प्राचीन समय में समाज के कुछ वर्गों को अन्य वर्गों के द्वारा इतना दबा दिया गया था कि समाज ऊंची और नीची दो जातियों के समूह में बट चुकी थी। समाज के इन दो वर्गों के बीच की खाई को भरने के लिए ही बड़े-बड़े विद्वान और समाज सुधारकों ने आरक्षण का सहारा लेने का विचार किया था। आरक्षण सभी जातियों को उनकी वर्तमान स्थिति और समाज में उनकी जनसंख्या के हिसाब से दिया जाता है। समाज के पिछड़े वर्गों को मुख्य धारा में लाने के लिए दी जाने वाली अतिरिक्त सुविधाएं ही आरक्षण है।
[googleaddsfull status=”1″]
प्रस्तावना
सदियों से चली आ रही जातिगत भेदभाव की कुप्रथा ने समाज को इस प्रकार से जकड़ा था कि जो वर्ग आगे निकल चुके थें वो और आगे निकलते जा रहे थें, जबकि पिछड़ा वर्ग और भी ज्यादा पिछड़ता जा रहा था। जिसके बाद सभी जातियों को उनके क्षेत्र में जनसंख्या के हिसाब से आरक्षण दिये जाने का प्रावधान किया गया। जहां ओबीसी की जनसंख्या अधिक है वहां ओबीसी को ज्यादा आरक्षण और जहां एससी एसटी की जनसंख्या अधिक है वहां एससी एसटी को आरक्षण में वरीयता दी जाती है। उच्च न्यायालय ने आरक्षण का दायरा 50% तक ही रखने का फैसला सुनाया है। जिसके बावजूद बहुत से राज्यों ने अपनी अपनी जनसंख्या के अनुरूप आरक्षण को 50% से ऊपर तक बढ़ाया है।
ओबीसी आरक्षण क्या है? (What is OBC Reservation?)
अन्य पिछड़ा वर्ग (ओबीसी) आमतौर पर सामान्य वर्ग (जनरल) के अंतर्गत आने वाला वह जाति समूह है जो आर्थिक और शैक्षिक के मामलों में बाकी सामान्य वर्ग से पिछड़ा हुआ है। भारतीय संविधान के अनुच्छेद 340 में अन्य पिछड़े वर्ग को सामाजिक और शैक्षणिक पिछड़ा वर्ग (SEBC) के रूप में बताया गया है।
सर्वोच्च न्यायालय ने 1992 में एक फैसले के अंतर्गत ओबीसी को सरकारी सेवाओं में कुल सीटों का 27% आरक्षित करने की बात कही थी। जिसके बाद तत्कालीन केन्द्रीय मंत्री जितेंद्र सिंह ने जनवरी 2016 को लोकसभा में सरकारी नौकरियों में ओबीसी का आरक्षण 21.57% बताया था। सर्वोच्च न्यायालय के इस फैसले के अनुसार उत्तर प्रदेश, दिल्ली, गुजरात, गोवा जैसे आदि राज्यों में ओबीसी का आरक्षण 27% है वहीं कुछ राज्यों में ओबीसी की जनसंख्या के अनुसार 7 से 50 प्रतिशत तक भी है।
आरक्षण क्यों जरूरी है? (Why OBC Reservation Required?)
इसे हमें एक उदाहरण के माध्यम से समझना होगा। मान लेते हैं कि आपको एक परिवार में माँ की भूमिका निभानी है और आपके पास दो बच्चे हैं। सीमित संसाधनों की वजह से आप उन्हें सिर्फ़ एक एक ग्लास दूध ही दे सकते हैं। किसी कारण वश उनमें से एक की तबीयत खराब हो जाती है और डॉक्टर का ये कहना है कि अगर उसकी तबीयत ठीक करनी है, तो उसे दो ग्लास दूध देना ही होगा अन्यथा उसको बचाना मुश्किल हो सकता है।
[googleadds status=”1″]
अब आपको दो ही रास्ते नजर आ रहे होंगे कि या तो आप समानता का परिचय देते हुए दोनों बच्चों को एक एक ग्लास दूध दें या फिर कुछ समय के लिए जब तक कि बीमार बच्चे की हालत में सुधार न आ जाए दोनों ग्लास का दूध बीमार बच्चे को ही दें। फिर जैसे जैसे उसकी हालत में सुधार आता जाएगा दूसरे बच्चे को भी दूध देना शुरू करेंगे।
इसी प्रकार से हमें अपने समाज के प्रति भी माँ जैसी भावना रखनी चाहिए और समाज के जो वर्ग पीछे छूट गए हैं उन्हें आगे बढ़ चुके वर्गों की बजाय कुछ समय के लिए अतिरिक्त सुविधाएं देकर मुख्य धारा में लाने का प्रयास करना चाहिए।
आरक्षण, किसी प्रतियोगिता में हिस्सा लेने वाले सभी समाज के वर्गों को एक ऐसा शुरुआती बिन्दु प्रदान करता है जहां से सभी वर्गों के लिए उनके मंजिल की दूरी बराबर हो। समाज में सभी वर्गों के पास एक जैसे संसाधन की उपलब्धता न होने के कारण किसी भी प्रतियोगिता के लिए तैयारी एक समान नहीं हो सकती है।
उदारण के लिए, एक बड़े नौकरी पेशे या व्यवसायी के घर के बच्चे को अच्छे से अच्छा माहौल और अच्छी पढ़ाई के लिए हर तरह की सुविधा उपलब्ध हो जाती है परंतु एक गाँव के पिछड़े वर्ग का बच्चा जो उन सभी सुविधाओं से हमेशा वंचित रहता आया है जाहीर सी बात है कि वह इस प्रतियोगिता में कभी सफ़ल नहीं हो पाएगा। आरक्षण एक प्रकार की मदद है जो उन वर्गों को दिया जाता है जिनके पास समाज के अन्य वर्गों की तरह उचित संसाधन नहीं है।
महाराष्ट्र और मध्य प्रदेश जैसे अन्य राज्यों में ओबीसी आरक्षण को लेकर विवाद का कारण (Controversy over OBC reservation in other states like Maharashtra and Madhya Pradesh)
भारत में राजनैतिक पार्टियों ने आरक्षण जैसी अतिआवश्यक सुविधा को इस प्रकार से अपने सियासी फायदे के लिए इस्तेमाल किया है कि अब समाज दो मतभेदों में बट चुका है। एक तरफ वो लोग हैं जिन्हें आरक्षण मिल रहा है और दूसरी तरफ वो जिन्हें आरक्षण नहीं मिल रहा। अगर आज के आज सरकार अपनी राजनीति छोड़कर नागरिकों की भलाई के बारे में सोचना शुरू कर दे तो सारे मतभेद पलक झपके दूर हो सकते हैं लेकिन ऐसा करने से उनका वोट बैंक खराब हो जाएगा। समय समय पर जब जिस पार्टी को जरूरत पड़ी उसने उस तरह के नियम लाकर जनता के साथ वोटों की राजनीति की है, लेकिन अन्तत: जनता को सिर्फ़ आपसी विवाद ही मिला है।
[googleadsthird status=”1″]
महाराष्ट्र में चल रहे विवादों के पीछे भी मौजूदा सरकार (28 November 2019 से अब तक) का स्वार्थ छिपा हुआ है। मौजूदा सरकार का कहना है कि महाराष्ट्र में ओबीसी को 27% आरक्षण देने से कुल आरक्षण 50% की सीमा से बाहर चला जाएगा जो कि सर्वोच्च न्यायालय के निर्णय का उल्लंघन होगा। जबकि महाराष्ट्र सरकार वहां के मूल निवासी मराठों को आरक्षण देने के पक्ष में है। इसी प्रकार से मध्य प्रदेश की पूर्व सरकार (17 December 2018 – 23 March 2020) ने भी चुनाव के समय ओबीसी का आरक्षण 14% से बढ़ाकर 27% करने का आश्वासन दिया था लेकिन चुनाव के बाद मामला कोर्ट में जाने की वजह से सब धरा का धरा रह गया। भारत में सरकारे आती हैं और जाती हैं लेकिन आरक्षण का मामला हमेशा विवादित ही रहता है।
NEET परिक्षा में ओबीसी आरक्षण विवाद का कारण (Reason for OBC Reservation Controversy in NEET Exam)
NEET परिक्षा में ओबीसी छात्रों को बीते चार वर्षों से केंद्र में बैठी बीजेपी सरकार ऑल इण्डिया कोटा में आरक्षण नहीं दे रही है जिससे छात्रों और विपक्षों में खासी नाराज़गी है। सरकार के इस कदम से बीते चार सालों में कुल मिलाकर 40,824 सीटें थी जिसमें 11,027 सीटें ओबीसी छात्रों के लिए होती परन्तु ये सीटें भी जनरल में ही दे दी गई।
जबकि SC ST के साथ साथ सवर्णों के लिए भी सीटें आरक्षित हैं अगर नहीं है तो सिर्फ़ ओबीसी की सीटें। तमिलनाडु के कई संस्थानों ने इसके खिलाफ़ आवाज़ भी उठाया लेकिन अब तक कोई बदलाव नहीं हुआ वहीं महाराष्ट्र में बीजेपी सरकार ओबीसी का हमदर्द बनने की कोशिश करते हुए जगह जगह पर धरने देकर ओबीसी को 27% आरक्षण दिलाने का वादा कर रही है।
क्या ओबीसी आरक्षण हटाना जनता और देश के विकास के लिए सही होगा? (Will removing OBC reservation is good for the development of the people and the country?)
आज भले ही पहले जैसी जातिगत समस्याएं देखने को कम मिलती हों परन्तु समाज के कुछ वर्ग अब भी काफी पीछे हैं जिनको विकास की मुख्य धारा में लाने के बाद ही देश का विकास संभव है। शरीर के केवल एक हाथ का विकास हो जाने से वह शरीर विकसित नहीं बल्कि विकलांग कहलाता है।
जिस प्रकार शरीर के संपूर्ण विकास के लिए दोनों हाथों का बराबर विकास जरूरी है उसी प्रकार संपूर्ण समाज के विकास के लिए हर वर्ग का एक समान विकास भी उतना ही जरूरी है। पीछे छूट चुके वर्गों को पीछे ही छोड़ देना कहीं की समझदारी नहीं है सतत विकास के लिए सबकी भागिदारी जरूरी है और उसके लिए समाज के उन वर्गों को हमें अतिरिक्त सुविधाएं देकर आगे बढ़ाना होगा जो उचित संसाधन न मिलने के कारण पीछे रह गए हैं।
निष्कर्ष
वर्तमान समय में आरक्षण एक विवादित मुद्दा बन चुका है जिसका पूरा श्रेय राजनैतिक दलों को जाता है। लेकिन एक जिम्मेदार नागरिक होने के नाते हम इस आरोप से भी नहीं बच सकते कि कहीं न कहीं आरक्षण को विवादित बनाने में हमारा भी योगदान है। दरअसल हमें यहां अपने फायदे या नुकसान को किनारे रख के सबसे पहले समाज के बारे में सोचना चाहिए कि यदि यह समाज हमारा परिवार होता तो क्या हम अपने परिवार के एक सदस्य को जरूरी संसाधनों से वंचित रखते क्या हमारी ये कोशिश नहीं रहती कि हम परीवार के उस कमजोर सदस्य को अतिरिक्त सुविधाएं देकर बराबरी में लाएं। किसी भी सरकार को आरक्षण लागू करने के साथ साथ यह भी सुनिश्चित करना होगा कि क्या समाज के जिस वर्ग के लिए आरक्षण लाया गया है उस वर्ग के जरूरतमंद लोगों को इसका लाभ मिल पा रहा है या नहीं।
उत्तर – 1909 के भारत सरकार अधिनियम में ब्रिटिश राज ने सबसे पहले आरक्षण के तत्वों को पेश किया था।
उत्तर – 1954 में, शिक्षा मंत्रालय ने शैक्षणिक संस्थानों में एससी एसटी के लिए 20% आरक्षण देने का विचार किया था।
उत्तर – 1980 के आयोग की रिपोर्ट में ओबीसी के लिए 27 प्रतिशत आरक्षण देने की सिफारिश की गई थी।
उत्तर – 2019 में सवर्णों के लिए शैक्षणिक संस्थानों और सरकारी नौकरियों में 10% आरक्षण देने की घोषणा की गई।
उत्तर – भारतीय संविधान का अनुच्छेद 15(4) तथा 46 आरक्षण से संबंधित है।
उत्तर – छत्रपति शाहू जी महाराज को भारत में आरक्षण का जनक कहा जाता है।