सेल्फ कंट्रोल आपकी एक क्षमता है जिसे इस्तेमाल करके आप खुद का बुरा करने से रोक लेते है और हमेशा अपने फेवर में काम करते है जैसे मान लीजिए आपके सामने दो चीजे रखी है फ्रूट्स और मैग्गी, लेकिन आप फ्रूट्स खाएंगे क्योकि आपका सेल्फ कंट्रोल है, अगर आप मैग्गी खाते है तो इसका मतलब आपका सेल्फ कंट्रोल नहीं है आपको पता है मैगी स्वास्थ्य के लिए अच्छा नहीं होता है लेकिन आपने उसी को खाया क्योकि आपका सेल्फ कंट्रोल नहीं है।
मान लीजिये आप दसवीं कक्षा में हैं, और आपको बोर्ड एग्जाम में टॉप करना है तो आपका शेड्यूल क्या होगा स्कूल से घर आते ही, आपको अच्छे से पता है कि स्कूल का होमवर्क करना है, सेल्फ स्टडी करना है, रिवीजन करना है, आने वाले एग्जाम की प्रिपेरेशन करना है लेकिन तुरंत आपके दिमाग में ख्याल आता है कि बस थोड़ी देर गेम खेल लू फिर पढाई शुरू करूंगा, आपका वो थोड़ी देर कब दिन भर में बदल जाता है पता ही नहीं चलता, आज का टाइम तो वेस्ट कर दिया, फिर डिनर का टाइम और सोने का टाइम आ गया, फिर आपको बुरी तरह पछतावा होता है, लेकिन आपकी बुरी आदत भी बहुत तेज है उसे पता है आपको कैसे मुर्ख बनाना है, तुरंत दिमाग में थॉट आता है कि चलो कोई नहीं कल से मै जरूर सरे नियम फॉलो करूंगा, सुबह जल्दी उठूंगा, स्कूल से आने पर पढूंगा, लेकिन अगले दिन स्कूल से आने पर घर के बगल वाले पार्क में अच्छे अच्छे झूले देखकर आपका मन बहल गया और झूला झूलने लगे, घर आते ही आपने सोचा कि आज सिर्फ एक राउंड ही गेम खेलकर उठ जाऊंगा, लेकिन एक राउंड फिर दो राउंड फिर फाइनल तक, देखते ही देखते आज का भी टाइम खत्म। फिर आपको लगता है कि आज का दिन तो मेरे टाइम टेबल के हिसाब से गया ही नहीं, टाइम टेबल के हिसाब से तो स्कूल से आते ही पढाई करनी थी लेकिन ऐसा हुआ नहीं अब दो ही घण्टे और बचे है चलो गेम खेलकर सो जाता हूँ फिर कल से टाइम टेबल जरूर फॉलो करूंगा। इस तरह रोज रोज करने से आप सेल्फ कंट्रोल के लूप में फंस जाते है। तो इसी को कहते है लूप ऑफ़ सेल्फ कंट्रोल, आपकी प्लानिंग तो बहुत अच्छी है, प्लानिंग के अनुसार चलें तो आप बहुत आगे जायेंगे लेकिन फॉलो नहीं कर पाते है अपने इमोशंस और सेल्फ कंट्रोल की वजह से।
इसके कई कारण हैं जैसे कुछ मानसिक स्वास्थ्य स्थितियाँ, एडीएचडी यानि अटेंशन–डेफ़िसिट/हाइपरएक्टिविटी डिसऑर्डर, नशीली दवाएं या ड्रिंक का उपयोग, सोशल स्किल प्रॉब्लम, और इम्पल्स कण्ट्रोल डिसऑर्डर। सेल्फ कंट्रोल की कमी आंशिक रूप से आनुवंशिक भी होता है यानी पिता से बच्चे में जाता है, एक वजह ये भी है आपने सालों से अपनी आदतें इतनी ज्यादा बिगाड़ ली है कि आपका सेल्फ कंट्रोल नहीं है।
मानसिक स्वास्थ्य स्थितियाँ: मान लीजिये आप किसी समय बहुत ज्यादा खुश है या दुखी है तो ऐसे में अक्सर आपका सेल्फ कंट्रोल नहीं रहता है।
नशीली दवाएं या ड्रिंक का उपयोग: आपने कोई ऐसी मेडिसिन ली है या ड्रिंक ली है जिससे आप होश में नहीं है तो ऐसे में भी सेल्फ कंट्रोल नहीं काम करता है
सोशल स्किल प्रॉब्लम: कुछ लोग सोशल स्किल न होने की वजह सेल्फ कंट्रोल नहीं कर पाते है, वो लोग बातचीत तो करना चाहते हैं लेकिन जब वे ऐसा करते हैं तो उन्हें बातचीत करने में कठिनाई होती है, वे तालमेल नहीं बना पाते हैं, उल्टा उनसे ऐसा कुछ हो जाता है जिससे अन्य लोग नाराज हो जाते है। ऐसे लोगों को सामाजिक संकेतों को समझने और सामाजिक नियमों का पालन करने में बहुत परेशानी होती है।
इम्पल्स कण्ट्रोल डिसऑर्डर: यह एक ऐसी स्थिति है, जिसमें आप अपनी भावनाओं और व्यवहार पर कंट्रोल नहीं रख पाते है
ADHD यानि अटेंशन–डेफ़िसिट/हाइपरएक्टिविटी डिसऑर्डर: अगर बच्चे में अटेंशन–डेफ़िसिट/हाइपरएक्टिविटी डिसऑर्डर है तो ऐसी स्थिति बच्चे में सेल्फ कंट्रोल डेवेलप करने में दिक्कत होती है। ADHD एक न्यूरोडेवलपमेंटल डिसऑर्डर यानी मेडिकल कंडीसन है जो बच्चे की उम्र के हिसाब से खराब कॉन्सनट्रेशन, हाइपरएक्टिविटी, ध्यान की कमी, असावधानी या लापरवाही या अनुचित आवेगपूर्ण बर्ताव है जो कामकाज या विकास में बाधा उत्पन्न करता है। इसमें मस्तिष्क के विकास और मस्तिष्क की गतिविधि में अंतर होता है जो ध्यान देने, स्थिर बैठने और आत्म–नियंत्रण को प्रभावित करता है। अगर बच्चे समय से पहले पैदा हुए हों, पर्यावरणीय विषाक्त पदार्थों के संपर्क में आए हों, या गर्भावस्था के दौरान उनकी माताओं ने अनावश्यक दवाओं का इस्तेमाल किया हो, तो उन बच्चों में ADHD का खतरा बढ़ सकता है। ADHD दिमाग में मौजूद एक बीमारी है जो जन्म से मौजूद होता है या जन्म के तुरंत बाद विकसित होता है। और अक्सर यह स्थिति व्यक्ति के बड़े होने तक बनी रह सकती है। एडीएचडी का कोई इलाज नहीं है, लेकिन मेडिसिन, बिहेवियरल थेरेपी और साइकोथेरेपी की हेल्प से इसके लक्षणों को कम करने में मदद मिलती हैं।
देखो सेल्फ कंट्रोल सबके पास होता है लेकिन हम लोग उसे इस्तेमाल नहीं कर पाते। एक बात ध्यान दिया होगा आपने कि हम अच्छी आदत जल्दी नहीं बना पाते हैं लेकिन बुरी आदत की ओर जल्दी आकर्षित हो जाते है, हम वही चीज करते है जिसमे हमें खुशी मिलती है, मान लीजिये आपको गेम खेलना पसंद है, क्योकि आपको उससे ख़ुशी मिलती है लेकिन पढाई से आप दूर भागते है क्योकि उससे ख़ुशी नहीं मिलती बोरिंग लगता है, तो आपको एक काम करना होगा, अगर आपको अपना एकेडेमिक अच्छा करना है तो गेम खेलना आपके लिए अच्छा नहीं है इसलिए गेम के लिए अपने मन में इतना बुरा थॉट बना लीजिये की गेम खेलना तो दूर आपको गेम के नाम से भी चिढ़ होने लगे। और पढाई करिये, सोचिये की पढाई ही आपके लिए सब कुछ है पढाई से प्यार कर लीजिये इतना की पढाई के लिए कोई भी क़ुरबानी कर सकें, इतना कि पढाई के अलावा आपको न कुछ सुनाई दे न कुछ दिखाई दे, जैसे इंसान को किसी से प्यार हो जाता है तो वो प्यार पाने के लिए कुछ भी करता है। 21 डेज में कोई भी आदत बन जाती है बिगड़ जाती है, इसलिए आज से ही पढाई करना शुरू करें और गेम का थॉट जब भी आये 21 दिंन तक अवॉयड करें।
छोटे बच्चों में सेल्फ कंट्रोल की कमी होना आम बात है क्योंकि यह एक ऐसी क्षमता है जो बच्चों के सीखने और बढ़ने के साथ विकसित होती है। शोध से पता चला है कि भावनात्मक और व्यवहारिक नियंत्रण बच्चे में तीन से चार साल की उम्र में विकसित होना शुरू हो जाता है। माता–पिता अच्छे एक्टिविटीज का अभ्यास कराकर बच्चों में गुड सेल्फ कंट्रोल को डेवलप कर सकते हैं।
जो बच्चे ADHD से ग्रसित है – उनके लिए तुरंत अच्छे डॉक्टर से कंसल्ट करें, डॉक्टर द्वारा एडवाइस की हुई मेडिसिन, बिहेवियर थेरेपी, पैरेंट ट्रेनिंग, और टीचर्स के सपोर्ट से उनमे भी सेल्फ कंट्रोल डेवेलप करायी जा सकती है।
और भी कई सारे उपाय हैं जैसे:
• लालच से बचें
• सेल्फ कंट्रोल डेवेलप करने का अभ्यास करें
• एक समय में एक ही लक्ष्य पर ध्यान केंद्रित करें
• मेडिटेसन करें / ध्यान लगाएं
• अपने अच्छे बुरे कार्यों के परिणाम को ध्यान में रखें
• सफल लोगों से प्रेरणा लें और अपने काम पर निगरानी रखें
• इच्छाशक्ति विकसित करें
सेल्फ कंट्रोल होने से हम वो सब कुछ पा सकते है जो पाना चाहते है, सेल्फ कंट्रोल होने से हम जो बनना चाहते है बन सकते है और जीवन में वो सफलता पा सकते है जिसके लिए हमने ठाना है।
आज पूरी दुनिया में जो लोग भी सफल है वो सेल्फ कंट्रोल्ड है, उन्होंने वही किया जो उन्हें आगे ले गया, उन्होंने वही खाया जो उन्हें स्वस्थ रखे, उन्हीने डेली रूटीन फॉलो किया, इस तरह उन्होंने हमेशा do’s किया, कभी भी don’ts नहीं किया लेकिन इसका मतलब ये नहीं कि उन्होंने संघर्ष नहीं किया, उन्होंने खुद के सेल्फ कंट्रोल पर काम किया जो उन्हें आगे ले गया। और सबसे बड़ी बात कि सफल होने के बाद भी वो लोग सेल्फ कंट्रोल का दामन नहीं छोड़े, आज भी वो लोग सेल्फ कंट्रोल्ड है इसलिए उनकी लाइफ हर तरीके से स्वस्थ और खुशहाल है।
जिनके अंदर सेल्फ–कंट्रोल होता है उनकी सेहत सही होती है, उनके रिश्ते बने रहते है, उनकी आर्थिक स्थिति और करियर अन्य लोगों के मुकाबले बेहतर होते हैं, सेल्फ–कंट्रोल वाले लोग अपने जीवन से ज्यादा संतुष्ट रहते हैं, उन्हें अपना जीवन ज्यादा सार्थक लगता है। सेल्फ–कंट्रोल हमें शांतचित और स्थिरचित्त बनाता है, यह हमें स्वयं के संवेगों को समझने में मदद करता है और आवेगपूर्ण तरीके से काम करने से रोकता है। सेल्फ–कंट्रोल की जरुरत हमे न केवल क्रोध या आक्रामकता की स्थिति में, बल्कि अत्यधिक खुशी या उत्साहजनक स्थितियों में भी होती है। जिनमे सेल्फ–कंट्रोल होती है वे लोग सेल्फ सेंटर्ड, आर्गनाइज्ड, प्लांड, गोल ओरिएंटेड, केयरफुल, रेस्पॉन्सिबल, पेसेंट, कंटिन्यू, और सेल्फ मोटिवेटेड होते है।
यह मैंने कुछ फेमस साइकोलॉजिस्ट, डॉक्टर और कंसलटेंट द्वारा लिखी हुई कुछ महत्वपूर्ण बुक्स के नाम दिए है जिन्हों ने अपनी बुक्स में सेल्फ कंट्रोल के महत्व को बताया है और ये भी कहा है कि बिना इसके आप अपना लक्ष्य हासिल नहीं कर सकते।