भारत की पहली महिला पहलवान जो देती थी पुरुष पहलवानों को चुनौती, जिसके सामने आने से डरते थे पुरुष पहलवान – यहाँ तक की गामा पहलवान सहित कई मनिन्द्र पहलवानों ने हार के डर से उनसे रेसलिंग करने से खुद मना कर था, आज इस वीडियो में हम बात करेंगे एक ऐसी महिला रेसलर के बारे में जिनके सामने पुरुष रेसलर हो जाते थे चारो खान चित, जिन्होंने 1940 से 1950 के दशक के अपने करियर में 300 से ज्यादा रेसलिंग प्रतियोगिताओं में जीत हासील की थी। अपने वजन और ऊंचाई के कारण वो ‘अलीगढ़ की अमेज़ॅन’ “अमेज़न ऑफ़ अलीगढ” ‘अलीगढ़ की वीरांगना’ की उपाधि से प्रचलित थी।
Hamida Banu – First female wrestler of India
दोस्तों, महिलाओं के बार में महात्मा गांधी जी की एक कथन याद आ गई मुझे “स्त्री पुरुष की सहचरी है, समान मानसिक क्षमता से संपन्न है” जी हाँ लेकिन आज मैं जिस महिला के बारे में बात करूंगी वो शारीरिक क्षमता से भी संपन्न थी – जी हाँ पुरषों के समान क्या उनसे ज्यादा शारीरिक क्षमता से संपन्न थी इसलिए आम पुरुष क्या पहलवान पुरुष भी उनके सामने जाने से थर थर कांपते थे।
तो हम बात कर रहे हैं एक महिला रेसलर की जो उस समय रेसलर बनी जब घूँघट प्रथा चरम पर थी, पर्दा प्रथा का पालन चरम पर था, जब न उन्हें पढ़ने दिया जाता था, न बाहर निकल कर अपनी मर्जी का काम, वो भी एक मुस्लिम महिला के लिए, – लेकिन दोस्तों इतिहास गवाह है कि जिन्हे जो करना होता है वो कर ही लेते है चाहे जितनी भी बंदिशें हों, जो जगती हुई आँखों से सपना देखते है उन्हें अपने सपने पुरे करने भी आते है, जरुरत है तो सिर्फ उस जज्बे की, हिम्मत की, लगातार संघर्ष करने की, हार न मानने की और धैर्य रखने की, फिर क्या जीत आपको खुद सलाम करेगी।
उनके जन्म के बारे में एग्जैक्ट कहना मुश्किल है लेकिन विकिपीडिया के अनुसार 1920 के दशक की शुरुआत में हमीदा बानो का जन्म उत्तर प्रदेश राज्य के मिर्जापुर जिले में हुआ था, जिस दौर में कुश्ती सिर्फ पुरुषों तक सीमित थी, महिलाएं तो सोच भी नहीं सकती थीं लेकिन जब हमीदा ने परिवार वालों को कुश्ती में अपनी दिलचस्पी बताई तो परिवार वाले खूब खरी-खोटी सुनाये, तब हमीदा परिवार से बगावत कर अलीगढ़ चली गयी जहाँ उन्होंने सलाम पहलवान से कुश्ती के दांव-पेंच सीखे और मुकाबले में उतरने लगीं।
4 मई 2024 को गूगल ने अपनी वेबसाइट पर भारत की पहली महिला पहलवान हमीदा बानों का डूडल लगाकर उन्हें सम्मान दिया था, क्योकि 4 मई 1954 को ही उन्होंने उस समय के स्टार और बहुत ही नामी पहलवान जिनका नाम था बाबा पहलवान उनको हराकर इतिहास रचा था, ये उनकी जिंदगी का खास पल था जब वो रातो रात सुपर स्टार बन गयी थीं, 1 मिनट 34 सेकंड का वो मैच उन्हें पूरी दुनिया में लोकप्रिय बना दिया, ऐसी महिला सख्शियत बन गयी थी वो कि पुरुष पहलवान भी कुश्ती करने से डरते थे। ये मैच बाबा पहलवान का आखिरी मैच था क्योकि उन्होंने इसके बाद कुश्ती से संन्यास ले लिया। एक पहलवान परिवार में हुआ था, उन्हें पहलवानी करने का इंस्पिरेशन 10 साल की उम्र में अपने पिता नादेर पहलवान से मिला था।
एक दिन ऐसी धाकड़ पहवान बनीं कि सीधे स्टार पहलवान पुरुषों को चुनौती देने लगीं, आपको जानकर हैरानी होगी की उन्होंने 300 से ज्यादा प्रतियोगिताएं जीती – वो जो भी प्रतियोगिता चुनती उसमे अव्वल होतीं, दोस्तों रेसलिंग जैसे खेल में एक महिला का आना और डोमिनेट करना, जरा सोच कर देखिये रोंगटे हो जायेंगे – कितनी हिम्मती रही होंगी, कितना ताकतवर रही होंगी। एक बार तो उन्होंने गामा पहलवान को चुनौती दे डाली थी लेकिन गामा ने हार के डर से नाम वापस ले लिया था।
एकबार तो उन्होंने चुनौती देते हुए कहा था कि जो भी उन्हें कुश्ती में हराएगा वो उससे ही शादी करेंगी। किसी पुरूष के साथ 1937 में उनका पहला मैच आगरा में लाहौर के फिरोज खान के साथ हुआ था जिसमे फिरोज खान चित हो गए थे। इससे हमीदा को काफी पहचान मिली। इसके बाद हमीदा ने एक सिख पहलवान पुरुष और कोलकाता के एक अन्य पहलवान खड़ग सिंह को हराया, मैच से पहले हमीदा ने इन दोनों से भी शादी के लिए चुनौती दी थी।
हमीदा बानो 1940 और 1950 के दशक में काफी सुर्खियों में रहने लगीं थीं, उनकी लोकप्रियता आसमान छूने लगी थी। 5 फीट 3 इंच लम्बी हमीदा बानो का वजन 108 किलो था और उनका डेली डाइट था 5.6 लीटर दूध, 1.5 लीटर फ्रूट जूस, 2.8 लीटर सूप, 1 किलो मटन, बादाम, आधा किलो घी और दो प्लेट बिरयानी।
राइटर रोनोजॉय सेन अपनी किताब ‘नेशन ऐट प्ले: ए हिस्ट्री ऑफ़ स्पोर्ट इन इंडिया’ में लिखे थे कि सामंती समाज महिला पहलवान को अखाड़े में पुरुष पहलवान को धूल चटाते बर्दाश्त नहीं कर पाता था, इसलिए कई बार हमीदा को विरोध का सामना करना पड़ा, कई बार तो रेसलिंग फेडरेशन ही अड़ जाता था और मुकाबला कैंसिल कर देता था, एक बार पुरुष पहलवान को धूल चटाने पर लोगों ने पत्थरबाजी भी शुरू कर दी।
एक बार तो उन्होंने तत्कालीन मुख्यमंत्री मोरारजी देसाई से शिकायत कर डाली थी क्योकि महाराष्ट्र में उन पर अघोषित बैन लगा दिया था, जबाब में देसाई जी ने कहा ये महिला होने के नाते नहीं बल्कि आयोजकों के शिकायत कि आपसे से लड़ने डमी कैंडिडेट उतारे जा रहे हैं इसलिए।
1954 में मुंबई में वल्लभभाई पटेल स्टेडियम में हमीदा का मुकाबला रूस की पहलवान वेरा चिस्टिलीन से हुआ जिन्हे रूस की ‘फीमेल बियर’ कहा जाता था, लेकिन वो हमीदा के सामने एक मिनट से भी कम समय में चित हो गयी और यही वो साल था जब हमीदा ने भारत से बाहर यूरोप जाकर कुश्ती लड़ने का ऐलान किया।
उनकी निजी जिंदगी के बारे में ज्यादा जानकारी नहीं है क्योंकि कुश्ती से सन्यास के बाद वो लाइमलाइट से गायब हो गईं, जैसा की मैंने आपको बताया कि उन्होंने चैलेंज किया था कि जो पुरुष उन्हें पराजित करेगा वो उसी से शादी करेंगी लेकिन उन्हें कोई उन्हें पराजित कर ही नहीं पाया इसलिए आगे चलकर उन्होंने अपने कोच सलाम पहलवान से ही शादी कर ली जो आगे चलकर हमीदा की बर्बादी का कारण बने।
उनके पति यानि कोच को उनका यूरोप जाकर कुश्ती लड़ने वाला आइडिया पसंद नहीं आया, उसने मुंबई के नजदीक कल्याण में एक डेरी बिज़नेस डाला जहा दोनों मिलकर काम करते थे, लेकिन दोस्तों महत्वाकांक्षी तो महत्वाकांक्षी ही होता है, हमीदा का मन अब भी था यूरोप जाकर कुश्ती लड़ने का, दोस्तों बीबीसी न्यूज़ के अनुसार, सलाम पहलवान ने हमीदा की इतनी पिटाई की इतनी पिटाई की कि उनका हाथ पैर टूट गया, कई सालों उन्हें लाठी का सहारा लेना पड़ा।
हमीदा की मौत का राज राज ही रह गया – कुछ साल बाद उनके पति सलाम पहलवान अलीगढ़ चले गए लेकिन हमीदा कल्याण में ही दूध का व्यवसाय करती रहीं, अपना बाद का जीवन वो दूध बेचकर और कुछ संपत्तियों को किराए पर देकर गुजरा की। पैसे ख़त्म होने पर वो गुजर बसर के लिए सड़क किनारे नाश्ता बेचने का काम भी शुरू की थी। अंत में साल 1986 में उनकी गुमनामी में ही मौत हो गई।
उनके स्टार बनने से लेकर सड़क किनारे नाश्ता बेचने तक, उनका जीवन वास्तव में उथल-पुथल से भरा रहा। लेकिन उन्होंने भारत में कई युवा महिलाओं के लिए रेसलिंग के दरवाजे खोले, जो ऐसा करने का सपना देखती थीं। इसके लिए उन्हें आने वाली सदियों तक हमेशा याद किया जाएगा। वह अपनी अपार शक्ति और दृढ़ संकल्प के लिए जानी जाती थीं, और हमेशा जानी जाती रहेंगी। उनके जीवन की शुरुवात संघर्ष से हुई, फिर उचाई पर पहुंची, स्टार बनी लेकिन उनका एंडिंग उनका अंत बहुत ही दुखदायी – सैड रहा ! लेकिन मेरी समझ से दोस्तों उनके जीवन का हर एक पल इंपिरशन से भरा हुआ है प्रेरणा से भरा हुआ है क्योकि योद्धा कभी मरते नहीं और न ही उनका नाम मरता है जो ये दर्शाता है कि चाहे जो हो जाय लाइफ में – डरने का नहीं – रुकने का नहीं – न हताश होना है, न घुटने टेकना है, सदा चलने का – और चलते जाना है।
“हम प्राचीन भारत की नारियों को आदर्श मानकर ही नारी का उत्थान और सशक्तिकरण कर सकते हैं”
ये बात स्वामी विवेकानंद जी ने कहा था, दूरदर्शी थे वो, बिलकुल सच कहा था उन्होंने, हम महिलाओं को जरूरत है अपना इतिहास जानने की, अपने देश की उन सभी वीरांगनाओं का इतिहास पढ़ने की जिनसे हमे प्रेरणा मिले, हिम्मत मिले, जज्बा मिले कुछ कर दिखने का।
दोस्तों हमारा भारत हमेशा से वीरांगनाओं का देश रहा है, और है भी कोई डाउट नहीं लेकिन फिर भी हम आज के दौर में महिला सशक्तिकरण की बात करते हैं, आखिर क्या वजह है की महिलाओं को सशक्त करना पड़ रहा है, क्यों नहीं सशक्त हो रही महिलाएं – अपने सुझाव कमेंट बॉक्स में जरूर डालें।
थोड़ा समय और लेना चाहूंगी – एक आखिरी बात हमीदा जी के बारे-
दोस्तों इस वीडियो में हमीदा बानो के बारे में जो भी बताया उससे क्या निष्कर्ष निकला, एक सशक्त महिला का अंत इस तरह – क्या वजह था – वजह यही था कि उन्होंने पूरी तरीके खुद को अपने पति को सौंप दिया था, यहां तक कि अपना प्रोफेशनल डिसीजन भी, रिश्ते में इमोशनल हो गयी वो, जो हर आम महिला करती है जो उसका प्राकृतिक नेचर है, जिसके लिए इमोशनल हुई उसी ने उन्हें नहीं समझा, वही उनकी बर्बादी का कारन बना, एक तेज तर्रार महिला जिससे पुरुष पहलवान कांपते थे वही महिला एक आम पुरुष से हार गयी। क्या हमीदा ने ऐसा करके सही किया, क्या यही वजह है आज भी महिलाओं के पीछे रहने का, सश्क्त न होने का, अगर यही वजह है तब तो बेकार है महिला सशक्तिकरण की बात करना, क्योकि इस तरह से तो कभी महिला सशक्तिकरण हो ही नहीं सकता, सशक्त महिला भी एक दिन चित हो जाएगी या फिर महिलाओं को क्या करना चाहिए – इस सारे सवालों के जवाब कमेंट बॉक्स में जरूर दीजियेगा। धन्यवाद !