एक छत के नीचे जहां व्यक्तियों का समुह निवास करता है, तथा उनके मध्य खून का संबंध होता है उसे परिवार की संज्ञा से संदर्भित करते हैं। इसके अतिरिक्त शादी का तथा गोंद लेने पर भी यह परिवार के संज्ञा में शामिल हो जाते हैं। मूल तथा संयुक्त यह परिवार के स्वरूप हैं। छोटे परिवार को एकल परिवार या मूल परिवार कहते हैं, इसमें दम्पत्ति के साथ उनके दो बच्चे परिवार के रूप में निवास करते हैं। इसके विपरीत बड़ा परिवार जिसे संयुक्त परिवार के नाम से भी जाना जाता है, इसमें एक पीड़ी से अधिक लोग निवास करते हैं, जैसे दादा-दादी, नाना-नानी, चाचा-चाची आदि।
मेरा परिवार पर छोटे तथा बड़े निबंध (Short and Long Essay on My Family in Hindi, Mera Pariwar par Nibandh Hindi mein)
मेरा परिवार पर निबंध – 1 (250 – 300 शब्द)
परिचय
सामान्यतः कुछ व्यक्तियों का समूह जिनमे रक्त सम्बन्ध, विवाह सम्बन्ध आदि होते है, उन्हें परिवार कहा जाता है। वास्तविक परिवार वह होता है जो जरुरत के समय एक दूसरे के लिए सदैव उपस्थित रहता है। मेरा परिवार संयुक्त परिवार की श्रेणी में आता है, जिसमें माता-पिता तथा हम तीन भाई बहनों के अलावां दादा दादी भी रहते हैं।
मेरे परिवार की विशेषता
मेरे परिवार के सभी सदस्य एक दूसरे को अच्छे से समझते है। हम सभी एक दूसरे की कार्य करने में सहायता करते है। वर्तमान समय के, व्यस्तता भरे जीवन में संयुक्त परिवार का प्रचलन कम होता जा रहा है। अब ज्यादा-तर मूल परिवार ही समाज में देखने को मिलते हैं। जीवन के भागा-दौड़ में, संयुक्त परिवार विभक्त होकर जहां मूल परिवार के रूप में परिवर्तित हो गए है, वहीं मूल परिवार का आकार भी अब छोटा होने लगा है। हम सभी एक साथ खुशी से रहते है।
मेरे परिवार की जीवनचर्या
व्यक्ति के सही व्यक्तित्व का निर्माण परिवार द्वारा ही सम्भव है। मेरे परिवार में रहने वाले दादा जी तथा दादी माँ, बेशक मुझे रोज़ कहानीयाँ नहीं सुनाते पर अपने समय की बाते बताते रहते है, जिसे सुनना अपने आप में एक आनंद है। इसके साथ ही जीवन को सही ढ़ंग से जीने की प्रेरणा मिलती है।
निष्कर्ष
व्यक्ति के जीवन में शारीरिक, आर्थिक तथा बौद्धिक विकास के लिए पूर्ण रूप से एक परिवार ज़िम्मेदार होता है। सम्भवतः इसलिए व्यक्ति के अच्छे-बूरे कर्मों के लिए समाज सदैव परिवार की सराहना या अवहेलना करता हैं।
मेरे परिवार पर निबंध – 2 (400 शब्द)
मेरा परिवार एक मूल तथा खुशहाल परिवार है, जिसमें माता पिता के साथ मैं और मेरा छोटा भाई रहते है तथा हम मध्यम वर्गीय परिवार के श्रेणी में आते हैं। व्यक्ति के आवश्यकताओं की पूर्ति परिवार, बिना किसी स्वार्थ के करता है। इसलिए हम सब के जीवन में परिवार का बहुत महत्वपूर्ण स्थान होता है। समाज के इकाई के रूप में भी परिवार महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। क्योंकि परिवारों के समुह से समुदाय तथा समुदायों को मिलाने से समाज का निर्माण होता है अतः सही समाज के लिए, आदर्श परिवार का होना अतिआवश्यक है।
व्यक्ति के जीवन में परिवार के स्नेह का महत्व
यह आवश्यक है की, परिवार के मध्य बड़े हो रहे बच्चों को स्नेह दिया जाए तथा सही तरह से उनकी देख-भाल की जाए, समाज में हो रहे अपराधों में ज्यादातर ऐसे अपराधी हैं जो कम उर्म के हैं तथा उन्होंने पहली बार यह अपराध किया होता है। व्यक्ति के साथ परिवार का सही व्यवहार न होने के वजह से व्यक्ति का बौद्धिक विकास नहीं हो पाता तथा वह मानसिक रूप से कई यातनाओं को बर्दाश्त कर रहा होता है। हम अपने भावनाओं को परिवार के साथ बांटते है पर जब परिवार ही हमारे साथ सही व्यवहार न करें तो हमारे व्यक्तित्व में अनेक प्रकार के विकार उत्पन्न हो जाता है तथा यह व्यक्ति तो अपराध की ओर अग्रसर करते हैं।
व्यक्ति पर परिवार के नेतृत्व का समाज पर प्रभाव
ऐसे अनेक केस समाज के सामने आये हैं, जिसका शोध करने पर यह पाया गया है की अपराधी का परिवारिक पृष्टभूमि (Family Background) समान्य नहीं है, उसमें तनाव पाया गया गया है। बचपन में अपने पारिवारिक अशांति के वजह से बच्चे के मन मस्तिष्क में गुस्सा बना रहता है जो आगे चल कर परिवार तथा समाज के लिए अफशोस का सबब बनता है। सिर्फ बच्चे के प्रति नैतिक ज़िम्मेदारी पूरी करने से वह सही व्यक्ति नहीं बनता अपितु उसके लिए परिवार में सही वातावरण का होना भी उतना ही आवश्यक है। इससे विपरीप समाज में ऐसे अनेकों उदाहरण मिल जायेगे जिसका परिवार दो वक्त के भोजन के लिए कठिन परिश्रम करता था पर उस परिवार में पले बच्चें आज समाज के महत्वपूर्ण पदों आसीन हैं तथा समाज को विकास की ओर अग्रसर कर रहें हैं।
निष्कर्ष
बच्चा भविष्य में क्या बनेगा यह पूर्ण रूप से बच्चे के परिवार पर निर्भर करता है। सही मार्ग दर्शन के मदद से पढ़ाई में कमजोर बच्चा भी भविष्य में सफलता के नये आयाम को चुमता है इसके विपरीत मेधावी छात्र गलत मार्ग दर्शन के वजह से अपना लक्ष्य भूल जाता है तथा जीवन के दौड़ में कहीं पीछे छुट जाता है।
मेरे परिवार पर निबंध– 3 (500 शब्द)
परिचय
वह समुह जहां एक दम्पत्ति के साथ दो बच्चे रहते हैं, उसे छोटा मूल परिवार कहा जाता है। एक दम्पत्ति के साथ जहां दो से अधिक बच्चे निवास करते हैं उसे बड़ा मूल परिवार के नाम से जाना जाता है। तथा जहां माता-पिता व बच्चों के अलावां दादा-दादी, चाचा-चाची आदि सदस्य रहते हैं उसे संयुक्त परिवार कहा जाता हैं। मेरा परिवार छोटा संयुक्त परिवार है। जिसमें हम भाई बहनों और माता-पिता के अलावां दादा-दादी भी हमारे साथ रहते हैं।
“वसुधैव कटुम्बकम्” (यह पूरा विश्व हमारा परिवार है)
किसी भी विकसित देश के निर्माण में परिवार की महत्वपूर्ण भूमिका होती है। परिवार के विकास से देश विकास की सीढ़ीयां चढ़ता है। परिवार से राष्ट्र का निर्माण होता है तथा राष्ट्रों से विश्व का निर्माण होता है। इसलिए कहा गया है, “वसुधैव कटुम्बकम्” अर्थात यह पूरा विश्व हमारा परिवार है। तथा प्राचीन भारत में इसका बहुत महत्व था जो अब समय के साथ धीरे-धीरे विलुप्त होता जा रहा है। इसका एक प्रमुख कारण संयुक्त परिवार का मूल परिवार में बदल जाना भी है।
मेरे जीवन में परिवार का महत्व
मेरा परिवार, संयुक्त परिवार होने के बाद भी सुखी परिवार है। तथा मैं खुश हुँ की मेरा जन्म इस संयुक्त परिवार में हुआ। जिसमें परिवार के माध्यम से ही हम हमारे बचपच में जीवन के उन महत्वपूर्ण बातों को सीख पाए जिन्हें हम किताबों के माध्यम से शायद ही कभी सीख पाते। मेरे माता-पिता दोनों ही विद्यालय में अद्यापन का कार्य करते हैं। उनके घर पर न रहने के दौरान दादा-दादी के साथ अनेक विषयों पर मेरी और मेरे भाई बहनों की चर्चा होती है, जो काफी रोचक होता है। इसके अलावां हमारे पास हमारा एक कुत्ता भी है, जो हमारे परिवार का ही हिस्सा लगता है।
सुरक्षा क़वच के रूप में परिवार
परिवार व्यक्ति को बाहरी बुराईयों तथा खतरों से सुरक्षा प्रदान करता है, अर्थात व्यक्ति परिवार में सभी प्रकार के बाहरी आपदाओं से सुरक्षित होता है साथ ही व्यक्ति का शारीरिक, मानसिक व बौद्धिक विकास परिवार की ही देन हैं। परिवार बच्चे के लिए एक खुशहाल तथा सुरक्षित वातावरण का निर्माण करता है तथा हमारी सारी अपेक्षाएं, ज़रुरतें परिवार के माध्यम से ही पूरी होती हैं। मेरा परिवार एक मध्यम वर्गीय परिवार है, पर उसके बाद भी मेरे माता-पिता मुझे और मेरे भाई बहनों की हर आवश्यकता को पूरा करने का पूरा प्रयास करते हैं। परिवार से मिलता स्नेह और मेरे प्रति उनकी चिंता मुझे मेरे परिवार के और समीप ले जाता है। तथा मेरे परिवार के प्रति मेरी ज़िम्मेदारीयों का एहसास कराता है। व्यक्ति अपने ज़िम्मेदारीयों को वहन करने के आदत से समाज का भी ज़िम्मेदार नागरिक बनता है। परिवार के सारे लोग मुसीबत के समय एक साथ मिल कर मुसीबत का सामना करते हैं।
निष्कर्ष
अपना परिवार व्यक्ति के लिए अपना संसार होता है, उससे वह संस्कार, अनुशासन, स्वच्छता, संस्कृति तथा परंपरा व इसी प्रकार के अनेक आचरण सीखता है। अपने जीवनकाल में व्यक्ति क्या प्राप्त करता है यह उसके परिवार पर काफी हद तक निर्भर करता है। तथा इसी प्रकार से देश के निर्माण में भी परिवार एक आधारभूत भूमिका निभाता है।
निबंध – 4 (600 शब्द)
परिचय
व्यक्ति अपने जन्म से जहां निवास करता है वह उसका परिवार होता है। इसके अतिरिक्त विवाह के पश्चात् बनने वाले कुछ प्रमुख संबंध परिवार के अन्तर्गत आते हैं। यह आवश्यक नहीं की व्यक्ति के मध्य खून या विवाह का संबंध हो तभी वह समुह परिवार कहलायेगा। इन सब के अतिरिक्त यदि परिवार द्वारा किसी बच्चे को गोंद लिया जाता है, अपनाया जाता है, तो वह बच्चा भी परिवार का हिस्सा होगा। परिवार व्यक्ति के जीवन की सबसे महत्वपूर्ण ज़रुरत है।
परिवार में बड़े-बुजुर्गों का महत्व
संयुक्त परिवार जिसमें हमारे बड़े-बुजुर्ग (दादा-दादी, नाना-नानी) हमारे साथ रहते हैं, जो ज्ञान और अनुभव की कुंजी होते है। अब वह मूल परिवार का हिस्सा नहीं होते जिससे की बच्चे कई महत्वपूर्ण आदर्शों, संस्कारों को जानने से वंच्छित रह जाते हैं। पहले बच्चे खेलने के समय पर खेलते तथा दादा-दादी की कहानीयां भी सुनते जिससे उनको ज्ञान मिलता था पर वर्तमान समय के बच्चे खेलने के लिए अपने बाल्यावस्था से ही मोबाइल का प्रयोग करते हैं। मूल परिवार ने कहीं न कहीं बच्चों का बचपन भी छीना है।
जैसा की हम सभी जानते हैं, समाज में, दो प्रकार के परिवार पाए जाते हैं, एकल (मूल), तथा संयुक्त परिवार। जिस प्रकार हर सिक्के के दो पेहलु होते हैं ठीक उसी प्रकार परिवार के दोनों स्वरूपों से जुड़े कुछ लाभ तथा हानियां हैं। जिसमें से कुछ निम्नवत् हैं-
संयुक्त परिवार के लाभ तथा मूल परिवार की हानियां-
- संयुक्त परिवार में माता-पिता के घर में न रहने पर भी बच्चे दादा दादी या अन्य बड़ों के निगरानी में रहते हैं, जिससे वह अकेला महसूस नहीं करते हैं। जबकि मूल परिवार में माता-पिता के घर पर न होने के दौरान बच्चे अकेले हो जाते हैं।
- संयुक्त परिवार के उपस्थिति में बच्चों को घर में ही खेलने योग्य वातावरण मिल जाता है, जिसमें वह अपने बड़ो के साथ खेल सकता हैं। इसके विपरीत मूल परिवार में बच्चों को यदि खेलना है तो सदैव उन्हें बाहर के लोगों के साथ मिल कर खेलना होता है।
- अगर घर के एक-दो सदस्यों से व्यक्ति की अन-बन भी हो गई फिर भी, परिवार में ज्यादा लोगों की संख्या के फलस्वरूप व्यक्ति कभी अकेला महसूस नहीं करता। जबकि मूल परिवार में परिवार के सदस्यों की एक-दूसरे से अन-बन होने पर व्यक्ति अकेला पड़ जाता है।
- व्यक्ति के वृद्ध हो जाने पर उन्हें अपने बच्चों की सबसे ज्यादा आवश्यकता होती है, अतः संयुक्त परिवार के अवधारणा से व्यक्ति सकुशल अपने परिवार के देख-रेख में रहता है। इसके विपरीत मूल परिवार में बच्चों के दादा-दादी अपने पुराने मकान में निवास करते हैं जो उनके लिए सही नहीं है।
संयुक्त परिवार से संबंधित हानियां तथा मूल परिवार के लाभ-
- संयुक्त परिवार में सदस्यों की संख्या अधिक होने के वजह से, आर्थिक स्थिति कमजोर हो सकती है। जबकि मूल परिवार संयुक्त परिवार के अपेक्षा आर्थिक रूप से मजबूत होता है।
- परिवार में ज्यादा लोगों के एक साथ रहने से आपसी मत-भेद की ज्यादा संम्भावनाएं रहती हैं। इससे विपरीत मूल परिवार में लड़ाई-झगड़े कम होते हैं।
- संयुक्त परिवार में कभी-कभी एक-दूसरे की तुलना में कम आमदनी प्राप्त करने के वजह से लोग खुद को छोटा महसूस करने लगते हैं तथा ज्यादा आमदनी प्राप्त करने के लिए, गलत मार्ग का चयन कर लेते हैं। और मूल परिवार में व्यक्ति खूद की तुलना अन्य से नहीं करता है।
- व्यक्ति अपनी आमदनी में जीतना सुख-सुविधा मूल परिवार में अपने बच्चों को दे सकता है, उतना वह संयुक्त परिवार में अपने बच्चे को नहीं दे पाता। और मूल परिवार में व्यक्ति कम पैसे में ही अपने परिवार का पालन-पोषण सही प्रकार से कर पाता है।
निष्कर्ष
व्यक्ति के जीवन में, मूल परिवार तथा संयुक्त परिवार के लाभ और हानि दोनों ही होते हैं, व्यक्ति परिवार के किस रूप (मूल, संयुक्त) में रहता है यह आवश्यक नहीं, व्यक्ति का परिवार में रहना आवश्यक है। अर्थात व्यक्ति के लिए परिवार का होना आवश्यक है।