भले ही 21वीं शताब्दी में भारत, विश्व के साथ कदम से कदम मिला कर विकास की तरफ़ बढ़ रहा है परंतु देश के बहुत से क्षेत्रों को आज भी जरूरी संसाधनों की आवश्यकता है। भारत के ग्रामीण इलाकों में आज भी लोगों को शिक्षा के लिए समय-समय पर प्रेरित करने की आवश्यकता है। कुछ गाँव विकास के मामले में इतने पिछड़े हुए है कि उनकी जिंदगी सिर्फ़ दो वक्त के भोजन का इंतजाम करने में ही गुजर जाती है। आज भी ऐसे क्षेत्रों में लोगों के लिए शिक्षा का कोई महत्व नहीं है।
इस तथ्य को जानने के लिए नीचे दिए गए निबंध को पूरा पढ़ें, उम्मीद करता हूँ ये निबंध आपके लिए उपयोगी होगा:
क्या 21वीं सदी में हमें मध्याह्न भोजन की आवश्यकता है या मुफ्त शिक्षा पर दीर्घ निबंध (Long Essay on Do We Need Mid-Day Meal or Free Education in 21st Century in Hindi, Kya 21st sadi me hame Madhyan Bhojan ki Awashyakata hai ya Muft Shiksha par Nibandh Hindi mein)
मुफ्त भोजन या शिक्षा – 1200 Word Essay
प्रस्तावना (What Do we Need Free Meal or Free Education)
बात चाहे आज के 21वीं सदी की करें या फिर बीते सदियों की, अगर आपसे पूछा जाए कि जीवन जीने के लिए भोजन या शिक्षा में से पहले क्या जरूरी है तो आपका भी जवाब वही होगा जो पिछड़े ग्रामीण इलाकों के लोगों का है। लेकिन आज ये सवाल वर्तमान समय को देखते हुए विकास की दृष्टि से पूछा जा रहा है जिसमें देश के सभी वर्गों को सम्मिलित किया गया है। भारत के सरकारों द्वारा बच्चों को शिक्षा की तरफ आकर्षित करने के लिए मिड डे मील और मुफ़्त शिक्षा नामक दो अलग अलग योजनाएं लाई गई हैं जिनकी उपयोगिता के बारे में आज हम चर्चा करेंगे।
क्या है मिड डे मील? (What is Mid Day Meal?)
मिड डे मील की शुरुआत सबसे पहले 1925 में तमिलनाडु में मध्याह्न भोजन कार्यक्रम के रूप में किया गया था। उसके बाद 1962-63 के लगभग तमिलनाडु के एक जिले में प्राथमिक स्कूलों में मिड डे मील की शुरुआत स्कूल आने वाले बच्चों की संख्या में इजाफ़ा करने के उद्देश्य से किया गया था। तमिलनाडु के तत्कालीन मुख्यमंत्री के. कामराज (K. Kamaraj) ने इस योजना को सबसे पहले चेन्नई और फिर पूरे राज्य में लागू किया। इस प्रकार तमिलनाडु मिड डे मील की शुरुआत करने वाला देश का पहला राज्य बना।
2001 में सुप्रीम कोर्ट ने सभी राज्यों को छः महीने के भीतर इस योजना को लागू करने का आदेश जारी किया था। इससे पूर्व तत्कालीन राष्ट्रपति माननीय प्रणव मुखर्जी (Pranab Mukherjee) ने केंद्र सरकार द्वारा संचालित स्कूलों में मध्याह्न भोजन योजना की शुरुआत की थी। 15 अगस्त 1994 को भारत सरकार ने प्राथमिक शिक्षा के लिए पोषण सहायता राष्ट्रीय कार्यक्रम की शुरुआत की थी। अक्टूबर 2007 में शैक्षणिक तौर से पिछड़े 3479 ब्लाकों के 6 से 8 तक के उच्च प्राथमिक कक्षाओं के लिए भी इस योजना की शुरुआत की गई।
मुफ्त शिक्षा योजना पर एक नजर (Have a look at Free Education Scheme)
बच्चों के लिए मुफ़्त और अनिवार्य शिक्षा का अधिकार 4 अगस्त 2009 से भारतीय संसद में एक अधिनियम के रूप में मौजूद है। भारतीय संविधान के अनुच्छेद 21A के अनतर्गत भारत में 6 से 14 वर्ष तक के बच्चों के लिए मुफ़्त शिक्षा का प्रावधान करता है। 1 अप्रैल 2010 को इस अधिनियम के लागू होने के बाद भारत शिक्षा को मौलिक अधिकार बनाने वाला 135 देशों में से एक बन गया। 2002 के 86वां संविधान संसोधन के तहत ही शिक्षा को मौलिक अधिकार का दर्जा देते हुए अनुच्छेद 21A में शामीलकिया गया था।
इस विधेयक के संदर्भ में 2005 में एक मसौदा पेश किया गया था जिसमें निजी स्कूलों में आर्थिक रूप से पिछड़े बच्चों के किए 25% सीट आरक्षित रखना अनिवार्य करने का प्रावधान करने के कारण सरकार को काफ़ी विवादों में घेरा गया था। इस अधिनियम को 1 अप्रैल 2010 को जम्मू कश्मीर के अलावा समस्त देश में पारित किया गया। वहीं 7 मई 2014 को भारत के सर्वोच्च न्यायालय ने फ़ैसला सुनाया कि शिक्षा का अधिकार अधिनियम अल्पसंख्यकों संस्थानों पर लागू नहीं होगा।
मध्याह्न भोजन या मुफ्त शिक्षा में से क्या जरूरी है? (Which is more important Mid-Day Meal or Free Education?)
21वीं सदी में भी आर्थिक और शैक्षणिक रूप से पिछड़े वर्गों की मानसिकता शिक्षा को लेकर बहुत ही अलग देखने को मिलती है। लोग आज भी शिक्षा को व्यर्थ समझते है और जो अभिभावक शिक्षा का महत्व समझते है उनके पास अपनी जीविका चलाने में ही व्यस्त रहते हैं। ऐसे समाज के बच्चों में भी शिक्षा को लेकर कोई भी उत्सुकता नजर नहीं आती है। जिसको देखते हुए ही मिड डे मील जैसी योजनाएं लाई गई थी ताकि बच्चे भोजन के बहाने ही स्कूल जाएँ और उन बच्चों के अभिभावकों के ऊपर से भी बच्चों के भोजन की चिंता थोड़ी कम हो जाए। जो अभिभावक अपने बच्चों को पोषण युक्त भोजन देने में असमर्थ है उन्हें भी इस योजना से काफ़ी मदद मिली।
वहीं अगर बात मुफ़्त शिक्षा योजना की करें तो फिलहाल सरकार ने 6 से 10 वर्ष के बच्चों के लिए ही लागू की है। बहुत से अभिभावकों के लिए आज भी अपने बच्चों की शिक्षा पर खर्च कर पाना मुश्किल होता है। मुफ़्त शिक्षा योजना से ऐसे अभिभावकों को बहुत मदद मिली है। ऐसे अभिभावक जो अपनी कम आमदनी के कारण बच्चों को स्कूल नहीं भेज पाते थें, इस योजना की मदद से उन बच्चों को भी स्कूल जाने का मौका मिला है। कक्षा 8 तक की बेसिक शिक्षा प्राप्त करना ही बच्चों के भविष्य के लिए सबसे जरूरी है, क्योंकि यही बच्चों के बौद्धिक विकास के लिए उत्तम समय होता है।
अगर हमें दोनों योजनाओं में से किसी एक को सबसे जरूरी मानकर चुनना पड़े तो मेरे ख्याल से किसी एक पक्ष में जाना गलत होगा क्योंकि भोजन के बगैर शिक्षा और शिक्षा के बगैर भोजन मात्र से बच्चों के अच्छे भविष्य की कल्पना नहीं की जा सकती। अगर बच्चों को पोषक आहार मिले और शिक्षा न मिले तो वे बच्चे भले ही शिक्षा के क्षेत्र में कुछ न कर पाए लेकिन अन्य क्षेत्र जैसे खेल कूद आदि में वे जरूर कुछ न कुछ कर पाएंगे। वहीं सिर्फ़ पोषणयुक्त भोजन मुहैया कर देने से भी बच्चों का भविष्य सुरक्षित नहीं किया जा सकता। बच्चों के उज्ज्वल भविष्य के लिए उन्हें शिक्षित करना भी उतना ही जरूरी है और जो आर्थिक रूप से कमजोर हैं उन्हें मुफ़्त शिक्षा प्रदान करना उससे भी ज्यादा जरूरी है। अंततः हम सभी इसी नतीजे पर पहुंचते हैं कि आर्थिक और शैक्षणिक रूप से पिछड़े लोगों को इन दोनों योजनाओं की एक समान रूप से आवश्यकता है।
क्या जरूरतमंदों को मध्याह्न भोजन या मुफ्त शिक्षा का लाभ मिल पा रहा है? (Are the needy getting the benefit of Mid-Day Meal or Free Education?)
सरकारी आंकड़ों के अनुसार भारत में कुल 12,56,000 स्कूलों से 12 करोड़ बच्चे हैं। जिनको मिड डे मील और मुफ़्त शिक्षा जैसी सुविधा उपलब्ध कराने की योजना दुनिया की सबसे बड़ी योजना के रूप में है। प्रत्येक 5 वर्ष पर आने जाने वाली सरकार तो अपने वादे जनता को दे जाती है लेकिन क्या वादों मुताबिक जरूरतमंदों को मिड डे मील और मुफ़्त शिक्षा जैसी सुविधाएं मील पा रही है? समाज के जिन लोगों को इन सुविधाओं की सख्त जरूरत है क्या उनके बच्चों को स्कूलों में पोषकयुक्त भोजन और मुफ़्त शिक्षा का लाभ मील रहा है? सरकार महज योजना लाकर जिम्मेदारी से मुंह नहीं मोड़ सकती, योजना से ज्यादा जरूरी काम योजना को जरूरतमंदों तक पहुंचना है जिसे सरकार को ही पूरा करना होगा।
मध्याह्न भोजन और मुफ्त शिक्षा के पीछे की राजनीति (The politics behind Mid-Day Meal and Free Education)
सरकार कोई भी हो लेकिन सभी का इरादा एक ही होता है कि किसी तरह से जनता का वोट अपने हक में किया जाए। सरकार पहले तो योजना का एक मसौदा ले आती है ताकि जनता खुशी होकर वोट दे सके और फिर चुनाव जीतने के बाद सरकार खुद ही उसे विरोधों में घेर कर खारिज कर देती है। सभी बच्चों को मिड डे मील के रूप में अच्छे अच्छे भोजन देने का वादा करके चुनाव तो जीत लेती है लेकिन बाद में उसी मिड डे मील में कीड़े और मरे हुए चूहे के बच्चे निकलते हैं। मुफ़्त शिक्षा देने का दावा करके चुनाव तो जीत लियाया लेकिन तरह तरह के कार्यक्रमों और अतिरिक्त गतिविधियों के नाम पर अभिभावकों से शुल्क वसूल ही लिया जाता है।
निष्कर्ष
किसी भी वर्ग के बच्चे के शारीरिक विकास के लिए पोषकयुक्त भोजन तथा बौद्धिक विकास के लिए शिक्षा अतिआवश्यक है। बच्चों का भविष्य इन्हीं दो तत्वों पर अत्यधिक निर्भर रहता है। इसलिए सरकार के साथ-साथ अभिभावकों को भी अपनी जिम्मेदारी समझते हुए बच्चों को पोषण और शिक्षा उपलब्ध कराने के लिए हर कोशिश करनी चाहिए। जहां जरूरी हो बच्चों को मुफ़्त शिक्षा और आहार भी मुहैया कराना चाहिए ताकि कोई भी बच्चा विकास की दौड़ में पीछे न छूट जाए।
FAQs: Frequently Asked Questions
उत्तर – सर्वप्रथम मिड डे मील की शुरुआत 1925 में तमिलनाडु में हुई थी।
उत्तर – मिड डे मील में कुल 12 करोड़ बच्चों की व्यवस्था है।
उत्तर – निःशुल्क एवं अनिवार्य शिक्षा विधेयक वर्ष 2009 में लागू हुआ।
उत्तर – केंद्र सरकार के अंतर्गत आने वाले स्कूल में मिड डे मील की शुरुआत तत्कालीन राष्ट्रपति प्रणव मुखर्जी ने की थी।
उत्तर – विश्व में सबसे बड़ी मिड डे मील योजना अपने देश भारत की है।