भारत को त्योहारो का देश कहा जाता है। क्योंकि कई धर्म समुदाय के लोग यहाँ निवास करते हैं इसलिए लगभग हर दिन कोई न कोई खास दिन या त्योहार मनाया जाता है। सभी त्योहारों का अपना महत्व होता है और लोग भी इन त्योहारों को बड़े श्रद्धा और उत्साह के साथ मनातें हैं। चुंकि त्योहारों पर लोगों को खाने को अच्छे पकवान और रोजमर्रा की जिंदगी से अवकाश भी मिलता है इसलिए लोग इसे और भी उत्साह के साथ मनाते हैं। इन्ही त्योहारो मे से एक हिन्दू त्योहार जितिया भी है जिसमे माताएं अपने बच्चों के लम्बी उम्र के लिए व्रत रखती हैं और पूजा करती हैं।
जीवित्पुत्रिका व्रत/जितिया पूजा पर दीर्घ निबंध (Long Essay on Jivitputrika Vrat/Jitiya Puja in Hindi, Jitiya Puja par Nibandh Hindi mein)
आज इस लेख के माध्यम से हम आपके लिए जितिया व्रत पर एक दीर्घ निबंध प्रस्तुत कर रहे हैं जो आपके लिए ज्ञानवर्धक होगा।
जीवित्पुत्रिका व्रत व जितिया पूजा की कहानी – 1500 शब्द
प्रस्तावना
जीवित्पुत्रिका व्रत को ही सामान्य भाषा में “जिउतिया” व्रत भी कहा जाता है। कहीं-कहीं इसे लोग “जितिया” व्रत के नाम से भी जानते हैं। इस दिन मिठाई, फल और एक ख़ास व्यंजन ‘खस्ता’ आदि का प्रसाद चढ़ाकर औरतें सांयकाल के समय किसी पोखरे, तालाब या नदी के किनारे एकत्रित होकर पूजा-पाठ करती हैं। घाटों पर पूजा करने और देखने वालों की काफी भीड़ लग जाती है जिसमे मुख्य रूप से महिलाएं ही होती हैं।
यह व्रत हिंदी कैलेंडर के तिथि के अनुसार रखा जाता है इसलिए वर्तमान में प्रचलित ग्रेगोरियन कैलेंडर में इसकी तारीख बदलती रहती है। यह व्रत आश्विन माह की कृष्णपक्ष के आठवें दिन किया जाता है।
जीवित्पुत्रिका व्रत क्या है?
जीवित्पुत्रिका व्रत पूजा हिन्दू धर्म में मनाये जाने वाला एक महत्वपूर्ण त्यौहार है जो प्रतिवर्ष माताओं द्वारा मनाया जाता है। माताएं अपने पुत्रों के लिए हर साल आश्विन महीने की कृष्णपक्ष की अष्टमी तिथि को उपवास रखती हैं और पूजा-पाठ करती हैं।
जीवित्पुत्रिका व्रत का पर्व कुल तीन दिनों तक चलता है और इसके अपने-अपने तीनो ख़ास दिन होते हैं। पहला दिन आश्विन महीने की सप्तमी को मनाया जाता है जिसे नहाई-खायी के नाम से जाना जाता है। नहाई-खायी के दिन महिलायें सुबह-सुबह ही स्नान करके सात्विक भोजन करती हैं और सूरज डूबने के साथ ही व्रत की शुरुआत हो जाती है। अगले दिन मुख्य जीवित्पुत्रिका व्रत का दिन होता है और माताएं इस दिन भोजन पानी के बिना कठिन उपवास रखती हैं और शाम के समय में किसी धार्मिक स्थान या नदी-तालाब के घाट पर सामूहिक रूप से पूजा-अर्चना का कार्य करती हैं। व्रत के अगले दिन सुबह स्नान करने के बाद पूजा आदि करके नोनी का साग, मरुआ की रोटी और तोरी की सब्जी खाकर व्रत खोला जाता है।
जितिया (जिउतिया) क्या है?
जीवित्पुत्रिका व्रत में माताएं गले में एक माला पहनती हैं जो पीले और लाल रंग से बना हुआ रेशम का धागा होता है। इस धागे में अपने पुत्रों के नाम से सोने व चांदी के बेलनाकार छल्ले होते हैं जिसे जितिया या जिउतिया कहा जाता है। यह धातु के छल्ले भगवान जिउतवाहन का प्रतीक होते हैं। यह माला इस व्रत पूजा में बड़ा ही महत्व रखता है और पीढ़ी दर पीढ़ी विरासत के रूप में ऐसे ही चला आता है। समय-समय पर इसका धागा बदल दिया जाता है और धातु से बने देवताओं को गंगाजल से स्नान कराकर धागे में पिरो दिया जाता है। परिवार में जब भी कोई पुत्र होता है तो धागे में एक और धातु के देवता को बढ़ा दिया जाता है।
हम जितिया (जिउतिया) का पर्व क्यों मनाते हैं?
यह व्रत एक माँ द्वारा अपने पुत्र की लंबी आयु और स्वस्थ जीवन का वरदान प्राप्त करने के लिए किया जाता है। मुख्य रूप से यह व्रत सुहागिन माताएं करती हैं और ऐसी महिलायें जिन्हे संतान नहीं है वो भी संतान प्राप्ति की इच्छा से जीवित्पुत्रिका व्रत करती हैं। कठिन तपस्या करके माताएं अपनी संतान के लिए व्रत रखती हैं और भगवान से बच्चों के लिए आशीर्वाद की कामना करती हैं।
जितिया व्रत के आरम्भ का इतिहास (जितिया व्रत की कहानी)
जितिया व्रत बहुत पहले से मनाया जा रहा है। ऐसा माना जाता है की जीवित्पुत्रिका व्रत का संबंध महाभारत के समय से है। कहते हैं की महाभारत युद्ध में जब द्रोणाचार्य को मारा गया तो उनके पुत्र अश्वत्थामा ने क्रोध में आकर अभिमन्यू की पत्नी उत्तरा के पेट में पल रहे बच्चे को मारने के लिए ब्रम्हास्त्र का इस्तेमाल कर दिया। इस विकट परिस्थिति में भगवान श्री कृष्ण ने अपने जीवन के सारे पूण्य उस शिशु को देकर उसे जीवनदान दे दिया जिसके फलस्वरूप वह ब्रम्हास्त्र से मरने के बाद भी जीवित हो गया। अतः आगे चलकर माताओं द्वारा अपने पुत्र की रक्षा के लिए जीवित्पुत्रिका का व्रत किया जाने लगा ताकि भगवान श्री कृष्ण उनके संतान की रक्षा करें।
जितिया (जिउतिया) पूजा में हम किस भगवन की पूजा करते हैं?
जीवित्पुत्रिका व्रत की कथाओं के अनुसार व्रत के दिन महिलाएं भगवान जिउतवाहन की पूजा की जाती है। भगवान जिउतवाहन के साथ-साथ देवी और भगवान श्री कृष्ण की आराधना की जाती है। अपनी संतान के जीवन की सभी बाधाओं को समाप्त करने और उनके उज्जवल भविष्य के लिए माताएं भगवान से प्रार्थना करती हैं।
जितिया व्रत कथा
जितिया व्रत में महिलायें एक समूह में बैठती हैं और एक साथ भगवान की आराधना करती हैं। सभी उपवासों में उससे संबंधित कथा कही जाती है जो व्रत का महत्व बताती है। इसी प्रकार से जीवित्पुत्रिका व्रत की भी बड़ी ही अद्भुत कथा है जो हमें इस व्रत के महत्व को समझाती है। कई स्थानों पर अलग-अलग कथाओं द्वारा यह व्रत किया जाता है जो निम्नलिखित हैं-
1) पहली कथा संबंधित है एक चील और एक सियारिन से। एक समय की बात है एक चील एक पाकड़ के पेड़ पर रहती थी और उसी पेड़ के कोटर में एक सियारिन रहती थी। दोनों में बड़ी मित्रता थी। एक बार दोनों ने कुछ महिलाओं को व्रत और पूजा पाठ करते देखा और संकल्प लिया की अब वो भी ये व्रत और पूजा करेंगे। व्रत के दिन वहीँ पेड़ के करीब एक व्यक्ति का दाह संस्कार हो रहा था। जब सारे लोग चले गए तब सियारिन ने भूख के मारे वहाँ पड़े शरीर के टुकडो को खा लिया परन्तु चील ने अपना व्रत विधिपूर्वक किया।
अगले जन्म में उन दोनों ने एक ही घर में बहन के रूप में जन्म लिया। चील का जन्म बड़ी बहन के रूप में हुआ जिसका नाम शीलवती था जिसका विवाह बुद्धसेन नामक युवक से हुआ और सियारिन छोटी बहन कपुरावती थी जिसका विवाह राज्य के राजा के साथ हुआ। विवाह के बाद शीलवती को सात पुत्र हुए जो बड़े होकर राजा के दरबार में काम करने लगे। परन्तु कपुरावती के बच्चे जन्म के कुछ समय बाद ही मर जाते थें। कपुरावती ने राजा से कहलाकर उन सातो पुत्रों का सर कटवा दिया और एक थाली में रखवा कर अपनी बहन शीलवती को भिजवा दिया परन्तु पिछले जन्म के व्रत से खुश भगवान जिउतवाहन ने उन सातो पुत्रों को जीवित कर दिया और थाली में रखे उनके सर को फल और व्यंजनों में परिवर्तित कर दिया। कपुरावती बच्चों को जिन्दा देखकर पछताने लगी और बड़ी बहन को अपने कृत्य के बारे में बताया।
उसी समय भगवान जिउतवाहन की कृपा से शीलवती को सब याद आ जाता है और शीलवती अपनी छोटी बहन को उसी पाकड़ के पेड़ के पास लेकर जाती है और सब याद दिलाती है। सब याद आने के बाद कपुरावती वहीँ गिर कर मर जाती है। इस प्रकार इस व्रत के महत्व को यह कथा अच्छी तरह से समझाती है।
2) दूसरी कथा के अनुसार एक समय गन्धर्वों के एक राजा थें जिनका नाम जिउतवाहन था। जिउतवाहन को बड़ी कम आयु में ही सत्ता मिल गयी थी और उन्होंने काफी समय तक राज्य का कार्यभार संभालने के बाद यह निर्णय लिया की अब वे राजपाठ छोड़ कर अपने पिता की सेवा करेंगे जिसके लिए उन्होंने अपना राज्य अपने भाइयों को सौप दिया और स्वयं पिता की सेवा के लिए जंगल में जाकर रहने लगे।
एक बार जिउतवाहन जंगल में भ्रमण कर रहे थें तो उन्हें एक औरत के रोने की आवाज सुनाई दी। जब वह देखने गए तो देखें की एक बूढ़ी औरत रो रही थी। जिउतवाहन ने उससे रोने का कारण पूछा तो उसने बताया की वो नागवंश से है और एक समझौते के मुताबिक उन्हें प्रतिदिन एक नागवंशी बच्चे को पक्षीराज गरुण को भोजन के लिए देना होता है और आज उसके बच्चे की बारी है। यह सब बता कर वो औरत रोने लगी और कहने लगी की वह उसका एकलौता बेटा है और उसके बाद उसके जीने का कोई सहारा नहीं बचेगा। यह सुन कर राजा जिउतवाहन द्रवित हो गए और उन्होंने उस औरत से वादा किया की वह उनके बच्चे को बचायेंगे।
वे स्वयं को एक लाल कपडे में लपेटकर उस स्थान पर लेट गए जहाँ पर गरुणराज के लिए बच्चों को रखा जाता था। गरुणराज आये और उन्हें अपने पंजे में दबा कर अपने भोजन के स्थान पर लाकर रखा और जब उनपर नाख़ून मारा तो जिउतवाहन ने कोई प्रतिक्रिया नहीं दी। ऐसा पहली बार हुआ था कि अपने शिकार से उन्हें कोई प्रतिक्रिया नहीं मिली इसलिए पक्षीराज गरुण ने जब कपड़ा हटा कर देखा और जिउतवाहन से उनका परिचय पूछा तो उन्होंने सारी कहानी बता दी। जिउतवाहन के इस बलिदान से प्रसन्न होकर पक्षीराज गरुण ने उनसे वादा किया कि अब से वह किसी नागवंशी बच्चे का बलिदान नहीं लेंगे।
इस प्रकार से आगे चलकर भगवान जिउतवाहन की पूजा की जाने लगी। उनके आशीर्वाद से जीवित्पुत्रिका व्रत रखने से माताओं के बच्चों की सभी समस्याएं समाप्त हो जाती है।
जितिया व्रत का महत्व
कहते हैं कि जब ईश्वर को सच्चे मन से पूजते हैं तो अवश्य ही वो हमारी इच्छाओं को पूरा करते हैं। जीवित्पुत्रिका व्रत के लिए भी लोगों की धार्मिक मान्यता है कि यह उपवास रखने और भगवान जिउतवाहन की पूजा करने से उनके बच्चों को स्वस्थ और लम्बी आयु का जीवन मिलेगा। व्रतपूजा में बड़े-बड़े थालों में प्रसाद सजाये जाते हैं और घर के पुरुष इन थालों को कंधे पर लेकर पूजा स्थल तक जाते हैं। ऐसा कहा जाता है कि इन थालों को सर पर तब तक नहीं रख सकते हैं जब तक की ये प्रसाद भगवान को चढ़ाकर पूजा संपन्न न हो जाये। इस कठिन व्रत को रखने में माताओं का साथ उनके बच्चे और घर के पुरुष देते हैं।
कहते हैं कि भगवान श्रीकृष्ण ने जिस तरह से उत्तरा के बच्चे को बचाया था उसी तरह से व्रत रखने वाली माताओं के बच्चों की भी रक्षा भगवान श्री कृष्ण करते हैं। महिलायें बड़ी ही श्रद्धा भाव से इस व्रत को करती हैं।
निष्कर्ष
सभी को अपने बच्चों से प्यार और स्नेह रहता है। एक माँ का दिल सबसे बड़ा होता है और वो हमेशा ही अपने बच्चों की ख़ुशी के लिए प्रयासरत्न रहती है। भारत के उत्तरी भाग के राज्यों में और नेपाल के वो राज्य जहाँ अधिकतर लोग भोजपुरी बोलते हैं, यह जीवित्पुत्रिका का व्रत किया जाता है। माताएं अपने बच्चों के लिए एक समूह में इकठ्ठा होकर पूजा करती हैं जो समूह की महिलाओं में भी एकता लाता है। इस पूजा के फलस्वरूप भगवान जिउतवाहन और भगवान श्री कृष्ण की कृपा मिलती है।
FAQs: Frequently Asked Questions on Jitiya Puja in Hindi
उत्तर – यह विक्रम सम्वंत के आश्विन महीने की कृष्णपक्ष की अष्टमी को रखा जाता है।
उत्तर – वर्ष 2021 में 29 सितम्बर के दिन जीवित्पुत्रिका व्रत करने का शुभ अवसर है।
उत्तर – जिउतिया या जीवित्पुत्रिका का व्रत भारत के अलावा नेपाल में मनाया जाता है।
उत्तर – माताएं अपने पुत्र के लम्बी आयु के लिए जितिया व्रत रखती हैं।