सिनेमा घरों में पिक्चर शुरू होने से पहले राष्ट्र गान बजने पर खड़े हो जाने मात्र को ही बहुत से लोग देशभक्ति समझते हैं, लेकिन कुछ ही घंटे बाद सिनेमा घर से बाहर निकलते ही हमारी देशभक्ति उस दो घंटे के पिक्चर की तरह ही समाप्त हो जाती है। अब आपका सवाल ये होगा कि अगर स्वतंत्रता दिवस मनाना, देश प्रेम की बातें करना या फिर राष्ट्र गान बजने पर उसके सम्मान में खड़ा होना देशभक्ति नहीं है तो फिर देशभक्ति की परिभाषा क्या है?
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तो आइए हम एक निबंध के माध्यम से इस तथ्य को भली भांति समझते हैं।
प्रस्तावना
15 अगस्त 1947 को देश आजाद होने के पहले की बलिदानियों की कहानियाँ तो आप सभी ने सुनी होगी। आज भी हमारे अंदर देशभक्ति की भावना लाने के लिए हम सब उन्हीं कहानियों और गीतों का सहारा लेते हैं, मगर यहां सोचने और अफसोस करने वाली बात ये है कि उन कहानियों और गीतों के खत्म होते ही हमारी देशभक्ति न जाने कहां गायब हो जाती है।
देशभक्ति की परिभाषा
देशभक्ति एक प्रकार की भावना है जो हमें सभी जाति धर्मों से ऊपर उठकर देश के लिए कुछ कर गुजरने का जज़्बा देती है। इस जज़्बे की हद इतनी होती है कि अगर अपने जाति या धर्म के देवता भी हमारे देश के बारे में अपशब्द बोलें तो हम उनसे भी लड़ जाएं। चाहे अपना मित्र हो या फिर अपना कोई सगा ही क्यूँ न हो लेकिन देश के खिलाफ़ जाने वाले हर एक इंसान का विरोध करने की भावना ही देशभक्ति है।
देशभक्ति को समझने के लिए हमें देशभक्ति को दो हिस्से में बांटना होगा –
दिखावे की देशभक्ति – आज कल हम सब स्वतंत्रता दिवस आते ही अपने-अपने सोशल अकाउंट्स पर तिरंगे की तस्वीर लगा कर खुद को देशभक्त कहते हैं। दो चार स्वतंत्रता सेनानियों की जीवनी रट कर खुद को आजादी के इतिहास का बहुत बड़ा ज्ञाता समझने लगते हैं। यहां तक कि दूसरों को देशभक्ति का ज्ञान भी देते हैं, लेकिन खुद सारी उम्र देशभक्ति के सही मतलब से अंजान होके रहते हैं। हमारे समाज में दिखावे की देशभक्ति करने वालों की जनसंख्या बहुत अधिक है। ये वो लोग होते हैं जो छोटी-छोटी बातों पर समाज के दूसरे धर्म के लोगों को देशद्रोही का नाम देकर कर खुद को देशभक्त समझते हैं और अपनी सियासी रोटियां सेकते हैं।
कर्म की देशभक्ति – कर्म की देशभक्ति का अर्थ आप इस बात से लगा सकते हैं कि देश के लिए वो भावना रखना जो देश की उन्नति और मान सम्मान के पक्ष में हो। देश में कोई भी सरकार हो लेकिन सदैव देश की भलाई के लिए आवाज उठाना ही कर्म की देशभक्ति है। आप किसी भी जाति संप्रदाय से क्यों न हो या फिर किसी भी धर्म से क्यों न हो लेकिन अगर आप भारत के वासी हैं तो आपको किसी एक जाति, धर्म या संप्रदाय के हित के बारे में न सोचकर हमेशा उसी बात को बढ़ावा देना चाहिए जो सिर्फ और सिर्फ हमारे देश के हित में ही हो। बात चाहे देश की विरासतों की हो या फिर देश की प्राचीन धरोहरों की, हमारा हर वक्त इनकी रक्षा के लिए तैयार रहना ही कर्म की देशभक्ति है।
15 अगस्त को ही देश भक्ति उमड़ने का कारण
महंगाई ने देशवासियों को इस प्रकार जकड़ा हुआ है कि लोग अपनी रोजी रोटी में ही व्यस्त हैं उनके पास अपने रिश्तेदार तथा पड़ोसियों के साथ भी दो घड़ी बैठने का समय नहीं है। पैसे ने लोगों को इस प्रकार अंधा बना दिया है कि वो अपने ही बच्चों का बचपन नहीं देख पाते हैं।
आज कल के जीवन में कदम-कदम पर प्रतियोगिताएं हैं जिनसे जूझने में लोग इतने व्यस्त हो जाते हैं कि उन्हें अपने स्वास्थ्य का खयाल नहीं रहता। स्वतंत्रता दिवस उन त्यौहारों की तरह बन के रह गया है जो इस व्यस्तता से भरी जिंदगी में दो चार महीने में एक बार आता है और व्यस्त लोगों के दिनचर्या में 1 दिन कि छुट्टी लाता है।
हमें देशभक्ति किनसे सीखनी चाहिए?
महात्मा गांधी, सुभाष चंद्र बोस, भगत सिंह, बाल गंगाधर तिलक, मंगल पाण्डे, रानी लक्ष्मी बाई……… ये सूची स्वतंत्रता संग्राम के संघर्षों के दिनों जितनी ही लंबी और देशभक्ति से परिपूर्ण है। इन महान देश भक्तों के अलावा हमें हमारे देश के फ़ौजियों से भी देशभक्ति की सीख लेनी चाहिए कि किस प्रकार निष्पक्ष भाव से देश की सेवा की जाती है।
ये सूची यहीं समाप्त नहीं होती है, न जाने क्यूँ हम नजर अंदाज कर देते हैं लेकिन हमारे आस पास के ऐसे लोग, जो सदैव देश के हित में सोचते हैं और देश के साथ कुछ गलत होता देख आवाज उठाते हैं, वो भी एक सच्चे देशभक्त का उदाहरण हैं।
शहीदों की तरह देशभक्ति की भावना हमारे भीतर क्यों नहीं है?
दरअसल आज के इस दौर में हम सब सिर्फ़ अपने बनाए जाति धर्मों के लिए सोचते हैं, देश के लिए हमें क्या करना चाहिए ये कभी सोचते ही नहीं हैं। उसने हिन्दू के बारे में क्या बोला, उसने मुसलमानों के बारे में क्या बोला, हम सिर्फ़ इन्हीं चोंचलों में ही उलझे रहते हैं, अन्य देशों का भारत के प्रति क्या राय है, विदेशी लोग हम भारतीयों के बारे में क्या विचार रखते हैं इससे हमें कोई फ़र्क नहीं पड़ता।
जब कि हम सब को सभी जाति धर्मों से ऊपर उठकर देश की प्रगति और मान सम्मान के बारे में सोचना चाहिए और जरूरत पड़े तो देश के लिए अपनी जान भी दाव पर लगा देनी चाहिए।
एक देश भक्त के रूप में देश के प्रति हमारी क्या भूमिका होनी चाहिए?
हम अपने व्यतिगत कार्य से या फिर व्यवसाय या नौकरी करने के लिए भले ही दूसरे देशों मे क्यों न रहें लेकिन दूसरे देश में होने के बावजूद भी अपने ही देश की उन्नति के बारे में सोचना भी एक सच्ची देशभक्ति का ही प्रतीक है। देश में होने वाली गलत गतिविधियों को रोकने में प्रशासन कि मदद करना और जरूरत पड़ने पर सरकार के खिलाफ़ धरने पर बैठना भी देशभक्ति का ही उदाहरण है।
देश पर मर मिटने का फ़र्ज सिर्फ़ हमारे फ़ौजि भाईयों का ही नहीं हैं बल्कि भारत देश का नागरिक होने के नाते इस देश के प्रति हमारी भी कुछ व्यक्तिगत जिम्मेदारियाँ हैं, जिन्हें हम सब अपनी निजी जिंदगी की चकाचौंध में खो कर भूल नहीं सकते हैं। संविधान में दर्ज हमारे कर्तव्यों के अलावा भी बहुत से ऐसे फ़र्ज हैं जिनका हमें निर्वाहन करना ही चाहिए।
हम अपनी देशभक्ति का आँकलन कैसे करें?
हमारे दिल में देश के लिए बहुत प्रेम है, हम देश के लिए किसी भी हद से गुजर सकते हैं, महज़ इन तरीकों की बातों से आप अपनी देशभक्ति की भावना का आँकलन नहीं कर सकते। जिस प्रकार से सच्चे मित्र की पहचान आपको आपके मुसीबत के समय होती है उसी प्रकार से ये देश भी अपने ऊपर मुसीबत पड़ने पर अपने सच्चे देशभक्तों को प्राप्त कर ही लेता है।
आपके लाख चीख-चीख के कहने से आपकी देशभक्ति साबित नहीं होती। देश पर आने वाली संकट से देश को बचाने के लिए आप कौन-कौन से कदम उठाते हैं और किस हद तक खुद देश के लिए समर्पित करते हैं, इसी से आपकी देशभक्ति की भावना का पता चलता है।
निष्कर्ष
आज के समय में हमारे अंदर सिर्फ़ स्वतंत्रता दिवस पर ही देशभक्तिउफ़ान मारती है। स्वतंत्रता दिवस के ठीक एक दिन पहले या एक दिन बाद हमारी देशभक्ति मानो हमारे दिलों की अनंत गहराई में कहीं दबी-दबी सी रहती है और ठीक स्वतंत्रता दिवस पर हमारे दिल में देशभक्ति की एक सुनामी उठती है जिससे हम खुद को देशभक्त की संज्ञा देखर खुश हो जाते हैं और वापस से शांत लहरों की तरह पड़े रहते हैं। राष्ट्र गान बजते ही खड़े हो जाने मात्र से देशभक्ति साबित नहीं होती है बल्कि हमें राष्ट्र गान के एक-एक शब्द का अर्थ भी जानना होगा और उसे ज्यों का त्यों अपने जीवन में उतरना होगा।
उत्तर – भगत सिंह का परिवार ग़दर पार्टी का समर्थक था और वहीं से उनमें देश भक्ति की भावना उत्पन्न हुई।
उत्तर – महात्मा गाँधी के गुरु का नाम गोपाल कृष्ण गोखले था।
उत्तर – महात्मा गांधी ने सुभाष चंद्र बोस को देशभक्तों के देशभक्त की संज्ञा दी थी।
उत्तर – 1915 में राजवैद्य जीवराम कालिदास ने गांधी जी को महात्मा की उपाधि दी थी।
उत्तर – सुभाष चन्द्र बोस ने महात्मा गांधी को सबसे पहले राष्ट्रपिता कहा था।