किसी ने सत्य ही कहा है “ज़रा-ज़रा सी बात पर बिगड़ते देखा है, मैंनें हर ख्वाब के लिए डरते देखा है, बचपन था मेरा और बचपना उसका था, अकसर मेरी गलतियों के लिए, मेरी माँ को पिता जी से झगड़ते देखा है” इस वाक्य को मैं वास्तव मानता हुँ। बच्चे के हर गलत बात पर माँ सदैव गुस्सा करती है पर हम से अधिक हमारे बारे में माँ ही सोच सकती है। व्यक्ति का माँ के साथ एक ऐसा रिस्ता है जो हर रिस्ते से नौ महिने अधिक का होता है। अच्छी माता अपने बच्चों को निस्वार्थ भाव से प्रेम और उसकी चिंता करती हैं शायद इसलिए हम माँ के इतने करीब होते हैं।
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परिचय
माँ शब्द का अर्थ जननी है, अर्थात जन्म देने वाली। संभवता इसलिए हमारा पालन पोषण करने वाले प्रकृति में उपस्थित सभी सम्मान जनक आधारभूत इकाईयों को हम माँ कहते हैं जैसे धरती माँ, भारत माँ, गंगा माँ, आदि। अच्छी माता से आशय अपने बच्चों के मोह में उनकी गलतियां को नजरअंदाज नहीं करना है।
हमारी खुशी में सर्वाधिक खुश माँ होती है
प्रत्येक बच्चे के लिए माँ जो कहती है वही सत्य होता है और हम वैसा ही करते हैं। जैसे-जैसे हम बड़े होते हैं सहमति समझौते में बदल जाती है। यह ज़रूरी नहीं की हमारे द्वारा लिए गए निर्णय से वह सहमत हो, पर न चाह कर भी माँ हमेशा अपने बच्चों की खुशी में अपनी खुशी ढूंढ ही लेती हैं।
अच्छी माँ के कर्तव्य
यह जग ज़ाहिर है की एक माँ अपने बच्चे से सर्वाधिक और अमूल्य प्रेम करती है पर क्या बस प्रेम के सहारे अच्छे व्यक्तित्व का निर्माण संभव हैं? कई बार यह देखा जाता है की माँ के सदैव अपने बच्चे को प्यार करने पर या उसकी गलतियां छुपाते रहने पर बच्चा अत्यधिक दुष्ट प्रवृत्ति का हो जाता है। वह अपने से बड़ों का सम्मान नहीं करता, अपने परिवार के प्रति अपनी जिम्मेदारियां नहीं समझता और फिर बड़े होने पर समाज का गैर जिम्मेदार व्यक्ति बन जाता है।
हमारे जीवन में, एक अच्छी माँ का महत्व
बचपन की एक धुंधली कहानी याद आती है। जिसमें नायक के अनेकों गलत काम करने पर उसे दण्ड के रूप में, काले पानी की सज़ा सुनाई जाती है। माँ के मिलने आने पर नायक ने कहा, मैं तुम्हारे कान में कुछ कहना चाहता हुँ। माँ के कान करीब ले जाने पर वह माँ के कान कांट देता है। वह दुःखी मन से कहता है, अगर तुम मेरी हर गलती पर मेरी सराहना नहीं करती तो आज मैं यहां नहीं होता। कहानी का सार यह है हमारे व्यक्तित्व का निर्माण पूर्ण रूप से हमारे माँ के हाथ में होता है। समाज में मान प्रतिष्ठा के साथ सफल जीवन व्यतीत करने के लिए अच्छी माँ के नेतृत्व का सर्वाधिक महत्व है।
निष्कर्ष
माँ अपने बच्चों की प्रथम शिक्षक होती है। भले ही माता कम पढ़ी-लिखी या अनपढ़ हो पर उनके द्वारा जीवन के अनुभव को तर्क के रूप में हमारे सामने प्रकट करना, किसी स्कूल के प्रोफेशर से कम नहीं। इसलिए माँ हमारे जीवन में बहुत महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है।
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परिचय
औरत अपने जीवन में अनेक भूमिका निभाती हैं, कभी किसी की बेटी, बहन के रूप में तो कभी पत्नी व बहू के रूप में पर माता बनने पर औरत का दूसरा जन्म होता है। हम दुनिया में आँखे खुलने के बाद सबसे पहले माँ को देखते हैं। बच्चे से माँ के प्रेम की तुलना अन्य किसी से नहीं की जा सकती है और माँ के गुणों का शब्दों में बखान कर पाना संभव नही है।
मातृत्व का भाव
विश्व में ऐसे अनेक उदहारण देखने को मिलते हैं जिसमें माँ न होते हुए भी दुसरे के बच्चे के प्रति एक स्त्री अमूल्य प्रेम बच्चे पर लुटाती हैं। इससे विपरीत अपनी माता होने के बाद भी स्त्री बच्चे को सड़क पर कहीं, एक कम्बल के सहारे छोड़ आती है। मातृत्व, माँ बन जाने मात्र से नारी को नहीं मिल जाता। मातृत्व एक स्वभाव है। दुनिया में सबसे अधिक बच्चे के लिए चिंता, जिम्मेदारी और ढ़ेर सारा प्यार मातृत्व में निहित होता है। बच्चे के लिए हर वक्त उपलब्ध रहने वाली पहली शिक्षक माँ होती है।
अच्छी माँ से तात्पर्य
माँ ममता के लिए जानी जाती है पर अपने बच्चों के नेतृत्व कर्ता के रूप में उससे ज्यादा कठोर और कोई नहीं है। माँ एक ऐसी भूमिका है जो ज्यादातर अच्छी होती है। वह अपने बच्चों को सबसे अधिक प्रेम करती है, लेकिन अधिक स्नेह के वजह से हम बिगड़ न जाए इसका भी पूरा ख्याल रखती है। माता बच्चे की प्रथम शिक्षक होने के साथ ही प्रथम मित्र भी है। जिससे हम हमारी सारी समस्याएं बिना किसी तोड़ मरोड़ के बता सकते हैं। व्यक्ति अपने जीवन में जो कुछ बन पाता है उसमें माँ की अहम भूमिका होती है। माँ हमें दुलार-प्यार देने के साथ हमारे अन्य के साथ गुस्ताख़ी (बत्तमीजी) से पेश आने पर उचित दंड देने से भी नहीं चूकती है।
माँ जिम्मेदार है
बच्चे की उपलब्धियों का श्रेय माता को भले ही न दिया जाए पर बच्चे द्वारा कुछ गलत करने पर सारा संसार माँ को ही दोषी मानता है फिर भी वह कभी शिकायत नहीं करती है। अखबार में पढ़ी एक बहुत संदुर पंक्ति मुझे याद आती है “मिलनें को तो हजारों लोग मिल जाते हैं, लेकिन हजार गलतियां मांफ करले वाले माँ-बाप दुबारा नहीं मिलतें”।
निष्कर्ष
प्रेम और वात्सल्य का दूसरा रूप ‘माँ’ है। उनके प्यार की तुलना अन्य किसी प्रेम से नहीं किया जा सकता। दुनिया में बच्चे की सबसे ज्यादा परवाह एक माँ करती है तथा एक अच्छी माँ हमेशा प्यार और अनुशासन में संतुलन रखती है।
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परिचय
माँ हमें जन्म देने के साथ, हमारे पालन पोषण को अपनी प्रथम प्राथमिकता मानती है। हमें बनाते-बनाते वह स्वंय को खो देती है, पर फिर भी सदैव हमारी खुशी में खुश रहती है। हम जीवन में जो कुछ कर पाते हैं उसमें माँ द्वारा दिए गए शिक्षा का बहुत अधिक योगदान शामिल होता है।
ऐसी होती है माँ
हमारे जन्म लेने से पूर्व ही वह हमारा ख्याल रखना शुरू कर देती हैं। जन्म लेने के बाद हमेशा अपनी बाहों के आगोश में रखती है, स्वयं भूखी रह भी जाए तो भी हमें खाना खिलाना नहीं भूलती फिर चाहे हमारे हठ करने पर हमें मार कर ही खिलाए। न जाने हमें सुलाते हुए वह अपनी कितनी रातों के नींद को उड़ा देती है।
अच्छी माँ का स्वभाव
हमारा हमारे माता के प्रति कर्तव्य
निष्कर्ष
“खुदा स्वंय हर जगह हमारे साथ नहीं हो सकता, इसलिए उसने माँ बनाया है” यह कथन बिलकुल सत्य है। एक अच्छी माँ हमें समाज में पहचान दिलाने हेतु स्वयं को हमेशा के लिए खो देती है अतः हमें कभी भी उनका साथ नहीं छोड़ना चाहिए।