उपस्थित सभी सम्मानित साथियों को सादर जय भीम,
साथियों, आज हम भारतीय राजनीति के सबसे महत्वपूर्ण व्यक्तित्व बाबा साहेब डॉ भीमराव अम्बेडकर जी के संघर्षों पर चर्चा करेंगे, इसलिए आज के दिन मैं उनके जीवन के सबसे महत्वपूर्ण घटना पूना पैक्ट पर बात करना चाहती हूँ। चूँकि पूना पैक्ट की शुरुवात कम्युनल अवार्ड से हुई थी इसलिए हम पहले कम्युनल अवार्ड की बात करेंगे।
इसकी शुरुवात हुई थी 1906 में जब मुस्लिम लीग की स्थापना हुई, मुस्लिम लीग के सभी बड़े लीडर्स ब्रिटिश गवर्नमेंट के पास अपनी समस्या लेकर पहुंचे, समस्या ये थी कि उस समय सेंट्रल लेजिसलेटीव काउंसिल और प्रोविंशियल लेजिसलेटीव काउंसिल में मुस्लिम्स की संख्या काफी कम थी। इसलिए मुस्लिम लीडर्स की मांग थी कि मुस्लिम मेजॉरिटी क्षेत्र में मुस्लिम्स को सेपरेट इलेक्टोरेट की व्यवस्था दी जाय ताकि उनके हक अधिकारों को लेकर उनकी राजनितिक भागीदारी सुनिश्चित हो सके। सेपरेट इलेक्टोरेट का मतलब है, मान लीजिये आप जिस क्षेत्र में रहते हैं वहां टोटल पापुलेशन 100 है और मुस्लिम्स की संख्या 50 या 50 से ज्यादा है तो मेजॉरिटी मुस्लिम्स की हुई। इसी को लेकर मुस्लिम लीग की मांग थी कि ऐसे मुस्लिम क्षेत्रों में सिर्फ मुस्लिम कैंडिडेट ही चुनाव में खड़े हों और उन्हें वोट भी वहां रहने वाले सिर्फ मुस्लिम कम्युनिटी के लोग ही दें। ऐसे जगहों पर रहने वाले दूसरे धर्मों के लोग न तो इलेक्शन लड़े और न ही उन्हें वोट देने का अधिकार हो। इस तरह की व्यवस्था को सेपरेट इलेक्टोरेट कहते हैं। ब्रिटिश गवर्नमेंट ने मुस्लिम लीग की इस मांग को गवर्नमेंट ऑफ़ इंडिया एक्ट 1909 के तहत स्वीकार कर लिया जिसे मिंटोमॉर्ले रिफार्म कहा जाता है, ये मुस्लिम्स के लिए अच्छे दिन लेकर आया था।
इसके बाद भारत में जितने भी और माइनॉरिटी कम्युनिटी के लोग थे उन्होंने भी सरकार से अपने लिए सेपरेट इलेक्टोरेट की मांग की। इसलिए गवर्नमेंट ऑफ़ इंडिया एक्ट 1919 के तहत ब्रिटिश गवर्नमेंट ने सिख, यूरोपियन्स, एंग्लो इंडियन, व इंडियन क्रिस्चियन को भी सेपरेट इलेक्टोरेट की व्यवस्था दे दी। इसे मोंटैगु केम्सफ़ोर्ड रिफॉर्म कहा जाता है जिसमे ये नियम था कि 10 साल बाद यानी 1929 में इस व्यवस्था के अच्छे और बुरे दोनों पहलुओं का रिव्यु किया जायेगा और इसके आगे कैसी व्यवस्था होनी चाहिए इसका निर्णय लिया जायेगा। लेकिन दो साल पहले ही 1927 में 7 सदस्यों वाले एक कमिशन का गठन किया गया जिसके चेयरमैन सर जॉन साइमन थे इसलिए इसे साइमन कमिशन का नाम दिया गया।
उस समय भारत में साइमन कमिशन “गो बैक” का नारा लग रहा था क्योकि इस कमिशन में सभी सदस्य ब्रिटिश के ही थे, हर जगह विरोध होने के बाद भी बाबा साहेब डिप्रेस्ड क्लास के लिए सेपरेट इलेक्टोरेट की मांग करने पहुंचे। उनका कहना था कि डिप्रेस्ड क्लास को किसी भी दूसरी जाति के अल्पसंख्यकों से ज्यादा राजनितिक संरक्षण की जरुरत है क्योकि अछूत समाज हमेशा सामाजिक रूप से गुलाम, आर्थिक रूप से गरीब और राजनितिक रूप से कमजोर रहा है। विरोध की परवाह न करते हुए अछूतों के इस आवाज को उठाने के लिए बाबा साहेब को पूरे भारत में काफी आलोचना झेलनी पड़ी क्योकि बाबा साहेब के अलावा सभी इंडियन लीडर्स साइमन कमिशन का विरोध कर रहे थे। बाबा साहेब को उस समय सिर्फ एक ही चीज दिख रही थी – डिप्रेस्ड क्लास को न्याय दिलाना, उनको आर्थिक, राजनितिक और सामाजिक रूप से मजबूत बनाना।
मई 1930 में साइमन कमिशन ने अपनी पहली रिपोर्ट पब्लिश की और सभी मांगो को समझने व उस पर विचार करने हेतु उन्होंने तीन राउंड टेबल कांफ्रेंस यानी गोलमेज सम्मेलन बुलाई। पहला गोलमेज सम्मेलन नवंबर 1930 से जनवरी 1931 तक चला, दूसरा गोलमेज सम्मेलन सितम्बर 1931 से दिसंबर 1931 तक चला। दूसरे गोलमेज सम्मेलन में (जिसके चेयरमैन थे रैमसे मैकडोनाल्ड- ब्रिटिश प्राइम मिनिस्टर) दूसरे कम्युनिटीज के लीडर्स भी सेपरेट इलेक्टोरेट की मांग करने लगे। लेकिन गाँधी जी इन मांगो के खिलाफ थे, इसलिए सभी मांगो को लेकर कुछ भी खास निर्णय नहीं हुआ। लेकिन दूसरे कांफ्रेंस के अंत तक दो घोषणाएं हुई, पहला कि ब्रिटिश इंडिया में दो बड़े मुस्लिम मेजॉरिटी प्रोविंस बनाये जायेंगे और दूसरा, इंडियन लीडर्स को कहा गया कि आप लोग जितनी जल्दी हो सके आपस में माइनॉरिटी के मुद्दे सुलझा लें नहीं तो ब्रिटिश गवर्नमेंट कम्युनल अवार्ड के जरिये खुद ही ये मुद्दा सुलझाएगी।
16 अगस्त 1932 को तीसरे गोलमेज सम्मेलन में प्राइम मिनिस्टर रैमसे मैकडोनाल्ड द्वारा मैकडोनाल्ड अवार्ड यानी कम्युनल अवार्ड की घोषणा कर दी गयी जिसके तहत इंडियन माइनॉरिटीज के लिए प्रोविंशियल लेजिस्लेचर की सीट्स को दुगुना किया जायेगा और दूसरा मुस्लिम, सिख, क्रिस्चियन, एंग्लो इंडियन, यूरोपियन और डिप्रेस्ड क्लास को कम्युनल अवार्ड दिया जायेगा। इधर सिविल डिसओबीडीएन्स के दूसरे फेज आंदोलन के चलते पूने के यरवदा जेल में बंद गाँधी जी को ये बात खासकर ड्रिप्रेस्सेड क्लास के लिए कम्युनल अवार्ड बिल्कुल पसंद नहीं आयी और वो अनिश्चित समय के लिए अनशन पर बैठ गए। और ये तक कह दिए कि अगर ड्रिप्रेस्सेड क्लास के लिए कम्युनल अवार्ड वापस नहीं लिया गया तो उनका अनशन, आमरण अनशन में बदल जायेगा। लेकिन ब्रिटिश गवर्नमेंट ने ये कह दिया कि हम इसमें कुछ नहीं कर सकते, हमने ये अवार्ड डिप्रेस्ड क्लास के लीडर डॉ भीमराव आंबेडकर की मांग पर दी थी, आपको उन्ही से बात करनी पड़ेगी, इस बात को लेकर गांधीजी के समर्थकों में खलबली पैदा हो गयी। गाँधी जी की तबियत काफी बिगड़ने लगी और बाबा साहेब पर दबाव भी काफी बढ़ने लगा। इसलिए कुछ बड़े लीडर्स पंडित मदन मोहन मालवीय, सर तेजबहादुर सप्रू और सी. राजगोपालाचारी बाबा साहेब से मिलकर उनसे अपनी मांग को वापस लेने को कहा पर बाबा साहेब ने साफ मना कर दिया। लेकिन गांधीजी की बिगड़ती हालत देखकर बाबा साहेब को मजबूर होना पड़ा। गांधीजी और बाबा साहेब के बीच इसी मसले को सुलझाने के लिए पूना पैक्ट एग्रीमेंट साइन किया गया जो 10 सालों के लिए मान्य था। गांधीजी की जान बचाने के लिए बाबा साहेब ने इसे मज़बूरी में साईन किया था। इसीलिए बाबा साहेब को गाँधी को प्राण दान देने और कस्तूरबा को सिन्दूर दान देने वाला भी कहा जाता है।
ब्रिटिश गवर्नमेंट द्वारा डिप्रेस्ड क्लास को जो कम्युनल अवार्ड दिया गया था उसके अनुसार डिप्रेस्ड क्लास को हिन्दू कम्युनिटी से हटाकर माइनॉरिटी क्लास का दर्जा दिया गया था और प्रोविंशियल असेम्ब्ली में 71 सीट्स रिज़र्व की गयी थी, जिन सीटों पर सिर्फ डिप्रेस्ड क्लास के ही कैंडिडेट्स खड़े होते और सिर्फ डिप्रेस्ड क्लास द्वारा ही चुने जाते। ये व्यवस्था 25 सालों के लिए की गयी थी, इसके अलावा वे जनरल कन्स्टिचूएन्सी में भी चुनाव लड़ सकते थे। इस तरह अब तक डिप्रेस्ड क्लास की राजनितिक भागीदारी बढ़ गयी होती और उनकी सामाजिक और आर्थिक स्थिति भी सुधर गयी होती। पूना पैक्ट एग्रीमेंट में जब कम्युनल अवार्ड खत्म किया जा रहा था तो बाबा साहेब के कहने पर रिज़र्व सीट्स की संख्या 71 से बढ़ाकर 148 तो कर दी गयी लेकिन नियम ये था कि कैंडिडेट्स सेपरेट इलेक्टोरेट द्वारा नहीं बल्कि ज्वाइंट इलेक्टोरेट द्वारा चुने जायेंगे यानी उस क्षेत्र में रहने वाले सभी कम्युनिटी के लोग मिलकर वोट करेंगे और नेता चुनेंगे।
तो साथियों बाबा साहेब द्वारा हम सबके लिए किये गए संघर्षों में से ये केवल एक संघर्ष था, अगर उनके द्वारा किये गए सभी संघर्षों के बारे में यहाँ बताने लगे तो कई दिन और महीने लग सकते हैं। कुल मिलकर साथियों, अगर हमें अपनी राजनितिक भागीदारी को सुनिश्चित करना है और आर्थिक व सामाजिक रूप से मजबूत बनना है तो हमें बाबा साहेब के विचारों को अपने जीवन में अपनाना होगा और उनके बताये रास्ते पर चलना होगा। इसलिए साथियों – “शिक्षित बनो, संगठित रहो और संघर्ष करो”
जय भीम – जय भारत