हमारा समाज कुछ नियमों और कानून के अनुसार कार्य करता है और उन्हीं नियमों और कानून के तहत समाज में शांति और सौहार्द का माहौल बना रहता है। समाज के इसी सौहार्द को सृजनात्मक रूप से चलने के लिए किसी भी देश में कानून और संविधान का निर्माण किया जाता है। संविधान के बनाये इन नियमों को तोड़ना एक दंडनीय अपराध है। इस अपराध की सजा उस अपराध की गंभीरता पर निर्भर करता है। किसी भी गंभीर अपराध की सजा के लिए मृत्युदंड की सजा का भी प्रावधान है। देश के संविधान और मानव के अधिकारों के बीच संघर्ष हमेशा ही चर्चा का विषय रहा है।
परिचय
समाज के संवैधानिक कानून और मानवी अधिकारों को बनाये रखने के लिए कुछ गंभीर अपराधों की सजा के लिए मृत्युदंड का प्रावधान है। इस कानून के तहत अपराध को सिद्ध करके अपराधी को यह सजा सुनाई जाती है। जिसके कारण आक्रोश और इस प्रकार की गंभीर आपराधिक घटनाओं पर लगाम लगाया जा सकता है।
मृत्यु दंड क्या है?
किसी व्यक्ति को उसके अपराध के लिए कानूनी प्रक्रिया के तहत उस अपराध के सिद्ध होने पर उसके प्राणांत की सजा को ही “मृत्युदंड” कहा जाता है। मृत्युदंड को कई और नामों से भी जाना जाता हैं जैसे- डेथ पेनाल्टी (Death Penalty) और कैपिटल पनिशमेंट (Capital Punishment)। इसके तहत कुछ क्रूर अपराध जैसे- हत्या, सामूहिक हत्या, बलात्कार, यौन शोषण, आतंकवाद, युद्ध अपराध, राजद्रोह, इत्यादि मृत्युदंड की सजा के अधीन आती है।
यह सामाजिक अवधारणा है कि समय के साथ ही दंड विधान की प्रक्रिया भी नरम होते जाते है और प्रचलित प्राचीनतम सजा धीरे-धीरे प्रचलन से बहार चली जाती है। मानवी समाज की यह धारणा हैं कि समय के अनुसार सामाज सभ्य होता जाता है और ऐसे सभ्य समाज में ऐसा कानून नहीं होना चाहिए जो उस सभ्य सामाज की सभ्यता के अनुकूल न हो। फाँसी की सजा को भी इसी कसौटी में परखा जाता है।
मृत्युदंड के प्रकार
भारतीय दंड संहिता में हत्या के अपराध को दो श्रेणी में बता गया है- एक इरादतन और दूसरा गैर इरादतन हत्या। सोच-समझकर और जानबूझकर की गयी हत्या को इरादतन हत्या की श्रेणी में रखा गया है, और अपने बचाव या ऐसे जन्मे परिस्थिति में की गयी हत्या को गैर इरादतन हत्या की श्रेणी में रखा गया है। हत्या की परिस्थितियों, उसकी जघन्यता, क्रूरता आदि को ध्यान में रखकर न्यायाधीश उस अपराध की सजा सुनाते है। हत्या इरादतन हो या गैर इरादतन उसकी गंभीरता को देखते हुए उसकी सजा मृत्युदण्ड सुनाई जाती है।
फांसी, घातक इंजेक्शन, पत्थरबाजी, गोलियों से भुनवा देना, बिजली का शॉक देकर, इत्यादि मृत्युदंड लागू करने के कुछ विशेष तरीके है। समयानुसार कई देशों में मृत्युदंड की सजा को समाप्त कर दिया गया है, और कई देशों में क़ानून व्यवस्था को बनाये रखने के लिए आज भी वहां मृत्युदंड का प्रावधान है, जैसे भारत, चीन, सउदी अरब, मिस्र, पाकिस्तान, संयुक्त राज्य अमेरिका, नाइजीरिया, जापान, ईरान, इत्यादि अन्य देशों में फांसी की सजा का प्रावधान आज भी है।
भारत में मृत्युदंड की सजा का इतिहास
विश्व भर में मृत्युदंड की सजा किसी व्यक्ति को उसके अपराध के लिए दी जाने वाली सबसे बड़ी सजा के रूप में जाना जाता है। भारतीय इतिहास में इसका प्रचलन काफी पुराना है, लेकिन हाल के कुछ समय से मृत्युदंड के प्रावधान को ख़त्म करने की चर्चा काफी हो रही है। भारत का संविधान सन 1950 में लागू किया गया था। इससे पहले अंग्रेजी हुकूमत में मृत्युदंड की सजा आसानी से दिया जाता रहा। भारतीय संविधान लागू होने के प्रथम पांच वर्ष में किसी को भी उसके गंभीर अपराध के लिए मृत्युदंड की सजा का प्रावधान था, क्योँकि उस समय मृत्युदंड की सजा का प्रावधान प्रचलन में था। इसके बाद उनके अपराधों की सजा में कुछ बदलाव किया गया।
भारतीय संविधान में किसी अपराधी की सजा उसके अपराध की क्रूरता को ध्यान में रहकर दी जाने की प्रक्रिया शुरू की गयी। अपराधी व्यक्ति की क्रूरता को ध्यान में रखकर उसके अपराध की सजा उम्रकैद या मौत की सजा में मुकम्मल की जाने लगी। आगे चलकर कानून में बदलाव होते रहे और 1973 में गंभीर आपराधिक मामलों में कुछ संशोधन किया गया। सत्र के नयायधीश ने अपराधी को उम्रकैद या मौत की सजा का प्रावधान रखा गया। किसी विशेष मामले में ही मौत की सजा का प्रावधान रखा गया है।
मृत्युदंड के कुछ सकारात्मक पहलू
हम सभी को पता है कि अपराधी को दी जाने वाली मृत्युदंड की सजा सबसे आखिरी और शीर्ष सजा है। कोई भी अपराध करने वाला व्यक्ति कानून का अपराधी होता है, और उसे उसके अपराधों की सजा दी जाती है। किसी व्यक्ति को उसके अपराधों की सजा मृत्युदंड दी जाती है तो उसका अपराध भी उच्च किस्म का होगा जो की जनता और सामाज के लिए नुकसानदायी साबित होगा।
कुछ विशेषज्ञों का तो यह मानना है की मृत्युदंड को लेकर समाज में यह धारणा भी प्रदर्शित होती हैं कि बुरे के साथ हमेशा बुरा और अच्छे के साथ हमेशा ही अच्छा होता है। मृत्युदंड दिए जाने के कुछ सकारात्मक पहलू को हम निचे के निबंध में जानेंगे-
किसी भी अपराधी को उसके द्वारा किये गए जघन्य अपराध के लिए उसको मृत्युदंड की सजा दी जाती है। इस प्रकार की सजा से समाज के अपराधियों और समाज को एक सन्देश जाता है कि हमें इस तरह का अपराध नहीं करना चाहिए। समाज के अपराधियों और लोगों को एक सन्देश और उनके मन में एक डर पैदा हो जाता है।
मृत्युदंड की सजा देने से अपराधियों के मन में यह बात बैठ जाती है कि अगर हम किसी के जीवन को नष्ट करे या उसके जीवन को किसी भी तरह का नुकसान पहुचाये तो हमे इसकी सजा मृत्युदंड के रूप में मिलेगी। इस सजा का डर उनकी आपराधिक घटनाओं पर लगाम लगाने का कार्य करती है।
किसी भी अपराधी के द्वारा किये गए ऐसे जघन्य अपराध की सजा पीड़ित के साथ-साथ उसके परिवार को भी मिलती है। जैसे कि बलात्कार, हत्या, बाल्य यौन शोषण, इत्यादि जैसे जघन्य अपराध की सजा पीड़ित और उसके सारें परिवार को भुगतनी पड़ती हैं। इस प्रकार के अपराध के लिए जब किसी अपराधी को मृत्युदंड की सजा मिलती है, तो पीड़ित के साथ-साथ उसके परिवार को भी न्याय मिलता है। पीड़िता के परिवार के मन में एक संतोष का भाव होता है और वो अपनी जीवन में सकारात्मकता के साथ आगे बढ़ सकते है।
इस बात का उदाहरण निर्भया के बलात्कार के न्याय के रूप में मिलती हैं। जिसके साथ बलात्कार कर उसे जान से मार दिया गया था। और एक लम्बे समय के इंतिजार के बाद हाल ही के दिनों में दोषियों को फांसी की सजा दी गई थी। जिससे की उसके परिवार को न्याय और न्याय के प्रति उनका भरोसा भी कायम रहा और उनके मन में एक संतोष की भावना है।
मृत्युदंड की सजा से समाज के क्रूर और ऐसे अवांछित अपराधियों का अंत होता है, जो की ऐसे जघन्य अपराधों को अंजाम देते है या ऐसे अपराधों की कल्पना करते है। मृत्युदंड की सजा उन सभी का अंत करती है, जो अपराधी होते है और जो इस प्रकार की आपराधिक सोच को रखते है। किसी अपराधी को ऐसे जघन्य अपराध के लिए यदि उन्हें मृत्युदंड न देकर उन्हें आजीवन कारावास की सजा सुनाई जाती है, तो ऐसे अपराधी जेल के भीतर रहकर जेल के अंदर या बहार के लोगों को नुकसान पंहुचा सकते है। जिससे की ऐसे आपराधिक मामलों को बढ़ावा भी मिलता है।
ऐस अपराधियों को जेल में रखने से हमारी सरकार को भी नुकसान होता है। उनके ऊपर हमारे समाज के अन्य कार्यों को लिए दिए गए पैसों का नुकसान भी होता है। ऐसे अपराधियों को मृत्युदंड न देकर उन्हें जेल में रखने से इस प्रकार की आपराधिक प्रवृत्ति रखने वाले अपराधियों के मन से डर ख़त्म हो जाता है और समाज में वे आये दिन ऐसी आपराधिक घटनाओं को अंजाम देने का काम करते है।
मृत्युदण्ड के पक्ष में कुछ सकारात्मक तथ्य
कुछ नकारात्मक पहलू
क्या मृत्युदंड आपराधिक घटनाओं को कम करने का प्रभावी तरीका है?
मृत्युदंड की सजा सदा ही चर्चा का विषय रहा है। लेकिन सबसे महत्वपूर्ण मुद्दा यह है की ऐसे जघन्य अपराध के लिए मृत्युदंड ही उत्तम सजा है, इससे इस तरह की आपराधिक घटनाये कम हो सकती है। उन अपराधियों को मृत्युदंड की सजा देना समाज के पीड़ितों के लिए अंतिम और उचित न्याय है। मृत्युदंड की सजा लगभग हर देशों में प्राचीन काल से चली आ रही है। कुछ देशों ने अपने कानून में बदलाव कर मृत्युदंड की सजा को समाप्त कर दिया है। मृत्युदंड की सजा आपराधिक घटनाओं को कम करने में कारगर साबित हो सकती है। यदि हमारे संविधान में इसे सख्ती से लागू किया जाये, और पक्षकार और विपक्षकार इसमें अपना सहयोग दें।
कभी-कभी हमें इस बात से हैरानी होती है कि हमारे कानून में इस प्रकार की सजा के बावजूद भी ऐसी आपराधिक घटनाये बार-बार होती है। इसका श्रेय मैं मृत्युदंड के विपक्षकारों को देना चाहता हूँ। किसी भी अपराधी को उसके क्रूर अपराध के लिए सजा दी जाती है, जो की मानव और समाज हित के लिए होती है। उसके लिए आप पछतावा न करें, बल्कि उन अपराधियों को पछताने दे जो ऐसे काम करते है और ऐसा करने की सोंच रखतें हैं।
बढ़ते अपराध और कुछ तथ्य बताते है की इतनी कठोर सजा होने में बाद भी आपराधिक मामलों में कमी देखने को नहीं मिलती है। इसके लिए न्याय प्रक्रिया और हमारा कानून जिम्मेदार है। अगर लोगों में मृत्युदंड का भय होता तो वो ऐसे अपराध कभी नहीं करते और हमारे देश के क़ानून को भी चाहिए कि इसे सख्ती के साथ लागू करें।
कोई भी अपराधी अपराध करने से पहले नहीं सोचता है, इस तरह का अपराध वो या तो गुस्से में करता है या बदले की भावना से करता है। जो एक जघन्य अपराध है। इसके लिए हमारे कानून को सख्ती से लागू करने और ऐसे अपराधों में अपराध साबित होने पर त्वरित कार्यवाही करने की आवश्यकता है। हमारे संविधान में ऐसे कार्य करने की सजा और इस क्रूर अपराध को न करने के लिए लोगों में जागरूकता लानी होगी, जिससे ऐसे अपराधों को खत्म किया जा सकें।
निष्कर्ष
मृत्युदंड की सजा क्रूर अपराध और असाधारण अपराध करने वालों के लिए सर्वोत्तम सजा के रूप में है। दुनिया की सारी सभ्यताओं में ही इसका प्रचलन रहा है। आदिकाल से ही मृत्युदण्ड की सजा यातनाओं और दर्दनाक होता था। वर्त्तमान समय के संविधान प्रणाली और कानून व्यवस्था में एक महत्वपूर्ण बदलाव की आवश्यकता है, ताकि दोषियों की सजा मिलें और ऐसे विचार रखने वालों के मन में डर पैदा हो सकें और इस प्रकार के अपराधों से हमारे समाज को मुक्ति मिलें।