धरातल पर रहने वाले सभी प्राणियों को जीवित रहने तथा अपने दैनिक कार्यों को पूरा करने के लिए ऊर्जा की आवश्यकता होती है। यह ऊर्जा उन्हें उनके आहार द्वारा मिलती है, परन्तु जब उनके आहार में लम्बे समय तक आवश्यक पोषक तत्वों की कमी बनी रहती है तो उनका शारीरिक एवं मानसिक विकास ठीक से नहीं हो पाता। तथा उनका प्रतिरक्षा तंत्र भी कमजोर पड़ जाता है, जिसके कारण वो कई बीमारियों व कुपोषण के शिकार हो जाते हैं। भारत में कुपोषण एक बहुत ही विकट रूप धारण करता जा रहा है, जिसको नियंत्रित करने के सारे प्रयास निरर्थक होते जा रहे हैं।
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आज मैं ‘भारत में कुपोषण’ विषय पर निबंध के माध्यम से आप लोगों को कुपोषण के बारे में बताऊँगा, मुझे पूर्ण आशा है कि ये निबंध आप लोगों के लिए बहुत उपयोगी होगा। इसमें हम कुपोषण के सभी पहलुओं पर चर्चा करेंगे, जो वर्तमान में चर्चित है तथा जो आप के परीक्षा की दृष्टि से भी महत्वपूर्ण हैं।
प्रस्तावना
हमारा शरीर स्वस्थ रहने तथा दैनिक कार्यों के लिए भोजन से ऊर्जा एवं पोषक तत्व (जैसे-प्रोटीन, वसा, विटामिन, कार्बोहाइड्रेट तथा खनिजों) प्राप्त करता है लेकिन जब हम भोजन एवं पौष्टिक पदार्थों का सेवन अनियमित एवं अव्यवस्थित रूप से करने लगते हैं तो हमारे शरीर को पूर्ण पोषण नहीं मिल पाता और हम कुपोषण के शिकार हो जाते हैं।
कुपोषण के कारण
कुपोषण के कुछ प्रमुख कारण निम्नलिखित हैं-
कुपोषण के प्रकार
मानव शरीर में उपस्थित पोषक तत्वों के आधार पर कुपोषण को दो भागों में बांटा जा सकता है
अल्प पोषण में मानव शरीर में एक या फिर एक से अधिक पोषक तत्वों की कमी हो जाती है।
पोषक तत्वों की अधिकता के कारण मानव शरीर में उत्पन्न विकृतियाँ (जैसे- पेट का बाहर आना, इत्यादि), अति पोषण को परिभाषित करती है।
बच्चों में कुपोषण के लक्षण
विश्व स्वास्थ्य संगठन तथा यूनिसेफ ने कुपोषण के पहचान के लिए निम्नलिखित तीन लक्षणों को मुख्य माना है-
निष्कर्ष
कंसर्न वर्ल्डवाइड और वेल्थुंगरहिल्फ द्वारा मिलकर प्रकाशित वैश्विक भुखमरी सूचकांक 2021 में भारत का स्थान 101वाँ (कुल 116 देशों में) है जो स्पष्ट करता है कि भारत की एक बहुत बड़ी आबादी को दो वक़्तका रोटी भी नसीब नहीं होता है जिसके चलते वो कुपोषण से पीड़ित है। हालांकि भारत सरकार एवं राज्य सरकारों द्वारा अनेक योजनाएं बनाकर इसे नियंत्रित करने का प्रयास किया जा रहा है मगर वैश्विक भुखमरी सूचकांक एक अलग ही चित्र प्रदर्शित करता है। 2020 में वैश्विक भुखमरी सूचकांक में भारत 94वें स्थान पर था, मगर 2021 में इसका स्थान बढ़कर 101वाँ हो गया है।
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प्रस्तावना (कुपोषण का अर्थ)
सामान्य शब्दों में कहें तो कुपोषण का संबंध शरीर में पोषक तत्वों की कमी या अधिकता से होता है अर्थात एक लम्बे समय तक असंतुलित आहार के सेवन से शरीर में होने वाले पोषक तत्वों की कमी या अधिकता को कुपोषण कहते हैं। कुपोषण के चलते बच्चों का प्रतिरक्षा तंत्र कमजोर हो जाता है जिसके कारण वे कई बीमारियों के चपेट में आ जाते है।
बच्चों में कुपोषण के प्रकार
विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुसार बच्चों में निम्नलिखित चार (4) प्रकार के कुपोषण होते हैं-
यह समस्या बच्चों में अक्सर किसी बीमारी या इन्फेक्शन के बाद देखने को मिलती है इसमें अचानक से शरीर में पोषक तत्वों की कमी हो जाती है जिससे उनका शारीरिक विकास (जैसे-वजन) बाधित हो जाता है।
यह समस्या शिशु में भ्रूणावस्था के दौरान ही माता के खान-पान में हुई कमियों के कारण हो जाती है और इसका दृश्य प्रभाव शिशु के दो वर्ष का होते-होते दिखने लगता है। इस समस्या के कारण बच्चों के लम्बाई में पूर्ण रूप से विकास नहीं हो पाता है।
यह समस्या बच्चों में तब देखने को मिलती है जब उनमें किसी विशिष्ट पोषक तत्व की अधिकता हो जाती है। जैसे- वसा की मात्रा अधिक होने पर बच्चा मोटापे का शिकार हो जाता है।
यह समस्या बच्चों में तब देखने को मिलती है जब उन्हें भोजन द्वारा पर्याप्त मात्रा में पोषक तत्व नहीं मिल पाता है, इन पोषक तत्वों की कमी से उनका शारीरिक विकास धीमा पड़ जाता है।
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विटामिन कुपोषण से होने वाले रोगों के लक्षण
कुपोषण एक बहुत घातक समस्या है जो मानव शरीर में असंख्य रोगों का कारण हो सकता है। कुपोषण जनित रोगों के कुछ मुख्य लक्षण निम्नलिखित है-
कुपोषण की रोकथाम के उपाय
कुपोषण के रोकथाम के लिए निम्नलिखित उपाय किये जा सकते हैं-
भारत में कुपोषण की स्थिति/आंकड़े 2021
कुपोषण जनित रोग
कुपोषण का अर्थ होता है शरीर में पोषक तत्वों की कमी और जब शरीर में पोषक तत्वों की कमी हो जाती है तो शरीर रोगों से ग्रसित हो जाता है। कुपोषण जनित रोग खासकर बच्चों एवं महिलाओं में ज्यादा होता है। कुपोषण जनित कुछ रोग निम्नलिखित है-
यह बीमारी प्रोटीन एवं ऊर्जा की कमी के कारण होता है, इस बीमारी मेंशारीरिक विकास ठीक से नहीं हो पाता हैऔर शरीर में सूजन भी आ जाता है। यह बीमारी कम प्रोटीन तथा अधिक कार्बोहाइड्रेटयुक्त आहार के सेवन से होता है।
यह बीमारी भी प्रोटीन एवं ऊर्जा की कमी के कारण होता है, इस बीमारी में शरीर को आवश्यक कैलोरी की पूर्ति नहीं हो पाती जिसके कारण टिशू एवं मांसपेशियां ठीक से विकसित नहीं हो पाती।
जिंक, मल्टीविटामिन, फोलिक एसिड, विटामिन ए, कॉपर, आयरन इत्यादि जरूरी पोषक तत्वोंकी कमी से बच्चे कुपोषण के शिकार हो जाते हैं।
भारत में कुपोषण से निपटने की सरकारी पहल
कुपोषण से निपटने के लिए अनेक सरकारी योजनाएं बनाई गई है जिनमें से कुछ निम्न हैं–
इस नीति को भारत सरकार ने 1993 में स्वीकार किया था। इसमें कुपोषण से लड़ने के लिए बहु-सेक्टर संबंधी योजनाओं की सिफारिश की गई थी।
इसकी शुरुआत वर्ष 1995 में केन्द्र सरकार द्वारा की गई थी। तत्पश्चात वर्ष 2004 में इस योजना में व्यापक परिवर्तन करते हुए मेनू पर आधारित ताजा, पका हुआ एवं गर्म भोजन देना प्रारम्भ किया गया।
महिला और बाल विकास मंत्रालय द्वारा वर्ष 2019 में भारतीय पोषण कृषि कोष (BPKK) की नीव रखी गई थी। इसका उद्देश्य विविधकृषि जलवायु क्षेत्रों में बेहतर एवं विविध पोषक तत्वों से युक्त उत्पादन को प्रोत्साहित करना है।
साल 2017 में महिला एवं बाल विकास मंत्रालय द्वारा पूरे देश में कुपोषण की समस्या को संबोधित करने तथा लोगों को जागरूक करने के लिये पोषण अभियान की शुरुआत की गई थी। इसका उद्देश्य महिलाओं, किशोरियों और छोटे बच्चों में कुपोषण तथा एनीमिया के खतरे को कम करना है।
निष्कर्ष
कुपोषण सिर्फ भारत का ही नहीं अपितु पूरे विश्व की अर्थव्यवस्था का जानी दुश्मन है क्योंकि यह हमेशा मानव पूँजी पर निर्ममता से आक्रमण करके उसे तहस-नहस करने की फिराक में रहता है और मानव पूँजी किसी भी देश के अर्थव्यवस्था की रीढ़ होती है, ऐसे में सभी देश अपनी-अपनी अर्थव्यवस्था को सुधारने तथा अपने नागरिकों को बेहतर स्वास्थ्य प्रदान करने के उद्देश्य से कुपोषण से जंग लड़ रहे हैं। कुछ देश कुपोषण के प्रति अपनी स्थिति को सुदृढ़ करने में सक्षम भी सिद्ध हुए हैं परन्तु वैश्विक भूख सूचकांक के आंकड़े भारत जैसे घनी आबादी वाले देश के लिए खतरे की घंटी बजा रहे है।
उत्तर- केरल।
उत्तर- भारत सरकार द्वारा वर्ष 1993 में राष्ट्रीय पोषण नीति लागू की गई थी।
उत्तर- हर साल 1 सितंबर से 7 सितंबर तक।
उत्तर- क्वाशिओरकोर (Kwashiorkor), मरास्मस (Marasmus)।
उत्तर- वैश्विक भुखमरी सूचकांक 2021 में भारत का 101वाँ स्थान है।