प्रतिवर्ष 6 दिसंबर के दिन, भारत के संविधान के जनक डॉ. बी.आर.अम्बेडकर की पुण्यतिथि मनाने के लिए महापरिनिर्वाण दिवस मनाया जाता है। आज मैं अपने पाठकों के लिए डॉ. अंबेडकर महापरिनिर्वाण दिवस पर अलग-अलग शब्द संख्या में कुछ निबंध प्रदान कर रहा हूँ जो आपको इस विषय पर कुछ रोचक और ज्ञानवर्धक जानकारी प्रदान करने में सहायक होंगे।
परिचय
बी.आर. अंबेडकर, जिन्हें बाबासाहेब के नाम से भी जाना जाता है उनकी पुण्यतिथि के उपलक्ष्य में महापरिनिर्वाण दिवस हर साल 6 दिसंबर को मनाया जाता है। वह एक सामाजिक कार्यकर्ता, राजनीतिज्ञ और अर्थशास्त्री थे जिनका स्वतंत्र और लोकतांत्रिक भारत के भविष्य को संवारने में अभूतपूर्व योगदान है।
अवलोकन
यह दिन भारत के राजनीतिक और सामाजिक क्षेत्रों में व्यापक रूप से मनाया जाता है। संविधान के मुख्य वास्तुकार होने के नाते, डॉ. अंबेडकर जनता और राजनीतिक महकमे के लोगों के बीच सम्मान और प्रतिष्ठा का स्थान रखते हैं।
डॉ. अंबेडकर की याद में पूरे देशभर में कई स्मरणीय कार्यक्रम आयोजित किए जाते हैं। विशेष कार्यक्रम मुंबई, महाराष्ट्र में चैत्य भूमि में आयोजित किए जाते हैं, जहां उनका अंतिम संस्कार किया गया था।
राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली भी इस दिन कई तरह के आयोजन करती है। इन कार्यक्रमों में वरिष्ठ राजनीतिक नेता, नौकरशाह और अन्य लोग शामिल होते हैं।
महापरिनिर्वाण दिवस का महत्व
महापरिनिर्वाण दिवस मनाना बाबासाहेब के कार्यों के बारे में हमें भावी पीढ़ी के साथ-साथ आगे बढ़ने के बारे में भी बताता है। जितना हम उनके बारे में जानते हैं उतना ही हम उनका सम्मान करते हैं।
यह बेहद ही महत्वपूर्ण है कि हम बाबासाहेब की दृष्टि को पहचानें और समान तथा न्यायपूर्ण समाज के लिए प्रयास करें क्योंकि उन्होंने इसी की कल्पना की थी। कुल मिलाकर, यह समारोह जनता के बीच सांप्रदायिक सौहार्द बनाए रखने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं, क्योंकि वे बाबासाहेब के दृष्टिकोण और विचारों को याद करते हैं और उसे स्वीकार करते हैं।
निष्कर्ष
हालाँकि महापरिनिर्वाण दिवस एक स्मरणीय घटना है, लेकिन यह किसी भी चीज़ की तुलना में आत्म-सुधार के लिए अधिक प्रेरित करता है। यह हमें किसी भी प्रकार के भेदभाव के खिलाफ आवाज उठाना सिखाता है और साथ ही भारत को एक समता मूलक और एकीकृत समाज बनाने के लिए प्रेरित करता है।
परिचय
महापरिनिर्वाण दिवस 6 दिसंबर को डॉ. बी. आर. अम्बेडकर की पुण्यतिथि के उपलक्ष्य में भारत में मनाया जाता है; जो एक अर्थशास्त्री, राजनेता, और सामाजिक कार्यकर्ता थे, जिन्होंने दलितों, महिलाओं और शोषितों के अधिकारों के लिए लड़ाई लड़ी। वह भारत के संविधान के मुख्य वास्तुकार भी थे, जिसकी वजह से उन्हें ‘संविधान के जनक’ का उपनाम भी हासिल है।
महापरिनिर्वाण – मृत्यु के बाद निर्वाण
उच्च जातियों द्वारा भारत के छोटी जातियों, दलितों के साथ हुए भेदभाव के विरोध में, डॉ. अम्बेडकर ने 14 अक्टूबर 1956 को महाराष्ट्र के नागपुर में अपने हजारों अनुयायियों के साथ बौद्ध धर्म में धर्म परिवर्तन किया था।
बौद्ध धर्म ‘निर्वाण’ को मानव रूप में उनके अच्छे कर्मों की एक आध्यात्मिक प्रक्रिया के रूप में बताया जाता है जो किसी व्यक्ति द्वारा जन्म और कर्म के चक्र से जारी किया गया है। इसलिए, उनकी मृत्यु के बाद, डॉ. अंबेडकर के अनुयायियों ने उनके सम्मान में उनकी पुण्यतिथि को ‘महापरिनिर्वाण दिवस’ के रूप में मनाया।
महापरिनिर्वाण दिवस कैसे मनाया जाता है?
14 अप्रैल को मनाई जाने वाली अंबेडकर जयंती के विपरीत, महापरिनिर्वाण दिवस सार्वजनिक अवकाश नहीं है; हालाँकि, कुछ राज्य सरकारें अपने निर्णय से इस दिन छुट्टी की घोषणा कर सकती हैं।
यह दिन देश भर के स्कूलों और सार्वजनिक कार्यालयों में मनाया जाता है, लेकिन विशेष रूप से महाराष्ट्र राज्य में। मुंबई में चैत्य भूमि जहाँ डॉ. अम्बेडकर का अंतिम संस्कार किया गया था, तमाम तरह के कार्यक्रमों का मुख्य केंद्र होता है।
भारत के शहरों और कस्बों में स्मरणीय समारोह आयोजित किए जाते हैं, जहाँ डॉ. अंबेडकर की प्रतिमाओं को पुष्पांजलि अर्पित कर उनका सम्मान किया जाता है। राजनितिक दलों से सम्बंधित राजनेता घटनाओं में भाग लेते हैं और डॉ. अंबेडकर के जीवन और उपलब्धियों के बारे में बात करते हैं।
महापरिनिर्वाण दिवस का महत्व
डॉ. बी. आर. अम्बेडकर उन दुर्लभ व्यक्तित्वों में से एक थे जिन्होंने भारत और भारतीय समाज के भविष्य के निर्माण में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। भारत में आज दलितों को जिस स्थिति का आनंद मिल रहा है वह केवल इसलिए है क्योंकि बाबा साहेब ने उनके लिए संघर्ष किया था।
न केवल दलित, बल्कि उन्होंने किसी के भी अधिकारों के लिए लड़ाई लड़ी, जिसे बराबरी के हक़ से वंचित रखा गया। उनका यह अच्छा काम यहीं नहीं रुका और वे भारत के संविधान के मुख्य वास्तुकार भी थे। आज जो समानता, मौलिक अधिकार और विशेषाधिकार हमें प्राप्त हैं, वे सभी बाबासाहेब की ही देन हैं।
निष्कर्ष
यह बेहद ही आवश्यक है कि महापरिनिर्वाण दिवस पूरी श्रद्धा के साथ भारत के सभी वर्ग के लोगों की ज्यादा से ज्यादा भागीदारी के साथ मनाया जाना चाहिए। भावी पीढ़ी को डॉ. अम्बेडकर के कार्यों के बारे से अवगत करना चाहिए और यह भी बताना चाहिए कि उनकी दृष्टि ने दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र के भविष्य को कैसे आकार दिया है।
परिचय
भारत रत्न डॉ. बी. आर. अम्बेडकर की पुण्यतिथि के अवसर पर भारत में हर वर्ष 6 दिसंबर को महापरिनिर्वाण दिवस मनाया जाता है। महापरिनिर्वाण दिवस पूरे भारत में कुछ स्थानों पर धार्मिक श्रद्धा के साथ मनाया जाता है।
महापरिनिर्वाण दिवस क्यों मनाया जाता है?
महापरिनिर्वाण दिवस भारत में हर साल 6 दिसंबर को मनाया जाता है। वर्ष 1956 में उसी दिन, भारत के महानतम सामाजिक कार्यकर्ता और राजनीतिक हस्तियों में से एक, डॉ. बी. आर. अंबेडकर ने लंबी बीमारी के बाद अंतिम सांस ली थी।
7 दिसंबर को उन्हें दादर चौपाटी समुद्र तट पर मुंबई ले जाया गया और डेढ़ लाख प्रशंसकों की मौजूदगी में उनका अंतिम संस्कार किया गया। आज, वह स्थान चैत्य भूमि के रूप में जाना जाता है और महापरिनिर्वाण दिवस पर गतिविधियों के मुख्य केंद्रों में से एक है।
बाबासाहेब डॉ. भीमराव रामजी अंबेडकर – एक सामाज सुधारक
बी. आर. अम्बेडकर एक ऐसा नाम है, जो भारतीय समाज के सभी वर्गों के लिए सम्मान की आज्ञा देता है। उनका सम्मान किया गया और उन्हें अभी भी बहुत सम्मान के साथ उच्च जातियों और भारत की निचली जाति द्वारा देखा जाता है।
उनका जन्म 14 अप्रैल, 1891 को महू जो वर्तमान में मध्य प्रदेश में स्थित है वहां के एक गरीब व निम्न जाति के परिवार में हुआ था; हालाँकि, वे मूल रूप से महाराष्ट्र के रत्नागिरी के थे।
एक नीची जाति से ताल्लुख रखने वाले, डॉ. अंबेडकर ने बाल्यावस्था से ही स्कूल और समाज में गंभीर भेदभाव का सामना किया था। स्कूल में, निचली जाति के छात्रों के लिए एक अलग व्यवस्था थी और उन्हें एक ही कंटेनर से पानी पीने की अनुमति भी नहीं थी, जो उच्च जाति के बच्चों के लिए था।
बचपन में उनके साथ हुए भेदभाव ने उनके विचारों को ढाला और उनके व्यक्तित्व को आकार दिया। वह लड़का दलित अधिकारों के सबसे बड़े चैंपियन में से एक बन गया, जो कभी भारत की धरती पर पैदा हुआ था। लेकिन, सही मायनों में वह समानता के चैंपियन थे।
उन्होंने न केवल दलितों, बल्कि महिलाओं, बच्चों, गरीबों या किसी अन्य शोषित व्यक्ति के अधिकारों के लिए भी लड़ाई लड़ी, भले ही वह किसी भी जाति या वर्ग का हो।
महापरिनिर्वाण दिवस समारोह
महापरिनिर्वाण दिवस भारत में व्यापक रूप से मनाया जाता है, मुख्यतः दलित समुदाय के लोगों द्वारा। इस दौरान चैत्य भूमि, संसद, आदि जैसे महत्वपूर्ण स्थानों पर विशेष स्मरणोत्सव कार्यक्रम आयोजित किए जाते हैं।
1) चैत्य भूमि, मुंबई, महाराष्ट्र
चैत्य भूमि, मुंबई, महाराष्ट्र में स्थित है जहाँ बाबासाहेब का अंतिम संस्कार किया गया था। यह स्थान अब डॉ. अंबेडकर स्मारक के रूप में बदल गया है। देश में किसी भी अन्य स्मारक के विपरीत, चैत्य भूमि मुख्य रूप से निचली जाति के साथ-साथ बौद्धों के लिए भी श्रद्धा का स्थान माना जाता है।
महापरिनिर्वाण दिवस पर, लगभग पूरे एक सप्ताह के लिए, कई तरह के विशेष आयोजन होते हैं, इस दौरान लाखों लोग उमड़ते हैं। राज्य सरकार आगंतुकों के परिवहन और सुविधा के लिए विशेष व्यवस्था करती है। कई बौद्ध गुरु भी जनता के साथ बातचीत करने के लिए चैत्य भूमि जाते हैं।
2) अन्य स्थानों पर
पूरे देश भर में कई स्थानों पर विशेष स्मरणीय कार्यक्रम आयोजित किए जाते हैं। प्रत्येक राजनीतिक दल कार्यक्रमों में भाग लेते है। भाषण दिए जाते हैं और बाबासाहेब की मूर्तियों को सम्मानित भी किया जाता है।
नई दिल्ली में इसी तरह के स्मरणीय कार्यक्रम आयोजित किए जाते हैं। वरिष्ठ नेता, मंत्री और नौकरशाह डॉ. अंबेडकर की याद में आयोजित कार्यक्रमों में हिस्सा लेते हैं।
संसद भवन स्थित डॉ. अंबेडकर की प्रतिमा पर माल्यार्पण किया जाता है। प्रधानमंत्री, वरिष्ठ कैबिनेट मंत्री, विपक्ष के नेताओं के साथ, डॉ.अंबेडकर की प्रतिमा पर पुष्प अर्पित करते हैं।
एक सामाजिक कार्यकर्ता, डॉ.अंबेडकर कितने बड़े कार्यकर्ता थे, इस पर देश भर के लोग अपने विचार रखते हैं। इस अवसर पर राष्ट्रपति और प्रधानमंत्री द्वारा लोगों को संबोधित करना भी आम है।
निष्कर्ष
महापरिनिर्वाण दिवस एक महत्वपूर्ण अवसर है जो भारतीय धरती पर पैदा हुए महान सामाजिक कार्यकर्ताओं और राजनीतिक हस्तियों में से एक के लिए स्मरणीय दिन है। यह बहुत महत्वपूर्ण है कि इस दिन को देश के लोगों द्वारा धार्मिक श्रद्धा के साथ मनाया जाता है।