क्या आपने कभी भारत के किसी ऐतिहासिक स्मारक का दौरा किया है? मुझे आशा है कि हममें से अधिकतर लोगों ने हमारे राष्ट्र में मौजूद विभिन्न ऐतिहासिक स्मारकों का दौरा अवश्य किया होगा। ये ऐसे स्मारक हैं, जो हमें हमारे अतीत की याद/परिदृश्य दिखाते हैं। इस निबंध में मैंने एक ऐतिहासिक स्मारक पर जाने के अपने अनुभवों को साझा किया है। मुझे उम्मीद है कि इस विषय को लेकर आपकी सारी उत्सुकता का हल मिलेगा, और बच्चों को उनकी परीक्षाओं में मददगार सिद्ध होगा।
परिचय
भारत एक विभिन्न संस्कृतियों और परंपराओं को एक साथ सामूहिक रूप से लेकर चलने वाला देश है। यह विशाल प्राचीन स्मारक और उनकी जबरजस्त सुंदरता हमारे राष्ट्र के गौरव का प्रतिक हैं। ये स्मारक हमें अपने प्राचीन भारत की तस्वीर को दिखाते हैं। इन स्मारकों की खाश डिजाइन हमें अपनी ओर आकर्षित करती है। हर बार ऐसे प्राचीन स्मारकों को अपनी आँखों से देखना बहुत ही मुश्किल है, इसलिए हम इन्हें अपने किताबों के माध्यम से भी देखते हैं।
ऐतिहासिक स्मारक क्या है?
जैसा कि नाम से ही पता चलता है, कि इसका सम्बन्ध प्राचीन काल में बनाये गए स्मारकों से सम्बन्ध रखता है। इन स्मारकों की अत्यधिक सुंदरता हमें विरासत के रूप में मिली है। ये हमें हमारी प्रचीन भारतीय संस्कृति और परंपराओं की बारे में बताती हैं। यहां की मूर्तिकला और कला बेहतरीन सुंदरता दुनिया भर के पर्यटकों को भारत की ओर आकर्षित करती है। ऐसे सभी स्मारक राष्ट्र की सांस्कृतिक धरोहर के रूप में जानी जाती है। इसलिए सरकार खुद इन धरोहरों का सरक्षण और देखभाल अच्छी तरह से करती है।
ऐतिहासिक स्मारक भारत के इतिहास में बहुत ही महत्वपूर्ण स्थान रखते हैं। ये सभी स्मारक ही हमारी सदियों पुरानी संस्कृति और परंपरा का भंडार हैं। ये स्मारक देश के प्राचीन शासकों और उनके राजवंशों की एक तस्वीर प्रकट करते हैं। इन ऐतिहासिक स्मारकों पर कुछ महत्वपूर्ण स्थानों पर विशेष प्रकार के चिन्ह और नक्कासी की गयी हैं। यहीं नक्काशी और चित्र ही उस समय के लोगों के जीवन और उनके रहने के तरीकों के बारे में जानकारी देते हैं। लोग इन स्थानों के सुंदरता का आनंद लेने के लिए ऐसी जगहों पर घूमने के लिए जाते हैं। घूमने के आनंद के साथ ही उन्हें इसके इतिहास के बारे में बहुत सारी जानकारी भी प्राप्त होती है।
एक ऐतिहासिक स्मारक देखने का मेरा अनुभव
मैंने हमेशा से ही अपनी किताबों और टेलीविजनों में ताजमहल, कुतुबमीनार, लाल किला, हवा महल जैसे ऐतिहासिक स्मारकों को देखा है और उनके बारे में पढ़ा है। टेलीविजन पर प्रसारित विभिन्न प्रकार के कई ऐसे कार्यक्रम हैं, जो हमें हमारी महान सांस्कृतिक विरासत और ऐतिहासिक स्मारकों के बारे में ज्ञान देते हैं। मैं वास्तविक रूप में ऐसे स्थानों पर जाने के लिए काफी उत्सुक था और पिछले साल मेरा यह सपना सच हुआ।
हम हर साल अवश्य ही एक आउटिंग करने के लिए जाते हैं और पिछले साल मेरे पिता जी ने हमें एक ऐतिहासिक जगह ले जाने का मेरा सपना पूरा किया। मैं यह सुनकर बहुत ही खुश हुआ की हम नई दिल्ली के कुतुबमीनार की यात्रा करने जा रहे हैं। इसे देखने जाने से पहले मैंने केवल किताबों में ही इसके बारे में पढ़ा था। जब आपने किसी चीज के बारे में केवल पढ़ा हो और आपको उसे देखने का मौका मिलता है तो यह बहुत ही रोमांचित कर देने वाला पल होता है। ऐसी ऐतिहासिक चीजों की यात्रा करना एक रोमांचकता के साथ-साथ जानकारी से भी भरा होता है। हम सभी अपने सामान के साथ घर से दिल्ली जाने के लिए निकल गए, और नौ घंटे के लम्बे इंतजार के बाद हम दिल्ली पहुंच गए। मैं बेसब्री से कुतुबमीनार वाली जगह पर पहुंचने का इंतजार कर रहा था।
कुतुबमीनार एक प्राचीन स्मारक है जिसमें इस्लामिक कला और वास्तुकला का अनूठा संगम देखने को मिलता है। यह एक मीनार है, जो दिल्ली ले महरौली में स्थित है। यह 72.5 मीटर की उचाई का है, जो दुनिया में ईटों से बनी सबसे ऊँची मीनार के रूप में जानी जाती है। 379 सीढ़ियों वाले इस मीनार पर सर्पिल सीढियाँ इसकी संरचना को और भी अद्भुतता प्रदान करती हैं।
इस महान प्राचीन स्मारक का निर्माण सन् 1999-1220 ई. के दौरान की गई थी। मीनार की कला और उसका निर्माण 1999 ई. में कुतुबुद्दीन ने इसके निर्माण कार्य शुरू करवाया था और इसे बनाने का कार्य इल्तुतमिश के देख-रेख में सन् 1220 में इसका निर्माण कार्य पूरा किया गया था। मीनार की वास्तु कला का डिज़ाइन अफगानिस्तान के मीनार-ए-जाम से मिलता जुलता है। मीनार को पांच मंजिला इमारत में विभाजित किया गया है। हर मंजिल में एक बालकनी बनाई गई है। हर मंजिल को ईंटों से इस प्रकार बनाया गया है कि वो एक-दूसरे को आपस में जोड़े रखती है।
मीनार को बनाने में लाल बलुआ पत्थर और संगमरमर के उपयोग से बनाई गई है। प्रारम्भ की 3 मंजिला बलुआ पत्थर और संगमरमर से बनाई गई है, और चौथी मंजिला पूरी तरह से संगमरमर से बनाई गई हैं, और आखिरी मंजिल लाल बलुआ पत्थर और संगमरमर से बनाई गई है। इस मीनार को 14.3 मीटर के व्यास के आधार पर बनाई गयी है, जिसका ऊपरी सिरे का व्यास 2.7 मीटर तक ही रखा गया है। हम इस मीनार की अद्भुत सुंदरता को बहार से देख सकते हैं। पिछले दिनों कुछ दुर्घटनाओं के उपरांत मीनार के अंदर प्रवेश को बंद कर दिया गया है।
यह ईमारत इतनी बड़ी है कि इसके सामने लोग लिलिपुट की तरह बहुत छोटे दिखाई देते हैं। टॉवर लाल ईंटों से बनी है इसकी संरचना मीनार पर स्पष्ट रूप से दिखाई देती है, और मीनार की सुंदरता को और अधिक बढ़ाती है। मीनार की दीवारों में कुरान के कुछ सुंदर छंद लिखे हुए है और इसमें कुछ इतिहास छुपे है। इसकी एक और खासियत है कि मीनार का हर दरवाजा एक जैसा ही है। कुतुब मीनार को यूनेस्को ने विश्व की धरोहर का एक हिस्सा माना है। मीनार की परिधि में कई अन्य ऐतिहासिक स्मारक भी मौजूद हैं। इसके अंदर कुवैत-उल-इस्लाम मस्जिद, चंद्रगुत-2 का लौह स्तंभ, संस्कृत में शिलालेख, इल्तुतमिश का मकबरा, अलाई मीनार और अलाई दरवाजे हैं। कुतुबमीनार के साथ ये सभी स्मारक कुतुबमीनार के परिसर का निर्माण करते हैं।
कुतुबमीनार एक अद्भुत ऐतिहासिक स्मारक है जिसे हमें जरूर देखना चाहिए
कुतुबमीनार अपनी तरह का एकमात्र ऐतिहासिक स्मारक है। यह एक प्राचीन स्मारक है जिसमें हमारी प्राचीन संस्कृति और विरासत को दर्शाया गया है। यह 700 से अधिक वर्षों से एक अद्भुत पर्यटन का केंद्र बना हुआ है। यह एक अनूठी कला का संगम है इसकी वास्तुकला और महत्वपूर्ण विशेषताएं इसे एक दिलचस्प ऐतिहासिक स्मारक बनाती हैं। पर्यटन स्थल के अलावा इस स्मारक को फिल्मों और गानों की शूटिंग के लिए एक शानदार जगह है। इस स्मारक पर घूमने का समय सुबह 7 बजे से शाम 5 बजे तक का रखा गया है।
इस स्मारक को ऐतिहासिक महत्त्व और स्मारक के वास्तुकला प्रतिभा के टुकड़े के रूप में भी देखा जाता है, जिसे 1993 में यूनेस्को ने इस स्मारक को वैश्विक धरोहर के रूप में मान्यता दी थी। इस प्रकार यह भारत के सबसे अच्छे और अद्भुत ऐतिहासिक स्थलों में से एक है जिसका दौरा आप कर सकते है। यह स्थान मनोरंजन के साथ-साथ ज्ञान भी देता हैं।
निष्कर्ष
कुतुबमीनार को देखने के बाद हमने दिल्ली के विभिन्न पर्यटन स्थलों का भी दौरा किया और उसके बाद घर वापस आ गए। इस लोकप्रिय स्मारक की यात्रा करना एक बहुत ही अद्भुत और सुन्दर अनुभव था। इस स्मारक की सुंदरता और इसकी खाशियत और इसकी विशेषता आज भी मेरे दिमाग में जीवित हैं। हमें अपने अतीत के शासकों का बहुत आभारी होना चाहिए कि उन्होंने ऐसी कला की स्थापना की है जिसमें प्राचीन भारतीय संस्कृति और विरासत की झलक हमें दिखाई देती हैं।