गुरू और शिष्य की जोड़ी तो सदियों से चली आ रही है। जिस प्रकार से भक्त भगवान के बिना और भगवान भक्त के बिना अधूरा है, उसी प्रकार से एक शिष्य अपने गुरू के बिना और गुरू अपने शिष्य के बिना अधूरा है। सदियों से चली आ रही गुरू शिष्य की इस परंपरा को बिना किसी रुकावट के जारी रखने के लिए ही गुरू पूर्णिमा को बड़े ही हर्षोल्लास से मनाया जाता है। गुरू पूर्णिमा के महत्व और इससे जुड़े इतिहास के बारे में आज हम सभी इस निबंध के माध्यम से जानेंगे।
क्या गुरू पूर्णिमा एक पर्व है पर दीर्घ निबंध (Long Essay on Is Guru Purnima a Festival in Hindi, Kya Guru Purnima Ek Parv hai par Nibandh Hindi mein)
1200 Word Essay
प्रस्तावना
एक शिष्य के जीवन में जितना महत्व उसके लक्ष्य और सफलता का है उससे कहीं ज्यादा महत्व उसको सफलता तक पहुँचने वाले उसके गुरू का है। एक गुरू के बिना किसी भी शिष्य के बेहतर भविष्य की कल्पना करना जल के बगैर जीवन की कल्पना करने जैसा ही है। एक विद्यार्थी के जीवन में उसके गुरू के इसी महत्व की याद बरकरार रखने के लिए ही हर वर्ष गुरू पूर्णिमा मनाया जाता है। प्राचीन काल से ही गुरूओं ने अपने शिष्यों के लिए जिस प्रेम का उदाहरण स्थापित किया है वो सच मुच में पूजनीय है। गुरूओं के, अपने शिष्यों के प्रति, इसी स्नेह को सम्मान देने के लिए ही गुरूपूर्णिमा का आयोजन सभी विद्यालयों और गुरूकुलों में बड़े ही धूम धाम से किया जाता है।
गुरू पूर्णिमा क्या है? (What is Guru Purnima?)
हिन्दू पंचांग के आषाढ़ महीने की पूर्णिमा को मनाया जाने वाला यह दिवस सभी गुरूजनों को समर्पित है। भारत, नेपाल तथा भूटान जैसे देशों में हिन्दू, बौद्ध और जैन धर्मों के लोग इसे अपने आध्यात्मिक और अकादमिक गुरूजनों के सम्मान में एक उत्सव की तरह मानते है। आषाढ़ महीने की पूर्णिमा को हिन्दू, बौद्ध और जैन धर्मों के अनुयायी अपने गुरूजनों की पूजा करते हैं तथा उनके सहयोग और शिक्षा दान के लिए उनका धन्यवाद भी करते हैं। वर्षा ऋतु की शुरुआत में ही गुरू पूर्णिमा का आयोजन होता है क्योंकि प्राचीन समय में इस दिन से आगे के चार महीनों तक साधु-संत एक ही जगह एकत्रित होकर अपने अपने ज्ञान से शिष्यों को तृप्त करते थें। इन्हीं चार महीनों को गरुजनों द्वारा अध्ययन के लिए सर्वश्रेष्ठ बताया गया है, क्योंकि इन दिनों न ही ज्यादा गर्मी और न ही ज्यादा ठंडी होती है।
गुरू पूर्णिमा शिक्षकों से कैसे संबंधित है? (How Guru Purnima is related to Teachers?)
महाभारत के रचनाकार कृष्ण द्वैपायन व्यास का जन्म भी इसी गुरू पूर्णिमा को पड़ता है। उन्होंने अपने समय के सभी वैदिक भजनों को इकठ्ठा करके उनके विशेषताओं और संस्कारों के उपयोग के आधार पर चार भागों (ऋग, यजुर, साम और अथर्व) में विभाजित किया। इन्होंने अपने चार प्रमुख शिष्यों (पैला, वैशम्पायन, जैमिनी तथा सुमंतु) को इन चार वेदों की शिक्षा देकर गुरू शिष्य के परंपरा की शुरुआत की थी। इसी कारण इन्हें वेद व्यास और गुरू पूर्णिमा को व्यास पूर्णिमा के नाम से भी जाना जाता है।
हमारे राष्ट्रपिता महात्मा गाँधी ने भी अपने आध्यात्मिक गुरू श्रीमद राजचन्द्र को सम्मान देने के लिए इस उत्सव को पुनर्जीवित किया था। कबीरदास के शिष्य संत घिसादास का जन्म भी इसी आषाढ़ महीने की पूर्णिमा को ही माना जाता है। शास्त्रों में गुरू शब्द का अर्थ “अंधकार को मिटाने वाला” बताया गया है जिसमें गु का अर्थ अंधकार तथा रू का अर्थ उसके हर्ता के रूप में बताया गया है। अर्थात गुरू वो है जो अज्ञानता के अंधेरों से ज्ञान के उजालों की तरफ ले जाए। संस्कृत के इस श्लोक की मदद से हमें गुरू की परिभाषा भी स्पष्ट हो जाएगी-
प्रेरकः सूचकश्वैव वाचको दर्शकस्तथा।
शिक्षको बोधकश्चैव षडेते गुरवः स्मृताः।।
भावार्थ: – प्रेरणा दाता, सूचना दाता, सत्य बताने वाले, सही मार्ग दिखाने वाले, शिक्षा देने वाले और ज्ञान का बोध कराने वाले – ये सब गुरू तुल्य हैं।
भगवान बुद्ध ज्ञान प्राप्ति के 5 सप्ताह बाद इसी आषाढ़ के महीने में सारनाथ में अपने पाँच शिष्यों को धर्मचक्र प्रवर्तन की शिक्षा देकर बौद्ध धर्म के भिक्षु संघ की शुरुआत की थी। जैन धर्म के 24वें तीर्थंकर महावीर स्वामी ने कैवल्य प्राप्ति के बाद इंद्रभूति गौतम, जिन्हें बद में गौतम स्वामी के नाम से जाना गया, को अपने पहले शिष्य के रूप में शिक्षा दिया था। उसके बाद से ही महावीर स्वामी त्रीणोक गुहा के रूप में सामने आएं और जैन धर्म में इसे त्रीणोक गुहा पूर्णिमा के नाम से भी जाना गया।
गुरू पूर्णिमा कैसे मनाया जाता है? (How Guru Purnima is Celebrated?)
प्रत्येक वर्ष आषाढ़ महीने की पूर्णिमा को भारत, नेपाल और भूटान जैसे देशों में हिन्दू, जैन तथा बौद्ध धर्मों के अनुयायियों द्वारा अपने गुरूजनों की तस्वीरों और मूर्तियों का माल्यार्पण किया जाता है। विद्यालयों और गुरूकुलों के शिष्यों द्वारा अपने गुरूजनों के सम्मान में सांस्कृतिक कार्यक्रम का आयोजन किया जाता है तथा तरह तरह के उपहारों द्वारा उनको सम्मानित किया जाता है। बहुत से शिक्षा के मंदिरों में तो इसे एक पर्व की तरह बड़े ही धूमधाम से मनाया जाता है। गुरू पूर्णिमा का दिन सभी के लिए अपने गुरूजनों को पूजने का दिन है।
त्रीणोक गुहा नेपाल के स्कूलों में एक उत्सव समान है या ऐसे कहना भी बिल्कुल गलत नहीं होगा कि इस दिन को नेपाल में शिक्षक दिवस के रूप में मनाया जाता है। इस दिन नेपाल के स्कूलों में अपने शिष्यों के लिए शिक्षकों द्वारा किए गए परिश्रम के लिए उन्हें धन्यवाद दिया जाता है तथा तरह तरह के व्याजनों, मालाओं और टोपियों से उनका सम्मान किया जाता है। यह दिन गुरू और शिष्य के बीच के रिश्ते को और गहरा बनाता है तथा दोनों के जीवन में एक दूसरे का महत्व समझाता है।
क्या गुरू पूर्णिमा एक राष्ट्रीय अवकाश है? (Is Guru Purnima a National Holiday?)
शिक्षा, खेलकूद, नृत्य, गायन, प्रौधोगिकी, व्यवसाय जैसे हर क्षेत्रों अलग अलग गुरूओं ने अपनी ज्ञान की आभा बिखेरी है। ऐसे तमाम गुरूजनों के सम्मान में घोषित इस दिन को पूरे भारत वर्ष में राष्ट्रिय अवकाश रहता है। इस दिन सरकारी कार्यालयों समेत कई व्यवसाय भी बंद रहते हैं और सभी लोग अपने अपने गुरूओं को याद करके उनके सम्मान में तरह तरह के कार्यक्रम आयोजित करते हैं। विदेशों में भी हिन्दू, जैन तथा बौद्ध बाहुल्य क्षेत्रों में इस पर्व को मनाने के लिए अवकाश का प्रावधान है।
गुरू पूर्णिमा एक पर्व कैसे है? (How Guru Purnima is a Festival?)
किसी भी क्षेत्र में सफलता हासिल करने के लिए दुनियां के प्रत्येक शिष्यों को किसी न किसी गुरू की आवश्यकता जरूर पड़ती है, बिना गुरू के सफलता तक पहुंचना बिना परों के आसमान में उड़ने के समान है। गुरू के इसी महत्व और स्नेह की खुशी को जाहीर करने के लिए गुरू पूर्णिमा को एक पर्व की तरह मनाया जाने लगा। समय समय पर अनेक गुरूओं ने अपने शिष्यों के भविष्य के लिए आश्चर्यजनक त्याग किए हैं। उनके इसी बलिदान को सराहने के लिए प्राचीन समय से ही उनके शिष्य उनके लिए सम्मान समारोह का आयोजन करते आए हैं जो धीरे धीरे आगे चलकर गुरू पूर्णिमा के पर्व के रूप में सामने आया।
निष्कर्ष
जीवन में हम किसी भी ऊंचाईयों तक क्यों न पहुँच जाएं, भले ही हम असंभव से असंभव लक्ष्य को क्यों न प्राप्त कर लें परंतु उस सफलता के पीछे के उन गुरूजनों को कभी नहीं भूलना चाहिए जिनकी मदद से यह असंभव कार्य संभव हो पाया है। उन शिक्षकों, उन बड़ों, उन पड़ोसियों का हमें सदैव आभारी रहना चाहिए जिन्होंने हमको हमारे लक्ष्य तक पहुँचने में अपना योगदान दिया है। प्रत्येक वर्ष गुरू पूर्णिमा पर हमें अपने गुरूजनों को ईश्वर तुल्य सम्मानित करना चाहिए और उन्हें इस बात का धन्यवाद करना चाहिए कि आज हम अपने जीवन में जो कुछ भी हैं, सब उन्हीं की बदौलत है। हमारे जीवन में गुरू के महत्व को समझने के लिए संस्कृत का यह श्लोक पर्याप्त है-
किमत्र बहुनोक्तेन शास्त्रकोटि शतेन च।
दुर्लभा चित्त विश्रान्तिः विना गुरूकृपां परम्।।
भावार्थ: – बहुत कुछ कहने से क्या लाभ? करोडों शास्त्रों के होने से भी क्या लाभ? क्योंकि चित्त की परम् शांति तो गुरू के बिना मिलना कठिन है।
FAQs: Frequently Asked Questions
उत्तर – गुरू पूर्णिमा प्रत्येक वर्ष आषाढ़ महीने की पूर्णिमा पर मनाया जाता है।
उत्तर – गुरू पूर्णिमा को व्यास पूर्णिमा और त्रीणोक पूर्णिमा के नाम से जाना जाता है।
उत्तर – गुरू पूर्णिमा गुरू वेद व्यास के जन्म दिवस के उपलक्ष में मनाया जाता है।
उत्तर – गुरू पूर्णिमा भारत, नेपाल तथा भूटान जैसे देशों में मनाया जाता है।
उत्तर – गुरू पूर्णिमा हिन्दू, जैन तथा बौद्ध धर्म के अनुयायियों द्वारा मनाया जाता है।