डॉ. बी. आर. अंबेडकर पर भाषण
(अंबेडकर जयंती के लिए)
बहुजनों खातिर आपने पूरा जीवन संघर्ष किया है
जो सहन न हो सके वो घूंट भी आपने पिया है,
मिला होगा औरों को किस्मत से सब कुछ,
हमें तो जीने का अधिकार भी आपने ही दिया है।
माननीय अतिथिगण, सम्मानित शिक्षकगण, प्रिय मित्रों और उपस्थित सभी सम्मानितगण,
सर्वप्रथम आप सभी को अंबेडकर जयंती की हार्दिक शुभकामनाएं। साथियों, आज हम सब यहाँ एकत्रित हुए हैं, ताकि हम उस महान व्यक्तित्व महामानव को याद करें, जिन्होंने न केवल भारत के संविधान को आकार दिया, बल्कि समाज में समानता, स्वतंत्रता, न्याय, बन्धुता और मानवाधिकारों की नींव रखी। जी हाँ – मैं बात कर रहा हूँ भारत रत्न डॉ. भीमराव रामजी अंबेडकर जी की, जिन्हें हम प्यार से बाबासाहेब कहते हैं। साथियों, आज उनके जन्मदिवस पर, हमें उनके जीवन संघर्ष और अविस्मरणीय योगदान को याद करने का अवसर मिला है।
साथियों बाबासाहेब का सामाजिक संघर्ष तभी शुरू हो गया था जब 14 अप्रैल, 1891 को मध्य प्रदेश के महू में एक बहुत ही साधारण दलित परिवार में उन्होंने जन्म लिया। उनके पिता रामजी मालोजी सकपाल एक सैनिक थे और माता भीमाबाई एक गृहिणी। लेकिन उस समय समाज में व्याप्त छुआछूत और जातिगत भेदभाव ने उनके बचपन को कठिनाइयों से भर दिया। एक दलित परिवार में जन्म लेने के कारण उन्हें अनेक अपमान और कष्ट सहने पड़े। स्कूल में उन्हें अलग बैठाया जाता था, पानी के लिए उन्हें दूसरों पर निर्भर रहना पड़ता था। लेकिन इन सबके बावजूद, बाबासाहेब ने हार नहीं मानी। उन्होंने अपनी शिक्षा को अपना हथियार बनाया और अपने दृढ़ संकल्प से पूरी दुनिया को दिखा दिया कि प्रतिभा और मेहनत किसी भी बाधा को पार कर सकती है।
साथियों बाबासाहेब की शिक्षा का सफर बहुत ही प्रेरणादायक है। उन्होंने मुंबई के एलफिंस्टन कॉलेज से स्नातक की डिग्री हासिल की, फिर कोलंबिया विश्वविद्यालय, अमेरिका जाकर अर्थशास्त्र में एम.ए. और पीएच.डी. की उपाधि प्राप्त की। इसके बाद लंदन स्कूल ऑफ इकोनॉमिक्स से उन्होंने बैरिस्टर की पढ़ाई पूरी की। इस तरह वे पहले भारतीय बने जिन्होंने इतने उच्च स्तर की शिक्षा विदेशों से प्राप्त की। लेकिन साथियों उनकी यह उपलब्धि केवल व्यक्तिगत सफलता नहीं थी, बल्कि यह उन लाखों करोड़ो लोगों के लिए प्रेरणा बनी जो समाज के हाशिए पर थे।
जब भारत अंग्रेजों से आजाद हुआ, तो हमें एक ऐसा संविधान चाहिए था जो सभी को समान अधिकार दे, जो जाति, धर्म, लिंग और वर्ग के आधार पर भेदभाव को खत्म करे। संविधान सभा के प्रारूप समिति के अध्यक्ष के रूप में बाबासाहेब ने दिन-रात मेहनत की और 26 नवंबर, 1949 को हमें वह संविधान रूपी वरदान दिया, जिसे आज हम भारत का गौरव कहते हैं। बाबासाहेब ने इस संविधान में हम सबको मौलिक अधिकार, समानता का अधिकार, सामाजिक न्याय आदि ऐसे कई अधिकार दिए जिसकी वजह से आज हम सर उठाकर जीवन जी पा रहे हैं। यह संविधान न केवल एक कानूनी दस्तावेज है, बल्कि यह सपना है – एक ऐसे भारत का सपना जहाँ हर व्यक्ति सम्मान के साथ जी सके।
साथियों बाबासाहेब केवल संविधान निर्माता ही नहीं थे, बल्कि वे एक समाज सुधारक, अर्थशास्त्री, लेखक और विचारक भी थे। उन्होंने छुआछूत, भेदभाव और जाति व्यवस्था के खिलाफ आवाज उठाई। महाड़ सत्याग्रह और कालाराम मंदिर आंदोलन जैसे उनके प्रयासों ने दलितों, शोषितों, वंचितों को उनके अधिकारों के प्रति जागरूक किया। उन्होंने कहा था, “मैं ऐसे धर्म को नहीं मानता जो भेदभाव सिखाए।” इसी सोच के साथ उन्होंने अपने अंतिम समय में बौद्ध धर्म को अपनाया और अपने अनुयायियों को एक नई राह दिखाई।
उनका मानना था कि शिक्षा, संगठन और संघर्ष ही वह तीन रास्ते हैं, जो समाज के दबे-कुचले वर्ग को ऊपर उठा सकते हैं। “शिक्षित बनो, संगठित रहो, संघर्ष करो” – यह उनका संदेश आज भी हमारे लिए वरदान है। उन्होंने महिलाओं के अधिकारों की भी वकालत की। हिंदू कोड बिल के माध्यम से उन्होंने महिलाओं को संपत्ति me hissa और तलाक lene जैसे कई अधिकार दिए जिसकी वजह से आज हर समाज की महिलाओं को पुरुषों के बराबर सम्मान व अधिकार मिलता है।
साथियों, बाबासाहेब का जीवन हमें सिखाता है कि परिस्थितियाँ चाहे जितनी भी विपरीत क्यों न हो, अगर इंसान में हौसला और मेहनत करने की लगन हो, तो वह कुछ भी हासिल कर सकता है। आज हम जिन अधिकारों का आनंद ले रहे हैं, उसके पीछे उनके पूरे जीवन का त्याग और बलिदान है। लेकिन आज मेरे मन में एक सवाल भी गूंज रहा है कि क्या हम सचमुच उनके सपनों का भारत बना पाए हैं? आज भी समाज में भेदभाव, गरीबी और अशिक्षा मौजूद है। क्या यह हमारी जिम्मेदारी नहीं है कि हम उनके दिखाए रास्ते पर चलें और एक ऐसा समाज बनाएँ जहाँ हर इंसान को उसके जन्म से नहीं बल्कि उसकी योग्यता के आधार पर सम्मान मिले।
अंत में, मैं यही कहना चाहूँगा कि डॉ. बी. आर. अंबेडकर केवल एक व्यक्ति नहीं, बल्कि एक विचारधारा हैं जो हमेशा हमारे विचारों में जिन्दा रहेंगे। उनकी जयंती हमें यह याद दिलाती है कि हमें अपने अधिकारों के लिए लड़ना चाहिए और दूसरों के अधिकारों का सम्मान करना चाहिए। साथ ही शिक्षित बनना, संगठित रहना और संघर्ष करना किसी भी हालत में नहीं छोड़ना है। आइए, आज हम सब मिलकर उनके सपनों को साकार करने का संकल्प लें।
जय भीम, जय भारत, जय संविधान!