दहेज मूल रूप से शादी के दौरान दुल्हन के परिवार द्वारा दूल्हे के परिवार को दिए नकदी, आभूषण, फर्नीचर, संपत्ति और अन्य कीमती वस्तुओं आदि की इस प्रणाली को दहेज प्रणाली कहा जाता है। यह सदियों से भारत में प्रचलित है। दहेज प्रणाली समाज में प्रचलित बुराइयों में से एक है। यह मानव सभ्यता पुरानी है और यह दुनिया भर में कई हिस्सों में फैली हुई है।
दहेज प्रथा भारतीय समाज की एक पुरानी और बुरी परंपरा है। इसमें लड़की के विवाह के समय उसके परिवार से लड़के के परिवार को धन, गहने, वस्त्र, और अन्य उपहार दिए जाते हैं। यह प्रथा समाज में कई समस्याओं का कारण बनती है। सबसे पहले, दहेज प्रथा से लड़की के परिवार पर आर्थिक बोझ बढ़ता है। गरीब परिवारों के लिए यह बोझ बहुत भारी हो सकता है। कई बार, परिवार को कर्ज लेना पड़ता है, जिसे चुकाना मुश्किल होता है। दूसरा, यह प्रथा समाज में लड़कियों के प्रति नकारात्मक दृष्टिकोण को बढ़ावा देती है। लड़कियों को बोझ समझा जाता है, और उनके जन्म पर खुशी कम होती है। इससे लड़कियों की शिक्षा और विकास पर भी असर पड़ता है।
तीसरा, दहेज प्रथा के कारण कई बार विवाह के बाद लड़कियों को मानसिक और शारीरिक प्रताड़ना सहनी पड़ती है। यदि दहेज की मांग पूरी नहीं होती, तो उन्हें परेशान किया जाता है और मार भी दिया जाता है। दहेज प्रथा को समाप्त करने के लिए हमें मिलकर काम करना होगा। सरकार ने इसके खिलाफ कानून बनाए हैं, लेकिन हमें अपनी सोच भी बदलनी होगी। हमें लड़कियों को समान अधिकार और सम्मान देना चाहिए। शिक्षा और जागरूकता के माध्यम से ही इस बुराई को जड़ से मिटाया जा सकता है।
परिचय
दहेज भारत के विभिन्न हिस्सों में फैली एक पुरानी प्रथा है और आज भी प्रचलित है। यह शादी होने पर दो परिवारों के बीच पैसे या उपहारों का आदान-प्रदान है। दुल्हन के माता-पिता द्वारा दूल्हे या उसके परिवार को पैसा या महँगी चीजे देना दहेज़ प्रथा कहलाता है। यह हमारे देश में प्रचलित एक सामाजिक कुप्रथा है जिसके कारण लड़की के माता-पिता पर आर्थिक बोझ बढ़ जाता है।
दहेज प्रथा के कारण
समाज में दहेज प्रथा के बढ़ने का एक मुख्य कारण पुरुष प्रधान समाज है। यह एक ऐसी स्थिति पैदा करता है जिसमें माता-पिता अपनी बेटी की शादी सुनिश्चित करने के लिए दहेज देने के लिए मजबूर होते हैं। दोनों लिंगों के बीच सामाजिक और आर्थिक असमानता एक और प्रमुख कारक है जो हमारे देश में दहेज प्रथा के प्रसार का कारण बनता है।
दहेज प्रथा के प्रभाव
दहेज प्रथा का भारतीय आबादी पर दूरगामी प्रभाव पड़ा है और इसने समाज को बहुत नुकसान पहुँचाया है। इसने दुल्हन के परिवारों के लिए एक बड़ा वित्तीय बोझ पैदा कर दिया है, जिसके परिणामस्वरूप वे भारी कर्ज में डूब जाते है। यह प्रथा कभी-कभी परिवारों को उच्च ब्याज दरों पर ऋण लेने या यहां तक कि दहेज के लिए अपनी संपत्ति बेचने के लिए मजबूर करता है। इसके परिणामस्वरूप कई निर्दोष लोगों की मौत भी हुई है क्योंकि लोग दूल्हे के परिवार की मांगों को पूरा करने के लिए इस प्रकार के कदम भी उठाते हैं।
निष्कर्ष
दहेज प्रथा एक सामाजिक बुराई है जो कई सदियों से भारतीय समाज को प्रभावित करती आ रही है। सरकार के प्रयासों के बावजूद, यह प्रथा अभी भी भारत के अधिकांश हिस्सों में प्रचलित है। इस प्रथा के पीछे सामाजिक रूढ़ियों को तोड़ना और समाज में लैंगिक समानता का माहौल बनाना जरूरी है।
प्रस्तावना
दहेज प्रथा भारतीय समाज का एक काला साया है जो सदियों से महिलाओं के अधिकारों और उनके जीवन पर एक बड़ा अभिशाप बना हुआ है। यह प्रथा न केवल महिला सम्मान को ठेस पहुँचाती है, बल्कि उनके परिवारों पर आर्थिक बोझ भी डालती है। आधुनिक युग में भी, यह कुप्रथा हमारे समाज में जीवित है और समय-समय पर इसके भयावह परिणाम सामने आते रहते हैं।
दहेज प्रथा का इतिहास
दहेज प्रथा का आरंभ प्राचीन काल में हुआ जब स्त्री को स्त्रीधन के रूप में देखा जाता था और दहेज विवाह के समय माता-पिता अपनी पुत्री को आर्थिक सुरक्षा प्रदान करने के लिए देते थे। लेकिन धीरे-धीरे यह प्रथा विकृत होती चली गई और महिलाओं के शोषण का माध्यम बन गई।
दहेज प्रथा के दुष्परिणाम
दहेज प्रथा के कारण महिलाओं को शारीरिक, मानसिक और सामाजिक शोषण का सामना करना पड़ता है। दहेज की मांग पूरी न होने पर कई महिलाओं को अत्याचार और हिंसा का शिकार होना पड़ता है। अनेक घटनाएँ सामने आती हैं जिसमे दहेज के लिए महिलाओं को जलाकर मार दिया जाता है या आत्महत्या के लिए मजबूर किया जाता है।
वर्तमान स्थिति
आज भी दहेज प्रथा भारतीय समाज में व्यापक रूप से फैली हुई है। राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो (NCRB) की रिपोर्ट के अनुसार, भारत में हर घंटे एक महिला दहेज से संबंधित हिंसा का शिकार होती है। विभिन्न राज्यों जैसे बिहार, हरियाणा, उत्तर प्रदेश और राजस्थान में यह समस्या और भी गंभीर है। NCRB (National Crime Records Bureau) के अनुसार 2021 में, 125,000 से अधिक दहेज उत्पीड़न के मामले दर्ज किए गए। यह दर्शाता है कि हर घंटे 14 महिलाएं दहेज प्रताड़ना का शिकार होती हैं। और 2021 में ही लगभग 7,000 दहेज हत्या के मामले दर्ज किए गए जो दर्शाता है कि लगभग हर दिन 19 महिलाओं की हत्या दहेज की वजह से की जाती है।
दहेज प्रथा के उन्मूलन के प्रयास
सरकार और विभिन्न सामाजिक संगठनों ने दहेज प्रथा के उन्मूलन के लिए कई कदम उठाए हैं। 1961 में ‘दहेज निषेध अधिनियम’ (Dowry Prohibition Act) पारित किया गया था, जिसमें दहेज लेना और देना दोनों को अपराध घोषित किया गया। इस अधिनियम के तहत दहेज मांगने पर कड़ी सजा का प्रावधान है। इसके अतिरिक्त, विभिन्न राज्य सरकारों ने भी समय-समय पर दहेज विरोधी अभियान चलाए हैं। कुछ राज्यों में विवाह पंजीकरण को अनिवार्य बनाया गया है ताकि दहेज प्रथा पर रोक लगाई जा सके। ‘बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओ’ और ‘महिला सशक्तिकरण’ जैसे अभियान दहेज प्रथा के खिलाफ जागरूकता फैलाने के उद्देश्य से चलाए जा रहे हैं।
दहेज प्रथा पर लेटेस्ट अपडेट
हाल ही में, भारत के विभिन्न हिस्सों में दहेज प्रथा के खिलाफ आवाज उठाया गया है जैसे 2023 में, राजस्थान सरकार ने ‘मुख्यमंत्री चिरंजीवी योजना’ के तहत विवाह के समय दहेज न लेने वाले परिवारों को वित्तीय सहायता देने की घोषणा की है। यह कदम समाज में जागरूकता फैलाने और दहेज प्रथा को समाप्त करने के उद्देश्य से उठाया गया है।
वहीं, बिहार में दहेज प्रथा के खिलाफ जागरूकता फैलाने के लिए ‘दहेज मुक्त बिहार’ अभियान चलाया गया है। इसके अंतर्गत सामुदायिक विवाह समारोह आयोजित किए जा रहे हैं जिसमें बिना दहेज के विवाह सम्पन्न हो रहे हैं।
सामाजिक जागरूकता की आवश्यकता
दहेज प्रथा का उन्मूलन केवल कानूनी प्रावधानों से संभव नहीं है। इसके लिए समाज में व्यापक स्तर पर जागरूकता फैलाने की आवश्यकता है। शिक्षित और जागरूक नागरिक ही इस कुप्रथा को समाप्त कर सकते हैं। इसके लिए स्कूलों और कॉलेजों में दहेज प्रथा के खिलाफ जागरूकता अभियान चलाए जाने चाहिए।
मीडिया, फिल्म और साहित्य के माध्यम से भी दहेज प्रथा के खिलाफ जन-जागरण किया जाना चाहिए। सिनेमा और टेलीविजन सीरियल्स में दहेज प्रथा के खिलाफ संदेश देकर लोगों को इसके दुष्परिणामों से अवगत कराया जाना चाहिए।
निष्कर्ष
दहेज प्रथा एक ऐसी सामाजिक बुराई है जिसका उन्मूलन अति आवश्यक है। इसके लिए समाज के हर वर्ग को एकजुट होकर प्रयास करना होगा। जब तक हमारे समाज से दहेज प्रथा समाप्त नहीं होती, तब तक महिलाओं के सशक्तिकरण और उनके अधिकारों की रक्षा की दिशा में किए जा रहे सारे प्रयास अधूरे रहेंगे। दहेज प्रथा को जड़ से खत्म करने के लिए शिक्षा, महिला सशक्तिकरण, और कड़े कानून लागू करने की आवश्यकता है। इसलिए, हमें मिलकर दहेज प्रथा के खिलाफ संघर्ष करना चाहिए और इसे हमेशा के लिए समाप्त करने का संकल्प लेना चाहिए।
प्रस्तावना
दहेज प्रथा जो लड़कियों को आर्थिक रूप से मदद करने के लिए एक सभ्य प्रक्रिया के रूप में शुरू की गई, क्योंकि वे नए सिरे से अपना जीवन शुरू करती हैं, धीरे-धीरे समाज की सबसे बुरी प्रथा बन गई है। जैसे बाल विवाह, बाल श्रम, जाति भेदभाव, लिंग असमानता, दहेज प्रणाली आदि भी बुरी सामाजिक प्रथाओं में से एक है जिसका समाज को समृद्ध करने के लिए उन्मूलन की जरूरत है। हालांकि दुर्भाग्य से सरकार और विभिन्न सामाजिक समूहों द्वारा किए गए प्रयासों के बावजूद यह बदनाम प्रथा अभी भी समाज का हिस्सा बनी हुई है।
दहेज प्रणाली अभी भी कायम क्यों है?
सवाल यह है कि दहेज को एक दंडनीय अपराध घोषित करने के बाद और कई अभियानों के माध्यम से इस प्रथा के असर के बारे में जागरूकता फैलाने के बाद भी लोग इसका पालन क्यों कर रहे हैं? यहां कुछ मुख्य कारण बताए गए हैं कि दहेज व्यवस्था जनता के द्वारा निंदा किए जाने के बावजूद बरकरार क्यों हैं:
दुल्हन के परिवार की स्थिति का अनुमान दूल्हे और उसके परिवार को गहने, नकद, कपड़े, संपत्ति, फर्नीचर और अन्य परिसंपत्तियों के रूप में उपहार देने से लगाया जाता है। यह चलन दशकों से प्रचलित है। इसे देश के विभिन्न भागों में परंपरा का नाम दिया गया है और जब शादी जैसा अवसर होता है तो लोग इस परंपरा को नजरअंदाज करने की हिम्मत नहीं कर पाते। लोग इस परंपरा का अंधाधुंध पालन कर रहे हैं हालांकि यह अधिकांश मामलों में दुल्हन के परिवार के लिए बोझ साबित हुई है।
कुछ लोगों के लिए दहेज प्रथा एक सामाजिक प्रतीक से अधिक है। लोगों का मानना है कि जो लोग बड़ी कार और अधिक से अधिक नकद राशि दूल्हे के परिवार को देते हैं इससे समाज में उनके परिवार की छवि अच्छी बनती है। इसलिए भले ही कई परिवार इन खर्चों को बर्दाश्त ना कर पाएं पर वे शानदार शादी का प्रबंध करते हैं और दूल्हे तथा उसके रिश्तेदारों को कई उपहार देते हैं। यह इन दिनों एक प्रतियोगिता जैसा हो गया है जहाँ हर कोई दूसरे को हराना चाहता है।
हालांकि सरकार ने दहेज को दंडनीय अपराध बनाया है पर इससे संबंधित कानून को सख्ती से लागू नहीं किया गया है। विवाह के दौरान दिए गए उपहारों और दहेज के आदान-प्रदान पर कोई रोक नहीं है। ये खामियां मुख्य कारणों में से एक हैं क्यों यह बुरी प्रथा अभी भी मौजूद है।
इनके अलावा लैंगिक असमानता और निरक्षरता भी इस भयंकर सामाजिक प्रथा के प्रमुख योगदानकर्ता हैं।
निष्कर्ष
यह दुखदाई है कि भारत में लोगों द्वारा दहेज प्रणाली के दुष्प्रभावों को पूरी तरह से समझने के बाद भी यह जारी है। यह सही समय है कि देश में इस समस्या को खत्म करने के लिए हमें आवाज़ उठानी चाहिए।
प्रस्तावना
प्राचीन काल से ही दहेज प्रणाली हमारे समाज के साथ-साथ विश्व के कई अन्य समाजों में भी प्रचलित है। यह बेटियों को आत्मनिर्भर और आर्थिक रूप से स्वतंत्र होने में मदद करने के रूप में शुरू हुई थी क्योंकि वे विवाह के बाद नए स्थान पर नए तरीके से अपना जीवन शुरू करती है पर समय बीतने के साथ यह महिलाओं की मदद करने के बजाए एक घृणित प्रथा में बदल गई।
दहेज सोसायटी के लिए एक अभिशाप है
दहेज दुल्हन के परिवार द्वारा दूल्हे और उसके परिवार को नकद, संपत्ति और अन्य संपत्तियों के रूप में उपहार देने की प्रथा है जिसे वास्तव में महिलाओं, विशेष रूप से दुल्हनों, के लिए शाप कहा जा सकता है। दहेज ने महिलाओं के खिलाफ कई अपराधों को जन्म दिया है। यहाँ विभिन्न समस्याओं पर एक नजर है जो इस प्रथा से दुल्हन और उसके परिवार के सदस्यों के लिए उत्पन्न होती है:
हर लड़की के माता-पिता उसके जन्म के बाद से उसकी शादी के लिए बचत करना शुरू कर देते हैं। वे कई साल शादी के लिए बचत करते हैं क्योंकि शादी के मामले में सजावट से लेकर खानपान तक की पूरी जिम्मेदारी उनके ही कंधों पर होती है। इसके अलावा उन्हें दूल्हे, उसके परिवार और उसके रिश्तेदारों को भारी मात्रा में उपहार देने की आवश्यकता होती है। कुछ लोग अपने रिश्तेदारों और मित्रों से पैसे उधार लेते हैं जबकि अन्य इन मांगों को पूरा करने के लिए बैंक से ऋण लेते हैं।
दुल्हन के माता-पिता अपनी बेटी की शादी पर इतना खर्च करते हैं कि वे अक्सर अपने जीवन स्तर को कम करते हैं। कई लोग बैंक ऋण के चक्कर में फंसकर अपना पूरा जीवन इसे चुकाने में खर्च कर देते हैं।
जिस व्यक्ति के घर में बेटी ने जन्म लिया है उसके पास दहेज देने और एक सभ्य विवाह समारोह का आयोजन करने से बचने का कोई विकल्प नहीं है। उन्हें अपनी लड़की की शादी के लिए पैसा जमा करना होता है और इसके लिए लोग कई भ्रष्ट तरीकों जैसे कि रिश्वत लेने, टैक्स चोरी करने या अनुचित साधनों के जरिए कुछ व्यावसायिक गतिविधियों का संचालन करना शुरू कर देते हैं।
सास-ससुर अक्सर उनकी बहू द्वारा लाए गए उपहारों की तुलना उनके आसपास की अन्य दुल्हनों द्वारा लाए गए उपहारों से करते हैं और उन्हें नीचा महसूस कराते हुए व्यंग्यात्मक टिप्पणी करते हैं। लड़कियां अक्सर इस वजह से भावनात्मक रूप से तनाव महसूस करती हैं और मानसिक अवसाद से पीड़ित होती हैं।
जहाँ कुछ ससुराल वालों ने अपनी बहू के साथ बदसलूकी करने की आदत बना रखी है और कभी भी उसे अपमानित करने का मौका नहीं छोड़ते वहीँ कुछ ससुराल वाले अपनी बहू का शारीरिक शोषण करने में पीछे नहीं रहते। कई मामले दहेज की भारी मांग को पूरा करने में अपनी अक्षमता के कारण महिलाओं को मारने और जलाने के समय-समय पर उजागर होते रहते हैं।
एक लड़की को हमेशा परिवार के लिए बोझ के रूप में देखा जाता है। यह दहेज प्रणाली ही है जिसने कन्या भ्रूण हत्या को जन्म दिया है। कई दम्पतियों ने कन्या भ्रूण हत्या का विरोध भी किया है। भारत में नवजात कन्या को लावारिस छोड़ने के मामले भी सामान्य रूप से उजागर होते रहे हैं।
निष्कर्ष
दहेज प्रथा की जोरदार निंदा की जाती है। सरकार ने दहेज को एक दंडनीय अपराध बनाते हुए कानून पारित किया है लेकिन देश के ज्यादातर हिस्सों में अभी भी इसका पालन किया जा रहा है जिससे लड़कियों और उनके परिवारों का जीना मुश्किल हो रहा है।
उत्तर- शिक्षा का प्रसार एवं बच्चों की परवरिश में समरूपता के साथ-साथ उच्च कोटि के संस्कार का आचरण।
उत्तर- केरल
उत्तर- उत्तर प्रदेश में