वर्तमान समय में जमीन और आसमान की तरह ही गरीबी और शिक्षा का भी कोई मेल जोल नहीं है। गरीब घर का बच्चा या तो स्कूल ही नहीं जा पाता है या फिर थोड़ी बहुत पढ़ाई करने के बाद उसे किसी न किसी कारण वश अपनी पढ़ाई छोड़नी पड़ जाती है। गरीब घर के लड़के किसी तरह कुछ दर्जे तक पढ़ाई कर भी लेते हैं परन्तु गरीब घर की बहुत सी लड़कियाँ तो जीवन भर स्कूल की दहलीज भी लांघ नहीं पाती हैं।
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प्रस्तावना
आज कल शिक्षा इतनी महंगी हो चुकी है कि एक मध्यमवर्गीय परीवार भी अपने बच्चों की फीस देने में थक जा रहा है तो एक गरीब परीवार भला इतने पैसों का इंतजाम कैसे करेगा। ऊपर से अगर बात अपने बच्चों को प्राइवेट स्कूलों में पढ़ाने की हो तो अच्छे अच्छे अमीरों की भी हालत खराब हो जाती है। ऐसे में एक गरीब घर के बच्चे को उच्च शिक्षा तो दूर शिक्षा ही मिल जाए तो बहुत बड़ी बात होगी। इतनी महंगाई में एक गरीब के घर में दो वक्त का भोजन ही बन जाए तो बहुत है, अपना तन ढकने के लिए ठीक ठाक कपड़े ही मिल जाना खुशी की बात होती है, ऐसे में पढ़ाई के लिए खर्च कर पाना बहुत मुश्किल साबित होता है।
गरीब बच्चों को उच्च शिक्षा न मिल पाने का कारण (Reasons for Poor Children not getting Higher Education)
वर्तमान समय में गरीब घरों के अभिभावक अपने बच्चों को प्राइवेट जैसे महंगे स्कूलों में भेजने के बारे में तो सोच भी नहीं सकते हैं। पढ़ाई के अलावा तरह तरह के शुल्कों का बोझ एक गरीब परिवार के लिए उस कर्ज के समान है जिसे कभी चुकाया नहीं जा सकता है। गरीब बच्चों को उच्च शिक्षा न मिल पाने के प्रमुख कारण निम्नलिखित है-
गरीब परिवार के बच्चे या तो किसी सरकारी स्कूल से अपनी पढ़ाई की शुरुआत करते हैं या फिर किसी संस्था द्वारा संचालित मुफ्त स्कूलों से। जिसमें पढ़ाने वाले अधिकतर अध्यापक पढ़ाने के लिए योग्य नहीं होते हैं। एक बच्चे का भविष्य पूरी तरह से उसको पढ़ाने वाले अध्यापकों पर ही निर्भर होता है यदि अध्यापक ही योग्य नहीं होगा तो वह बच्चों को किसी भी परीक्षा के योग्य कैसे बना सकता है। आज सरकारी स्कूलों के बहुत से ऐसे वीडियो इंटरनेट पर आते रहते हैं जिसमें अध्यापक आसान सवालों का भी जवाब नहीं दे पाते हैं। गरीब घर का बच्चा जिसके पास इतने पैसे नहीं है कि वह प्राइवेट स्कूल में जा सके उसकी मजबूरी हो जाती है ऐसे अयोग्य अध्यापकों से पढ़ने की और अंततः वह पढ़ाई में कमजोर निकलता है। जो उसे उच्च शिक्षा प्राप्त करने में एक बाधा उत्पन्न करता है।
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आज भी देश में ऐसे बहुत से गाँव हैं जहां जरूरी सुविधाएं रेगिस्तान में बरसात के जैसे है जिसका कोई भरोसा नहीं। भले ही हम 21 वीं सदी में आ चुके हैं भले ही हम बहुत विकास कर चुके हैं लेकिन आज भी बहुत से गाँव वैसे के वैसे ही पिछड़े हुए हैं जहां से स्कूल कई किलोमीटर दूर स्थित है। छोटे छोटे बच्चे बहुत हिम्मत करके एक दिन स्कूल जाते हैं लेकिन वापस आकर वो इतना थक जाते हैं कि अगले दिन उनके पैर जवाब दे देते हैं। पढ़ाई उस भोजन की तरह है जिसे शरीर को रोज देना जरूरी है वरना शरीर का विकास सतत रूप से नहीं हो पाएगा। ऐसे में जब बच्चे रोज स्कूल जा ही नहीं पाएंगे तो वो पढ़ेंगे कैसे और जब पढ़ेंगे नहीं तो जाहीर सी बात है उच्च शिक्षा की प्राप्ति जीवन में कभी नहीं हो सकती।
गरीब परिवार के बच्चे कैसे भी करके पैदल या किसी अन्य साधन से स्कूल पहुँच भी जाते हैं तो ऐसे स्कूलों में शिक्षा के कोई खास इंतजाम ही नहीं रहते हैं। बच्चों को सरल से सरल तरीके से समझाने के लिए कोई भी संसाधन उपलब्ध नहीं रहते। पढ़ाई को रुचिकर बनने के लिए ऐसे स्कूलों में नए तकनीकों की कमी हमेशा बनी रहती है। ऐसे स्कूलों में न ही ढंग की किताबें मिल पाती हैं और न ही पढ़ाई का कोई खास तरीका होता है। बस बच्चे और अध्यापक स्कूल आने और जाने का अपना अपना दायित्व निभाते हैं।
कभी समय निकाल कर अगर अपने आस पास के आंगनवाड़ी या सरकारी स्कूलों पर नजर डालें तो लगभग सभी का एक सा ही हाल होगा। कहीं पर स्कूल के बाहरी दीवारें टूटी हुई हैं तो कहीं पर कक्षाओं की छत गिर रही है और तो और कहीं कहीं पर कोई कक्षा जैसी चीज ही नहीं होती। बगल में गाय भैंस बंधे हुए है और अध्यापक वहीं पास में बच्चों को पढ़ाने की कोशिश कर रहा है जबकि बच्चों का पूरा ध्यान कहीं और ही है। ऐसे स्कूलों में बच्चों को बैठने के लिए ढंग के कुर्सी मेज या बेंच भी बहुत ही दुर्लभ परिस्थिति में देखने को मिलती है।
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शहरों में भले वर्तमान समय में लड़के लड़कियों में कोई अंतर न समझा जाता हो परंतु आज भी ऐसे गाँव है जहां लड़कियों को पढ़ाना व्यर्थ ही समझा जाता है। गरीब परिवारों की मानसिकता आज भी पुरानी की पुरानी है। देश में भले लड़कियों के विवाह की उम्र 18 वर्ष निश्चित की गई है परंतु आज भी गांवों के गरीब परिवारों में लड़कियों का विवाह 14–15 की अवस्था में कर दी जाती है। ऐसे में जल्दी कोई लड़की 5वीं कक्षा तक भी नहीं पहुँच पाती है।
एक गरीब परिवार का मुखिया या तो मजदूरी करता है या फिर थोड़े बहुत खेत पर खेती करके अपने परिवार का भरण पोषण करता है। ऐसे में किसी किसी दिन तो उसके घर में चूल्हा ही नहीं जल पाता है। ऐसे परिवार के बच्चे जैसे तैसे रूखी सुखी रोटियाँ खाकर ही कई कई दिन गुजार देते हैं। मतिस्क के विकास के लिए उचित पोशाक तत्वों की बहुत आवश्यकता होती है जो हमें भोजन से ही प्राप्त होती है। बच्चों को पोस्टिक भोजन न मिल पाने के कारण उसके मतिस्क का विकास रुक जाता है जिसके बाद उन्हें कितने भी अच्छे से कितनी भी सुविधाएं देकर क्यूँ न पढ़ाएं लेकिन उन्हें कुछ समझ ही नहीं आएगा।
बच्चों को तैयार करके प्रतिदिन स्कूल भेज देने मात्र से ही बच्चों की पढ़ाई सम्पन्न नहीं होती। बच्चों को नए-नए किताबों और तकनीकों का मिलना भी बहुत जरूरी है। एक उच्च स्तर की पढ़ाई के लिए वर्तमान समय में काफी खर्च की आवश्यकता होती है। पढ़ाई के अलावा अन्य प्रतिभाओं को निखारने के लिए भी खर्च की आवश्यकता होती है। बचपन से ही बच्चों को कंप्युटर आदि का ज्ञान प्राप्त करना बेहद जरूरी है जिसको शिक्षा के खर्च के अंतर्गत ही लिया जाता है।
गरीब परिवारों में बच्चों को 13–14 वर्ष के होते ही पारिवारिक जिम्मेदारियों का आभास होने लगता है। बचपन से ही वे सीमित संसाधनों में गुजारा करते आए हैं। बढ़ती उम्र के साथ सबकी तरह उनकी भी आवश्यकताओं की गगरी बढ़ती जाती है जिसे पूरा करने के लिए खुद कमाने के अलावा उन्हें दूसरा कोई उपाय नजर नहीं आता है। घर में सबसे बड़े पिता के ऊपर भी पूरे परिवार की जिम्मेदारी रहती है। बच्चों के बड़े होने पर खर्च भी उसी प्रकार से बढ़ जाता है और इस खर्च को उठाना घर के सिर्फ़ एक सदस्य के लिए बहुत ही मुश्किल होता है। जिसके फलस्वरूप बच्चे खुद कमाने के लिए कहीं कोई छोटी मोती नौकरी करने लगते हैं और पढ़ाई धरी की धरी रह जाती है।
वर्तमान समय में किसी भी उच्च स्तरीय शिक्षा के लिए लगने वाला खर्च एक गरीब परिवार के लिए बहुत बड़ी रकम होती है। एक गरीब घर का बच्चा जो पढ़ाई में काफ़ी अच्छा है 10–12 तक पढ़ने के बाद घर की आर्थिक स्थिति के कारण उसकी पढ़ाई वहीं पर रुक जाती है। कुछ बच्चे जो ज्यादा होनहार रहते हैं छोटा मोटा ट्यूशन पढ़ाकर अपनी पढ़ाई बरकरार रखने की कोशिश करते हैं लेकिन उच्च स्तर की शिक्षा प्राप्त करने के लिए शुल्क जमा कर पाना उनसे नहीं हो पाता। एक गरीब परिवार का बच्चा कितना ही होनहार हो लेकिन आज के समय में डॉक्टर, इंजीनियर की पढ़ाई कर पाना उसके लिए बहुत मुश्किल साबित होता है।
बचपन से ही घर की असंतुलित स्थिति देखते देखते बड़े हुए गरीब घर के बच्चों की मानसिकता भी उसी प्रकार से बन जाती है। बड़े होने के साथ उनकी पढ़ाई के प्रति रुचि भी समाप्त होने लगती है। ऐसे बच्चे अपने आस पास के लोगों को हमेशा दो वक्त की रोटी के लिए ही परेशान देखा है। गरीब समाज में केवल कभी भी पढ़ाई लिखाई का कोई माहौल न मिलने के कारण बच्चे एक समय के बाद पढ़ाई को व्यर्थ समझने लगते हैं और अंततः पढ़ाई छोड़ कर आमदनी का जरिया ढूँढने लगते हैं।
निष्कर्ष
गरीबी एक दीमक की तरह है जो वर्तमान समय में इंसान को अंदर से खोखला करता जा रहा है। इस गरीबी में बच्चों को उच्च शिक्षा दिलाना तो और भी अधिक चुनौती पूर्ण कार्य है। वैसे तो अब ऐसे बहुत से सरकारी सुविधाएं गरीबों को दी जा रही है, जिससे उनके बच्चों को शिक्षा प्राप्त करने में कोई दिक्कत न आए लेकिन अफसोस की बात यह है कि आज कल गरीबों की मानसिकता बहुत संकुचित हो चुकी है। वो खुद तय कर लेते हैं कि गरीबी में उच्च शिक्षा की प्राप्ति नहीं हो सकती। ऐसे परिवारों को शास्त्री जी और अंबेडकर साहब के जीवन से प्रेरणा जरूर लेनी चाहिए।
उत्तर – भारत के पहले सरकारी स्कूल की स्थापना 1789 में किद्दरपुर, कोलकाता, पश्चिम बंगाल, में हुआ था।
उत्तर – सावित्री बाई फूले भारत की पहली महिला अध्यापिका थीं।
उत्तर – 4 मई, 1796 को फ्रैंकलिन, मैसाचुसेट्स में जन्मे होरेस मान को शिक्षा का जनक कहा जाता है।
उत्तर – सेंट पॉल स्कूल भारत का पहला प्राइवेट स्कूल था, जिसे 1 मई 1823 को दार्जिलिंग, पश्चिम बंगाल, में स्थापित किया गया था।