(Vasant Panchami Festival in Hindi)
वसंत पंचमी जिसे श्रीपंचमी के नाम से जाना जाता है। यह उत्तर तथा पूर्वी भारत में मनाया जाने वाला एक प्रमुख त्योहार है। यह त्योहार वसंत के मौसम में मनाया जाता है, क्योंकि प्राचीन भारत में मौसमों छः भागों में बाटा गया था और बसंत उसमें लोगो का सबसे प्रिय मौसम था। यहीं कारण है कि प्राचीन काल से ही लोग वसंत पंचमी के इस त्योहार को इतने धूम-धाम के साथ मनाते हैं।
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इस दिन स्त्रियों द्वारा पीले वस्त्र पहने जाते है। वसंत पंचमी के इस कार्यक्रम को वसंत के मौसम के आगमन के रुप में भी मनाया जाता है। वसंत पंचमी का यह त्योहार माघ माह के पाचवें दिन आता है, इसे मौसम में होने वाले एक महत्वपूर्ण परिवर्तन के रुप में देखा जाता है। धार्मिक और ऐतहासिक कारणों से इस दिन को पूरे भारत भर में काफी हर्षोल्लास के साथ मनाया जाता है।
वर्ष 2025 में वसंत पंचमी का त्योहार 2 फरवरी, रविवार के दिन मनाया जायेगा।
वसंत पंचमी को वसंत ऋतु के आगमन में माघ माह के पांचवे दिन मनाया जाता है। अपने मनोहर मौसम के कारण इसे मौसमों के राजा के रुप में भी जाना जाता है। इस ऋतु को सभी ऋतुओं में सबसे श्रेष्ठ माना गया है। इस ऋतु में खेतों में फसलें लहलहा रही होती हैं, जो इस ऋतु के मनोरमता को और भी उतकृष्ट बनाता है।
इसके अलावा ऐसी मान्यता है कि इसी दिन माता सरस्वती का जन्म भी हुआ था, इसलिए इस दिन भारत के कई क्षेत्रों में सरस्वती पूजा के कार्यक्रम भी आयोजित किये जाते हैं। इस दिन लोग पीले रंग के कपड़े पहनकर पीले फूलों द्वारा माता सरस्वती की पूजा-अर्चना करते हैं, क्योंकि पीले रंग को वसंत का प्रतीक माना गया है।
भारत के विभिन्न प्रांतो में वसंत पंचमी का यह दिन विभिन्न तरीकों से मनाया जाता है। इस त्योहार से जुड़े कई पौराणिक कारणों से इसे देवी-देवताओं के प्रति विशेष समर्पण के साथ मनाया जाता है। इस दिन देश के कई हिस्सों में खासतौर से उत्तर भारत में वसंत पंचमी को सरस्वती पूजा के रुप में भी मनाया जाता है। जिसमें माता सरस्वती की प्रतिमा स्थापित करते हुए काफी धूम-धाम से सरस्वती पूजन का उत्सव मनाया जाता है।
इस कार्यक्रम में नवयुवकों तथा छात्रों द्वारा काफी बड़-चढ़कर हिस्सा लिया जाता है और उनके द्वारा देवी सरस्वती से सद्बुद्धि और ज्ञान की प्रर्थना की जाती है। क्योंकि वसंत पंचमी के समय शीत ऋतु की फसले अपने पूर्ण रुप में होती हैं, इसलिए इस दिन को किसानों द्वारा समृद्धि के उत्सव के रुप में भी मनाया जाता है।
पंजाब प्रांत में इस दिन पतंगबाजी की प्रथा है, इस प्रथा को महाराजा रंजीत सिंह द्वारा शुरु किया गया था। आज के समय में भी वसंत पंचमी के दिन पजांब के कई स्थानों पर पतंग उड़ायी जाती है। वसंत पंचमी के दिन कलाकारों द्वारा भी काफी धूम-धाम से मनाया जाता है, इस दिन उनके द्वारा अपने कलाकृतियों की पूजा-अर्चना तथा प्रदर्शनी की जाती है।
यह दिन नवीन ऋतु के आगमन का दिन होता है। इस समय के दौरान पुराने पत्ते झड़ जाते है और नये पत्ते आते है, जिससे इस दिन की मनोरमता और भी बढ़ जाता है। इस दिन लोग विभिन्न स्थलों पर लगने वाले बसंत मेलो में जाते है, इसके साथ ही पौरणिक दिन होने के कारण इस दिन लोग नदियों में स्नान करने का भी एक विशेष प्रथा है।
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आज के समय में हर पर्व के तरह वसंत पंचमी का का भी आधुनिकरण हो चुका है। पहले की समय में लोग इस दिन वसंत के आगमन में प्रकृति की पूजा किया करते थे तथा सरस्वती पूजा के रुप में इस दिन को शांतिपूर्वक मनाते थे। जिसमें इसकी मूर्तियां क्षेत्र के मूर्तिकारों द्वारा बनायी जाती थी। जिससे उन्हें रोजगार के अवसर प्राप्त होते थे, परन्तु आज के आधुनिक युग में मूर्तियों से लेकर सजावटी सामान तक जैसी सारी वस्तुएं बड़े बड़े औद्योगिक प्रतिष्ठानों द्वारा तैयार की जाती हैं।
इसके साथ ही अब के त्योहार में लोगो के बीच पहले की तरह समरसता देखने को नही मिलती है, आज के समय सरस्वती पूजा के दिन विभिन्न स्थानों पर हिंसा तथा लड़ाई झगड़े की घटनाएं देखने को मिलती है। हमें इस विषय पर अधिक से अधिक प्रयास करना चाहिए की हम वसंत पंचमी के असली अर्थ को समझे और इसकी प्राचीन प्रथाओं तथा परम्पराओं को बनाये रखे।
भारत में छः प्रमुख ऋतुएँ होती है और इनमें से वसंत को सबसे प्रमुख माना गया। यहीं कारण है कि इसे ऋतुओं का राजा भी कहा गया है। इस ऋतु में मौसम काफी सुहाना होता है और इसकी निराली छंटा देखने को ही मिलती है। इस मौसम मं खेतों में फसले लहलहा रही होती हैं और अपनी अच्छे फसलों को देखकर किसान भी काफी प्रफुल्लित होते है। स्वास्थ्य के हिसाब से भी यह मौसम काफी बेहतर होता है।
इसके सात ही वसंत पंचमी के दिन से कई सारी ऐतहासिक तथा पौराणिक कथाएं भी जुड़ी हुई है। ऐसी मान्यता है कि इस दिन देवी सरस्वती का जन्म भी हुआ था, इसलिए इस दिन को कई स्थानों पर सरस्वती पूजा के रुप में भी मनाया जाता है। इस दिन के उत्सव में कई स्थानों पर बसंत मेला का भी आयोजन किया जाता है।
एक तरह से शस्त्र पूजन के लिए जो महत्व विजदशमी के दिन का है ठीक उसी प्रकार से विद्यार्थियों और कलाकारों के लिए वसंत पंचमी के दिन का महत्व है। इन्हीं प्राकृतिक परिवर्तनों और विशेषताओं के कारण वसंत पंचमी के दिन का महत्व और भी बढ़ जाता है।
वसंत पंचमी से कई सारी पौराणिक कथाएं जुड़ी हुई है। लेकिन इससे जुड़ी जो सबसे प्रमुख कथा है वह देवी सरस्वती से जुड़ी हुई है, जिसके अनुसार-
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जब सृष्टि की उत्पत्ति हुई थी तो वातावरण में चारो ओर नीरसता, उदासी छायी थी और संसार में कोई खुशी नही थी। ऐसा महौल देखकर ब्रम्हा जी को काफी दुख हुआ। जिसके बाद उन्होंने भगवान विष्णु से अनुमति लेते हुए, अपने कमंडल से जल छिड़का।
जिससे देवी सरस्वती उत्पन्न हुई और इसके बाद उन्होंने अपने वीणा वादन द्वारा सभी पशु-पक्षियों में वाणी और बुद्धि का संचार किया। जिससे सृष्टि में फैली हुई उदासी दूर हो गयी और चारो ओर हर्ष और उल्लास फैल गया। इसलिए देवी सरस्वती को ज्ञान और बुद्धिमता के देवी का दर्जा भी दिया जाता है और इसी वजह से वसंत पंचमी के दिन को सरस्वती पूजा के रुप में भी मनाया जाता है।
वसंत पंचमी का दिन भारतीय इतिहास के कई प्रमुख परिवर्तनों तथा कहानियों से जुड़ा हुआ है। इतिहास के अनुसार तराइन के दूसरे युद्ध में जब पृथ्वीराज चौहान को मोहम्मद गोरी द्वारा बंदी बनाकर अफगानिस्तान ले जाया गया था। तब वसंत पंचमी के दिन ही पृथ्वीराज चौहान ने अपने शब्धभेदी बाण द्वारा मोहम्मद गोरी को मौत के घाट उतारा था।
इसके अलावा वसंत पंचमी के दिन की दूसरी घटना लाहौर निवासी वीर हकीकत से जुड़ी हुई है। जिसमें छोटे उम्र के बालक वीर हकीकत ने वसंत पंचमी के दिन ही अपने धर्म की रक्षा करते हुए, हसते-हसते अपने प्राणों को न्यौछावर कर दिया।
भारत के महान राजा और उज्जैन के शासक राजा भोज पवांर का जन्म भी वसंत पंचमी के दिन ही हुआ था। इस दिन उनके राज्य में एक बड़े भोज का आयोजन किया जाता था। जिसमें उनके पूरी प्रजा को भोजन कराया जाता था और यह कार्यक्रम वसंत पंचमी से शुरु होकर अगले 40 दिनों तक चलता रहता था।
इसका अलावा प्रसिद्ध गुरु तथा कूका पंथ की स्थापना करने वाले गुरु रामसिंह कूका का जन्म भी वसंत पंचमी के दिन ही हुआ था। उनके द्वारा भारतीय समाज के बेहतरी के लिए कई सारे कार्य किये गये थे। इन्हीं सब ऐतहासिक घटनाओं के कारण वसंत पंचमी का दिन लोगो में इतना लोकप्रिय है और इसे पूरे भारतवर्ष में विभिन्न कारणों से इसे काफी धूम-धाम के साथ मनाया जाता है।