्री माबेल उनका पार्थिव शरीर लेकर गयी। उनकी मृत्यु के बाद, उनके सम्मान में उनके सहयोगियों (जिद्दू कृष्णमूर्ति, गुइडो फर्नाल्डो, एल्डस हक्सले और रोसालिंड राजगोपाल) ने बेसेंट हिल स्कूल बनवाया।
वंशजः
एनी बेसेंट के बहुत से वंशज है। अर्थर डिग्बी से एक बेटी साल्विया बेसेंट की शादी 1920 में कमांडर क्लेम लुईस से हुई। उनके परिवार के सबसे छोटे और कम उम्र के उनके कुछ पोते जेम्स, डेविड, फियोना, रिचर्ड और एंड्रयू कैसल हैं।
एक स्वतंत्रता सेनानी के रुप में एनी बेसेंटः
एनी बेसेंट महान और साहसी महिला थी जिन्हें स्वतंत्रता सेनानी का नाम दिया गया क्योंकि उन्होंने लोगों को वास्तविक स्वतंत्रता दिलाने के लिये बहुत सी लड़ाईयाँ लड़ी। वो गहराई के साथ भारतीय स्वतंत्रता आन्दोलन से जुड़ी हुई थी और भारत को स्वतंत्र देश बनाने के लिये कई आभियानों को जारी रखा। वो भारतीय लोगों, संस्कृति और परंपराओं से प्रेम करती थी और उनके विश्वासों को समझती थी क्योंकि वो एक लेखक और वक्ता थी। उन्होनें 1893 में भारत को अपना घर बना लिया और अपने तेज भाषणों से गहरी नींद में सोये हुये भारतियों को जगाना शुरु कर दिया। एक बार महात्मा गाँधी ने उनके बारे में कहा था कि उन्होंने गहरी नींद में सोये भारतियों को जगाया है।
1908 में जब वह थियोसोफिकल सोसायटी की अध्यक्ष बन गयी, उन्होंने भारतीय समाज को बौद्ध धर्म से दूर हिन्दू धर्म की ओर आने को प्रोत्साहित करना शुरु कर दिया। उन्होंने खुद को गहराई से भारत की समस्याओं को हल कर्ता के रुप में शामिल कर लिया। भारत में लोकतंत्र लाने के लिये उन्होंने होमरुल आन्दोलन में सहयोग किया। वो 1917 में भारतीय राष्ट्रीय काँग्रेस की प्रथम महिला अध्ययक्ष चुनी गयी। उन्होंने भारत में बहुत से सामाजिक कार्यों को करने में खुद को शामिल कर लिया जैसेः शिक्षण संस्थानों की स्थापना, भारतीय स्वतंत्रता आन्दोलनों में सहयोग आदि।
वह भारत में जैसे महिला अधिकारों, मजदूरों के अधिकारों, धर्मनिरपेक्ष, जन्म नियंत्रक अभियान और फैंबियन समाजवाद जैसे मुद्दों पर लड़ी। उन्होंने चर्चों के खिलाफ लिखा और लोगों को सही रास्ता दिखाया। अपने सामाजिक कार्यों के लिये वह सार्वजनिक वक्ता के रुप में चुनी गयी क्योंकि वो बुद्धिमान वक्ता थी। उनके करीबी मित्रों में से एक, चार्ल्स ब्रेडलॉफ, नास्तिक और गणतंत्रवादी थे, जिसके साथ उन्होंने बहुत से सामाजिक मुद्दों पर कार्य किया था। वो अपने अन्य मित्रों के साथ 1888 की लंदन मैचगर्ल्स हड़ताल में शामिल हुई, जो नये संघवाद की लड़ाई थी।
एनी बेसेंट प्रथम महिला अध्ययक्ष के रुप मेः
एक आयरिश क्षेत्र की महिला, एनी बेसेंट, 1917 में भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के कलकत्ता सत्र के दौरान प्रथम महिला अध्ययक्ष बनी। वह एक महान महिला थी जिन्होंने भारतीय स्वतंत्रता आन्दोलन के दौरान भारत को एक स्वतंत्र देश बनाने के लिये महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी। पति से अलगाव के बाद वह थियोसोफी से संबंधित एक धार्मिक आन्दोलन के लिये भारत आयी, जिसके बाद वह नेता बन गयी।
1893 में भारत आने के बाद वह गहराई से स्वतंत्रता आन्दोलन में शामिल हो गयी और यहीं रहने का निर्णय किया। भारत मे चलाये गये बहुत से सामाजिक सुधार के आन्दोलनों में वह सफल भी हुई। एक दिन वह भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस की प्रथम महिला अध्ययक्ष बनी और भारत के लोगों के सन्दर्भ में उचित कार्यों को किया।
एनी बेसेंट थियोफिसिकल सोसायटी की अध्ययक्ष के रुप मेः
वो थियोसोफी में बदल गयी और थियोसोफिस्ट बन गयी जब उन्हें लगा कि वो आध्यात्मिक विकास के लिये लड़ने के लिये अधिक सक्षम हैं। अन्त में, जब वो थियोसोफिकल सोसायटी के संस्थापक मैडम ब्लाव्टस्की से 1875 मिली तो वो 1887 में पूर्ण रुप से थियोसोफी बन गयी। वो उनकी शिष्य बन गयी और वो सब कुछ किया जिसके लिये वो भावुकता से जुङी हुई थी। थियोसोफिकल सोसायटी की स्थापना पूरे विश्व में “मानवता के विश्व बन्धुत्व” के उद्देश्य से “राष्ट्रों के बीच भाईचारे” को बढाने के लिये की गयी थी।
उन्होंने 1889 में थियोसोफी से जुड़ने के तुरंत बाद से थियोसोफी पर लेख और साहित्य लिखना प्रारम्भ कर दिया था। उनके लेखों में से एक “मैं थियोफिस्ट क्यों बनी” उनके थियोफिस्ट के रुप में इतिहास पर आधारित है। अपने गुरु, मैडम ब्लाव्टस्की का, 8 मई 1891 में निधन होने के बाद अपने सामाजिक कार्यों को पूरा करने के लिये 1893 में भारत आयी।
1906 में एच.एस.ऑकॉट (सोसायटी के अध्ययक्ष) की मृत्यु के बाद, अड्यार और बनारस में थियोसोफिकल सोसायटी के वार्षिक सम्मेलन के दौरान, वो थियोसोफिकल सोसायटी के अध्यक्ष के लिए नामित की गयी। आखिरकार वो थियोसोफिकल सोसायटी की अध्यक्ष बनी और अपनी मृत्यु 1933 तक इस पद पर कार्यरत रही। अपनी अध्यक्षता में, उन्होंने अन्य विभिन्न क्षेत्रों में थियोसोफी की जैसेः सामाजिक, धार्मिक, आर्थिक, राजनीतिक आदि। अन्य क्षेत्रों में थियोसोफी के सपने को पूरा करने के लिये, उन्होंने “थियोसोफिकल आर्डर ऑफ सर्विस एण्ड द संस ऑफ इण्डिया” की स्थापना की।
उन्होंने भारत के लोगों को भी थियोसोफिकल शिक्षा लेने के लिये प्रोत्साहित किया। थियोसोफिस्ट के रुप में निरंतरता के साथ ही वह 1923 में भारत में राष्ट्रीय सम्मेलनों की महासचिव बनी। 1924 में लंदन में उनके सार्वजनिक जीवन में 50 वर्ष की उपस्थिति के साथ ही उनके मानवता पर किये गये सामाजिक कार्यों और लोगों के बीच मानवता की भावना को प्रेरित करने के कार्यों पर ध्यान केन्द्रित करते हुये सम्मानित किया गया। 1926 में थियोसोफी पर व्याख्यान देने के बाद उन्हें विश्व शिक्षक घोषित किया गया। वह 1928 में चौथी बार थियोसोफइकल सोसायटी की अध्यक्ष चुनी गयी।
एनी बेसेंट एक समाज सुधारक के रुप में :
एनी बेसेंट एक महान समाज सुधारक थी, जिन्होंने दोनों देश, इंग्लैंड और भारत के लिए एक सामाजिक कार्यकर्ता के रूप में काम किया था। उन्होंने भारत में महिलाओं के अधिकारों के संबंध में आलोचनाओं के बाद भी लगातार किये गये अपने महान सामाजिक कार्यों के माध्यम से स्वयं को एक अच्छी सामाजिक कार्यकर्ता साबित किया। वो हमेशा महिला अधिकारों के लिये लड़ती थी, हिन्दू परंपराओं का पक्ष लेती थी क्योंकि वो पुराने हिन्दू विचारों का बहुत आदर करती थी।
सामाजिक कार्यकर्ता के जीवन के दौरान, उन्होंने राष्ट्रीय सुधारक (एन.एस.एस. का एक अखबार) के लिये लिखा। उन्होंने बहुत बार सामाजिक विषयों पर भाषण दिया क्योंकि वह एक उत्कृष्ट वक्ता थी। नेशनल सेक्युलर सोसायटी के उनके मित्रों में से एक, चार्ल्स ब्रेडलॉफ एक नेता, पूर्व सैनिक, नास्तिक और एक गणतंत्रवादी थे, जिनके साथ रहकर एनी बेसेंट ने बहुत से सामाजिक मुद्दो पर कार्य किये। एकबार अपने सामाजिक कार्य जन्म नियंत्रण के दौरान उन्हें और उनके मित्र को एक साथ गिरफ्तार कर लिया गया। इस घटना ने उन्हें अपने बच्चों से अलग कर दिया क्योंकि इनके पति ने न्यायालय में इनके खिलाफ शिकायत दर्ज करायी कि वह अपने बच्चों की देखभाल करने में असक्षम है।
राजनीतिक परिपेक्ष्य में बेसेंट द्वारा किये गये कार्य और आन्दोलनः–
राष्ट्रीय सेक्यूलर सोसायटी (1866) –
एनी बेसेंट के विचार अपने पति के विचारों से मेल नहीं खाते थे। यही कारण था कि 1873 में वो अपने पति से अलग हो गयी और वापस लंदन आ गयी। लंदन में इनकी मुलाकात चार्ल्स ब्रेडलॉफ (राष्ट्रीय सेक्यूलर सोसायटी) से हुई और बेसेंट भी राष्ट्रीय सेक्यूलर सोसायटी से जुड़ गयी। चार्ल्स ब्रेडलॉफ बेसेंट के सबसे करीबी मित्र थे। इन दोनों ने 1877 में एक साथ चार्ल्स नॉल्टन की जन्म नियंत्रक प्रचार की किताब प्रकाशित की और इस आन्दोलन में भाग लिया। इसी आन्दोलन के दौरान बेसेंट एक उत्कृष्ठ वक्ता के रुप में उभर कर सामने आयी। इस आन्दोलन ने इन दोनों को ख्याति प्रदान की, जिसके परिणाम स्वरुप 1880 में चार्ल्स ब्रेडलॉफ को नॉर्थ हेम्पटन संसद के सदस्य बनने में सफलता प्राप्त हुई।
खूनी रविवार 1887 –
खूनी रविवार की घटना 13 नवम्बर 1887 को घटित हुई। यह प्रदर्शन सोशल डेमोक्रटिक फेडरेशन और आयरिश राष्ट्रीय लीग द्वारा आयोजित किया गया था। बेसेंट सोशल डेमोक्रटिक फेडरेशन की प्रमुख वक्ता थी, जिसके कारण उन्होंने भी इस आन्दोलन में भाग लिया था। यह आन्दोलन आयरलैण्ड में बेरोजगारी और दबाव के विरोध के साथ ही सासंद विलियम ओ.ब्रायन को रिहा करने के लिये किया गया था। जिस पर महानगरीय पुलिस और ब्रिटिश सेना ने हमला कर दिया।
आंकड़ों के अनुसार इस हमले में 400 लोग गिरफ्तार किये गये और 75 लोग बुरी तरह घायल हुये। इस प्रदर्शन का नेतृत्व सोशल डेमोक्रटिक फेडरेशन के अग्रणी नेता एलिजाबेथ रेनाल्ड, जॉन बर्न्स, विलियम मोरिस, एनी बेसेंट और रॉबर्ट कन्निंघमे – ग्राहम द्वारा किया गया था। बर्न्स और कन्निंघमे – ग्राहम को गिरफ्तार करके 6 हफ्तों के लिये जेल में डाल दिया। इस पर एनी बेसेंट, जो एक मार्क्सवादी, फैंबियन और धर्मनिरपेक्ष थी, ने रैली को सम्बोधित किया और खुद को गिरफ्तार करने की पेशकस की, जिस पर पुलिस ने ऐसा करने से मना कर दिया।
लंदन मैचगर्ल्स हङताल (1888) –
लंदन मैचगर्ल्स हड़ताल 1888 को ब्रायंट और मई फैक्टरी में महिलाओं और नवयुवतियों द्वारा अपने अधिकारों और उचित सुविधाओं के लिये की गयी थी। हड़ताल करने के मुख्य कारण अधिक कार्य के घंटे, निम्न भुगतान स्तर, मँहगा जुर्माना और स्वास्थ्य सम्बंधित समस्याऐं थी। एनी बेसेंट ने अपने मित्र हर्बट बोर्रस की सलाह पर इस हड़ताल में भाग लिया। वो वहाँ गयी और वहाँ कार्य करने करने वाली महिलाओं से बात की। वहाँ की महिला मजदूरों से बात करने पर वास्तविकता का ज्ञान हुआ। उस कम्पनी के मालिक 20% लाभांश प्राप्त करते हैं और मजदूरों को दो चौथाई लाभांश का भुगतान करते है। कार्य करने का समय गर्मियों में सुबह 6:30 से शाम 6 बजे तक और सर्दियों में सुबह 8 बजे से शाम 6 बजे तक था।
इस प्रकार की दयनीय स्थिति देखकर बेसेंट ने 23 जून 1888 को एक सप्ताहिक पत्र में “द लॉस्ट इंक नाम” से एक लेख लिखा। जिस पर यह मामला लोगों के संज्ञान में आया और उन्होंने इस हङताल को सफल बनाने के लिये सहयोग किया। एनी बेसेंट अपने मित्र हर्बट बोर्रस की सहायता से इस आन्दोलन को सफल बनाने में सक्षम हुई।
एनी बेसेंट का भारत आगमन और भारत समाज सुधार के लिये किये गये कार्यः–
थियोसोफिकल सोसायटी की अध्यक्ष बनने के बाद 1889 में भारत में थियोसोफिकल सोसायटी के रुप में भारत आयीं और फिर यहीं की होकर रह गयी। इन्होंने भारत में समाज सुधार के लिये बहुत से कार्य किये जिनमें से कुछ निम्न हैः–
केन्द्रीय हिन्दू कॉलेज की स्थापना (1889) –
केन्द्रीय हिन्दू कॉलेज की स्थापना जुलाई 1889 में श्रीमति एनी बेसेंट द्वारा की गयी थी। इस कॉलेज की स्थापना का उद्देश्य धर्मनिरपेक्षता का प्रसार करना था, और भटके हुये हिन्दूत्व को सही राह दिखाना था। और आने वाले समय में 1916 में स्थापित बनारस हिन्दू विश्व विद्यालय का केन्द्रक बन गया।
महिलाओं के लिये वसन्ता कॉलेज की स्थापना (1913) –
बेसेंट जी महिला अधिकारों और महिलाओं की शिक्षा की पक्षधर थी। महिलाओं को शिक्षित करने के उद्देश्य से उन्होंने 1913 में वसंता कॉलेज की स्थापना की। यह राज्य की सबसे प्राचीन संस्थाओं में से एक है जो आज भी भारत में महिला शिक्षा के क्षेत्र में अग्रणी है।
भारतीय होमरुल आन्दोलन (1916)
1916–1918 के बीच जब विश्व युद्ध समाप्ति की ओर था, उसी दौरान भारत के अग्रणी नेताओं ने राष्ट्रीय गठबंधन के लिये एक संगठन की स्थापना करने का निश्चय किया। इन नेताओं में बाल गंगाधर तिलक, एस. सुब्रमणियम् अय्यर, जोशेफ बपिस्टा, जी. एस. खापर्डे, मौहम्मद अली जिन्ना, और थियोसोफिकल सोसायटी की अध्यक्ष एनी बेसेंट शामिल थी। इस लीग का मुख्यालय दिल्ली में था और इसकी गतिविधियों के क्षेत्र भारत के मुख्य शहर मुम्बई, मद्रास और कलकत्ता थे। इस गठबंधन की लीग को स्थापित करने का मुख्य लक्ष्य ब्रिटिश सरकार से भारत के लिये स्वायत्त सरकार को प्राप्त करना था। एनी बेसेंट ने इस लीग के उद्देश्यों को सफल करने के लिये हर संभव प्रयास किये थे और भारत की स्वतंत्रता के लोगों को प्रेणात्मक भाषण भी दिये।
नेशनल हाई स्कूल की स्थापना (1917) –
एनी बेसेंट ने लोगों के बीच में राष्ट्रीय स्वतंत्रता की भावना जगाने के लिये नेशनल स्कूल की स्थापना की थी। इस स्कूल को स्थापित करने का मुख्य लक्ष्य देश के कोने– कोने में लोगों के बीच में राष्ट्रीयता को बढ़ावा देना था।
एनी बेसेंट की उपलब्धियाँ –
- वो नेशनल सेक्युलर सोसाइटी (एनएसएस) की प्रसिद्ध वक्ता, थियोसोफिकल सोसायटी की सदस्य, सबसे प्रसिद्ध प्राध्यापक और लेखक थी।
- उन्होंने विभिन्न संघों के साथ काम किया, खूनी रविवार प्रदर्शन और 1888 में लंदन मैचगर्ल्स हङताल।
- वो फैबियन सोसायटी के साथ ही मार्क्सवादी सोशल डेमोक्रेटिक फेडरेशन के लिए एक अग्रणी वक्ता बन गयी।
- वो लंदन स्कूल बोर्ड पर टावर हेमलेट्स के लिए चुनी गयी।
- उन्होंने 1898 में वाराणसी में सेंट्रल हिंदू कॉलेज स्थापित करने में मदद की।
- उन्होंने 1922 में हैदराबाद (सिंध) राष्ट्रीय कॉलेजिएट बोर्ड, मुंबई, भारत स्थापित करने में भी मदद की।
- वह 1907 में थियोसोफिकल सोसायटी की अध्यक्ष बनी जिसका मुख्यालय अड्यार, मद्रास (चेन्नई) में है।
- उन्होंने भारतीय राजनीति में शामिल होने के लिये भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस से जुङ गयी और 1917 में भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस की अध्यक्ष भी बनी।
- उन्होंने 1914 में विश्व युद्ध के छिड़ने के बाद भारतीय लोकतंत्र को बढ़ावा देने के लिये होमरुल आन्दोलन को शुरु किया।
एनी बेसेंट के कथनः
“जब तक सबूत एक तर्कसंगत स्थिति न दे विश्वास करने से इंकार करो, हमारे अपने सीमित अनुभव से बाहर के सभी इंकार बेतुके है।”
“स्वतंत्रता एक महान दिव्य देवी मजबूत, परोपकारी, और तपस्या है, और यह किसी भी राष्ट्र के ऊपर से भीङ के चिल्लाने के द्वारा, न ही निरंकुश जुनून के तर्कों से, और न ही वर्ग के खिलाफ वर्ग के प्रति नफरत से उतार सकते है।”
“न कोई दर्शन, न कोई धर्म संसार के लिये कभी खुशी का संदेश नहीं लाते यह नास्तिकता के रुप में अच्छी खबर है।”
“प्रत्येक व्यक्ति, प्रत्येक जाति, प्रत्येक राष्ट्र, अपनी विशेष बातें रखते है जो सामान्य जीवन का तार और मानवता को लाता है।”
“यदि आप कार्य करने के लिये तैयार नहीं है तो शांत रहना यहाँ तक कि न सोचना भी बेहतर है।”
“मैं कभी ताकत और कमजोरी का असामान्य मिश्रण रहीं और इसमें कमजोरी को ज्यादा हानि हुई है।”
“प्रत्येक को अपने देश के इतिहास का सही ज्ञान होना बहुत आवश्यक है, जिसके आधार पर वह वर्तमान को समझ सकें और भविष्य का आकलन कर सके।”
“इस्लाम कई पैगम्बरों में विश्वास करता है और अल कुरान पुराने शास्त्रों की पुष्टि के अलावा कुछ नहीं है।”
“यह एकपत्नीत्व नहीं है जब दृष्टि से बाहर केवल एक कानूनी पत्नी और उपपत्नी हो।”
“इस्लाम के अनुयायियों का केवल एक कर्तव्य है सभ्य समाज के माध्यम से इस्लाम क्या है के ज्ञान को फैलाना – इसकी आत्मा और संदेश को।”
“एक पैगम्बर अपने अनुयायियों से ज्यादा व्यापक, अधिक उदार होता है जो उसके नाम का लेबल लगाकर घूमते है।”
“भारत वह देश है जहाँ सभी महान धर्मों ने अपना घर ढूँढ लिया है।”
“बुराई केवल अपूर्णता है, जोकि पूर्ण नहीं है, जो हो रहा किन्तु अपना अन्त नहीं खोज पाया है।”
“भारत में मैंने अपना जीवन (जबसे 1893 से मैं यहाँ अपना घर बनाने आई हूँ) एक लक्ष्य के लिए समर्पित कर दिया है, जो है भारत को उसकी प्राचीन स्वतंत्रता वापस दिलाना।”
“प्रतिनिधि संस्था सच्चे ब्रिटेन की भाषा और उसके साहित्य के ज्यादा से ज्यादा भाग होता है।”
“विज्ञान के जन्म ने एक मनमानी और लगातार चलने वाली सर्वश्रेष्ठ शक्ति की मृत्यु की घंटी बजाई है।”
“पाप की सही परिभाषा है कि, यदि आप सही का ज्ञान होते हुये गलत करते हो तो वो पाप है, और जब आपको ज्ञान ही नहीं है तो पाप कहाँ से उपस्थित होगा।”
“भारत की गाँव प्रणाली का विनाश इंग्लैण्ड की सबसे बङी भूल होगी।”
“पहले सोचे बिना कोई बुद्धिमान राजनीति नहीं होती।”
“ईसाई धर्म के अन्नय दावें इसे अन्य धर्मों का शत्रु बना देंगें।”
“मेरे लिये बचपन में, बौने और परियाँ वास्तविक चीजें थी, और मेरी गुङिया वास्तविक बच्चें और मैं खुद एक बच्ची थी।”