सर्दियों के बाद वसंत ऋतु के आते ही होली का त्यौहार मनाया जाता है। इस त्यौहार को हम रंगों के त्यौहार के रूप में भी जानते है। रंगों का यह त्यौहार भारत में ही नहीं बल्कि पूरी दुनिया में बड़े ही धूमधाम और हर्षोल्लास के साथ मनाया जाता है। इस त्यौहार में हर उम्र के लोग, बच्चों से लेकर बूढ़े तक अपने ही अंदाज़ में इस पर्व को मनाते है। होली के एक दिन पहले होलिका दहन किया जाता है, ये बात आमतौर पर हर कोई जनता है, पर क्या आपको पता है कि होलिका दहन होली के एक दिन पहले ही क्यों मनाई जाती है? शायद आप में से कुछ को ये बात पता भी नहीं होगा। जिनको इस बारे में पता नहीं है, मैंने निचे दिए इस निबंध में उनको इस बारे में बताने की कोशिश की है। मैं आशा करता हूँ की यह लेख आपके लिए अवश्य मददगार साबित होगा।
होलिका दहन होली के एक दिन पहले क्यों मनाई जाती है पर दीर्घ निबंध (Long Essay on Why Holika Dahan is celebrated a day before Holi, Holika Dahan Holi ke Ek din pahle kyon manayi jati hai par Nibandh Hindi mein)
Long Essay – 1400 Words
परिचय
भारत एक सांस्कृतिक देश है, यहाँ अनेक प्रकार के त्यौहार मनाये जाते है, जिनमें लोहड़ी, होली, दिवाली, ईद, क्रिसमस, इत्यादि प्रमुख है। इन त्योहारों में होली का त्यौहार सभी धर्म के लोग बड़े ही हर्ष और जोश के साथ मिलजुल कर मानते है। रंगों के इस अनोखे त्यौहार में लोग आपसी भेद-भाव को भूलकर एक दूसरे को रंग लगाते है और गले मिलते है और एक दूसरे में प्यार और मिठाइयाँ बाटते है।
होली – प्यार और रंगों का त्यौहार
हर वर्ष नए साल की शुरुआत होते ही होली का यह त्यौहार बड़े ही जोश और धूमधाम से मनाया जाता है। भारत में वसंत ऋतु के आरम्भ होते ही रंगों के त्यौहार होली की महक चारों ओर दिखने लगती है। होली रंगों के त्यौहार के रूप में भी जाना जाता है, यह फाल्गुल महीने में मनाया जाता है। होली भारत के लगभग सभी प्रान्त में अलग-अलग ढंग से अपने ही अंदाज़ में मनाया जाता हैं। रंगों का यह त्यौहार केवल भारत में ही नहीं बल्कि विश्व के कई हिस्सों में मनाया जाता है। होली का यह त्यौहार आपसी भेद भाव को भुलाकर लोग प्यार के इस रंग में रंग जाते है और दुनिया को आपसी एकता और प्रेम का सन्देश देते है।
रंगों के इस त्योहार का उत्सव
रंगों के त्यौहार होली को पारम्परिक रूप से मुख्यतः दो दिन मनाया जाता है। होली के एक दिन पहले होलिका दहन और दूसरे दिन रंगोत्सव अथवा होली का उत्सव होता है। देश के अलग-अलग प्रांतों में रंगों के इस उत्सव को अन्य नामों से जैसे फगुआ, धुलेंडी, छारेण्डी (राजस्थान), दोल, इत्यादि अन्य नामों से भी जाना हैं।
होलिका दहन उत्सव
रंगों के त्यौहार होली की संध्या या रात्रि के वक्त होलिका दहन किया जाता है। होलिका दहन फाल्गुन महीने के पूर्णिमा के दिन होता है, और इसके अगले दिन होली का त्यौहार मनाया जाता है। कई जगह होलिका दहन को छोटी होली के नाम से भी जाना जाता है। होलिका दहन की तैयारी वसंत पंचमी के दिन से ही शुरु हो जाती है। वसंत पंचमी के दिन ही रेंड़ी के पेड़ को काटकर उसे होलिका दहन वाली जगह पर गाड़ दिया जाता है।
होलिका दहन में लोग घरों के रद्दी सामान, पेड़ों के पत्ते, लकड़ियां, उपल, खेतों से निकला कचरा, इत्यादि को जलाते हैं। लोग होलिका के चारों तरफ घेरे बनाकर ताली बजाते है और होली के गीत और प्रांतीय गीत के साथ नृत्य भी करते है। प्राचीन मान्यता है कि ऐसा करने से होलिका के साथ ही उनके सारे दोष और बुराईयां भी जल जाते है। इसके अगले ही दिन लोग आपसी मतभेद को भुलाकर एक दूसरे को रंग और गुलाल लगाते हैं। वे आपस में एक दूसरे से गले लगते है और मिठाइयों से एक दूसरे का मुँह मीठा करवा कर एक-दूजे को होली की शुभकामनाएं देते हैं।
रंग का उत्सव
होलिका दहन के उपरांत ही उसकी अगली सुबह हो रंगों के त्यौहार होली का उत्सव मनाया जाता है। इस दिन लोग अपनी मान्यता के अनुसार कही पारम्परिक तो कही सफ़ेद रंग के कपड़ो में तो कही-कही पुराने कपड़ो को पहन कर एक दूसरे से रंग खेलते है।
रंगों के त्यौहार होली में बच्चे हो, युवा हो या वयस्क हो, सभी में इस त्यौहार का उत्साह देखते ही बनता है। बच्चे सूरज निकलने के साथ ही अपने दोस्तों की टोली बना कर सभी बच्चे हो या वयस्क हो, उनपर रंग डालते है। बच्चे गुब्बारों में रंग और पानी भरकर रख लेते है, और वहाँ से गुज़रने वाले हर किसी के ऊपर गुब्बारों के रंग से गिला करते है। वही महिलाएं सुबह से ही खाने की चीजे बनाना शुरु कर देती है और दोपहर बाद वो सभी महिलाओं की टोली बनाकर एक दूसरे के घर जाती है और रंग लगाती है। वही युवा अपने हमउम्र के लोगों को ऐसा रंग लगते है कि उन्हें पहचानना तक मुश्किल हो जाता हैं। युवा छोटो को प्यार और बड़े-बुजुर्गों के माथे पर गुलाल लगाकर उनका आशीर्वाद लेते है।
रंगोत्सव की तैयारी
रंगों के त्यौहार होली की तैयारियां होली से कई दिन पहले ही शुरु हो जाती है। लोग अपने घर की साफ-सफ़ाई पहले से ही शुरु कर देते है। वही घर की औरतें होली पर कुछ विशिष्ट खाने की तैयारियां कई दिन पहले ही शुरु कर देती है, जैसे पापड़, चिप्स, मिठाइयां, गुजिया, इत्यादि बनाने का काम।
होली के उत्सव में कुछ विशिष्ट खाने-पिने की चीजे भी बनाई जाती है, जैसे कि होली को गुजिया, गुलाब-जामुन, इत्यादि बनाई जाती है। होली के त्यौहार में भांग पिने और पिलाने का प्रचलन भी बहुत पुराना है। लोग इस दिन भांग या ठंडई पीकर होली में होली-हुड़दंग करते है।
होलिका दहन का इतिहास
रंगों के त्यौहार होली में होलिका दहन का एक महत्वपूर्ण स्थान और अपना ही इतिहास है। होलिका दहन का यह कार्यक्रम फाल्गुन महीने के पूर्णिमा के दिन किया जाता है, और इसकी अगली सुबह लोग एक दूसरे को रंग लगा कर होली के त्यौहार को मानते है। होलिका दहन का पर्व यह सन्देश देता है की भगवान अपने भक्तों के लिए हर जगह हर मुसीबत में होता है। जो अपने सत्यता और विश्व के कल्याण के लिए कार्य करता है ईश्वर हमेशा उसकी रक्षा करता है।
होलिका-दहन होली से एक दिन पहले ही क्यों मनाई जाती है?
होलिका-दहन की पौराणिक कथाएं
भारत के इतिहास में होलिका-दहन का पर्व बुराई पर अच्छाई और असत्य पर सत्य की जीत का सन्देश देती है। होलिका दहन की कई पौराणिक कथाएं है, जिनमें से प्रह्लाद और होलिका की कथाएं काफी प्रचलित है। इसके अलावा शिव-पार्वती और कामदेव की कथा, नारद और युदिष्ठिर की, और विष्णु वैकुण्ड की कथाएं भी प्रचलित है।
1. प्रह्लाद और होलिका की कथा
पौराणिक कथाओं के अनुसार दानवराज हिरण्यकश्यप ने ब्रम्हा से घोर तपस्या करके वरदान प्राप्त किया था की वो न तो किसी देव-दानव, पशु-पछी, मनुष्य या अन्य जीव-जंतु उसे नहीं मार सकता। उसे यह वरदान भी प्राप्त था की न तो कोई अस्त्र-शास्त्र, न दिन में न रात में, न घर में न ही बाहर, न ही आकाश में न ही पाताल में कोई उसे मार सकता है।
इसी वरदान के कारण लोगों पर उसका अत्याचार बढ़ता गया और स्वयं को भगवान और प्रजा से अपनी पूजा करने को कहने लगा। सारी प्रजा मृत्यु के खौफ से हिरण्यकश्यप की पूजा करनी शुरू कर दी। उसका अत्याचार सारे ब्रम्हांड में फैलता गया और चरम पर पहुंच गया। हिरण्यकश्यप का पुत्र प्रह्लाद जो केवल भगवान विष्णु की पूजा और उनका ध्यान करने लगा। इस बात से हिरण्यकश्यप बहुत क्रोधित हुआ और उसने अपने ही पुत्र की हत्या करने की ठान ली। उसके कई प्रयासों के बाद भी प्रह्लाद को कुछ नहीं हुआ। तब उसने अपनी बहन होलिका को उसे मारने को कहा। जिसे वरदान प्राप्त था की अग्नि उसे जला नहीं सकती।
हिरण्यकश्यप के कहने पर होलिका ने प्रह्लाद को अपनी गोद में बिठाकर अग्नि में बैठ गई, परन्तु इस अग्नि में भगवान विष्णु की कृपा से भक्त प्रह्लाद को आँच तक भी न छू सकी और होलिका जिसे आग में न जलने का वरदान था वह उसमें जलकर राख हो गई। होलिका और प्रह्लाद की इसी पौराणिक कथा को आज तक मनाया जाता है क्योंकि यह बुराई पर अच्छाई का प्रतीक है।
2. शिव-पार्वती और कामदेव कथा
इस कथा के अनुसार पार्वती अपने आराध्य शिव जी से विवाह करना चाहती थी। परन्तु शिव जी अपनी तपस्या में लीन रहते थे, जिससे उदास होकर पार्वती ने कामदेव से मदद मांगी और कामदेव ने उनकी मदद करने का वचन दिया। एक दिन जब शिव अपनी तपस्या में लीन थे तब कामदेव ने प्रेम-बाण शिव जी पर चला दिया। जिसके कारण शिव की तपस्या भंग हो गई और उन्होंने क्रोध में अपनी तीसरी आँख से कामदेव को जलाकर भस्म कर दिया। पर कामदेव की पत्नी की आग्रह पर दूसरे दिन शिव जी ने फिर से कामदेव को जीवित कर दिया। तभी से जिस दिन शिव जी ने कामदेव को भस्म किया था उसे होलिका दहन के रूप में और अगले दिन रंगोत्सव के रूप में मानते है।
निष्कर्ष
रंगों का त्यौहार होली भारत के इतिहास में एक मज़बूत मकसद के लिए मनाया जाता है। इसमें हम अपनी बुराइयों को होलिका में जलाकर नए मन के साथ अपने जीवन की यात्रा को शुरु करते है। होलिका-दहन हमें यह सन्देश देता है की किसी के प्रति हमारे अंदर जो द्वेष या बुरी सोच है उसको जलाकर एक नए रंग के साथ उसके साथ सफर प्रारम्भ करें। होली के रंग-बिरंगे रंगों की तरह हम अपने जीवन और दुसरों के जीवन को भी रंगीन बनाएं, और अपनों के प्रति प्रेम, एकता और भाईचारे के सन्देश को सही साबित करें।