‘कलम तलवार से ताकतवर होती है’ यह कहावत इस बात पर जोर देती है कि लिखी हुई बात शारीरिक ताकत से ज्यादा प्रभावशाली होती है। इस कहावत में कलम संभावित रूप से प्रशासनिक शक्ति और प्रेस की शक्ति को संदर्भित करता है जो स्पष्ट रूप से हिंसा या विद्रोह से अधिक शक्तिशाली और प्रभावी है।
मतलब ये है कि कोई प्रशासनिक आदेश या स्वतंत्र प्रेस प्रभावी रूप से चुटकी बजा कर ही शारीरिक विद्रोह करा सकते हैं, भले ही यह कितनी भी मजबूत क्यों ना हो।
किसी भी कहावत का सही मतलब समझने के लिए उदाहरण सबसे बेहतर तरीका होता है। इस बात को ध्यान में रखते हुए मैं इस कहावत ‘कलम तलवार से ताकतवर होती है’ पर आधारित कुछ ताजा उदाहरण आपके लिए लेकर आया हूँ जो इस कहावत को बेहतर तरह से समझने में आपकी मदद करेगा।
“लोकतंत्र में, सच्ची सत्ता प्रशासकों और मंत्रियों के पास होती है – जाहिर है, कलम तलवार से ताकतवर होती है।”
“एक स्वतंत्र प्रेस एक ही झटके में पूरे देश को हिला सकता है, जो कि और कोई ताकत नहीं कर सकती है। यह सच ही कहा गया है कि कलम तलवार से ताकतवर होती है।”
“पत्रकार आमने-सामने आने के अलावा नियमित लेख लिखकर सरकार में व्याप्त भ्रष्टाचार को उजागर करने के अपने संकल्प में निश्चित था। शायद, उनका मानना था कि कलम तलवार से ताकतवर होती है।”
“महात्मा गांधी, बाल गंगाधर तिलक, आदि महान भारतीय स्वंत्रता सेनानीयों ने अखबार में ढ़ेरों लेख लिखे थे जब वो जेल में थे। उनके लेखन ने देशभर के लाखों लोगों में देश की स्वतंत्रता की लड़ाई में शामिल होने के लिए एक मिसाल कायम की। यह कितनी भी भारी संख्या में व्यक्तियों के प्रयास से भी संभव नहीं हो पाता। इसमें कोई दो राय नहीं है कि कलम तलवार से ताकतवर होती है।”
“भविष्य की लड़ाईयां हथियारों और गोला-बारूद की तुलना में आर्थिक प्रतिबंधों और अन्य व्यापारिक प्रतिबंधों के आधार पर पर ही लड़ी जाएँगी। यह एक बेहतरीन उदाहरण होगा कि कलम तलवार से ताकतवर होती है।”
सर्वप्रथम यह वाक्यांश अंग्रेजी लेखक एडवर्ड बुलवर लिटन द्वारा वर्ष 1839 में लिखा गया था। एडवर्ड ने इस वाक्यांश का सबसे पहली बार इस्तेमाल अपने एक नाटक, जिसका शीर्षक ‘रिसेल्यू’ या साजिश था उसमे किया था। यह नाटक फ्रेंच स्टेट्समैन ‘कार्डिनल रिचल्यू’ पर आधारित था।
नाटक के अधिनियम II में कार्डिनल द्वारा लिखे गए संवाद कहावत का उल्लेख करते हैं:
“सच है, यह!-
पूरी तरह से महान पुरुषों के शासन के नीचे
कलम तलवार से ताकतवर होती है। ध्यान से देखते हुए
करामाती जादूगर – छड़ी जो खुद से वह कुछ भी नहीं है! –
लेकिन अपने मालिक के हाथ से जादू का आदेश लेते ही
राजा को चोट पहुँच सकती है और उसे लकवाग्रस्त भी कर सकती है
इस विशाल धरती को निष्प्राण बना सकती है! – अपनी तलवार हटाओ-
राज्य को इसके अलावा भी कुछ तरीकों से बचाया जा सकता है!”
तब से ही यह वाक्यांश “कलम तलवार से ताकतवर होती है” तेजी से लोकप्रिय होते चला गया और आज यह सम्पूर्ण विश्व में इस्तेमाल किया जाता है।
इस कहावत में कहा गया है कि लिखित संचार का एक रूप किसी भी भौतिक कार्य से ज्यादा शक्तिशाली है। इतिहास में कई विद्रोह की शुरुवात लिखित भाषण या फिर अखबार के द्वारा मिले संदेशों के साथ ही शुरू हुई। तलवार से ज्यादा योग्य शब्द होते हैं। इसका अर्थ है कि लिखे हुए शब्द हमारे दिमाग और आत्मा पर ज्यादा प्रभाव डालते हैं, और यह किसी भी भौतिक कार्य के करने से कई गुना ज्यादा बेहतर है। शब्द ज्यादा प्रभावी होते हैं और अधिक गहराई तक अपनी छाप छोड़ते हैं।
कलम का एक और संदर्भ उसका प्रशासनिक अधिकार है जो अधिकारियों को दिया जाता है। सत्ता में किसी का लिखित आदेश सैकड़ों या हजारों प्रदर्शनकारियों को पकड़ने के लिए पर्याप्त है, तथा सफलतापूर्वक विद्रोह पर अंकुश लगाने के लिए भी।
यह कहावत हमें जीवन का असली मतलब समझाती है और यह भी बताती है कि असली ताकत कहाँ है। सच्ची ताकत ज्ञान और लेखन क्षमता में है। अगर आपके पास ज्ञान और दूरदर्शिता है तो आप हजारों-लाखों को अपने लेखन से एक ही बार में प्रभावीत कर सकते हैं। कोई ताकत, कोई तलवार, कोई हथियार, आपके लिए ऐसा नहीं कर सकता।
यह कहावत हमें सिखाती है कि हमें कभी भौतिक ताकत के पीछे नहीं भागना चाहिए बल्कि अपने लेखन क्षमता को और बेहतर करना चाहिए क्योंकि यही वो असली ताकत है जो हम लिखते हैं। ये छात्रों को भी प्रेरित करती है ताकि वो पढ़ें और एक प्रशासनिक अधिकारी या सांसद, आदि के रूप में सार्वजनिक क्षेत्र में खुद को एक प्रभावशाली स्थिति में स्थापित कर सकें। एक व्यक्ति की सच्ची ताकत उसकी कलम की ताकत ही है या फिर राज्य द्वारा उन्हें दिए गए उनके हस्ताक्षर। वास्तव में यह एक व्यक्ति की सच्ची और सबसे बड़ी ताकत है जो उसके पास होती है।
किसी कहावत के नैतिक गुण को समझने के लिए कहानी एक बेहतर माध्यम होती है। आज मैं आपके लिए कुछ कहानियां लेकर आया हूँ ताकि आप ‘कलम तलवार से ताकतवर होती है’ कहावत का बेहतर मतलब समझ सकें।
लघु कथा 1 (Short Story 1)
एक स्कूल में राम और श्याम नाम के दो भाई पढ़ा करते थे। राम पढ़ाकू और अनुशासक था और अपना ज्यादातर वक़्त पढाई से सम्बंधित नोट्स आदि बनाने में ही गुजारता था। जबकि दूसरी तरफ श्याम दबंग व्यक्तित्व वाली छवि का था और उसे स्कूल तथा कालोनी के बच्चों को धमकाना पसंद आता था। श्याम यह सोचता था कि उसकी दबंग प्रवति वाली छवि उसे हमेशा दूसरों के बीच ताकतवर बनाये रखती है। हालाँकि, सच क्या है उसे इस बात का अंदाजा नहीं था।
समय बीता और दोनों भाई बड़े हुए। कई चीजें बदल गयी सिवाय उनके व्यवहार के। राम दिन-रात मेहनत से पढ़ाई करता था ताकि प्रशासनिक परीक्षा पार कर ले जबकि श्याम कॉलेज में मशहूर दबंग बन चुका था और इस तरह से वो खुश भी था।
अपनी कड़ी मेहनत के दम पर राम ने आखिरकार सिविल सेवा की परीक्षा पास कर ली और पुलिस सुप्रीटेंडेंट के पद पर उसकी पहली पोस्टिंग हुई। वही दूसरी तरफ, श्याम, जब अपने कॉलेज से बाहर निकला तो वह अपनी जिंदगी के प्रति एकदम शुन्य था। वह छात्र एकता चुनाव में खड़ा हुआ था मगर बहुत बड़े अंतर से वो हार गया।
आज तक उसने झूठी ताकत का जो किला बनाया था वो सब उसकी आँखों के सामने ढह गया। अब उसने खुद को कोसना शुरू कर दिया कि आखिर क्यों उसने अपनी पढाई और परीक्षाओं को महत्त्व नहीं दिया; वरना, आज चीजें काफी ज्यादा अलग होतीं। आखिर में, राम की तरफ देखते हुए, श्याम को इस बात का एहसास हुआ कि ‘कलम तलवार से ताकतवर होती है’।
लघु कथा 2 (Short Story 2)
स्नेहा पेशे से एक पत्रकार है। बात चाहे जो भी हो मगर उसे सच लिखना पसंद है। उसने कई नेताओं का माफियाओं के साथ उनके सांठगांठ को उजागर किया था। लेकिन हर बहादुर को शुरुवात में उत्पीड़न का शिकार होना पड़ता है, स्नेहा के साथ भी ऐसा ही हुआ। एक बड़ा राजनीतिज्ञ था जिसने स्नेहा को धमकाया भी था क्योंकि स्नेहा की वजह से उसके कई बुरे कारनामें उजागर हुए थे।
वह दूसरों के करियर को ख़राब करने के लिए काफी मशहूर था और उसने तमाम मीडिया हाउस को यह इत्तिला कर दिया था कि स्नेहा को कहीं नौकरी न मिले। स्नेहा इस बात से वाकिफ थी मगर बावजूद इसके वो अपने उसूल से डिगने वालों में से नहीं थी। एक रोज उसे उसके कार्यालय से एक चिट्ठी मिलती है कि कम्पनी को अब उसकी जरूरत नहीं है, और उसे एक महीने का नोटिस पीरियड दे दिया गया। इसके पीछे कौन था वो बेहतर जानती थी। स्नेहा ने एक पीड़ित होने से इन्कार कर दिया और अन्य अख़बारों में एक अतिथि लेखक के तौर पर उसके साथ हो रहे दुर्व्यवहार के बारे में खुद से लिखना शुरू कर दिया।
कुछ ही महीनों में, उसके शब्द आग की तरह फ़ैल गए। अब स्नेहा के समर्थन में देशभर से लाखों लोग उसके साथ थे। उसे बिना किस ठोस कारण के हटाना कंपनी के बॉस के लिए असंभव सा हो गया था। आखिरकार, उन्होंने उसे लिखित में माफीनामा दिया और उसे एक बार फिर से अपने समूह में जगह दी।
वहीं दूसरी तरफ उस राजनीतिज्ञ की पोल खुल चुकी थी और उसे जनता के गुस्से और कानूनी कार्यवाही का सामना करना पड़ा। जब सब कुछ सामान्य हो गया तब, शायद, अपने पिछले अनुभवों से प्रेरित हो कर स्नेहा ने एक लेख लिखा जिसका शीर्षक था ‘कलम तलवार से ताकतवर होती है’।