देश की सुरक्षा और विकास में सभी नागरिकों को अपनी भूमिका निभाने के लिए भारतीय संविधान में कुछ कर्तव्यों का उल्लेख किया गया है जिन्हें मौलिक कर्तव्य कहते हैं। भारतीय संविधान के अनुच्छेद 51A में उन सभी कर्तव्यों का जिक्र किया गया है जिसका पालन करके हर व्यक्ति देश के विकास में अपना योगदान दे सकता है। इस संविधान में उन सभी बातों को सम्मिलित किया गया है जो भारत के हर जाति धर्म के नागरिकों को उनके अधिकार उपलब्ध करा सके।
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आज इस निबंध के माध्यम से हम उन सभी कर्तव्यों के बारे में जानेंगे जो हमें अपने देश के प्रति निभाने की आवश्यकता है।
प्रस्तावना
जीवन के किसी भी मोड़ पर सभी व्यक्तियों की मानसिकता सिर्फ़ अपने अधिकारों की सुरक्षा करने से संबंधित ही होती है। चाहे व्यक्ति किसी भी जाति धर्म का क्यों न हो, कितना भी अमीर या गरीब क्यों न हो लेकिन वह हर वक्त सिर्फ अपने हक के बारे में ही सोचता है। कभी किसी व्यक्ति का ख्याल अपने देश के प्रति खुद की जिम्मेदारियों या कर्तव्यों पर नहीं जाता है। संविधान में सिर्फ अधिकारों की बात ही नहीं बल्कि उन अधिकारों की रक्षा करने से संबंधित कानून की व्यवस्था भी की गई है। संविधान में नागरिकों के हक और अधिकारों के अलावा देश के प्रति उनके कर्तव्यों का भी जिक्र किया गया है।
भारतीय नागरिकों का मौलिक कर्तव्य (Fundamental Duties of Indian Citizens)
भारतीय संविधान के निर्माण के लगभग 26 वर्षों के बाद 1976 में स्वर्ण सिंह समिति की सिफारिश पर 42वें संविधान संशोधन द्वारा नागरिकों के लिए मौलिक कर्तव्यों को संविधान में जोड़ा गया। इस संविधान संशोधन के बाद संविधान में एक नया भाग “IV” सम्मिलित किया गया जिसके अनुच्छेद 51 (क) में कुल 10 मौलिक कर्तव्यों को जोड़ा गया था। जिसके बाद वर्ष 2002 में भारतीय संविधान संशोधन 86 के अंतर्गत एक अतिरिक्त मौलिक अधिकार जोड़ा गया। जिसके फलस्वरूप वर्तमान समय में मौलिक अधिकारों की संख्या 11 हो चुकी है।
भारतीय संविधान में उल्लेखित मौलिक कर्तव्य निम्नलिखित हैं –
1) “संविधान का पालन करें और उसके आदर्शों, संस्थाओं, राष्ट्रध्वज एवं राष्ट्रीय गान का आदर करें”।
2) “स्वतंत्रता के लिये राष्ट्रीय आंदोलन को प्रेरित करने वाले उच्च आदर्शों को हृदय में संजोये रखें और उनका पालन करें”।
3) “भारत की संप्रभुता, एकता और अखंडता की रक्षा करें तथा उसे अक्षुण्ण रखें”।
4) “देश की रक्षा करें और आह्वान किये जाने पर राष्ट्र की सेवा करें”।
5) “भारत के सभी लोगों में समरसता और समान भातृत्व की भावना का निर्माण करें जो धर्म, भाषा और प्रदेश या वर्ग आधारित सभी प्रकार के भेदभाव से परे हो, ऐसी प्रथाओं का त्याग करें जो स्त्रियों के सम्मान के विरुद्ध हैं।6) हमारी सामासिक संस्कृति की गौरवशाली परंपरा का महत्त्व समझें और उसका परिरक्षण करें”।
7) “प्राकृतिक पर्यावरण जिसके अंतर्गत वन, झील, नदी और वन्य जीव आते हैं, रक्षा करें और संवर्द्धन करें त्तथा प्राणीमात्र के लिये दया भाव रखें”।
8) “वैज्ञानिक दृष्टिकोण से मानववाद और ज्ञानार्जन तथा सुधार की भावना का विकास करें”।
9) “सार्वजनिक संपत्ति को सुरक्षित रखें और हिंसा से दूर रहें”।
10) “व्यक्तिगत और सामूहिक गतिविधियों के सभी क्षेत्रों में उत्कर्ष की ओर बढ़ने का सतत प्रयास करें जिससे राष्ट्र प्रगति की और निरंतर बढ़ते हुए उपलब्धि की नई ऊँचाइयों को छू ले”।
11) “यदि माता-पिता या संरक्षक हैं, छह वर्ष से चौदह वर्ष तक की आयु वाले अपने, यथास्थिति, बालक या प्रतिपाल्य के लिए शिक्षा के अवसर प्रदान करें”।
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मौलिक कर्तव्यों का महत्व (Importance of Fundamental Duties)
जिस प्रकार से संविधान में भारत के सभी नागरिकों के लिए अधिकारों का प्रावधान किया गया है उसी प्रकार से कर्तव्यों की विवेचना भी की गई है। उन सभी कर्तव्यों का अपना एक महत्व है जो देश के सतत विकास के लिए अत्यंत आवश्यक है। इन कर्तव्यों के अनुसार हमें संविधान का पालन करना चाहिए तथा राष्ट्रध्वज, राष्ट्रगान का सम्मान करना चाहिए। जिन महान आत्माओं ने देश के लिए अपना बलिदान दिया है उन्हें हमेशा अपने जीवन में एक आदर्श की तरह मानना चाहिए।
भारत देश की एकता और अखंडता की रक्षा के साथ साथ जरूरत पड़ने पर राष्ट्र सेवा के माध्यम से देश की रक्षा भी करनी चाहिए। भारत के सभी जाति धर्म या भाषा से अलग लोगों के साथ भाई चारे की भावना रखनी चाहिए। भारतीय संस्कृति और परंपरा की रक्षा करनी चाहिए। सभी प्राणियों के लिए दया भावना रखने के साथ साथ पर्यावरण का भी ख्याल रखना चाहिए। सभी देशवासियों को वैज्ञानिक विचारों से भी देश के विकास के बारे में सोचना चाहिए। देश के बहुमूल्य धरोहरों और विरासतों की रक्षा करनी चाहिए। सभी अभिभावकों को 6 से 14 वर्ष के बच्चों को स्कूल जरूर भेजना चाहिए।
क्या भारत के नागरिक मौलिक कर्तव्यों का पालन करते हैं? (Is citizen of India Follow their Fundamental Duties?)
आज देश को आजाद हुए वर्षों बीत चुके हैं। लोग अंग्रेजों की क्रूर गुलामी से मुक्त हैं। सभी को एकसमान अधिकारों की प्राप्ति भी हुई है और जहां उन्हें अपने अधिकारों का हनन होते दिखाई देता है लोग उसके खिलाफ़ आवाज़ भी उठाते हैं। इस देश ने अपने देशवासियों को उम्मीद से ज्यादा ही दिया है लेकिन जब बात देश के प्रति कर्तव्यों की आती है तो आधी से ज्यादा जनसंख्या नज़र ही नहीं आती। वहीं अगर अपने किसी अधिकार या हक के लिए लड़ना हो तो लोगों का जनसैलाब सड़कों पर उतर आता है। अपने हक के लिए तो किसी को भी सुझाव की आवश्यकता नहीं पड़ती लेकिन कर्तव्यों के मामले में लोगों को सोशल मीडिया और समाचार पत्रों के माध्यम से समय समय पर उनके कर्तव्य याद दिलाने की जरूरत पड़ती है।
लोगों को अपने प्राचीन धरोहरों की रक्षा करने के लिए नोटिस बोर्ड आदि लगाने पड़ते हैं उनको हर बार बताना पड़ता है कि सार्वजनिक स्थानों पर थूकना आदि गलत है। जबकि अपने अधिकार के लिए उन्हें हथियार भी उठाने पड़े तो बेझिझक बिना किसी से सलाह मशवरा लिए ही सरकार के खिलाफ़ कूद पड़ते हैं। जातिगत या भाषायी भेदभाव को खत्म करके भाईचारे के साथ रहने के लिए आज के समय में भी लोगों को समझाने बताने की जरूरत पड़ती है। लोगों को देश के राष्ट्रगान आदि का सम्मान करने के लिए याद दिलाना पड़ता है। लोग खुद से देश के प्रति जिम्मेदारियों को समझने लगे तो फिर देश को विकास के पथ पर बढ़ने से कोई नहीं रोक सकता।
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निष्कर्ष
समय के साथ साथ लोगों के जीवन में व्यस्थता इस प्रकार बढ़ चुकी है कि लोग अपने कर्तव्यों को भूलते जा रहे हैं। यही कारण है कि समय समय पर लोगों को उनके कर्तव्य किसी न किसी माध्यम से याद दिलाने पड़ते हैं। भारतीय संविधान में मौलिक कर्तव्यों को सम्मिलित करने से पहले ही “चंद्र भवन बोर्डिंग तथा लॉजिंग बैंगलोर” बनाम “मैसूर व अन्य राज्य” मामले में सुप्रीम कोर्ट ने मौलिक कर्तव्यों के संविधान में सम्मिलित होने से पहले ही कहा था कि यदि नागरिक अपने मौलिक कर्तव्यों का पालन नहीं करेंगे तो, नागरिकों के सभी अधिकारों की रक्षा कर पाना संविधान के लिए संभव नहीं है। अर्थात हमारे अधिकारों की रक्षा तभी हो पाएगी जब हम अपने कर्तव्यों का निष्ठा पूर्वक पालन करें।
उत्तर – भारत के मौलिक कर्तव्यों को रूस के संविधान से लिया गया है।
उत्तर – 42वें संविधान संशोधन 1976 में मौलिक कर्तव्यों को सम्मिलित किया गया।
उत्तर – 2002 के 86वें संविधान संशोधन के अंतर्गत 11वें मौलिक कर्तव्य को जोड़ा गया था।
उत्तर – मौलिक कर्तव्यों को स्वर्ण सिंह समिति की सिफारिश पर संविधान में शामिल किया गया।