मनुष्य एक सामाजिक प्राणी है। यह कथन महान यूनानी दार्शनिक अरस्तु जी का है उनका मानना था कि समाज के निर्माण में अनेक इकाईयों की भूमिका होती है जिसमें परिवार एक मुख्य इकाई है। प्राचीन भारतीय परम्परा में संयुक्त परिवार का चलन था जिसमें एक ही परिवार में कई पीढ़ीयों के लोग मिल-जुल कर एक साथ रहते थे।
परंतु वर्तमान सोच एवं आवश्यकताओं ने संयुक्त परिवार को हाशिये पर लाकर खड़ा कर दिया है। कभी भारतीय परंपरा की शान समझा जाने वाला संयुक्त परिवार आज गाँवों में भी अपना दम तोड़ रहा है।
इस भाषण के माध्यम से हम संयुक्त परिवार के बारे मे जानेंगे।
माननीय मुख्य अतिथि महोदय, कार्यक्रम के आयोजन-कर्ता महोदय एवं यहाँ उपस्थित समस्त मित्रगणों को मेरा प्यार भरा नमस्कार, आदरणीय संचालक महोदय ने मुझे संयुक्त परिवार पर दो शब्द कहने की अनुमति दी, मैं तहे दिल से उनका आभार व्यक्त करता हूँ। जैसा की आप सभी जानते हैं कि संयुक्त परिवार हमारे भारतीय समाज की मुख्य विशेषता रही है जहाँ बच्चों को उनके सर्वांगीण विकास का मौका मिलता है और उनमें अच्छे संस्कार एवं गुण विकसित होते हैं।
संयुक्त परिवार प्राचीन भारतीय संस्कृति एवं रीति-रिवाजों का दर्पण है। यह प्राचीन भारतीय कला, हस्तशिल्प, शिल्प कौशल आदि को संरक्षित करता है तथा पीढ़ी दर पीढ़ी इन्हें भविष्य मे हस्तांतरित करता रहता है। आज मशीनों के युग मे भी हस्तशिल्प कला अगर पनप रही है, हमारी चारित्रिक विशेषताएं सिर उठाए अपना परिचय दे रही हैं, देश तथा विदेशों में भारतीय संस्कृति की अगर जय-जयकार हो रही है तो इसका अधिकतम श्रेय संयुक्त परिवार को जाना चाहिए, जिसका प्रत्येक सदस्य अपने अंदर एक छोटे से भारत की छवि रखता है। संयुक्त परिवार में रहने वाला हर इंसान बुजुर्गों की सेवा को अपना धर्म एवं राष्ट्र की सेवा को अपना कर्म मानता है।
मित्रों संयुक्त परिवार एक ऐसा परिवार है जिसका कोई बुजुर्ग कभी वृद्धा आश्रम नहीं जाता। वो संयुक्त परिवार ही है जहाँ कभी किसी को बोझ नहीं समझा जाता। बेरोजगारों, विधवाओं एवं दिव्यांगों का भी संपत्ति में पूर्ण अधिकार होता है। परिवार के सभी सदस्यों में एकता एवं सहयोग की भावना होती है। वास्तव में मोदी जी ने जो सबका साथ सबका विकास का बात की है अगर वो धरातल पर कहीं खरी उतरती है तो हमारे संयुक्त परिवार में।
मित्रों इन्ही चन्द शब्दों के साथ मैं अपनी वाणी को विराम देता हूँ और उम्मीद करता हूँ की मेरे शब्दों ने आपके अन्तर्मन को जरूर छुआ होगा, और संयुक्त परिवार के बारे में आपको सोचने पर मजबूर किया होगा।
धन्यवाद!
माननीय प्रधानाचार्य महोदय, उपस्थित शिक्षकगण, एवं मेरे प्रिय मित्रों!
मैं आप सभी का हार्दिक अभिनंदन वंदन करता हूँ, आज यहाँ उपस्थित आप सभी महानुभावों के समक्ष मुझे संयुक्त परिवार पर चंद शब्द कहने का अवसर प्राप्त हुआ, जिसके लिए मैं अपने आप को गौरवान्वित महसूस कर रहा हूँ।
संयुक्त परिवार एक ऐसी संस्था है जहाँ सामाजिक एवं नैतिक मूल्यों का निर्माण होता है तथा मानव इन मूल्यों को आधार बनाकर मानवीयता के लक्ष्य प्राप्त करने का प्रयत्न करता है और इन्हीं नागरिक मूल्यों, विचारों, व्यवहारों आदि से राष्ट्र के चरित्र का निर्धारण होता है और ऐसी चारित्रिक विशेषता वाला राष्ट्र ही विश्व पटल पर नये नये कीर्तिमान स्थापित करता है।
संयुक्त परिवार के सदस्यों में संयम एवं सहयोग की भावना होती है जिससे एक दिव्य संयुक्त उर्जा का जन्म होता है जो गृह क्लेषों का निवारक, परिवार के उन्नति का कारक, तथा सदस्यों में एकजुटता को बनाये रखती है। बच्चों के लालन-पालन एवं शारिरिक विकास के लिये संयुक्त परिवार जितना उपयोगी है उतना ही महत्व इसका वृद्धों के अन्त समय में होता है क्योंकि अन्त समय तक परिवार का नियंत्रण इनके हाथों में रहता है इन्हें अपनी इच्छापूर्ति के लिए किसी एक सदस्य पर निर्भर रहने की आवश्यकता नहीं होती है।
कुछ समस्याएं ऐसी होती है जहां बच्चे मम्मी-पापा से कहने में संकोच करते हैं ऐसे में वे परिवार के अन्य सदस्य जैसे दादा-दादी, काका-काकी, भैया-भाभी, बुआ, दीदी आदि से अपनी समस्या को साझा कर सकते हैं तथा उसका समाधान पा सकते हैं।संयुक्त परिवार को भारत देश में आदर्श परिवार के रूप में देखा जाता है और हमें यह कहते हुए बड़ा गर्व महसूस होता है कि हमारे देश में बहुतायत मात्रा में संयुक्त परिवार का प्रचलन है। परंतु ऐसा जान पड़ता है कि हमारी ये खुशी ज्यादा दिन तक टिकेगी नहीं क्योंकी प्रवासन, शहरीकरण तथा औद्योगिकरण की तीव्रता ने परिवारिक संरचनाओं में तेजी से परिवर्तन लाना प्रारम्भ कर दिया है। 2011 की जनगणना के आँकड़े बताते हैं कि भारत में कुल 24.88 करोड़ परिवारों में से 12.97 करोड़ परिवार एकल परिवार है। इन आंकड़ों के हिसाब से 2011 में ही एकल परिवारों की संख्या 50 प्रतिशत से अधिक हो चुकी थी। इस अनुमान से वर्तमान समय के इसके आँकड़े बहुत ही चिंताजनक होंगे।
मित्रों हमारे लिए जितना कठिन होगा संयुक्त परिवारों के विखण्डन का कारण पता करना उससे कई गुणा ज्यादा कठिन होगा उन कारणों का निवारण करना। अगर हमें इन कारणों के लिए सिर्फ एक शब्द इस्तेमाल करना हो तो हम प्रवासन शब्द का प्रयोग करेंगे। प्रवासन के लिए अनेक कारक उत्तरदायी हो सकते हैं। जैसे-
अगर हम सरकारी आंकड़ो की माने तो भारत में 2001 मे आन्तरिक प्रवासियों की संख्या 31.5 करोड़ थी जो 2011 मे बढ़कर 45.36 करोड़ हो गई तथा International Organization for Migration(IOM) के अनुसार, विश्व के विभिन्न देशों मे 1.75 करोड़ लोग प्रवासी बनकर जीवन यापन कर रहे हैं। इन सब समस्याओं के मद्दे नजर अगर हमें संयुक्त परिवार के विखण्डन को रोकना है तो हमें सबसे पहले एवं सबसे ज्यादा पलायन के कारणों का निवारण सरकार के साथ मिलकर करना होगा। जिसकी शुरूआत उत्तर प्रदेश सरकार ने ‘श्रमिक कल्याण आयोग ’ की स्थापना करके कर दी है।
अब मैं अपने शब्दों को यहीं विराम देता हूँ।
जय हिन्द!
उपरोक्त विवेचनाएं ये स्पष्ट करती हैं कि किस प्रकार से संयुक्त परिवार बच्चे, बुढ़ें, विधवा, बेरोजगार, दिव्यांग, समाज तथा राष्ट्र के निर्माण एवं संरक्षण में अपना अमुल्य योगदान देता है कैसे वह मानव में मानवीयगुणों का विकास कर उसे सफलता के शिखर तक ले जाता है कैसे उसने इंसानियत को आज भी मानव के हृदय में जिंदा रखा है। परंतु चिंता इस बात की है कि इतना उपयोगी होने के बाद भी आज यह विलुप्तप्राय है, ग्रामीण क्षेत्रों में भी यह शवशैया पर लेटा हुआ है। सरकारें भी इसकी सुध नहीं ले रहीं है, ईश्वर जानता है की इसकी क्षतिपूर्ति आसान नहीं होगी।