डॉ भीम राव अंबेडकर का महिलाओं के जीवन में योगदान

भारत में हर महिला यानी सभी धर्मों की महिलाओं के उत्थान के लिए बाबा साहेब का बहुत बड़ा योगदान है। पर ज्यादातर महिलाओं को यह लगता है कि इसमें कोई बड़ी बात नहीं है और अक्सर महिलाओं को तो ये पता ही नहीं है कि उन्हें सारे हक अधिकार मिले कैसे। लेकिन मैं सभी महिलाओं को ये बताना चाहती हूं कि एथेंस (ग्रीस) जो सबसे पहला लोकतांत्रिक व्यवस्था का उदाहरण है, वहां भी महिलाओं को वोट देने का अधिकार 1952 में मिला। अमेरिका जैसे विकसित देश में भी जिसका लिखित संविधान 1787 में ही लागू हो गया था वहां भी 1920 में 19वें संसोधन में सिर्फ श्वेत महिलाओं को वोट का अधिकार मिला, अश्वेत पुरुषों और अश्वेत महिलाओं को 1965 में वोट का अधिकार मिला।

पूरी दुनिया के लोकतंत्र के इतिहास में महिलाओं को हमेशा ही मतदान के अधिकार से वंचित रखा गया है इसीलिए वर्षों संघर्ष बाद महिलाओं को पहली बार 1893 में न्यूजीलैंड में, 1906 में फिनलैंड में, ब्रिटेन में 1918 में, 1902 में आस्ट्रेलिया में, 1913 में नार्वे में और पाकिस्तान में 1956 में महिलाओं को वोट के अधिकार मिले।

सिर्फ हमारा भारत ही ऐसा देश है जहाँ महिलाओं को वोट अधिकार के लिए संघर्ष नहीं करना पड़ा वो भी बाबा साहेब की वजह से, जिस दिन भारत का संविधान लागू हुआ उसी दिन से महिलाओं को वोट अधिकार के साथ-साथ पुरुषों के बराबर सारे हक अधिकार मिल गए। डॉ. भीमराव अंबेडकर केवल दलितों और वंचित वर्गों के मसीहा ही नहीं थे, बल्कि उन्होंने महिलाओं के अधिकारों के लिए भी आजीवन संघर्ष किया। वे सच्चे अर्थों में महिला सशक्तिकरण के अग्रदूत थे। उन्होंने भारतीय समाज में महिलाओं की स्थिति को सुधारने के लिए कई महत्वपूर्ण कदम उठाए। जैसे:

  • डॉ. भीमराव अंबेडकर जी ने कानून मंत्री रहते हुए महिलाओं को संपत्ति, विवाह, उत्तराधिकार और तलाक जैसे मामलों में समान अधिकार दिलाने के लिए हिंदू कोड बिल का मसौदा तैयार किया। इस बिल के अंतर्गत महिलाओं को संपत्ति में अधिकार, उन्हें तलाक लेने का अधिकार, बहुविवाह पर रोक, अंतरजातीय विवाह व अंतर्धार्मिक विवाह की अनुमति, बच्चा गोद लेने की अनुमति, विधवा और पुत्री को पैतृक संपत्ति में भागीदारी का अधिकार मिला, इत्यादि कई अधिकार मिले। हालांकि उस समय इस बिल को पूरी तरह पारित नहीं किया गया, लेकिन डॉ. अंबेडकर ने इस मुद्दे पर नैतिक आधार पर मंत्री पद से इस्तीफा दे दिया।
  • विधवा पुनर्विवाह का समर्थन: बाबा साहेब ने संविधान में विधवा महिलाओं को दोबारा शादी करने का कानूनी अधिकार दिया।
  • श्रम कानूनों में सुधार: उन्होंने संविधान में महिलाओं के लिए प्राइवेट व सरकारी नौकरियों में प्रसूति अवकाश (मैटरनिटी लीव) व समान वेतन की व्यवस्था दी, जिससे कामकाजी महिलाओं को गर्भावस्था के दौरान राहत मिल सके और वे अपने बच्चों की देखभाल कर सकें।
  • राजनीतिक भागीदारी को बढ़ावा: उन्होंने संविधान में महिलाओं के लिए लैंगिक समानता को मौलिक अधिकार के रूप में शामिल किया। उन्होंने महिलाओं की राजनीतिक भागीदारी को महत्व दिया और संविधान में महिलाओं को मतदान का अधिकार दिलाया।
  • बाबा साहेब ने यह सुनिश्चित किया कि संविधान में महिलाओं को पुरुषों के बराबर अधिकार मिले।
  • संविधान के अनुच्छेद 14, 15 और 16 के अंतर्गत महिलाओं को समानता, भेदभाव से मुक्ति और समान अवसर के अधिकार प्राप्त हुए।
  • शिक्षा और रोजगार में महिलाओं की भागीदारी: बाबा साहेब मानते थे कि शिक्षा ही सच्चा शस्त्र है जिससे महिलाएं अपने अधिकारों के लिए लड़ सकती हैं। उन्होंने नारी शिक्षा को सर्वोच्च प्राथमिकता दी और कहा कि “शिक्षा ही महिलाओं की मुक्ति की कुंजी है”। उन्होंने लड़कियों के लिए स्कूल, छात्रावास और वजीफों की व्यवस्था करने पर जोर दिया।
  • महिला संगठनों को समर्थन और प्रोत्साहन: उन्होंने महिला आंदोलनों और संगठनों को समर्थन दिया। वे चाहते थे कि महिलाएं अपने अधिकारों के लिए खुद आवाज उठाएं। उन्होंने 1930 के दशक में “महिला सम्मेलन” का आयोजन भी किया, जिसमें महिलाओं को आत्मनिर्भर बनने और सामाजिक बंधनों को तोड़ने का आह्वान किया।
  • सामाजिक कुरीतियों के खिलाफ संघर्ष: बाबा साहेब ने सती प्रथा, बाल विवाह, पर्दा प्रथा और बहुपत्नी प्रथा जैसी कुरीतियों की तीव्र आलोचना की। उन्होंने कहा कि जब तक महिलाएं इन कुरीतियों के बंधनों से मुक्त नहीं होंगी, तब तक समाज का वास्तविक विकास नहीं हो सकता।
  • नारी को आत्मसम्मान और आत्मनिर्भरता की प्रेरणा: डॉ. अंबेडकर महिलाओं को केवल सहानुभूति का पात्र नहीं, बल्कि आत्मनिर्भर और सम्मानपूर्ण जीवन जीने वाली इकाई के रूप में देखते थे।
  • उन्होंने कहा था: “मैं एक ऐसे समाज की कल्पना करता हूँ जहाँ स्त्री और पुरुष दोनों को समान अधिकार हों, और कोई भी व्यक्ति स्त्री को कमजोर या दोयम दर्जे का न समझे।”

डॉ. भीमराव अंबेडकर जी का महिलाओं के जीवन में योगदान अत्यंत महत्वपूर्ण और ऐतिहासिक है। उन्होंने केवल कानून और नीतियों में ही नहीं, बल्कि सामाजिक चेतना में भी क्रांति लाने का कार्य किया। आज जो महिलाएं शिक्षा, संपत्ति, रोजगार और राजनीति में भाग ले रही हैं, उसका बीज बहुत पहले बाबासाहेब ने ही बोया था।