वर्तमान समय में कृषि में हो रहे अंधाधूंध रसायनों के प्रयोग ने सिर्फ पर्यावरण को ही नहीं क्षति पहुंचायी है बल्कि इससे भूमि की उर्वरता का भी ह्रास हुआ है तथा मानव स्वास्थ्य को भी इसने बुरी तरह से प्रभावित किया है। इन समस्याओं के निदान तथा मानव को अच्छा स्वास्थ्य प्रदान करने के लिए ब्रिटिश वनस्पति विज्ञानी सर अल्बर्ट हावर्ड (आधुनिक जैविक खेती के जनक) ने अपने कुछ नवीन शोधों के साथ लोगों के सामने जैविक कृषि का प्रस्ताव रखा, जिसके अन्तर्गत कृषि में रासायनिक उर्वरकों एवं कीटनाशकों के स्थान पर उर्वरक के रूप में जन्तु तथा मानव के अवशेषों का इस्तेमाल होता है।
जैविक खेती पर बड़े तथा छोटे निबंध (Long and Short Essay on Organic Farming in Hindi, Jaivik Kheti par Nibandh Hindi mein)
नीचे मैं निबंधों के माध्यम से जैविक खेती के बारे में कुछ जानकारी साझा कर रहा हूँ, मुझे उम्मीद है कि ये जानकारियां जैविक खेती के बारें में आपकी समझ को और पुख्ता करेंगी तथा आपके स्कूल एवं प्रायोगिक कार्यों में आपकी सहायता करेंगी।
जैविक खेती पर छोटा निबंध – 300 शब्द
प्रस्तावना [जैविक खेती का अर्थ]
कृषि की वह प्रक्रिया जिसमें कल-कारखानों में निर्मित रासायनिक उर्वरकों, वृद्धि नियंत्रकों एवं कीटनाशकों का प्रयोग न करेसके जीवांशयुक्त उर्वरकों (जैसे- राख, गोबर, नीम, आदि) का प्रयोग करते हैं, जैविक कृषि कहलाता है। इसमें भूमि की उर्वरा क्षमता का ह्रास नहीं होता तथा यह पर्यावरण को प्रदूषित भी नहीं करती हैं।
जैविक खेती का इतिहास
सन् 1905-1924 तक अल्बर्ट हावर्ड तथा उनकी पत्नी गैब्रिएल हावर्ड ने साथ मिलकर शोध किया तथा अपने सिद्धान्तों को इन्होंने अपनी पुस्तक ‘An Agricultural Testament’ में स्थान दिया जो 1940 में प्रकाशित हुई थी। इनके शोधों ने विद्वानों को बहुत ज्यादा प्रभावित किया। 1990 के बाद लगभग विश्व के सभी बाजारों में जैविक उत्पादों की मांग काफी बढ़ गई।
भारत में जैविक खेती
भारत में जैविक कृषि की शुरुआत सबसे पहले मध्य-प्रदेश राज्य से 2001-2002 में हुई थी। इस समय राज्य के सभी जिले के प्रत्येक विकासखण्डों के एक गाँव में जैविक कृषि का शुभारम्भ कराया गया तथा इन गाँवों को जैविक गाँव का नाम दिया गया। जैविक खेती के विकास के लिए प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने निम्न योजनाएं चला रखी है-
• मिशन ऑर्गेनिक वैल्यू चेन डेवलपमेंट फॉर नॉर्थ ईस्ट रीजन
• परंपरागत कृषि विकास योजना
भारतीय राज्यों में जैविक खेती
भारतमें जैविक कृषि का प्रारम्भ सबसे पहले मध्य-प्रदेश राज्य में 2001-2002 में हुआ था, वर्तमान समय में अपने लगभग 27% भाग (0.76 मिलियन हेक्टेयर) पर जैविक कृषि कर यह शीर्ष पर बना हुआ है। परंतु लगभग 75000 हेक्टेयर भूमि पर जैविक कृषि कर सिक्किम भारत का पहला पूर्ण जैविक राज्य बन गया है। वर्तमान समय में भारत में जैविक खेती का दायरा 33.32 लाख हेक्टेयर है।
भारत में जैविक खेती के आँकड़े
जैविक कृषि की दुनिया के रिपोर्ट के अनुसार भारत अकेला विश्व के कुल जैविक उत्पादों का 30% उत्पादन करता है, परन्तु कुल कृषि योग्य भूमि पर इसका दायरा सिर्फ 2.59% तक ही सीमित है।
निष्कर्ष
भारत एक कृषि प्रधान देश है, जिसकी लगभग 70% जनसंख्या जीविकोपार्जन के लिए खेती पर निर्भर रहती है, जिसके कारण अधिकतर ग्रामीण जन निर्धनता के शिकार है। जैविक खेती से उत्पादन में वृद्धि होगी, महंगे उर्वरकों की आवश्यकता नहीं होगी, बिमारियों में भी कमी आयेगी। कुल मिलाकर ग्रामीणों की आय में वृद्धि होगी, खर्च कम होगा, एवं बचत में वृद्धि होगी। जिसका प्रत्यक्ष प्रभाव देश की उन्नति में देखा जा सकेगा।
जैविक खेती पर बड़ा निबंध – 1000 शब्द
प्रस्तावना [जैविक खेती क्या है]
जैविक कृषि वह तकनीक है, जिसमें संश्लेषित उर्वरकों एवं कीटनाशकों का प्रयोग नहीं होता या बहुत ही अल्प मात्रा में होता है, इसमें उत्पादन में वृद्धि एवं भूमि की उर्वरा क्षमता बनायें रखने के लिए फसल चक्र, जन्तु अपशिष्टों, हरी खाद, तथा कम्पोस्ट आदि का प्रयोग किया जाता है।
जैविक खेती प्रणाली
जैविक कृषि प्रणाली प्राचीन कृषि पर आधारित है, जिसमें पृथ्वी तथा मानव के बीच अनुकूल संबंध स्थापित थे, संश्लेषित रसायनों के जगह जीव-जन्तुओं के मल-मूत्र तथा वनस्पतियों के अवषेश आदि का प्रयोग किया जाता था। खाद्यान्न पोषक तत्वों से परिपूर्ण होते थे। जैविक कृषि मुख्यतः दो प्रकार की होती है-
1- शुद्ध (परिष्कृत) जैविक कृषि
इस प्रकार के कृषि व्यवस्था में कृषि में पूर्ण रूप से अकार्बनिक उर्वरकों एवं पीड़कनाशकों का उपयोग वर्जित होता है, जो पर्यावरण, भूमि तथा उपभोक्ता के लिए हानिकारक हो। कविवर घाघ ने अपनी रचनाओं मे इसी प्रकार की कृषि का उल्लेख किया है। जो निम्न है-
“गोबर राखी पाती सड़ै, फिर खेती में दाना पड़ै
सन के डंठल खेत छिटावै, तिनते लाभ चौगुनो पावै
गोबर, मैला, नीम की खली, या से खेती दुनी फली
वही किसानों में है पूरा, जो छोड़ै हड्डी का चूरा”
2- एकीकृत जैविक कृषि
एकीकृत जैविक कृषि प्रणाली को हम पूरक कृषि प्रणाली या आश्रित कृषि प्रणाली या समन्वित कृषि प्रणाली भी कह सकते हैं क्योंकि इसमें कृषि के सभी घटक (जैसे-फसल उत्पादन, फल उत्पादन, सब्जी उत्पादन, मवेशी पालन, मधुमक्खी पालन, वानिकी इत्यादि) एक दुसरे पर आश्रित होते हैं या पूरक होते हैं। इसमें इन घटकों को ऐसे समेकित किया जाता है कि इनमें प्रतिस्पर्धा बिल्कुल ना हो या कम हो तथा पूरकता अधिक से अधिक हो ताकि एक का अवषेश दुसरे के लिए पोषक तत्व के रूप में उपयोगी हो सके और ये चक्र ऐसे ही चलता रहे। जिससे बाहरी संसाधनों की आवश्यकता ना पड़े या कम पड़े ताकि कृषि लागत में कमी आयें और आय में वृद्धि हो।
जैविक खेती करने के तरीके
भारत में जैविक खेती करने के कई तरीके हैं, अपनी-अपनी सुविधाओं के अनुसार किसान अलग-अलग कृषि विधियों का चुनाव करते हैं, इन सभी विधियों का लक्ष्य समान है। इनमें से कुछ विधियाँ निम्नलिखित है-
• मृदा प्रबंधन
लागातार उत्पादन के साथ मृदा में पोषक तत्वों की कमी हो जाती है जिसके फलस्वरूप मृदा की उर्वरा क्षमता कम हो जाती है। जरूरी पोषक तत्वों की सहायता से मृदा के उर्वरा क्षमता को बरकरार रखना, मृदा प्रबंधन कहलाता है। जैविक कृषि में मृदा प्रबंधन जीव-जन्तु के अवषेशों में उपस्थित जीवाणुओं की सहायता से किया जाता है।
• खेती में रासायनिक प्रबंधन
कृषि भूमि में अनेक प्रकार के सूक्ष्म जीव उपस्थित होते हैं, जिनमें से कुछ मृदा के लिए हानिकारक होते हैं। इनसे मृदा की सुरक्षा के लिए तथा उत्तम पैदावार के लिए प्राकृतिक कीटनाशकों का या हल्की मात्रा में संश्लेषित रसायनों का उपयोग किया जाता है, इस प्रक्रिया को रसायनिक प्रबंधन कहते हैं।
• जैविक कीट नियंत्रण
जैविक कीट नियंत्रण एक ऐसी प्रक्रिया है जिसमें खरपतवार, घुन, कीटों, इत्यादि को नष्ट करने के लिए दूसरे सुक्ष्म जीवों का उपयोग किया जाता है।
• खरपतवार प्रबंधन
जैविक कृषि का प्राथमिक उद्देश्य होता है खरपतवारों का प्रबंधन, क्योंकि खरपतवार भी उसी भूमि में उगते हैं जहाँ फसल उगाई जानी है। अपनी वृद्धि के लिए ये भूमि से आवश्यक पोषक तत्वों का अवशोषण करते हैं। जिससे कृषि का उत्पादन प्रभावित होता है। खरपतवारों को समाप्त करने या कम करने के लिए इनकी कटाई की जाती है या फिर प्लास्टिक की पतली पन्नी की सहायता से भूमि के अधिकांश भाग को ढ़क दिया जाता है जिससे इनके उत्पादन को नियंत्रित किया जा सके।
• फसल विविधता
जैविक कृषि का यह तरीका भारत में बहुत प्रसिद्ध है, इस विधि में एक ही समय में, एक ही साथ, एक ही खेत में विविध प्रकार की फसलें ऊगाई जाती हैं, जिससे मिट्टी में पोषक तत्वों की कमी नहीं होती और उनकी उर्वरा क्षमता बरकरार रहती है।
जैविक खेती के लाभ
जैविक खेती के कुछ लाभ निम्नलिखित है-
• इससे उत्पन्न खाद्य पदार्थ शुद्ध, स्वादिष्ट, एवं पोषक तत्वों से भरपूर होता है।
• इसमें रसायनिक उर्वरकों, संकर बीजों आदि का खर्चा नहीं होता इसलिए ये प्रक्रिया काफी सस्ती होती है।
• जैविक कृषि पारिस्थितिकी के अनुकूल होती है, इससे पर्यावरण एवं मृदा को कोई हानि नहीं होती है।
• अपेक्षाकृत उत्पादन ज्यादा होने तथा बिमारियों के कम होने से किसानों की आय में वृद्धि हुई है।
• विदेशों में माँग बढ़ने से एक अच्छा निर्यातक बनने की संभावना।
• इसमें जीव-जन्तु तथा वनस्पतियों के अवषेशों का इस्तेमाल होता है, जो कहीं न कहीं पर्यावरण प्रदूषण के प्रमुख कारक हैं।
जैविक खेती परियोजना
केंद्र सरकार ने जैविक कृषि को बढ़ावा देने के लिए तथा किसानों को उत्साहित करने के लिए निम्नलिखित कदम उठाए है-
• मिशन ऑर्गेनिक वैल्यू चेन डेवलपमेंट फॉर नॉर्थ ईस्ट रीजन
यह केंद्र सरकार की एक योजना है, जिसे कृषि एवं कल्याण मंत्रालय द्वारा पूर्वोत्तर के राज्यों (सिक्किम, अरुणाचल प्रदेश, मेघालय, मणिपुर, मिज़ोरम, नागालैंड, त्रिपुरा और असम) में 2015 में शुरू किया गया।
• एक जिला- एक उत्पाद योजना
इसका उद्देश्य जिला स्तर पर रोजगार उत्पन्न करना है तथा स्थानीय उत्पादों के बिक्री को प्रोत्साहन देना है।
• परंपरागत कृषि विकास योजना
इसकी शुरूआत 2015 में हुई थी, यह योजना राष्ट्रीय सतत कृषि मिशन (National Mission for Sustainable Agriculture) के अन्तर्गत जारी एक उप मिशन ‘मृदा स्वास्थ्य प्रबंधन’ का एक घटक है। इसमें भागीदारी गारंटी प्रणाली प्रमाणन द्वारा जैविक ग्रामों के विकास को प्रेरित किया जाता है।
जैविक खेती की आवश्यकता और महत्व
आवश्यकताएं-
• मृदा संरक्षण के दृष्टिकोण से
• पर्यावरण संरक्षण के दृष्टिकोण से
• मानव स्वास्थ्य के नजरिये से
• कम लागत में अधिक आय के लिए इत्यादि
महत्व-
• पोषक तत्वों युक्त खाद्यान की प्राप्ति के लिए
• पैदावार में वृद्धि के लिए
• अच्छा निर्यातक बनने की संभावना से
• स्वच्छता के दृष्टिकोण से इत्यादि
जैविक खेती की सीमाएं
• कम मात्रा में उत्पादन के कारण इसका मूल्य अपेक्षाकृत लगभग 40% अधिक होता है।
• सरकार के प्रयासों के बावजूद भी इसका विपणन और एवं वितरण सुचारू रूप से नहीं हो पा रहा है।
• शुरुआत में इसमें अधिक धन की आवश्यकता होती है, इत्यादि
निष्कर्ष
वर्तमान परिदृश्य को ध्यान में रखते हुए यह कहना अतिशयोक्ति नहीं होगी की अगर मानव को धरा पे अपना अस्तित्व बनायें रखना है तो जैविक खेती को अपनाना उसकी आवश्यकता पूर्ति का साधन नहीं अपितु उसकी मजबूरी होनी चाहिए, क्योंकि वर्तमान कृषि प्रणाली में तेजी से हो रहे संश्लेषित रसायनों के प्रयोगों ने न सिर्फ भूमि को बल्कि पर्यावरण को तथा मानव स्वास्थ्य को भी बुरी तरह से प्रभावित किया है।
अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न (Frequently Asked Questions on Organic Farming in Hindi)
उत्तर- जैविक खेती के जनक अल्बर्ट हावर्ड (Albert Howard) हैं।
उत्तर- सिक्किम
उत्तर- मध्य- प्रदेश