भ्रष्टाचार किसी भी राष्ट्र के प्रगति के पथ में पड़ने वाला ऐसा रोड़ा है जिससे टकराने पर राष्ट्र अपाहिज हो सकता है। इस बात को भारत सरकार बखूबी जानती है और उससे निपटने के लिए समय–समय पर कानूनों एवं आयोगों का गठन भी करती रहती है। इसी क्रम में भारत सरकार ने 2004 के “लोकहित प्रकटीकरण एवं मुखबिर संरक्षण” पर केन्द्रीय सतर्कता आयोग को भ्रष्टाचार के खिलाफ कार्रवाई के लिए एक “नामित एजेंसी” के रूप में प्राधिकृत (अधिकार दिया) किया।
[googleaddsfull status=”1″]
मित्रों आज हम केंद्रीय सतर्कता आयोग के बारे में इस निबंध के माध्यम से जानेंगे।
प्रस्तावना
केंद्रीय सतर्कता आयोग एक सर्वोच्च सतर्कता संस्थान है, जो केंद्र सरकार की आने वाली सभी सतर्कता गतिविधियों पर नजर रखता है। यह केंद्र सरकार के सभी कार्यकारी प्राधिकरणों से अलग एवं उनके नियंत्रण से मुक्त होता है। यह केंद्र सरकार के अन्य प्राधिकरणों को उनके द्वारा बनाये गए कार्य योजना, समीक्षा, निष्पादन आदि पर सुधार संबंधित सलाह देता है।
के. संथानम की अध्यक्षता में गठित भ्रष्टाचार निरोधक समिति के सुझाव पर फरवरी, 1964 में केंद्रीय सतर्कता आयोग की स्थापना की गई।
केंद्रीय सतर्कता आयोग एक स्वतंत्र निकाय है। यह पूर्ण रूप से सिर्फ संसद के प्रति ही उत्तरदायी होती है, किसी अन्य विभाग या मंत्रालय के प्रति यह उत्तरदायी नहीं होती है।
सतर्कता का अर्थ
सतर्कता कातात्पर्य संस्थानों तथा कर्मियों द्वारा अपनी दक्षता तथा प्रभावशीलता स्थापित करने के लिए किए गए त्वरित प्रशासनिक कार्रवाई से है।
मुख्य सतर्कता अधिकारी के कार्य
मुख्य सतर्कता अधिकारी के कार्यों एवं उसकी भूमिका को मुख्य रूप से दो भागों में विभाजित किया जा सकता है-
1- निवारक कार्य
2- दंडात्मक कार्य
निष्कर्ष
पिछले कुछ दशकों में भारत की स्थिति काफी मजबूत हुई है, यह एक जीवंत एवं प्रगतिशील अर्थव्यवस्था के रूप में उभर कर सामने आया है। अर्थव्यवस्था में विकास के साथ – साथ देश की अवसंरचना, खुदरा क्षेत्र, निर्माण क्षेत्र तथा अन्य क्षेत्रों में भी अत्यधिक मात्रा में निवेश किया गया जिसके फलस्वरूप तीव्र विकास के साथ – साथ भ्रष्टाचार में भी तीव्र वृद्धि हुई। भ्रष्टाचार में हुई वृद्धि से निपटने के लिए केंद्रीय सतर्कता आयोग को एक ‘’नामित एजेंसी’’ के रूप में प्राधिकृत किया गया। वर्तमान परिदृश्य में केंद्रीय सतर्कता आयोग में व्याप्त प्रणालीगत कमियाँ भ्रष्टाचार से लड़ने में इसे असमर्थ बना रहीं है इन कमियों को दूर करना इस समय केंद्रीय सतर्कता आयोग के लिए सबसे बड़ी चुनौती है।
[googleadds status=”1″]
प्रस्तावना (केंद्रीय सतर्कता आयोग का अर्थ)
भारत में राष्ट्रीय स्तरपर भ्रष्टाचार विरोधी तीन प्रमुख संस्थाएं (केंद्रीय जांच ब्यूरो, लोकपाल तथा केंद्रीय सतर्कता आयोग) है जिसमें से केंद्रीय सतर्कता आयोग एक मुख्य शीर्षस्थ संस्था है। यह समस्त कार्यकारी प्राधिकारी के जवाबदेही से मुक्त तथा संसद के प्रति उत्तरदायी होता है। यह केंद्र सरकार के तहत आने वाली सभी सतर्कता गतिविधियों पर नज़र रखता है। केंद्रीय सरकारी संगठनों के लिए यह सलाहकार की भूमिका भी निभाता है।
हाल ही में भ्रष्टाचार पर नियंत्रण के लिए केंद्रीय सतर्कता आयोग द्वारा उठाए गए एक कदम के माध्यम से सरकारी संगठनों की सतर्कता इकाइयों में कर्मियों एवं अधिकारियों के पोस्टिंगतथा स्थानांतरण संबंधित कानूनों में बदलाव कर दिया गया। नए दिशा–निर्देशों के आधार पर किसी एक स्थान पर अधिकारियों का कार्यकाल तीन वर्ष तक सीमित कर दिया गया है।
केंद्रीय सतर्कता आयोगका इतिहास
द्वितीय विश्व युद्ध के समय वर्ष 1941 में भारत सरकार द्वारा एक विशेष पुलिस स्थापन का निर्माण किया गया जिसका मुख्य कार्य युद्ध के दौरान भारत के युद्ध और आपूर्ति विभाग में व्याप्त रिश्वतखोरी तथा भ्रष्टाचार से संबंधित मामलों का जांच करना था।
सितम्बर 1945 में युद्ध की समाप्ति के बाद भी भारत सरकार को एक ऐसी संस्था की आवश्यकता महसूस हो रही थी जो कर्मचारियों के रिश्वतखोरी तथा भ्रष्टाचार के मामलों की जांच कर सके। इस उद्देश्य के मद्देनजर भारत सरकार ने दिल्ली विशेष पुलिस स्थापन अधिनियम, 1946 को लागू करके, सभी विभागों को इसके दायरे में लाकर इसके कार्य क्षेत्र को बढ़ा दिया।भ्रष्टाचार निरोधक अधिनियम, 1947 के तहत यह एजेंसी 1963 तक रिश्वत खोरी तथा भ्रष्टाचार का अन्वेषण करती रही।
1963 के बाद केंद्र सरकार को एक ऐसी केंद्रीय पुलिस एजेंसी की आवश्यकता महसूस होने लगी जो रिश्वत और भ्रष्टाचार के मामलों के साथ–साथ निम्नलिखित मामलों का भी अन्वेषण कर सके-
1 अप्रैल, 1963 को के. संथानम की अध्यक्षता में गठित भ्रष्टाचार निरोधक समिति के सुझाव पर केंद्रीय अन्वेषण ब्यूरोकी स्थापना की गई। वर्ष 1964 में इसी समिति की सिफारिशों पर केंद्र सरकार द्वारा केंद्रीय सतर्कता आयोग का गठन किया गया। उस समय इसका कार्य केंद्र सरकार को सतर्कता मामलों में सलाह देना तथा उनका मार्गदर्शन करना था। वर्ष 1998 में केंद्रीय सतर्कता आयोग को एक अध्यादेश के माध्यम से सांविधिक दर्जा दिया गया तथा केंद्रीय सतर्कता आयोग अधिनियम 2003 के माध्यम से इसके सांविधिक दर्जे को वैधता प्रदान कर दिया गया। अब यह एक बहु सदस्यीय संस्था बन चुका था। इसमें एक मुख्य सतर्कता आयुक्त (अध्यक्ष) तथा दो अन्य सतर्कता आयुक्तों (सदस्य) की नियुक्ति राष्ट्रपति द्वारा किया जाता है।
मुखबिर श्री सत्येंद्र दुबे की हत्या परसाल 2003 में दायर रिट याचिका पर सर्वोच्च न्यायालय द्वारा दिए गए फैसले के आधार पर, पद के दुरूपयोग तथा भ्रष्टाचार के खिलाफ शिकायत प्राप्त करने तथाकार्रवाई करने के लिए केंद्रीय सतर्कता आयोग को एक नामित संस्था के रुप में प्राधिकृत किया गया। इसे सार्वजनिक हित प्रकटीकरण और सूचना प्रदाता संरक्षण संकल्प के तहत शिकायतकर्ता से संबंधित जानकारी को गुप्त रखने की ज़िम्मेदारी भी सौपी गई। इसके बाद सरकार ने अन्य विधानों तथा अधिनियमों के माध्यम से समय – समय पर आयोग की शक्तियों तथा कार्यों में वृद्धि की है।
[googleadsthird status=”1″]
प्रशासन
वर्तमान समय में केंद्रीय सतर्कता आयोग के पास अपना खुद का सचिवालय, विभागीय जाँच आयुक्त खंड, तथा एकमुख्य तकनीकी परीक्षक खंड है। जांच पड़ताल के लिए केंद्रीय सतर्कता आयोग दो बाहरी स्रोतों केंद्रीय अन्वेषण ब्यूरो तथा मुख्य सतर्कता अधिकारियों पर निर्भर रहता है।
केंद्रीय सतर्कता आयोग के कार्य
केंद्रीय सतर्कता आयोग को एक ऐसी संस्था के रूप में नामित किया गया है जो रिश्वतखोरी, कार्यालयों के दुरुपयोग तथा भ्रष्टाचार संबंधित शिकायतों को सुनता है तथा उनपर त्वरित रूप से उचित कार्रवाई की सिफारिश भी करता है। केंद्रीय सतर्कता आयोग के पास केंद्र सरकार, लोकपाल तथा मुखबिर/सूचना प्रदाता/सचेतक अपनी शिकायत दर्ज करा सकते हैं। केंद्रीय सतर्कता आयोग खुद से मामलों का अन्वेषण नहीं करता है। यह केंद्रीय अन्वेषण ब्यूरो तथा मुख्य सतर्कता अधिकारियों द्वारा जाँच/अन्वेषण का कार्य कराता है।
यह आयोग वार्षिक रिपोर्ट के माध्यम से अपने किए गए कार्यों तथा उन प्रणालीगत विफलताओं का विवरण देती है जिनके फलस्वरूप विभागों में भ्रष्टाचार पनप रहा है।
केंद्रीय सतर्कता आयुक्तों की सूची
केंद्रीय सतर्कता आयोग की संरचना
यह आयोग एक बहु-सदस्यीय आयोग है इसमे एक मुख्य सतर्कता आयुक्त (अध्यक्ष) तथा दो अन्य सतर्कता आयुक्त (सदस्य) होते हैं। इसके अध्यक्ष पद पर प्रधानमंत्री तथा सदस्य पद पर गृह मंत्री एवं विपक्ष के नेता की नियुक्ति राष्ट्रपति द्वारा की जाती है। समस्त आयुक्तों का कार्यकाल 4 वर्ष या 65 वर्ष की आयु पूरी करने तक होता है।
पदच्युत
केंद्रीय सतर्कता आयुक्त तथा अन्य सतर्कता आयुक्तों को राष्ट्रपति विषम परिस्थितियों में उनके पद से हटा सकता है तथा वे खुद भी राष्ट्रपति को अपना इस्तीफा देकर अपने कार्यभार से मुक्त हो सकते हैं।
केंद्रीय सतर्कता आयोग प्रतिज्ञा प्रमाण पत्र
केंद्रीय सतर्कता आयोग प्रतिज्ञा प्रमाण पत्र या सेंट्रल विजिलेंस कमीशन सर्टिफिकेट उन भारतीयों को प्रदान किया जाता है, जिन्होंने भ्रष्टाचार के विरुद्ध जंग लड़ने के लिए ऑनलाइन शपथ ले रखा होता है।
निष्कर्ष
केंद्रीय सतर्कता आयोग की छवि एक सलाहकार निकाय के रूप में प्रचलित है। इसके पास दोषियों के विरुद्ध कार्रवाई या आपराधिक मामला दर्ज करने का अधिकार नहीं है और न ही इसके पास संयुक्त सचिव तथा उससे उच्च स्तर के अधिकारियों के खिलाफ अन्वेषण का आदेश देने का अधिकार है। यही कारण है कि इसे एक शक्तिहीन संस्था माना जाता है। बावजूद इसके यह किसी भी प्रकार के भ्रष्टाचार आदि की शिकायत पर त्वरित कार्रवाई का आदेश जांच एजेंसी को देता है तथा आयोग द्वारा जारी रिपोर्ट में प्रणालीगत कमियों तथा अपने कार्यों का विवरण भी देता है।
मुझे उम्मीद है कि केंद्रीय सतर्कता आयोग पर प्रस्तुत यह निबंध आपको पसंद आया होगा तथा साथ ही मैं ये भी आशा करता हूँ कि आपके स्कूल आदि जगहों पर यह आपके लिए उपयोगी भी सिद्ध होगा।
धन्यवाद!
उत्तर– केन्द्रीय सतर्कता आयोग में कुल तीन सदस्य (एक केंद्रीय सतर्कता आयुक्त तथा दो अन्य आयुक्त) होते हैं।
उत्तर- फरवरी 1964 (February 1964)।
उत्तर- श्री सुरेश एन0 पटेल (Shri Suresh N Patel)।
उत्तर– 25 अगस्त 1988 को एक अध्यादेश द्वारा केंद्रीय सतर्कता आयोग को संवैधानिक दर्जा मिला था।
उत्तर- श्री एन0 एस0 राउ (19 फरवरी 1964 – 23 अगस्त 1968)।