चुनाव प्रक्रिया किसी भी लोकतांत्रिक देश की मुख्य पहचान होती है, यह लोकतंत्र को जीवंत रूप प्रदान करती है तथा देश की उन्नति में अपनी भागीदारी को भी सुनिश्चित करती है। हमारा भारत देश एक ऐसा लोकतांत्रिक देश है जिसमें लगभग हर वर्ष चुनाव की प्रक्रिया चलती रहती है। अलग-अलग राज्यों के चुनाव अलग–अलग समय पर होते रहते हैं। पिछले वर्ष 26 नवम्बर (संविधान दिवस) पर वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के द्वारा भारत के प्रधानमंत्री ने 80वें अखिल भारतीय पीठासीन अधिकारी सम्मेलन को संबोधित करते हुए उसका समापन किया।
अपने संबोधन में भारत के प्रधानमंत्री ने एक बार फिर देश को प्रतिवर्ष होने वाले चुनाव से छुटकारा दिलाने के लिए एक राष्ट्रएक चुनाव तथा एकल मतदाता सूची लागू करने की बात कहीं तथा साथ ही साथ उन्होंने कानूनी किताबों के जटिल भाषा को सरल बनाने के लिए पीठासीन अधिकारियों को सूचित भी किया।
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नमस्कार साथियों आज मैं एक देश एक चुनाव पर छोटे एवं बड़े निबंध प्रस्तुत कर रहा हूँ, मुझे आशा है की इसके माध्यम से दी गई जानकारी आपको पसंद आयेगी तथा आप इसको यथा संभव उपयोग भी कर सकेंगे।
प्रस्तावना (एक देश एक चुनाव का अर्थ)
एक राष्ट्र एक चुनाव एक ऐसा उपाय है जो भारत देश को वर्ष भर चुनाव मोड पर रहने से बचा सकता है। यह भारतीय चुनाव प्रक्रिया को एक नई संरचना प्रदान कर सकता है। इस प्रक्रिया के माध्यम से लोकसभा तथा विधानसभाओं के चुनाव को एक साथ कराये जाने की संकल्पना है। जैसा कि देश के आजाद होने के बाद कुछ वर्षों तक होता रहा था।
एक देश एक चुनाव के फायदे
एक राष्ट्र एक चुनाव से देश को निम्नलिखित फायदे हो सकते हैं-
एक देश एक चुनाव के नुकसान
पूरे देश के लिए एक चुनाव प्रक्रिया के लाभ तो है ही लेकिन साथ–साथ उसके कुछ नुकसान भी हैं, जो निम्नलिखित हैं-
निष्कर्ष
भारत एक विशाल जनसंख्या वाला देश है, जिसमें प्रत्येक समय किसी न किसी स्थान पर चुनाव होता रहता है तथा आचार संहिता के कारण विकास कार्यों को बाधित करता रहता है। भारत को इन सब के प्रभाव से मुक्त करने के लिए ‘एक राष्ट्र-एक चुनाव’ के बारे में गहराई से विचार विमर्श करने की आवश्यकता है। सर्वसम्मति से इस निष्कर्ष पर पहुंचना चाहिए की वास्तव में भारत जैसे बहुभाषी, बहुधर्मी, विविध भौगोलिक स्थिति तथा विशाल जनसंख्या वाले देश में, ‘एक राष्ट्र-एक चुनाव’ की आवश्यकता है भी या नहीं।
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प्रस्तावना
एक देश एक चुनाव का आशय केंद्र सरकार (लोकसभा) एवं राज्य सरकारों (विधानसभाओं) के चुनाव को एक साथ कराने से है। इसमें अन्य चुनावों (जिला पंचायत, ग्राम प्रधान का चुनाव आदि) को सम्मिलित नहीं किया गया है। इस मामले पर राजनीतिक पार्टियों में बहुत लम्बे समय से बहस चल रहा है। प्रधानमंत्री मोदी ने भी इस विचार का समर्थन किया है तथा यह मामला उनके चुनावी एजेंडे में भी था।
आपको इस बात की भी जानकारी होनी चाहिए कि नीति आयोग, चुनाव आयोग, संविधान समीक्षा आयोग और विधि आयोग इस मसले पर विचार भी कर चुके है। विधि आयोग ने तो अभी हाल में ही एक देश एक चुनाव के मुद्दे पर एक तीन दिवसीय कॉन्फ्रेंस भी आयोजित किया था हा वो अलग बात है कि ज्यादातर राजनीतिक पार्टियों ने इस मुद्दे का विरोध किया था।
एक देश एक चुनाव की जरूरत
भले ही एक देश एक चुनाव का मुद्दा आज बहस का केंद्र बना हुआ है लेकिन यह कोई नई नीति नहीं है। आजादी के बाद होने वाले कुछ चुनावों (1952, 1957, 1962 व 1967) में ऐसा हो चुका है। उस समय में लोकसभा तथा विधानसभाओं के चुनाव एक साथ संपन्न कराए गए थे। यह क्रम 1968-69 में टूट गया जब विभिन्न कारणों से कुछ राज्यों के विधानसभाओं को वक़्त से पूर्व ही भंग कर दिया गया तथा साल 1971 में समय से पहले ही लोक सभा का चुनाव भी करा दिया गया था। इन सब बातों के मद्देनज़र प्रश्न यह उठता है कि जब पहले भी ऐसा हो चुका है तो अब क्यों नहीं हो सकता है?
देश में होने वाले चुनावों का अगर हम गहराई से आंकलन करते हैं तो हम पाते हैं कि देश में हर साल किसी न किसी राज्य के विधानसभा का चुनाव होता है। इसके कारण प्रशासनिक नीतियों के साथ–साथ देश के खजाने पर भी प्रभाव पड़ता है। 17वीं लोकसभा का चुनाव अभी हाल में ही संपन्न हुआ है जिसमे अनुमानतन लगभग 60 हज़ार करोड़ रूपये खर्च हुए तथा देश में लगभग 3 महीने तक चुनावी माहौल बना रहा। ऐसी ही स्थिति लगभग वर्ष भर देश के अलग–अलग राज्यों में बनी रहती है। ऐसे में ‘एक देश एक चुनाव’ का विचार इन परिस्थितियों से छुटकारा दिला सकता है।
पृष्ठभूमि /इतिहास
15 अगस्त 1947 को देश आजाद हुआ तथा 26 जनवरी 1950 को पूरा देश गणतंत्र में बंध कर विकास की ओर अग्रसर हुआ। इस दिशा में गणतंत्र भारत का पहला चुनाव (लोकसभा तथा विधानसभा का) 1951-1952 में एक साथ हुआ। तत्पश्चात 1957, 1962 तथा 1967 के चुनाव में भी दोनों का चुनाव साथ ही में संपन्न हुआ। 1967 के चुनाव में सत्ता में आयी कुछ क्षेत्रीय पार्टियों की सरकार 1968 तथा 1969 में गिर गई जिसके फलस्वरूप उन राज्यों की विधानसभाएं समय से पहले ही भंग हो गई और 1971 में समय से पहले ही चुनाव कराने पड़े, तब यह क्रम टूट गया। आगे भी राज्यों में यह स्थिति बनती गई विधानसभाएं भंग होती गई और यह सिलसिला बिगड़ता गया।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से पहले भी दोनों चुनावों को एक साथ कराने की नाकाम कोशिशें होती रही है-
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एक देश एक चुनाव के समर्थन के बिंदु
‘एक देश एक चुनाव’ के माध्यम से देश के खजाने की बचत तथा राजनीतिक पार्टियों के खर्चों नजर एवं नियंत्रण रख सकते हैं। देश में पहला लोकसभा का चुनाव 1951-52 में हुआ था। उस समय 53 दलों के 1874 उम्मीदवारों ने चुनाव में भाग लिया था और उस समय कुल लगभग 11 करोड़ रुपये खर्च हुए थे। जबकि हालही में हुए 17वें लोकसभा के चुनाव पर नजर डालें तब हम पाते हैं कि इसमें 610 राजनीतिक दलों के लगभग 9000 प्रत्याशी थे, जिसमें कुल लगभग 60 हज़ार करोड़ रूपया (सेंटर फॉर मीडिया स्टडीज़ के अनुमान के अनुसार) खर्च हुआ। जो साल 2014 में हुए लोकसभा चुनाव में खर्च रूपयों (लगभग 30 हज़ार करोड़) का लगभग दो गुना है। ‘एक देश-एक चुनाव’ से होने वाले अन्य फायदे निम्नलिखित है-
एक देश एक चुनाव के विरोध के बिंदु
चुनाव आयोग से संबंधित समिति
स्वतंत्र एवं निष्पक्ष चुनाव ही सही मायने में लोकतांत्रिक राष्ट्र को वैधता प्रदान करता है, भारत इस बात को भली भांति जानता है। इसलिए इसने समय–समय पर समितियों का गठन करके चुनाव प्रणाली में व्याप्त कमियों को हमेशा दूर करने का प्रयास किया है। चुनाव आयोग से संबंधित कुछ मुख्य समितियां निम्नलिखित हैं-
एक देश एक चुनाव के समक्ष चुनौतियां
निष्कर्ष
उपरोक्त विवेचनाओं के माध्यम से हमने एक देश एक चुनाव से संबंधित सभी मुद्दों पर चर्चा करने का प्रयास किया है। हमने जाना की कुछ विशेषज्ञ इसके पक्ष में तथा कुछ इसके विपक्ष में अपने–अपने विचार प्रस्तुत करते हैं। ऐसे में सरकार को चाहिए की इस मुद्दे पर सभी चुनावी संस्थाओं, राजनीतिक दलों तथा विशेषज्ञों के साथ मिलकर इस विषय पर विचार–विमर्श करें तथा राष्ट्र हित में समर्पित फैसले का चयन करें।
मैं आशा करता हूँ कि एक देश एक चुनाव पर प्रस्तुत यह निबंध आपको पसंद आया होगा तथा साथ ही साथ मुझे उम्मीद है कि ये आपके स्कूल आदि जगहों पर आपके लिए उपयोगी भी सिद्ध होगा।
धन्यवाद!
ये भी पढ़े:
उत्तर- दक्षिण अफ्रीका इंडोनेशिया जर्मनी आदि देशों में एक देश एक चुनाव प्रक्रिया लागू है।
उत्तर- भारत में चार बार (1952, 1957, 1962 तथा 1967 में) दोनों चुनाव एक साथ हुआ है।
उत्तर- अनुच्छेद 2, 3, 83, 85, 172, 174, 352 तथा 356 एक देश एक चुनाव के रास्ते में चुनौतियों के रूप में खड़े है।
उत्तर– एक देश एक चुनाव का सिलसिला भारत में 1971 में टूट गया।
उत्तर- साल 2019 में 17वीं लोकसभा का चुनाव संपन्न हुआ था।