हममें से अधिकतर लोगों को खेल खेलने या खेलों के प्रति रूचि अवश्य होती है। हममें से हर एक का एक पसंदीदा खिलाड़ी अवश्य ही होता है। हम अपने पसंदीदा खिलाड़ी को खेलते हुए अवश्य ही देखना चाहते हैं। हम पसंदीदा खिलाड़ी के बारे में बात करना उनसे मिलने की ख्वाहिश अवश्य ही करते है। उनके खेलने का तरीका और उन्हें अच्छा खेलता देख हमें अत्यधिक प्रेरित करता है। हम हमेशा उनके जीवन के बारे में जानने को उत्सुक रहते है, उनका इतिहास, उनकी उपलब्धियां, इत्यादि। इन सभी चीजों के बारे में जानने की दिल में उत्सुकता रहती है। खेलने के तरीके और कुछ विशेष खूबियों के कारण ही वह खिलाड़ी हमारा पसंदीदा खिलाड़ी होता हैं।
मेरा पसंदीदा खिलाड़ी पर लघु और दीर्घ निबंध (Short and Long Essays on My Favourite Sportsperson in Hindi, Mera Pasandida Khiladi par Nibandh Hindi mein)
निबंध – 1 मेरा पसंदीदा खिलाड़ी – सचिन तेंदुलकर (250 शब्द)
परिचय
हममें से ज्यादातर लोग किसी न किसी खेल को पसंद करते हैं। उनमें से अधिकतर लोगों को क्रिकेट का खेल बहुत पसंद होता हैं। हममें से कई लोग क्रिकेट खेलते भी है और टेलीविजन पर इस खेल का प्रसारण भी देखते है। जो लोग क्रिकेट के खेल को पसंद करते है उनका कोई एक पसंदीदा खिलाड़ी होता है। मुझे भी क्रिकेट का खेल पहुत पसंद है, और मेरा पसंदीदा खिलाड़ी है ‘सचिन तेंदुलकर’। क्रिकेट के प्रशंसकों में अधिकतर लोगों को सचिन तेंदुलकर बहुत पसंद है, इसलिए लोग इनहें ‘क्रिकेट का भगवान’ भी कहते है।
मेरा पसंदीदा खिलाड़ी – सचिन तेंदुलकर
सचिन तेंदुलकर का पूरा नाम ‘सचिन रमेश तेंदुलकर’ है। सचिन का जन्म 24 अप्रैल 1973 को दादर, मुंबई में हुआ था। उनके पिता एक कवि और उपन्यासकार थे, और उनकी माँ एक बीमा कंपनी में काम करती थीं। बचपन से ही सचिन की रूचि क्रिकेट में थी और 16 वर्ष की छोटी सी उम्र में ही उन्होंने भारत के लिए क्रिकेट खेलना शुरू कर दिया था। 11 साल की उम्र से ही वो घरेलु क्रिकेट में शामिल हो गए थे। उन्होंने क्रिकेट में अपना पदार्पण मैच पाकिस्तान के खिलाफ खेला था। दुनिया के सबसे सम्मानित खिलाड़ियों में उनका नाम सर्वोच्च पर हैं। उन्हें क्रिकेट जगत में “मास्टर ब्लास्टर” के नाम से भी जाना जाता है।
अपने समय के सर्वश्रेष्ठ खिलाड़ियों में उनका नाम सबसे ऊपर रखा जाता है। वो दाहिने हाथ के एक चतुर स्पिन गेंदबाज भी थे, इसलिए वो एक ऑलराउंडर खिलाड़ी के रूप में भी जाने जाते थे। एक अच्छे ईमानदार क्रिकेटर होने के अलावा वो दयालु स्वभाव के बहुत ही अच्छे इंसान हैं। उन्होंने अपने विरोधी खिलाड़ियों के साथ कभी बहस नहीं की। मैदान पर उनका व्यवहार सभी खिलाड़ियों के प्रति बहुत ही सहज होता था। क्रिकेट में उनके ईमादारी, दयालु और विनम्र स्वाभाव के कारण पूरी दुनिया में उन्हें पसंद किया जाता है। क्रिकेट खेलने वाले बच्चों की वो हर तरह से मदद भी करते है ताकि आगे चलकर वो देश के लिए खेले और देश का नाम रौशन कर सके।
सचिन तेंदुलकर ने क्रिकेट जगत में अनेकों उपलब्धियां हासिल की हैं। वे एकदिवसीय क्रिकेट में दोहरा शतक बनाने वाले पहले बल्लेबाज बने। क्रिकेट के लिए जो कुछ भी उन्होंने किया उसके लिए उन्हें 1994 में “अर्जुन पुरस्कार” से सम्मानित किया गया था। सन 1997-98 में सचिन तेंदुलकर को देश के सवश्रेष्ठ पुरस्कार “राजीव गाँधी खेल रत्न” पुरस्कार से भी सम्मानित किया गया है। सचिन तेंदुलकर को सन 1999 में ‘पद्मश्री’, 2008 में ‘पद्म विभूषण’ और 2014 में “भारत रत्न” से भी सम्मानित किया जा चूका है। अक्टूबर 2013 में टी-20 और नवंबर 2013 में अंतराष्ट्रीय क्रिकेट को उन्होंने अलविदा कह दिया।
निष्कर्ष
सचिन तेंदुलकर क्रिकेट जगत के एक महान और दिग्गज खिलाड़ी के रूप में आज भी जाने जाते हैं। आज भी वो कई युवा क्रिकेटरों के लिए आदर्श और प्रेरणा का रूप है।
निबंध – 2 मेरा पसंदीदा खिलाड़ी – साइना नेहवाल (400 शब्द)
परिचय
मुझे बैडमिंटन खेलना बहुत पसंद है। यह मेरा पसंदीदा खेल है, जिसे अक्सर मैं गर्मियों में शाम के समय और सर्दियों में भी नियमित रूप से खेलता हूँ। बैडमिंटन खिलाड़ी साइना नेहवाल मेरी पसंदीदा खिलाड़ी हैं। साइना नेहवाल खेलते हुए जिस स्फूर्ति, आत्मविश्वास और लचीलापन दिखाती है वह मुझे बहुत प्रभावित करता है।
साइना नेहवाल के बारें में
17 मार्च सन 1990 में हरियाणा के हिसार में जन्मी साइना नेहवाल एक प्रसिद्ध बैडमिंटन खिलाड़ी हैं। उनके पिता हरवीर सिंह नेहवाल अपने कालेज के दिनों में एक विश्वविद्यालय स्तर के खिलाड़ी थे। बाद में इनके पिता परिवार के साथ हैदराबाद में स्थानांतरित हो गए, और साइना नेहवाल ने हैदराबाद में ही बैडमिंटन सीखना शुरू किया। साइना नेहवाल की माँ उषा रानी नेहवाल भी एक राज्य स्तरीय बैडमिंटन खिलाड़ी थी। साइना नेहवाल अपने माँ से प्रेरित होकर बैडमिंटन खेलना शुरू किया। एक अंतरष्ट्रीय खिलाड़ी बनाने का सपना दिल में लिए उन्होंने बैडमिंटन के खेल में पदार्पण किया।
साइना नेहवाल और उनके माता-पिता को एक बैडमिंटन खिलाड़ी के रूप में प्रसिद्धि पाने के लिए कई चुनौतियों का सामना करना पड़ा। साइना को एक अच्छे खिलाड़ी के रूप में देखना और उसे आगे बढ़ाने में साइना के माता-पिता को कई कठिनाइयों का सामना करना पड़ा हैं। आर्थिक रूप से साइना के लिए उन्होंने कई बलिदान दिए है। साइना के पिता एक सरकारी कर्मचारी थे और उन्हें एक निश्चित वेतन मिलती थी। यह राशि साइना के खेल की तैयारी और घर के खर्चों के लिए काफी कम हुआ करता था, इसके लिए उन्होंने अपनी कई इच्छाओं का बलिदान दिया हैं।
इस प्रकार की अनेक समस्याओं के बावजूद उनके माता-पिता पीछे नहीं हटें और साइना को वो हर चीज उपलब्ध कराते थे जिसकी उन्हें जरूरत होती थी। साइना की लगन, मेहनत और समर्पण ने उन्हें भारत का एक विश्वस्तरीय खिलाड़ी बना दिया। साइना अपने खेल को बहुत ही ध्यान पूर्वक एकाग्रता के साथ खेलती है। एक अच्छे खिलाड़ी होने के साथ साइना बहुत ही उदार और दयालु प्रवृत्ति की है। उन्होंने अपने खेल से बैडमिंटन में कई कीर्तिमान स्थापित किये हैं।
साइना नेहवाल की उपलब्धियां
बैडमिंटन के खेल में साइना नेहवाल ने कई इतिहास लिखे हैं। उनमें से कुछ को मैंने निचे प्रदर्शित किया है-
- साइना नेहवाल ने बैडमिंटन में कई पुरस्कार और पदक हासिल किये हैं।
- साइना ने 24 अंतराष्ट्रीय खिताब अपने नाम किये हैं, जिनमें सात सुपर टाइटल भी शामिल हैं।
- साइना ने ओलंपिक में तीन बार भारत का प्रतिनिधित्व किया हैं, जिसमें से दूसरी बार में उन्होंने भारत के लिए कांस्य पदक भी जीता है।
- जब साइना ने बैडमिंटन खेलना शुरू किया तो उसने 2009 में दुनिया में दूसरी रैंकिंग प्राप्त की, और बाद में 2015 में वह शीर्ष स्थान पर थी। उन्होंने बैडमिंटन में भारत को एक नई पहचान दी है।
- वह केवल एकमात्र भारतीय खिलाड़ी है जिसने विश्व बैडमिंटन फेडरेशन के प्रमुख आयोजन में विजयी रही है। उन्होंने प्रत्येक स्पर्धा में कम से कम एक पदक अवश्य जीते है। उन्होंने राष्ट्रमंडल खेलों में महिलाओं का एकल स्वर्ण पदक भी जीता है।
- साइना नेहवाल 4-स्टार टूर्नामेंट जितने वाली भारत की पहली महिला और एशिया की सबसे कम उम्र की बैडमिंटन खिलाड़ी बनीं।
- उन्हें राजीव गाँधी खेल रत्न और अर्जुन पुरस्कार से सम्मानित किया गया है। 2016 में उन्हें पद्म भूषण से भी सम्मानित किया गया था।
निष्कर्ष
साइना नेहवाल एक प्रसिद्ध और सफल भारतीय बैडमिंटन खिलाड़ी हैं। उन्होंने ही भारत में बैडमिंटन के खेल को लोकप्रियता प्रदान की है, और कई पुरस्कार और पदक भी जीते हैं। उन्हें ” “भारत की प्रिय बेटी” के रूप में भी जाना जाता है।
निबंध – 3 मेरा पसंदीदा खिलाड़ी – मिल्खा सिंह (600 शब्द)
परिचय
पसंदीदा खिलाड़ी का नाम आते ही मेरे मन में मिल्खा सिंह का नाम और तस्वीर उभर आती है। मुझे इस खेल और खिलाड़ियों के प्रति बहुत पहले से ही रूचि थी। बाद में फिल्म “भाग मिल्खा भाग” देखने के बाद मैं मिल्खा सिंह की जीवनी से बहुत प्रभावित हुआ।
मिल्खा सिंह की जीवनी
मिल्खा सिंह का जीवन हमेशा ही दुखों और कष्टों से भरा रहा हैं। बचपन से ही उन्हें बहुत सी परेशानियों का सामना करना पड़ा। मिल्खा सिंह का जन्म पाकिस्तानी रिकार्ड के अनुसार 21 नवंबर 1929 को हुआ था। वास्तविक रूप से आज तक उनका जन्म स्थान अनिश्चित है। रिकार्ड के अनुसार उनका जन्मस्थान मुजफ्फरगढ़ जिले से 10 किलोमीटर दूर गोविंदपुरा नामक गांव में हुआ था, जो इस समय पाकिस्तान में स्थित है। बटवारे के समय हुई हिंसा में मिल्खा सिंह का सारा परिवार मारा गया, सिवाय मिल्खा और उनके बहन के। मिल्खा सिंह की बहन की शादी दिल्ली में हुई थी तब उनकी बहन दिल्ली में ही थी। मिल्खा सिंह के परिवार की हत्या उनके आखों के सामने ही हुई और वो वहां से किसी तरह बच कर निकलने में सफल रहे थे। वहां से वो बचकर भारत आ गए और कुछ सालों तक अपनी बहन के साथ ही रहते थे, क्योंकि उनकी बहन के सिवा उनका और कोई न था।
वो अकेले बहुत ही उदास रहा करते थे क्योंकि उनके सर से उनके माता-पिता का साया छीन गया था। इस तरह उनके जीवन में कोई मकसद ही नहीं बचा था। बाद में मलखान सिंह के मार्गदर्शन से मिल्खा सिंह ने भारतीय सेना में भर्ती होने के लिए आवेदन किया और उन्हें भारतीय सेना में चुन लिया गया। भारतीय सेना में रहते हुए ही उन्हें अपने तेजी से दौड़ने की प्रतिभा का एहसास हुआ। सेना में रहते हुए ही उन्होंने पहली बार 200 मीटर और 400 मीटर की दौड़ में हिस्सा लेने का प्रयास किया पर वो उसमें सफल न हो सके। बाद में दूसरी बार उन्होंने उस प्रतियोगिता में फिर हिस्सा लिया और इस बार उन्हें जीत मिली और उन्हें सेना में उन्हें प्रशिक्षक के रूप में चुना गया।
मिल्खा सिंह की उपलब्धियां और पुरस्कार
- मिल्खा सिंह ने हमारे देश के लिए कई पुरस्कार जीते और अंतराष्ट्रीय खेलों में भारत का प्रतिनिधित्व भी किया।
- उन्होंने स्वतंत्र भारत के लिए आम खेलों के एथलेटिक्स में स्वर्ण पदक जीतने वाले पहले भारतीय पुरुष बनें।
- सन 1956 में उन्होंने मेलबर्न ओलंपिक में भारत का प्रतिनिधित्व भी किया। उन्होंने 200 और 400 मीटर दौड़ के शुरुआती दौर में अच्छा प्रदर्शन कर जीत हासिल की परन्तु आखिरी दौर में उन्हें जीत नहीं मिली। वो अपनी गलतियों से सीखने में बड़े ही माहिर व्यक्ति थे और खेल के अन्य शीर्ष खिलाड़ियों से बहुत प्रेरित थे। उनके एक कथन के अनुसार ‘वो ये खेल नहीं जित पाए पर उन्हें सीखने को बहुत कुछ मिला’।
- उन्होंने सन 1958 और 1962 के एशियाई खेलों में 200 और 400 मीटर की दौड़ में स्वर्ण पदक हासिल किया। उन्होंने इसी प्रतियोगिता में 200 और 400 मीटर की दौड़ में एक ही ट्रैक में दौड़ रिकॉर्ड भी स्थापित किया।
- सन 1960 में रोम ओलंपिक और 1964 के टोक्यो ओलंपिक में उन्होंने भारत का प्रतिनिधित्व किया। उन्हें रोम ओलंपिक में बहुत ही कम समय के अंतर यानि 0.1 से हार का सामना करना पड़ा था।
- 1960 में उन्होंने पाकिस्तान के अब्दुल खालिद के खिलाफ दौड़ में हिस्सा लिए और जीत हासिल की। उस समय पाकिस्तान के जनरल आयूब खान ने उन्हें “फ्लाइंग सिख” के ख़िताब से नवाज़ा था।
- सन 1958 में उन्हें पद्मश्री और बाद में 2001 में उन्हें अर्जुन पुरस्कार से नवाज़ा गया, पर उन्होंने यह पुरस्कार लेने से इंकार कर दिया था। क्योंकि उनका मानना था की ये उन नौजवानों को यह पुरस्कार देना चाहिए जिनके वो हकदार हैं।
- बाद में मिल्खा सिंह ने भारतीय वॉलीबॉल टीम की पूर्व कप्तान निर्मला कौर से शादी कर ली। बाद में सेना ने उन्हें एक सूबेदार पद के सयुक्त आयोग के अधिकारी के रूप में पदोन्नति प्रदान की गयी। बाद में उन्हें पंजाब शिक्षा मंत्रालय में खेल निदेशक का पद सौपा गया और वो सन 1998 में उस पद पर रहते हुए सेवानिवृत्त हुए।
मिल्खा सिंह के जीवन से नैतिक शिक्षा
मेरे अलावा कई लोग मिल्खा सिंह के जीवन से बहुत प्रभावित और प्रेरित हुए हैं। वह बहुत ही साहसी और प्रतिभाशाली व्यक्ति थे। उनका जीवन दुःखों और कष्टों से भरा था। बचपन से ही उन्होंने बहुत से कष्ट सहे लेकिन उन्होंने कभी हार नहीं माना। उनके इस साहस और प्रतिभा को मेरा सलाम हैं। मैंने ऐसे कई लोगों को देखा हैं जिन्होंने प्रतिकूल परिस्थिति में गलत रास्तें को चुना है। हमें अपनी प्रतिकूल परिस्थिति में साहस और धैर्य दिखाने और अपनी गलतियों से सबक सीखने की आवश्यकता हैं। मिल्खा सिंह के अनुसार सफलता शार्टकट अपनाने से नहीं मिलती है। इसके लिए कड़ी मेहनत, लगन, प्रेरणा और उचित मार्गदर्शन की आवश्यकता होती है।
निष्कर्ष
मिल्खा सिंह हमारे राष्ट्र का गौरव हैं। उन्होंने एथलेटिक्स में कई उपलब्धियां हासिल की हैं और भारत को एक नयी पहचान दिलाई है। “दि रेस ऑफ लाइफ” किताब मिल्खा सिंह की आत्मकथा पर आधारित है। बाद में उनके जीवन पर आधारित एक फिल्म “भाग मिल्खा सिंह भाग” भी बनी, जो युवाओं के लिए बहुत ही प्रेरणादायी फिल्म हैं। हमें इनके जीवन से बहुत सी चीजें सीखने को मिलती हैं।