भारत में प्रौढ़ शिक्षा की शुरुआत करने का विचार उन लोगों को देखकर आया जो किसी कारण से अपनी शिक्षा बचपन में पूरी नहीं कर पाए। इसी को ध्यान में रखते हुए प्रौढ़ शिक्षा को प्रोत्साहन देने वाले कार्यक्रमों की श्रृंखला को लागू किया गया। भारत में प्रौढ़ शिक्षा ने उन सभी लोगों के सपने को साकार किया जो अपनी शिक्षा सही उम्र में पूरी नहीं कर पाए। इस योजना के तहत दोनों बुनियादी शिक्षा एवं पेशेवर शिक्षा दी जाती है।
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प्रस्तावना
प्रौढ़ शिक्षा की प्रस्तावना बहुत से व्यक्तियों के लिए वरदान साबित हुई है। बहुत बड़ी संख्या में लोग, खासकर भारत के अंदर बचपन में शिक्षा से वंचित रह गये थे। इनमे मुख्यतः वे है जो गरीब तबके से है और पैसे के अभाव, ख़राब पारिवारिक स्थिति, प्रयाप्त विद्यालयों के न होने आदि के कारण पढ़ नहीं पाए।
समय बदला सोच बदली
बचपन में तो उन पर निरक्षरता का कोई खास प्रभाव नहीं पड़ा पर जैसे जैसे समय बीता तो उन्हें अपनी जीविका अर्जित करने के लिए खासी दिक्कतों का सामना करना पड़ा। हालाँकि अब उन्हें अपनी इस कमी का एहसास हो गया और अब वे और ज्यादा जोश और उम्मीद से शिक्षा ग्रहण करने में लग गए है ताकि वे अपना आने वाला भविष्य उज्जवल कर सके।
बदलाव की शुरुआत
प्रौढ़ शिक्षा की शुरुआत राष्ट्रीय मौलिक शिक्षा केन्द्र (NFEC) के तहत की गयी थी जो की भारतीय सरकार द्वारा 1956 में स्थापित किया गया था। उसके बाद से ही उन अनपढ़ व्यक्तियों को निम्नलिखित तरीके से इस योजना से फायदा मिला:-
निष्कर्ष
सरकार के निरंतर प्रयास से कई सरकारी योजनाओं द्वारा प्रौढ़ लोगो को शिक्षा के लिए लगातार प्रेरित करना और समाज में शिक्षा के प्रति सोच का बदलाव बहुत परिवर्तन लाया है। अब प्रौढ़ लोगो शिक्षा हासिल कर रहें हैं और अपने बच्चो को भी शिक्षित बनाने का प्रयास कर रहें हैं।
इसे यूट्यूब पर देखें : Adult Education
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निरक्षरता समाज के लिए एक तरह का अभिशाप है। निरक्षरता की ऊँची दर देश के विकास में विपरीत प्रभाव डालती है। भारत उन विकासशील देशों की श्रेणी में आता है जो इन तरह की कठिनाइयों का सामना कर रहा है। हालाँकि इस समस्या को काबू करने के लिए भारतीय सरकार इस क्षेत्र में निरंतर मेहनत कर रही है। सरकार ने ‘राईट ऑफ़ चिल्ड्रेन टू फ्री एंड कंपल्सरी एजुकेशन एक्ट’ को लागू किया है जिसके तहत हर बच्चे के लिए शिक्षा मौलिक अधिकार बना दिया गया है। इसके अलावा सरकार ने उन लोगों के लिए भी शिक्षा का प्रावधान किया है जो बचपन में अपनी शिक्षा को पूरा नहीं कर पाए।
भारत में सबसे सराहनीय कदम की शुरुआत नेशनल फंडामेंटल सेंटर (NFEC) ने प्रौढ़ शिक्षा की कल्पना के रूप में की जिसे भारत सरकार ने 1956 में शुरू किया। बाद में इसका नाम बदलकर प्रौढ़ शिक्षा विभाग कर दिया गया जो की राष्ट्रीय शिक्षा संस्थान का हिस्सा बन गया। प्रौढ़ शिक्षा योजना भारत सरकार द्वारा भी काफी प्रोत्साहित की गयी और कई लोग इस योजना का फायदा उठाने आगे आये। नतीजन इस योजना के अन्तर्गत अपना नाम दर्ज करवाने वाले लोगों की संख्या में भारी बढ़ोतरी देखी गयी।
बढ़ते लोगों की संख्या के कारण ही प्रौढ़ शिक्षा विभाग, राष्ट्रीय शैक्षिक अनुसंधान और प्रशिक्षण परिषद से अलग कर एक नई संस्था में तब्दील कर दिया गया। जैसा की नाम से ही पता चलता है की प्रौढ़ शिक्षा का मुख्य उद्देश्य उन लोगों तक शिक्षा को पहुँचाना है जो अपने बचपन में पढ़ाई पूरी नहीं कर पाये। सरकार ने ऐसे लोगों के लिए नए विद्यालयों की स्थापना की है ताकि उनको बुनियादी शिक्षा या पेशेवर शिक्षा दे पाये। तो साफ शब्दों में कहा जाये तो यहाँ लोगों को न सिर्फ शिक्षा दी जा रही है बल्कि अपने लिए रोजगार ढूंढने में भी सहायता की जा रही है। दिन में अपने रोज़गार में व्यस्त रहने वाले व्यक्तियों के लिए रात्रि कक्षा का प्रबंध किया गया है और बहुत से लोगों को इसका फायदा भी मिला है। शिक्षा से कई लोग अच्छे स्तर पर नौकरी हासिल करने में सफल रहे है और आज समाज में सम्मानजनक जीवन जी रहे है।
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आज हमारे देश की सबसे बड़ी परेशानियों में से एक परेशानी ये भी है की अमीर और अमीर बनता जा रहा है और गरीब और गरीब होता जा रहा है। इस परेशानी का मुख्य कारण यह है की गरीब व्यक्ति अपनी रोज़ी रोटी कमाने में इतना व्यस्त हो चुका है की वह शिक्षा का महत्व ही नहीं पहचान पा रहा है। अपने बच्चो को स्कूल भेजने की बजाये उन्हें काम पे भेज रहा है ताकि वह परिवार के लिए दो वक़्त की रोटी का प्रबंध कर सके।
शिक्षा के अभाव में जब ये बच्चे बड़े होते है तो इनके पास छोटे मोटे काम धंधो के अलावा कोई चारा नहीं बचता। इस चक्रव्यूह को तोड़ने का सिर्फ एक ही तरीका था की सरकार प्रौढ़ शिक्षा जैसी योजना को शुरू करे। जो व्यक्ति बचपन में अपनी शिक्षा पूरी न कर पाये वे अब अपने सपने को पूरा कर सकते है। वे इस योजना से बुनियादी शिक्षा या पेशेवर शिक्षा ग्रहण करके अपने भविष्य को बेहतर बना सकते है। यह पूरी तरह उस व्यक्ति पे ही निर्भर करता है वह बुनियादी या पेशेवर शिक्षा में से किसको प्राथमिकता देता है।
भारत में नेशनल फंडामेंटल एजुकेशन सेंटर के अन्तर्गत प्रौढ़ शिक्षा निदेशालय की शुरुआत 1956 में की गयी। उसके बाद से ही भारत सरकार द्वारा प्रौढ़ शिक्षा के महत्व को बढ़ाने के लिए लगातार प्रयास किये गये। फलस्वरूप रात्रि कक्षा का प्रबंध किया गया तथा हर संभव कोशिश की गयी ताकि ज्यादा से ज्यादा संख्या में लोग इससे जुड़े। भारतीय सरकार की कोशिश बेकार नहीं गयी और लोग बड़े उत्साह से इस योजना से जुड़ते चले गए।
जुड़ने वाले लोगों की संख्या बढ़ने के कारण सरकार ने शिक्षा की गुणवत्ता पे भी ध्यान देना शुरू किया। अब जबकि पढ़ने वाले व्यक्तियों की संख्या में लगातार इजाफा होता गया और अच्छी शिक्षा पाकर लोगों को बेहतर नौकरी के अवसर मिलने लगे तो महिलाये भी इससे अछूती नहीं रही। उन्होंने भी इस योजना में भागीदार बनने की इच्छा दिखाई ताकि वे अपने और अपने बच्चो का आने वाला भविष्य को और बेहतर एवं उज्जवल बना सके। इसके अलावा प्रौढ़ शिक्षा ने निम्नलिखित तरीको से भी सहायता की है :-